आगमन पद्धति से “अर्थ उस ढंग से है जिसमें विशेष तथ्यों की आर से सामान्य तथ्यों की ओर बढ़ा जाता है।” दूसरे शब्दों में आगमन विधि से अर्थ उस ढंग से है जिसमें विशेष तथ्यों से सामान्य तथ्यों की ओर बढ़ा जाता है और विशेष तथ्यों के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इस पद्धति में इतिहास का विशेष महत्व है क्योंकि भूतकालीन घटनाओं में से हम कुछ विशेष घटनाओं का चुनाव पहले कर लेते हैं और इन विशेष घटनाओं के आथार पर सामान्य घटनाओं की खोज करते हैं तथा नियमों का प्रतिपादन करते हैं। Show लेण्डल महोदय ने आगमन विधि को परिभाषित करते हुए लिखा है “जब कभी छात्रों के सम्मुख अनेक उदाहरण अधवा वस्तुएं प्रस्तुत की जाती है और इसके पश्चात् बालकों से स्वयं उनके निष्क्षों को निकलवाने का प्रयास किया जाता है तब इस शिक्षण विधि को आगमन विधि कहा जाता है। आगमन विधि विशिष्ट से सामान्य की ओर तथा मूर्त से अमूर्त की ओर ले जाने की विधि है।” आगमन विधि उदाहरणों से प्रारम्भ होती है तथा उदाहरण के माध्यम से ही सामान्य नियमों का प्रतिपादन करती है। अतः अध्यापकों को चाहिए कि वह बालकों को ज्ञान देने में इस विधि का अधिक से अधिक प्रयोग करें। आगमन विधि के गुणआगमन विधि के प्रमुख गुण निम्न हैं-
आगमन विधि के दोषआगमन विधि या पद्धति के प्रमुख दाष निम्न हैं-
इस विधि को प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षकों का सतर्क बने रहना बहुत आवश्यक है। तभी इस विधि द्वारा किये गये शिक्षण से छात्र एवं शिक्षक लाभान्वित हो सकते हैं। यह विधि बड़ी कक्षाओं के लिए अधिक उपयोगी नहीं है। हां छोटी कक्षाओं के लिए यह अवश्य ही बहुत उपयोगी है। निगमन पद्धति के लाभनिगमन पद्धति के प्रमुख लाभ निम्न हैं-
केरनेस ने निगमन पद्धति के गुणों की चर्चा करते हुए कहा कि “यदि उचित आावयानियों का पालन करके निगमने पद्धति का प्रयोग किया जाये तो यह अतुल्य है क्योंकि मानव की बुद्धि द्वारा खोज करने वाला यह अब तक का सबसे शक्तिशाली यन्त्र है।” निगमन पद्धति के दोषनिगमन पद्धति का सर्वप्रथम दोष यह है कि इसे वैज्ञानिक पद्धति स्वीकार करने में आपत्ति की जाती है। सामाजिक घटनायें इतनी जटिल होती हैं कि इस पद्धति द्वारा उनका तुलनात्मक अध्ययन कर सत्यता की पुष्टि करना एक बड़ा ही कठिन कार्य है। निकल्सन ने इस पद्धति के दोषों का उल्लेख करते हुए कहा कि “इस पद्धति को बड़ा खतरा इस बात से है कि सत्यापन का परिश्रम द्वेष में परिवर्तन हो जाता है।” अधिकांश विद्वानों ने निगमन प्रणाली की आलोचना ही की है। इनके आलों चको का मानना है कि बालकों के सामने पहले सामान्य नियमों को प्रस्तुत कर देना घोड़े के आगे गोड़ी रखने जैसा है। इस प्रणाली में बालक अपने परिश्रम तथा प्रयत्न द्वारा किसी नियम या सिद्धान्त की खोज करने की बजाय नियमों या सिद्धान्तों को उसी रूप में स्वीकार कर लेते हैं जिस रूप में व उनके सामने प्रस्तुत किये गये हैं। इसका परिणाम यह होता है कि छात्रों में जिज्ञासा एवं तर्कशक्ति जड़ हो जाती है। यह पद्धति पूर्ण रूप से अमनोवैज्ञानिक है। इस विधि में बालकों को रटने की आदत पड़ जाती है और यह विधि बच्चों की रुचियों और अभिरुचियों के विपरीत ही है। इस विधि से बालकों का ज्ञान अस्पष्ट तथा अपूर्ण रह जाता है और वह सिद्धान्तों और नियमों को भली प्रकार नहीं समझ पाते। आगमन विधि में कितने सोपान होते हैं?उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण - आगमन विधि का यह पहला सोपान होता है, जिसमें छात्र तथा छात्राओं के सम्मुख अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये जाते हैं। निरीक्षण कार्य - आगमन विधि का यह दूसरा सोपान है, जिसमें छात्र- छात्राओं के सामने जो उदाहरण प्रस्तुत हो गए हैं उन उदाहरणों का विश्लेषण करना पड़ता है।
निगमन विधि के सोपान कौन कौन से हैं?निगमन विधि के सोपान Sopan of Deductive Method
नियम या सिद्धांत का प्रस्तुतीकरण - इसमें छात्र तथा छात्राओं को पहले नियम तथा सिंद्धांत दिए जाते है, जिन्हे छात्र रटते है। नियम तथा सिद्धांत का प्रयोग उदाहरण देना - इसमें अध्यापक छात्र - छात्राओं के सम्मुख सिद्धांत तथा नियम के प्रयोग के लिए उदाहरण देते है।
आगमन विधि के कितने रूप होते हैं?Solution : आगमन विधि के रूपों की संख्या दो है—(1) प्रयोग विधि, (2) सहसम्बन्ध विधि। प्रयोग विधि का प्रयोग विशेष रूप से व्याकरण शिक्षण के लिए किया जाता है।
आगमन निगमन विधि का प्रतिपादक कौन है?आगमन निगमन विधि के जनक/प्रतिपादक अरस्तू हैं।
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