Rajasthan Board RBSE Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 11 ईदगाहRBSE Class 10 Hindi Chapter 11 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तरRBSE Class 10 Hindi Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न1.प्रेमचन्द के पहले कहानी संग्रह का नाम है Show
2. दुकानदार ने हामिद को
पहली बार चिमटे की कीमत बताई थी RBSE Class 10 Hindi Chapter 11 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 3. प्रश्न 4. RBSE Class 10 Hindi Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 5. महमूद ने कौन-सा
खिलौना खरीदा? प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. RBSE Class 10 Hindi Chapter 11 निबंधात्मक प्रश्नप्रश्न 12. प्रसंग एक-मेले में बच्चे खिलौने तथा मिठाई खरीदते हैं। हामिद के पास कुल तीन पैसे हैं। खिलौने खरीदने में असमर्थ हामिद उनको पाने के लिए ललचाता है। बच्चे उसे अपने खिलौने तथा मिठाई नहीं देते। तब हामिद ऊपरी मन से इन चीजों की बुराई करता है। वह तर्क देकर चिमटे को खिलौना, शेर, बहादुर, रुस्तमे-हिंद तथा सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध करता है। वह अपनी खरीद को श्रेष्ठ बताकर आगे निकलने की होड़ में अन्य बच्चों से पीछे रहना नहीं चाहता। उसे समझाया गया है कि उसके पिता बहुत सारा पैसा कमाने गए हैं तथा माँ खुदा के यहाँ से अच्छी-अच्छी चीजें लेने गई है। वे जल्दी लौटेंगे। हामिद कोई प्रतिवाद नहीं करता और इस बात को मान लेता है। इससे उसकी निश्छलता सिद्ध होती है। प्रश्न 13. प्रश्न 14. (ख) कितना अपूर्व दृश्य था …………….. एक लड़ी में पिरोए हुए हैं। RBSE Class 10 Hindi Chapter 11 अन्य महत्वपूर्ण प्रणोत्तरवस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर 2. प्रेमचंद के उर्दू कहानी-संग्रह का नाम है 3. निम्नलिखित में किस पत्रिका के सम्पादक प्रेमचंद नहीं थे? 4. प्रेमचंद को, ‘उपन्यास सम्राट’ कहा था 5. ‘ईदगाह’ कहानी का नायक है 6. मेले में जाते समय हामिद के पास कितने पैसे थे 7. ईद के मुहर्रम हो जाने का अर्थ ह 8. हामिद के पिता का नाम है RBSE Class 10 Hindi Chapter 11 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. RBSE Class 10 Hindi Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. इनको खरीदने के लिए पैसे भी नहीं थे। वे उधार माँगने महाजन चौधरी कायम अली के घर दौड़े जा रहे थे। यदि चौधरी उधार देने से मना कर दें तो ईद की खुशियाँ काफूर हो जायेंगी और वह मुहर्रम के मातम में बदल जाएगी। बच्चों को यह नहीं पता था। प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. उनके कपड़ों से इत्र की सुगंध आ रही थी। सभी के दिलों में उमंग थी। गाँव के लोगों का छोटा-सा दल भी अपनी विपन्नता से बेखबर संतोष और धैर्य के साथ ईदगाहे जा रहा था। प्रश्न 13. प्रश्न 14. ईदगाह में पढ़ी जाने वाली सामूहिक नमाज में सुन्दर व्यवस्था एवं अनुशासन था। सब लोग कतारबद्ध होकर एक साथ खुदा को सिजदा करते थे, एक साथ खड़े होते थे, एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते थे। यह देखकर ऐसा लगता था मानो सब लोग भाईचारे एवं एकता के सूत्र से जुड़े हुए हों। कोई ऐसा तत्व उन सबके बीच में सामान्य रूप से व्याप्त था। जो उन्हें आपस में जोड़े हुए था। यह तत्व था-इस्लाम धर्म। सभी मुस्लिम ईद के अवसर पर सामूहिक नमाज पढ़कर अपनी एकता प्रदर्शित कर रहे थे। इससे लग रहा था कि धर्म वह तत्व है जो लोगों को आपस में जोड़ता है, तोड़ता नहीं।. प्रश्न 15. इसके बाद उन्होंने गुलाब जामुन, सोहन हलवा और रेवड़ियाँ खाईं। हामिद इस दल से अलग ही रहा। उसके पास कुल तीन ही पैसे थे। अत: वह उनके साथ मेले का मजा नहीं ले सकता था। प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. वह बहादुर है। शेर की गर्दन पर सवार होकर उसकी आँखें निकाल सकता है। उसका चिमटा बहादुर है, रुस्तमे हिंद है। वह एक ही प्रहार से खिलौनों को तोड़ सकता है। उसका प्रयोग बन्दूक, फकीर के चिमटे तथा मजीरों की तरह भी हो सकता है। चिमटे को पाकर उसकी दादी उसको दुआएँ देंगी। प्रश्न 25. प्रश्न 26. चिमटा खरीदने का हामिद का निर्णय उसके नीति और न्याय के पथ पर चलने के कारण ही हो सका है। उसके चिमटे के पक्ष में उसके तर्क, नीति और न्याय से पूर्ण होने के कारण ही प्रभावशाली है।। प्रश्न 27. “कोई धेलचा कनकौआ किसी गंडेवाले कनकौए को काट गया है।”-वाक्य में ‘धेलचा’ ‘कनकौआ और ‘गंडेवाले’
कैसे शब्द हैं? इनके प्रयोग का प्रेमचंद की भाषा पर क्या प्रभाव पड़ा है? प्रश्न 28. प्रश्न 29. उसने कहा कि उसका चिमटा वकील साहब को नीचे गिराकर कानून को उनके पेट में डाल देगा। उसके इस कुतर्क ने सभी को निरुत्तर कर दिया। मैं कुतर्क को सही तो नहीं मानती किन्तु कुछ स्थितियों में वह तर्क से अधिक प्रभावशाली सिद्ध होता है। प्रश्न 30. प्रश्न 31. छोटे से हामिद ने अपनी उम्र से अधिक जिम्मेदारी का निर्वाह किया था। खिलौनों और मिठाइयों के लालच में वह नहीं पड़ा था और दादी के लिए चिमटी खरीदा था। हामिद तथा अमीना दोनों का ही आचरण उनकी आयु के प्रतिकूल था। प्रश्न 32. RBSE Class 10 Hindi Chapter 11 निबंधात्मक प्रश्नप्रश्न 1. कहानी में प्रयुक्त कुछ मुहावरे इस प्रकार हैं-छक्के छूटना, नानी मरना, मिजाज दिखाना, कुबेर का धन, आँखें बदलना, गर्दन पर सवार होना, कानून पेट में डाल देना, तीन कौड़ी का, आँखों तले अँधेरा छाना, राई का पर्वत बनाना आदि। भाषा के स्वरूप को लेकर प्रेमचंद बड़े उदार हैं।उनकी भाषा में तत्सम प्रधान पूरे वाक्य हैं तो उर्दू, अँग्रेजी तथा बोलचाल में प्रचलित शब्द तत्सम शब्दों के साथ मिलते हैं। उदाहरणार्थ-“बुढ़िया अमीना बालिका बन गई। दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी बड़ी बूंदें गिराती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता।” तथा “विपत्ति अपना सारा दल-बल लेकर आए हामिद की आनंद-भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी।” प्रश्न 2. ईद की नमाज के बाद वहाँ लगे मेले में वे खिलौने और मिठाइयाँ खरीदते हैं। कहानी प्रारम्भ से अंत तक ईद और ईदगाह से जुड़ी है। अतः इसका शीर्षक ‘ईदगाह’ उपयुक्त है। यह सरल, संक्षिप्त, रोचक और आकर्षक भी है।ईदगाह जाने पर ही हामिद ने वहाँ लगने वाले मेले से अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदा, क्योंकि वह नहीं चाहता कि अब आगे से उसकी दादी के हाथ तवे से रोटियाँ उतारते समय जलें । कहानी का एक अन्य शीर्षक ‘हामिद का चिमटा’ भी हो सकता है, क्योंकि हामिद ने अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदा था। कहानी के कथानक के विकास तथा पात्रों के चरित्र-चित्रण में चिमटे का भी योगदान है। ईदगाह’ के बाद ‘हामिद का चिमटा’ भी एक अच्छा और प्रभावशाली शीर्षक हो सकता है। प्रश्न 3. पुलिस वाले चोरों से मिलकर चोरियाँ करवाते हैं। बच्चों में लालच की प्रवृत्ति भी होती है। वे अपने खिलौने दूसरों को छूने भी नहीं देते। अपनी चीज को बेहतर बताने की प्रवृत्ति भी उनमें होती है। हामिद ने सबल तर्को से सिद्ध कर दिया कि उसकाचिमटा सब खिलौनों से श्रेष्ठ है। बच्चों में निश्छलता इस सीमा तक होती है कि उनसे जो कुछ कह दो, उसी को मान लेते हैं। अमीना ने हामिद से कह दिया कि तुम्हारे अब्बा रुपये कमाने गए हैं और अम्मी खुदा के यहाँ से तुम्हारे लिए अच्छी-अच्छी चीजें लाएँगी तो हामिद ने इसे सच मान लिया। बच्चे निश्छल स्नेह करते हैं। हामिद अपनी दादी के लिए चिमटा इसलिएलाया क्योंकि वह दादी से स्नेह करती है और चाहता है कि तवे से रोटियाँ, उतारते समय उनके हाथ न जलें। इस प्रकार यह कहानी बाल मनोविज्ञान पर पूरी तरह आधारित है। प्रश्न 4. दुकानदार ने कहा-तुम्हारे काम का नहीं है जी। उक्त संवाद योजना में संवाद छोटे-छोटे, सरल, सहज, प्रवाहपूर्ण तथा नाटकीय हैं और कथा को आगे भी बढ़ाते हैं। संवाद पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं को भी प्रकट करते हैं। प्रश्न 5.
प्रश्न 6. कोई पूजन सामग्री एवं फूलमाला लेने के लिए मिठाई वाले की पड़ोस में लगी पूजन सामग्री की दुकान पर खड़ा सामान ले रहा होता है। मन्दिर के बाहर तमाम लोग, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं, प्रसाद लेने के लिए खड़े रहते हैं। | कुछ दूर आगे बढ़ने पर खेल का मैदान पड़ता है, जहाँ ज्यादातर क्रिकेट होती रहती है। चारों ओर दर्शक बैठे होते हैं, जो हर अच्छे शॉट पर तालियाँ बजाते हैं। प्रश्न 7. उसकी आँखों से आँसुओं की बड़ी-बड़ी बूंदें गिर रही थीं, पर बेचारा हामिद क्या जाने कि उसकी दादी रो क्यों रही थी? उसे तो यही लग रहा था कि शायद उससे कोई गलती हो गई थी। वह इस रहस्य को नहीं जानता था कि ये ममता एवं वात्सल्य की अधिकता से निकले आँसू थे। वह स्नेह के वशीभूत होकर रो रही थी और दामन फैलाकर अपने पोते को दुआएँ देती जा रही थी, पर हामिद इस रहस्य से अपरिचित था। लेखक परिचय प्रश्न 1. प्रेमचन्द अध्यापक तथा डिप्टी इंस्पेक्टर रहे। महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर आपने नौकरी छोड़ दी। आप साहित्य-रचना और सम्पादन का कार्य करने लगे। सन् 1936 में आपका निधन हो गया। साहित्यिक परिचय-आरम्भ में प्रेमचन्द उर्दू में ‘नवाबराय’ के नाम से लिखते थे। सर्वप्रथम आपका कहानी-संग्रह ‘सोजे वतन’ प्रकाशित हुआ। राष्ट्रीय भावनाओं की प्रधानता के कारण ब्रिटिश सरकार ने उसको प्रतिबन्धित कर दिया। इसके बाद आप हिन्दी में ‘प्रेमचन्द’ नाम से लिखने लगे। प्रेमचन्द के साहित्य में देशप्रेम, राष्ट्रीयता, दलितों, नारियों, किसानों आदि की पीड़ा, वर्ण व्यवस्था आदि कुरीतियों, अशिक्षा, निर्धनता, जमीदारों और अँग्रेज शासकों के अत्याचारों आदि का मार्मिक चित्रण मिलता है। उनकी भाषा सहज, सरल और पात्रानुकूल है। आपने वर्णनात्मक, विवरणात्मक संवादपरक तथा मनोविश्लेषणात्मक शैलियों में रचनाएँ की हैं। प्रेमचन्द ‘कलम के सिपाही’ तथा ‘उपन्यास सम्राट’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। कृतियाँ कहानी संग्रह-मानसरोवर (आठ भाग)। उपन्यास-निर्मला, सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, गोदान। नाटक-कर्बला, संग्राम। पत्रिकाएँ-माधुरी, हंस, मर्यादा, जागरण। ‘पाठ-सार प्रश्न 1. ईद का त्यौहार-रमजान के तीस रोजे बीतने के बाद ईद का दिन आया है। पूरे गाँव में चहल-पहल है। ईदगाह में जाकर ईद की नमाज अदा करनी है। तीन कोस पैदल चलना होगा। लौटते-लौटते दोपहर हो जायेगी। बच्चों को ईद की ज्यादा खुशी है। वह जल्दी ईदगाहे जाना चाहते हैं। वे अपने पास के पैसों को बार-बार गिनकर जेब में रख लेते हैं। महमूद के पास बारह, मोहसिन के पास पन्द्रह और हामिद के पास तीन पैसे हैं। हामिद के माँ-बाप नहीं हैं। वह अपनी बूढ़ी दादी अमीना के पास रहता है। अमीना का दिल कचोट रहा है। सब बच्चे अपने पिताओं के साथ ईदगाह जायेंगे, मगर हामिद अकेला जा रहा है। अगर सेवइयाँ पकाने की चिन्ता न होती तो अमीना भी उसके साथ जाती। हामिद अपनी दादी को विश्वास दिलाता है-“तुम डरना नहीं अम्मा, मैं सबसे पहले आऊँगा।” बच्चे रास्ते की चीजों पर बातें करते हुए प्रसन्नतापूर्वक ईदगाह जा रहे हैं। ईदगाह की नमाज-तभी ईदगाह दिखाई पड़ता है। उसके ऊपर इमली के घने वृक्षों की छाया है। नीचे फर्श पर जाजिम बिछा है। रोजेदार उस पर नमाज पढ़ने के लिए कतारों में बैठे हैं। गाँव के लोग भी वजू करते हैं और पिछली कतार में खड़े हो जाते हैं। नमाज शुरू होती है। लाखों के सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं। फिर सब एक साथ खड़े होते हैं। घुटनों के बल बैठते हैं। अत्यन्त सुंदर दृश्य है। यह सामूहिक नमाज सबमें भाईचारा पैदा करती है। नमाज खत्म होने पर सभी आपस में गले मिलते हैं। मेले में बच्चे-नमाज के बाद बच्चे झूला झूलते हैं। लकड़ी के बने ऊँटों और घोड़ों वाले चर्सी पर महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी बैठे। हामिद के पास तीन पैसे थे। वह इनमें से एक भी पैसा झूले पर खर्च करना नहीं चाहता था। इसके बाद वे खिलौनों की दुकान पर पहुँचे। महमूद ने सिपाही, मोहसिन ने भिश्ती और नूरे ने वकील खरीदा। इन पर उन्होंने दो-दो पैसे खर्च किए। हामिद यहाँ भी दूर रहा। इसके बाद बच्चों ने मिठाई की दुकान पर मिठाई खरीदी। उन्होंने रेवड़ियाँ, गुलाब जामुन और सोहन हलवा खरीदा। हामिद ने कुछ नहीं खरीदा। वह ललचाते हुए खिलौनों और मिठाई की बुराई करता रहा। हामिद का चिमटा-मेले में लोहे के सामान की एक दुकान थी। हामिद वहाँ रुक गया। उसे याद आया कि चिमटा न होने के कारण दादी की उँगलियाँ रोटी सेंकते समय जल जाती हैं। उसने मोल-भाव करके दुकानदार से तीन पैसे में चिमटा खरीद लिया। हामिद के हाथ में चिमटा देखकर बच्चे उसकी हँसी उड़ाने लगे। परन्तु हामिद ने कहा उसका चिमटा मजीरों की तरह बज सकता है, कंधे पर रखने पर बन्दूक बन सकता है, उसके चिमटे की एक ही कोर से उनके खिलौने टूट जायेंगे, उसका चिमटा ‘रुस्तम-ए-हिंद’ है, वह आग, पानी, तूफान में डटा रह सकता है। उनके खिलौने उसके चिमटे के आगे नहीं टिक सकते। हामिद के तर्को से प्रभावित होकर बच्चे उसके चिमटे के बदले अपने खिलौने थोड़ी देर के लिए देने को तैयार हो गए। गाँव वापसी-ग्यारह बजे तक लोग गाँव वापस लौट आये। बच्चों ने खेलकर थोड़ी देर में ही खिलौने तोड़ डाले। अमीना आकर हामिद को गोद में लेकर प्यार करने लगी। उसके हाथ में चिमटा देखकर दादी ने उसके बारे में पूछा तो हामिद ने उसको बताया कि उसने तीन पैसों में चिमटा खरीदा है। अमीना ने छाती पीट ली। कैसा लड़का है! दोपहर तक भूखा-प्यासी रहा! खरीदा तो यह चिमटा। हामिद ने कहा तुम्हारी उँगलियाँ रोटियाँ सेंकते समय जल जाती थीं इसलिए यह चिमटा खरीदा। यह सुनकर अमीना का मन मूक स्नेह से भर गया। वह हामिद के भोले एवं गहरे प्यार पर टपटप आँसू गिराने लगी। वह रोती थी और उसको दुआएँ देती जाती थी। हामिद को इसका रहस्य समझ में नहीं आ रहा था। कठिन शब्द और उनके अर्थ। (पृष्ठ सं. 40) (पृष्ठ सं. 41) (पृष्ठसं. 42) (पृष्ठ सं. 43) (पृष्ठ सं. 44) (पृष्ठसं. 45) (पृष्ठसं. 46) (पृष्ठसं. 47) (पृष्ठ सं. 48) (पृष्ठसं. 49) (पृष्ठसं. 50) : स्नेह = प्रेम। मूक = शब्दहीन, चुप। प्रगल्भ = वाक्पटु। गदगद = प्रसन्न। विचित्र = अनोखी। पार्ट खेला = अभिनय किया। दामन = आँचल, पल्लू। दुआएँ = आशीर्वाद। रहस्य = भेद। महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या (1) रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आई है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। (पृष्ठ सं. 40) व्याख्या-ईद के त्योहार के आने पर इस्लाम धर्म को मानने वालों की प्रसन्नता का वर्णन करते हुए लेखक कहते हैं कि ईद का त्योहार रमजान के पूरे तीस रोजों (उपवास) के बाद आया है। चारों ओर त्योहार की प्रसन्नता व्याप्त है। आज का सवेरा लोगों को अधिक मनोहर एवं सुहावना लग रहा है। पेड़ों पर कुछ नए ढंग की हरियाली दिख रही है और खेतों की शोभा भी आज अनोखी ही है। आकाश में एक विचित्र-सा लाल रंग छा गया है। प्रकृति में सर्वत्र हँसी-खुशी छा रही है। आज का सूरज भी और दिनों की अपेक्षा अधिक प्यारा और शीतल लग रहा है। मानो सबको ईद की बधाई दे रहा हो। विशेष- (2) लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोजा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं: लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज है। रोजे बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है। रोज ईद का नाम रटते थे आज वह आ गई। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते? इन्हें गृहस्थी की चिंताओं से क्या प्रयजन! सेवैयों के लिए दूध और शक्कर घर में है या नहीं, इनकी बला से, ये तो सेवैयाँ खाएँगे। वह क्या जाने कि अब्बाजान क्यों बदहवास चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं। उन्हें क्या खबर कि चौधरी आज आँखें बदल लें, तो यह सारी ईद मुहर्रम हो जाए। (पृष्ठ सं. 40) व्याख्या-लेखक कहते हैं कि ईद के अवसर पर सबसे अधिक खुशी लड़कों को हो रही है। इनमें से कुछ ने एक दिन ही रोजा रखा है। वह भी पूरा नहीं, बस दोपहर तक। ज्यादातर बच्चों ने रोजा रखा ही नहीं है परन्तु उनकी प्रसन्नता का सम्बन्ध रोजे रखने या न रखने से नहीं है। उनकी खुशी का कारण तो ईद का त्योहार है। ईदगाह जाने की उनको भी खुशी है। रोजा रखना बड़े-बूढ़ों का काम है। लेकिन ईद का त्योहार तो बच्चों के लिए प्रसन्नता देने वाला है। वे हर दिन ईद की बात करते थे। कब आयेगी ईद? अब उनकी प्रतीक्षा समाप्त हुई है। ईद का त्योहार आ गया है। अब उनको ईदगाह जाने की जल्दी है। वे लोगों के जल्दी ईदगाह न चलने से बेचैन हो रहे हैं। बड़ों को घर-गृहस्थी की चिन्ता है। बच्चों को इससे क्या मतलब? ईद पर सेवइयाँ पकानी हैं। इसके लिए दूध और शक्कर का इंतजाम करना है। यह बड़ों की चिन्ता है। बच्चों को इससे कोई मतलब नहीं। उनको तो सेवैयाँ खानी हैं। बच्चों के पिता चौधरी कायमअली के घर कुछ परेशान होकर दौड़े गये हैं। वह उनसे ईद के त्योहार को मनाने के लिए कुछ रुपये उधार माँगने गये हैं, नहीं तो ईद कैसे मनेगी? यदि चौधरी रुपया उधार नहीं देंगे तो ईद के त्योहार की खुशी मुहर्रम के मातम में बदल जायेगी। सारा त्योहार फीका हो जायेगा। बच्चे इस बात को नहीं जानते। विशेष- (3) आशा तो बड़ी चीज है, और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती है। हामिद के पाँव में जूते नहीं हैं, सिर पर एक पुरानी-धुरानी टोपी है, जिसको गोटा काला पड़ गया है, फिर भी वह प्रसन्न है। जब उसके अब्बाजान थैलियाँ और अम्मीजान नियामतें लेकर आएँगी, तो वह दिल के अरमान निकाल लेगा। (पृष्ठ सं. 41) व्याख्या-लेखक कहते हैं कि आशा मनुष्य के मन की महत्वपूर्ण भावना है। उसके बल पर वह कष्टपूर्ण जीवन भी काट लेता है। बच्चों के मन में आशा की भावना और ज्यादा महत्व की चीज होती है। बच्चे कल्पनाशील होते हैं। वे अपनी कल्पना के सहारे बड़ी-बड़ी बातें सोच लेते हैं। हामिद के माता-पिता नहीं हैं। आमदनी का कोई जरिया न होने से वह गरीब है। पैरों में पहनने के लिए जूते नहीं हैं। सिर पर एक टोपी है, वह भी पुरानी है। उस पर लगा हुआ गोटा पुराना है और उसकी चमक नष्ट हो चुकी है। परन्तु हामिद खुश है। उसको आशा है कि ये परेशानियाँ जल्दी ही दूर हो जायेंगी। जब उसके पिता लौटेंगे तो उनके पास उनकी कमाई का थैलियों में भरा धन होगा। उसकी माता भी भगवान के आशीर्वाद के रूप में अनेक चीजें लेकर वापस आयेंगी। तब उसके पास किसी चीज की कमी नहीं होगी और उसकी सभी इच्छायें पूरी हो जायेंगी। विशेष- (4) अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन और उसके घर में दाना नहीं! आज आबिद होता तो क्या इसी तरह ईद आती और चली जाती! इस अंधकार और निराशा में वह डूबी जा रही थी। किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को? इस घर में उसका काम नहीं; लेकिन हामिद! उसे किसी के मरने-जीने से क्या मतलब? उसके अंदर प्रकाश है, बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दल-बल लेकर आए, हामिद की आनंद भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी। (पृष्ठ सं. 41) व्याख्या-लेखक ने कहा है कि अमीना अपने दुर्भाग्य पर अपनी कोठरी में बैठकर आँसू बहा रही है। ईद का त्योहार आ गया है और उसके घर में अनाज का एक दाना भी नहीं है। ऐसे में वह त्योहार कैसे मनायेगी? यदि आज उसका पुत्र आबिद जिन्दा होता तो ईद के आने पर उसको ऐसी चिन्ता न होती। बिना हर्ष-उल्लास के ईद आती और चली नहीं जाती। आबिद सब इंतजाम करता और वह खुशी से ईद मनाती। उसको ऐसी निराशा और अँधेरेपन का सामना न करना पड़ता। वह बहुत व्याकुल और निराश थी। कहीं से किसी सहारे की उम्मीद नहीं थी। उसके मन में घना अँधेरा छाया था। वह। व्याकुलतापूर्वक सोच रही थी कि इस ईद को उसने तो बुलाया नहीं था। उसके घर में ईद आई ही क्यों? यहाँ उसकी क्या जरूरत थी? अमीना की सोच से हामिद को कोई मतलब नहीं था। जहाँ अमीना निराश और दुखी थी वहीं दूसरी ओर हामिद खुश था। उसको अमीना की चिन्ता और व्याकुलता से मतलब नहीं था। उसका मन आशा से भरा था और उसमें प्रसन्नता और उल्लास की रोशनी छाई हुई थी। उसका मन ईद के आने पर खुशी से भर उठा था। कितनी ही बड़ी आफत क्यों न आए, हामिद के मन की प्रसन्नता और आशा उसको नष्ट करने की सामर्थ्य रखती थी। विशेष- (6) उस अठन्नी को ईमान की तरह बचाती चली आती थी इसी ईद के लिए, लेकिन कल ग्वालनं सिर पर सवार हो गई तो क्या करती! हामिद के लिए कुछ नहीं है, तो दो पैसे का दूध तो चाहिए ही। अब तो कुल दो आने पैसे बच रहे हैं। तीन पैसे हामिदं की जेब में, पाँच अमीना के बटुवे में। यही तो बिसात है और ईद का त्योहार, अल्लाह ही बेड़ा पार लगाए। सभी को सेवैयाँ चाहिए और थोड़ा किसी की आँखों नहीं लगता। किस-किस से मुँह चुराएगी। और मुँह क्यों चुराए? साल-भर का त्योहार है। जिंदगी खैरियत से रहे, उनकी तकदीर भी तो उसी के साथ है। बच्चे को खुदा सलामत रखें, ये दिन भी कट जाएँगे। (पृष्ठ सं. 41) व्याख्या-अमीना का इकलौता पुत्र आबिद पिछले वर्ष हैजे की बीमारी के कारण चल बसा था। अतः अपने पोते हामिद का पालन-पोषण वह इधर-उधर सिलाई करके उससे मिले पैसों से करती थी। उस दिन फहीमन के कपड़े सिलने से आठ आने सिलाई के मिले थे जिन्हें वह ईद का त्योहार हेतु सहेजकर रखे हुए थी। किन्तु कल दूध देने वाली ग्वालन अपने पैसे के लिए तगादा करने लगी तो उसका हिसाब करना पड़ा। उस अठन्नी को अमीना बड़ी सावधानी से बचाकर रखे थी, किन्तु अब ग्वालन को देने के बाद उसके पास केवल दो आने शेष बचे थे जिनमें से तीन पैसे उसने हामिद को ईद के मेले हेतु दे दिए थे और शेष बचे पाँच पैसों से वह सेवइयों का जुगाड़ कर रही थी। कैसे होगा सब, अब तो अल्लाह (ईश्वर) का ही भरोसा है, वही बेड़ा पार लगाएगा। त्योहार पर सभी कामवालियों को सेवइयाँ देनी पड़ेगी चाहे वह धोबिन हो या नाइन, जमादारिन हो या चूड़ीवाली (मनिहारिन)। थोड़ी सेवइयों से इनका काम न चलेगा, मुँह फुला लेंगी और फिर त्योहार रोज थोड़े ही आते हैं। ये बेचारी भी तो त्योहार पर आश लगाए रहती हैं। रोज थोड़े ही आता है त्योहार। इनकी तकदीर भी तो उसी के साथ बँधी है। मेरा पोता खैरियत से रहे, भगवान् उसे सही-सलामत रखे, गरीबी के ये दिन भी कट ही जाएँगे। विशेष- (6) मोहसिन ने प्रतिवाद किया- यह कानिसटिबिल पहरा देते हैं। तभी तुम बहुत जानते हो। अजी हजरत, यही चोरी कराते हैं। शहर के जितने चोर-डाकू हैं, सब इनसे मिले रहते हैं। रात को ये लोग चोरों से तो कहते हैं, चोरी करो और आप दूसरे मुहल्ले में जाकर “जागते रहो! जागते रहो!” पुकारते हैं। जभी इन लोगों के पास इतने रुपये आते हैं। मेरे मायूँ एक थाने में कानिसटिबिल हैं। बीस रुपया महीना पाते हैं; लेकिन पचास रुपये घर भेजते हैं। अल्ला कसम! मैंने एक बार पूछा था कि मायूँ आप इतने रुपये कहाँ से पाते हैं? हँसकर कहने लगे-बेटा, अल्लाह देता है। फिर आप ही बोले-हम लोग चाहें तो एक दिन में लाखों मार लाएँ। हम तो इतना ही लेते हैं, जिसमें अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाए! (पृष्ठ सं. 43) शहर के सारे चोर-डोकू पुलिस वालों से मिले रहते हैं और इनकी मिलीभगत से ही चोरियाँ होती हैं। रात को चोरों से तो कहते हैं चोरी करो और खुद दूसरे मोहल्लों में जाकर जागते रहो-जागते रहो कहकर पहरा देते हैं। चोरी में मिले माल में इनका हिस्सा भी होता है, तभी तो इन सिपाहियों के पास ढेर सारे रुपये आते रहते हैं। मोहसिन ने बताया कि उसके मायूँ एक थाने में सिपाही हैं। उनका वेतन तो बीस रुपये मासिक है परन्तु वह घर पर हर माह पचास रुपये भेजते हैं। साथी बच्चों को अपनी बात का विश्वास दिलाने के लिए मोहसिन ने अल्लाह की कसम खाकर कहा कि उसने अपने मायूँ से पूछा था कि उनको इतने रुपये कहाँ से मिलते हैं। उन्होंने हँसकर बताया था कि सब अल्लाह देता है। फिर खुद ही आगे बताया कि वह तो एक दिन में लाखों कमा लें परन्तु वह इतना ही रुपया रिश्वत में लेते हैं कि उनकी बदनामी न हो और नौकरी पर संकट न आये। विशेष- (7) क्रितना सुंदर संचालन है, कितनी सुंदर व्यवस्था! लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सब-के-सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हैं, और एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते हैं। कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएँ और यही क्रम चलता रहा। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएँ, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानो भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है। (पृष्ठ सं. 44) व्याख्या-ईदगाह में पढ़ी जाने वाली सामूहिक नमाज की संचालन व्यवस्था बहुत सुन्दर और अनुशासित है। लाखों सिर एक साथ खुदा की इबादत में झुक जाते हैं और फिर सब लोग एक साथ खड़े हो जाते हैं। एक साथ झुकते हैं और फिर सभी लोग घुटनों के बल बैठ जाते हैं। बार-बार यही क्रिया दुहराई जाती है, जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे बिजली के लाखों बल्ब एक साथ जल-बुझ रहे हों और यह क्रम निरन्तर जारी हो। इस अपूर्व दृश्य को और इन सामूहिक क्रियाओं को इतने बड़े स्तर पर देखकर देखने वाले के हृदय में श्रद्धा, गर्व और आनन्द के भाव भर जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे लाखों लोग पारस्परिक भाईचारे के भाव से एक सूत्र में बँधे हों। जहाँ छोटे-बड़े और अमीर-गरीब का कोई भेद न हो। विशेष- (8) कितने सुन्दर खिलौने हैं। अब बोलना ही चाहते हैं। महमूद सिपाही लेता है, खाकी वर्दी और लाल पगड़ीवाला, कंधे पर बंदूक रखे हुए; मालूम होता है अभी कवायद किए चला आ रहा है। मोहसिन को भिश्ती पसंद आया। कमर झुकी हुई है, ऊपर मशक रखे हुए है। मशक का मुँह एक हाथ से पकड़े हुए हैं। कितना प्रसन्न है। शायद कोई गीत गा रहा है। बस, मशक से पानी उँडेला ही चाहता है। नूरे को वकील से प्रेम है। कैसी विद्वता है उसके मुख पर! काला चोगा, नीचे सफेद अचकन, अचकन के सामने की जेब में घड़ी, सुनहरी जंजीर, एक हाथ में कानून का पोथा लिए हुए। मालूम होता है, अभी किसी अदालत से जिरह या बहस किए चले आ रहे हैं। (पृष्ठ सं. 44) व्याख्या-लेखक कहते हैं कि दुकान में रखे खिलौने अत्यन्त सुन्दर थे। वे जीवित-से लग रहे थे। जैसे अभी बोलना ही चाहते हों। महमूद ने सिपाही खरीदा। वह खाकी रंग की वर्दी पहने था तथा उसके सिर पर लाल पगड़ी थी। उसके कंधे पर बन्दूक रखी थी। ऐसा लग रहा था कि वह अभी-अभी कवायद करके आया हो। मोहसिन को भिश्ती अच्छा लगा। उसने वही खरीदा। उसकी झुकी कमर पर मशक लदी थी। उसने एक हाथ से मशक के मुँह को पकड़ रखा था। वह अत्यन्त खुश लग रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे कोई गीत गा रहा हो। लग रहा था कि वह अपनी मशक से पानी जमीन पर गिराना चाहता है। एक खिलौना वकील था। नूरे का वकील से प्यार था। उसके चेहरे पर विद्वता झलक रही थी। उसने काले चोगे के नीचे सफेद रंग की अचकन पहन रखी थी। अचकन की जेब में घड़ी थी, जो सुनहरी जंजीर से बँधी थी। उसके एक हाथ में कानून की मोटी किताब थी। खिलौना जीता-जागता वकील ही लग रहा था। उसे देखकर ऐसा लगता था। जैसे कोई वकील न्यायालय में किसी मुकदमे में बहस करके आ रहा हो। विशेष- (9) हामिद खिलौनों की निंदा करता है- मिट्टी ही के तो हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जाएँ; लेकिन ललचाई हुई आँखों से खिलौनों को देख रहा है। और चाहता है कि जरा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अनायास से लपकते हैं; लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते हैं, विशेषकर जब अभी नया शौक है। हामिद ललचाता रह जाता है। (पृष्ठसं. 45) व्याख्या-हामिद साथी बालकों ने खिलौनों की दुकान से मिट्टी के बने आकर्षक खिलौने खरीदे पर हामिद उन्हें कैसे खरीद सकता था, उसके पास कुल मिलाकर तीन ही पैसे तो थे। अतः वह उन खिलौनों की निंदा करके अपने मन को समझा रहा था कि ये मिट्टी के बने खिलौने हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जाएँगे किन्तु वह ललचाई नज़रों से खिलौनों की ओर देखता और चाहता है कि थोड़ी देर के लिए वे खिलौने उसके हाथ में आ जाएँ और वह उन्हें छूकर और देखकर तृप्त हो जाए। काश ये खिलौने उसके हाथ में आ जाते, पर बच्चे इतनी त्यागवृत्ति वाले नहीं होते कि अपना खिलौना दूसरों को छूने भी दें। अभी तो उनको ही शौक पूरा नहीं हुआ, खिलौना लाए देर ही कितनी हुई थी। फिर भला अपना खिलौना हामिद को कैसे दे देंगे, बेचारा हामिद ललचाई नजरों से उन खिलौनों को देखता था और मन को समझाने के लिए खिलौनों की निंदा कर रहा था। विशेष- (10) उसे खयाल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है; अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे, तो वह कितनी प्रसन्न होंगी! फिर उनकी उँगलियाँ कभी न जलेंगी। घर में एक काम की चीज हो जाएगी। खिलौने से क्या फायदा। व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं। जरा देर ही तो खुशी होती है। फिर तो खिलौने को कोई आँख उठाकर नहीं देखता। या तो घर पहुँचते-पहुँचते टूट-फूटकर बराबर हो जाएँगे, या छोटे बच्चे जो मेले में नहीं आए हैं; जिद्द करके ले लेंगे और तोड़ डालेंगे। चिमटा कितने काम की चीज है। रोटियाँ तवे से उतार लो, चूल्हे में सेंक लो। कोई आग माँगने आए तो चटपट चूल्हे से आग निकालकर उसे दे दो। (पृष्ठसं. 45-46) व्याख्या-हामिद साथ आये बच्चे खिलौने और मिठाइयाँ खरीदकर कुछ आगे बढ़ गए हैं जबकि हामिद लोहे के सामान वाली एक दुकान पर रुक जाता है जहाँ कई चिमटे रखे हुए हैं। उसे ध्यान आता है कि उसकी दादी के पास चिमटा नहीं है। जब वे तवे से रोटियाँ उतारती हैं तो हाथ जल जाता है। क्यों न वह दादी के लिए एक चिमटा खरीद ले। दादी चिमटा पाकर कितनी खुश हो जाएँगी, फिर कभी उनकी उँगलियाँ न जलेंगी और वे उसे ढेरों दुआएँ देंगी। घर में एक काम की चीज भी हो जाएगी। इन खिलौनों से भला क्या फायदा, बस थोड़ी देर की खुशी है, टूट-फूटकर बराबर हो जाएँगे और पैसे व्यर्थ में बरबाद हो जाएँगे। चिमटा काम की चीज है।। चिमटे की सहायता से तवे से रोटी उतारी जा सकती है, रोटी को चिमटे से पकड़कर चूल्हे की आग में सेंका जा सकता है। गाँव का कोई पड़ोसी अगर आग माँगने आये तो झटपट चिमटे से चूल्हे से आग निकाल कर उसे दी जा सकती है। यह सब सोचकर हामिद ने चिमटा ही खरीदने का निश्चय किया। विशेष- (11) हामिद – खिलौना क्यों नहीं है? अभी कंधे पर रखा, बंदूक हो गई। हाथ में ले लिया, फकीरों का चिमटा हो गया। चाहूँ तो इससे मजीरे का काम ले सकता हूँ। एक चिमटा जमा हूँ, तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान निकल जाए। तुम्हारे खिलौने कितना ही जोर लगाएँ, वे मेरे चिमटे का बाल भी बाँका नहीं कर सकते। मेरा बहादुर शेर हैचिमटा। (पृष्ठ सं. 47) व्याख्या-महमूद के कथन को तर्कपूर्वक काटते हुए हामिद ने कहा कि चिमटा खिलौना क्यों नहीं है। इसको कंधे पर रखते ही यह बन्दूक बन जाता है। हाथ में लेने पर फकीरों का चिमटा बन जाता है। इच्छा हो तो इसको मंजीरे की तरह बनाया जा सकता है। उसका चिमटा मजबूत है। चिमटे की एक ही चोट से उनके सारे खिलौने टूट-फूट जायेंगे। सभी खिलौने पूरी ताकत लगाकर भी उसके चिमटे का मुकाबला नहीं कर सकते। वे उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। उसका चिमटा बहादुर है, वह शेर है। विशेष- (12) उसके पास न्याय का बल है और नीति की शक्ति। एक ओर मिट्टी है, दूसरी ओर लोहा, जो इस वक्त अपने को फौलाद कह रहा है। वह अजेय है, घातक है। अगर कोई शेर आ जाए, तो मियाँ भिश्ती के छक्के छूट जाएँ, मियाँ सिपाही मिट्टी की बंदूक छोड़कर भागें, वकील साहब की नानी मर जाए, चोगे में मुँह छिपाकर जमीन पर लेट जाएँ। मगर यह चिमटा, यह बहादुर, यह रुस्तमे-हिंद लपककर शेर की गरदन पर सवार हो जाएगा और उसकी आँखें निकाल लेगा। (पृष्ठ सं. 47) व्याख्या-हामिद पक्ष में न्याय और नीति की शक्ति थी। चिमटे की श्रेष्ठता प्रतिपादित करने के लिए वह जो तर्क दे रहा था वे न्याय और सत्य पर आधारित थे। अतः बालक उसके चिमटे को अपने खिलौनों से श्रेष्ठ स्वीकार करने को अन्ततः तैयार हो ही गए। और क्यों न होते, खिलौने तो मिट्टी के बने हैं जबकि हामिद का चिमटा मजबूत लोहे से बना है, जो इस समय फौलाद का सिद्ध हो रहा था। निश्चय ही वह चिमटा बच्चों के खिलौनों से श्रेष्ठ, अजेय और घातक भी था। हामिद ने तर्क दिया कि अगर कोई शेर आ जाए तो भिश्ती परास्त हो जायेगा, सिपाही मिट्टी की बंदूक छोड़कर भाग जाएगा और वकील साहब को नानी याद आने लगेगी, बेचारे अपने चोगे में मुँह छिपाते फिरेंगे किन्तु हामिद का चिमटा बहादुर पहलवान की तरह शेर की गर्दन पर सवार हो जाएगा और उसकी आँखें निकाल लेगा। निश्चय ही उसका चिमटा उसके साथियों के सभी खिलौनों से बेहतर था। क्योंकि ये खिलौने अन्ततः मिट्टी के बने थे। जो अंत में टूट-फूट जाएँगे जबकि चिमटा लोहे का बना था जो कभी नष्ट नहीं होगा। चिमटे की इस महिमा ने सभी खिलौनों को और उनके मालिकों (बच्चों) को परास्त कर दिया। विशेष- (13) बात कुछ बनी नहीं। खासी गाली-गलौज थी; कानून को पेट में डालने वाली बात छा गई। ऐसी छा गई कि तीनों सूरमा मुँह ताकते रह गए, मानो कोई धेलचा कनकौआ किसी गंडेवाले कनकौए को काट गया हो। कानून मुँह से बाहर निकालने वाली चीज है। उसको पेट के अंदर डाल दिया जाना, बेतुकी-सी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती है। हामिद ने मैदान मार लिया। उसका चिमटा रुस्तमे-हिंद है। अब इसमें मोहसिन, महमूद, नूरे, सम्मी किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती। (पृष्ठ सं. 48) व्याख्या-लेखक कहता है कि कहने को तो हामिद ने कह दिया परन्तु उसकी बात प्रभावशाली नहीं थी। उसका तर्क एक प्रकार की गाली जैसा ही था परन्तु कानून को पेट में डालने की बात का प्रभाव हुआ। वह अकाट्य बात थी। बहस में लगे मोहसिन, महमूद और नूरे कोई उत्तर नहीं दे पा रहे थे। वे तर्क से विमुख और चुप थे। जिस प्रकार कोई धेलचा कनकौआ अर्थात् दो पैसे की कम कीमत वाली पतंग किसी गंडेवाल कनकौए अर्थात् चार आने या चौथाई रुपये वाली कीमती पतंग को काट दे उसी प्रकार हामिद के स्तरहीन तर्क ने अन्य लड़कों के सभी प्रभावशाली तर्कों को प्रभावहीन कर दिया था। कानून की बात मुँह से कही जाती है। उसको पेट के अन्दर डालना केवल कुतर्क है परन्तु उसमें नवीनता है। हामिद के इस तर्क ने सबको परास्त कर दिया। सब ने मान लिया कि हामिद का चिमटा भारत के इनामी, प्रसिद्ध पहलवान के समान था। अब उसकी श्रेष्ठता को स्वीकार करने में किसी को कोई आपत्ति नहीं थी। विशेष- (14) बुढ़िया का क्रोध तुरन्त स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है। दूसरों को खिलौने लेते और खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा। इतना जब्त इससे हुआ कैसे? वहाँ भी उसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गदगद हो गया। (पृष्ठ सं. 50) व्याख्या-बुढ़िया अमीना पहले तो इस बात पर नाराज हुई कि पैसे उसने हामिद को मिठाई, खिलौनों के लिए दिए थे, वह चिमटा क्यों लाया? हामिद ने यह कहा कि तवे से उसकी दादी की उँगलियाँ जल जाती थीं इसलिए उसने चिमटा खरीदा। यह जानकर बुढ़िया का क्रोध स्नेह, वात्सल्य और ममता में बदल गया। इस स्नेह को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता था, केवल हृदय में अनुभव किया जा सकता था। उसका हृदय प्रेम के रस एवं स्वाद से भरा हुआ था कि उसका पोता उससे कितना स्नेह करता था। मेले में भी उसे दादी का ध्यान रहा। हामिद में कितना त्याग, कितना सद्भाव एवं कितना विवेक है। दूसरे बच्चे जब मिठाई और खिलौने खरीद रहे होंगे, तब उसका मन कितना ललचाया होगा? पर उसने अपने मन पर काबू कर लिया और मिठाई या खिलौने न खरीदकर पूरे तीन पैसों से यह चिमटा खरीदा। निश्चय ही वह अपनी दादी से स्नेह करता था। यह भावना बुढ़िया अमीना के हृदय को गदगद कर रही थी और उसकी आँखों से खुशी के आँसू निकल रहे थे। विशेष- (15) और अब एक बड़ी विचित्र बात हुई। हामिद के इस चिमटे से भी विचित्र! बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई। वह रोने लगी। दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूंदें गिराती जाती थीं। हामिद इसका रहस्य क्या समझता। (पृष्ठ सं. 51) व्याख्या-लेखक कहते हैं कि हामिद के अपने प्रति गहरे प्रेम को देखकर दादी अमीना बच्चों की तरह रोने लगी। वह वृद्धा थी और समझदार भी परन्तु बच्चों की तरह रोना एक विचित्र बात थी। हामिद बच्चा था। उसको घर-गृहस्थी का ज्ञान नहीं था। उसका चिमटा खरीदना एक अनोखी बात थी। उसका खिलौनों और मिठाई से मुँह फेरकर चिमटा खरीदना किसी बूढ़े आदमी के आचरण जैसा था। दूसरी ओर वृद्धा अमीना का व्यवहार किसी बच्ची के समान होने के कारण विचित्र था। बालक हामिद ने वृद्ध व्यक्ति का उत्तरदायित्वपूर्ण आचरण किया था तो वृद्धा अमीना ने बच्चों जैसा भावुकतापूर्ण व्यवहार किया था। ये दोनों ही व्यवहार अनोखे तथा असामान्य थे। अमीना रो रही थी और आँचल फैलाकर हामिद को आशीर्वाद दे रही थी। उसकी आँखों से आँसुओं की बड़ी-बड़ी बूंदें टपक रही थीं। दादी अमीना के इस व्यवहार के पीछे छिपे भाव को. समझना हामिद के बस की बात नहीं थी। विशेष- RBSE Solution for Class 10 Hindiहामिद ने चिमटा क्यों खरीदा था?उत्तर: हामिद ने ईद के मेले से तीन पैसों में लोहे का चिमटा खरीदा, क्योंकि उसकी दादी के पास चिमटा नहीं था। जब वे तवे पर से रोटियाँ उतारतीं तो उनके हाथ की उँगलियाँ जल जाती थीं, इसलिए हामिद ने दादी के लिए चिमटा खरीदा।
22 हामिद चिमटा क्यों खरीदना?हामिद चिमटा इसलिए खरीदता है,क्योंकि उसने देखा था कि रोटी बनाते समय उसकी दादी का हाथ जल गया था।
हामिद ने चिमटे को कौन सी उपमा दी?हामिद ने चिमटे को इसतरह कंधे पर रखा मानो बंदूक हो । 3.
हामिद ने अपने तीन पैसे चिमटे पर खर्च करना क्यों ठीक समझा?Answer. हामिद ने अपने तीन पैसे चिमटे पर खर्च करना इसलिए ठीक समझा कयोंकि उसकी दादी के पास चिमटा नहीं था। रोटियाँ पकाते समय उनके हाथ जल जाते थे। अगर वह चिमटा ले कर जाएगा तो दादी बहुत खुश होंगी फिर उनकी ऊंगलियाँ कभी न जलेंगी और वह दुआएँ देंगी।
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