भारत में जल संसाधन की क्या समस्या है? - bhaarat mein jal sansaadhan kee kya samasya hai?

भारत में बढ़ता जल संकट एवं उसका समाधान - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकी


चर्चा का कारण

हाल ही में भारत सरकार ने जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के साथ-साथ पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय का विलय कर जलशक्ति मंत्रालय का गठन किया है। जल शक्ति मंत्रालय ने अपनी पहली बैठक में ही 2024 तक देश के हर घर तक ‘नल से जल’ पहुँचाने की महत्वाकांक्षी लक्ष्य को तय कर दिया है।

परिचय

सुरक्षित पेयजल जीवन के अधिकार का एक अंतरंग हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र ने सुरक्षित पीने के पानी को एक मौलिक अधिकार और जीवन स्तर को सुधारने की दिशा में एक आवश्यक कदम के रूप में घोषित किया है। संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक अपने सतत विकास लक्ष्यों में सुरक्षित और सस्ते पीने के पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना निर्धारित किया है, जिसे हासिल करने के लिए भारत भी प्रतिबद्ध है।

विगत कुछ दशकों पहले तक भारत स्वच्छ पेयजल के लिए प्राकृतिक जलाशयों और कुंओं पर निर्भर रहता था। परंतु अब इन जलस्रोतों के लगातार सूखने से देश को तीव्र जलसंकट का सामना करना पड़ रहा है। देश के कई हिस्सों में लगातार सूखे के कारण स्थिति और खराब होती जा रही है। भारत के संविधान में स्वच्छ पेयजल के प्रावधान को प्राथमिकता प्रदान की गई है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 47 के अंतर्गत स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना राज्यों का कर्त्तव्य है। इसके अतिरिक्त भारत में पानी के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार से प्राप्त किया गया है। आंध्रप्रदेश पॉल्यूशन बोर्ड बनाम प्रोफेसर एम-वीनाय डू केस में सर्वोच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि पीने का पानी जीवन के लिए एक मौलिक अधिकार है और राज्य का कर्त्तव्य है कि वह अपने नागरिकों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराएं। यह निर्णय स्वच्छ पेयजल के दावों को मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित करने में एक विशिष्ट महत्त्व रखता है।

वर्तमान स्थिति चिंताजनक

देश के ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ पेयजल की स्थिति बेहद गंभीर है। सरकार द्वारा दिए गए आँकड़ों के अनुसार ग्रामीण भारत के 16.78 करोड़ घरों में से केवल 2.69 करोड़ (16%) घरों तक पाइप से पानी की पहुँच है। इसके अतिरिक्त 22 फीसद ग्रामीण परिवारों को पानी लाने के लिए आधा किलोमीटर और इससे अधिक दूर पैदल चलना पड़ता है। गाँवों में 15 फीसद परिवार बिना ढके कुंओं पर निर्भर हैं तो अन्य लोग दूसरे अपरिष्कृत पेयजल संसाधनों जैसे- नदी, झरने, तालाबों आदि पर निर्भर रहते हैं।

उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे कुछ राज्यों में जलापूर्ति की स्थिति बेहद गंभीर है, जहाँ पाइपलाइन से आपूर्ति पाँच प्रतिशत से भी कम है। वर्तमान में सिक्किम भारत का एक मात्र ऐसा राज्य है जहाँ 99 फीसद घरों में नलों से जलापूर्ति की जाती है। इसके बाद गुजरात का स्थान है जहाँ 75 फीसद लोगों को पाइपलाइन से पेयजल मिलता है।

इस संदर्भ में नीति आयोग ने अपने दृष्टिकोण में कुछ चौंकाने वाले तथ्यों को उजागर किया है।

नीति आयोग की रिपोर्ट

  • इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक देश में पानी की माँग उपलब्ध जल वितरण की दोगुनी हो जाएगी। जिसका मतलब है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा। इनमें दिल्ली, बंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद समेत देश के 21 शहर शामिल हैं। जल संकट की वजह से देश की जीडीपी में छह प्रतिशत की कमी देखी जाएगी।
  • स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा जुटाए डाटा का उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि करीब 70 प्रतिशत प्रदूषित पानी के साथ भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें पायदान पर है।
  • नीति आयोग ने कहा है कि अभी 60 करोड़ भारतीय गंभीर से गंभीरतम जल संकट का सामना कर रहे हैं और दो लाख लोग स्वच्छ पानी तक पर्याप्त पहुँच न होने के चलते हर साल अपनी जान गँवा देते हैं। इसके अतिरित्तफ़ अगले 11 सालों में देश के 60 करोड़ से ज्यादा लोगों को पीने का पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा।
  • रिपोर्ट में जल संसाधनों और उनके कुशलतम उपयोग पर जोर दिया गया है। 2016-17 की इस रिपोर्ट में गुजरात को जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन के मामले में पहला स्थान दिया गया है। सूचकांक में गुजरात के बाद मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र का नंबर आता है। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर पूर्वी और हिमालयी राज्यों में त्रिपुरा शीर्ष पर रहा है जिसके बाद हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और असम का नंबर आता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार जल प्रबंधन के मामले में सबसे ऽराब प्रदर्शन करने वाले राज्य रहे हैं।
  • नीति आयोग ने कहा है कि देश में पानी की कमी नहीं है, बल्कि पानी के नियोजन की कमी है। राज्यों के बीच जल विवाद सुलझाना, पानी की बचत करना और बेहतर जल प्रबंधन कुछ ऐसे काम हैं जिनसे कृषि आमदनी बढ़ सकती है और गाँव छोड़कर शहर आए लोग वापस गाँव की ओर लौट सकते हैं।
  • जल संकट के मामले में इस समय चेन्नई और दिल्ली के हालात बहुत ऽराब हैं। चेन्नई जहाँ करीब 6 महीनों से बारिश नहीं हुई है वहाँ करीब 46 लाख लोगों को पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है। दक्षिण चेन्नई में लोगों को एक बाल्टी पानी के लिए 3 घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। यहाँ टैंकर माफिया पानी सप्लाई कर रहा है और एक टैंकर पानी के लिये तीन से चार हजार रुपये वसूले जा रहे हैं।
  • चेन्नई में रोज 130 करोड़ लीटर पानी की जरूरत है और वहां अभी सिर्फ 83 करोड़ लीटर पानी ही सप्लाई हो रहा है। बारिश कम होने से चेन्नई शहर के आस-पास की 4 झीलें सूऽ चुकी हैं। इन झीलों में एक प्रतिशत पानी भी नहीं बचा है।
  • इसके अलावा दिल्ली को रोज करीब 450 से 470 करोड़ लीटर पानी चाहिए, लेकिन सप्लाई सिर्फ 75 प्रतिशत ही है। सप्लाई होने वाले करीब 340 से 350 करोड़ लीटर पानी का आधा हिस्सा हरियाणा से आता है। जबकि बाकी पानी गंगा नदी और भू जल के जरिये मिलता है।
  • चिंता की बात ये है कि दिल्ली का 90 प्रतिशत भू-जल गंभीर स्थिति में पहुँच गया है। दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में भू-जल दो मीटर तक प्रति वर्ष के हिसाब से घट रहा है। दिल्ली का 15 प्रतिशत इलाका अब संकटग्रस्त क्षेत्र में है।
  • नीति आयोग ने खुलासा किया है कि अंतर्राष्ट्रीय संस्था Water Aid की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक दुनिया के 21 शहरों में Day Zero (नलों से पानी बंद होने का गंभीर खतरा मंडराना) जैसे हालात बन जाएंगे और 2040 तक भारत समेत 33 देश पानी के लिये तरसने लगेंगे। जबकि वर्ष 2050 तक दुनिया के 200 शहर खुद को Day Zero वाले हालात में पाएंगे।

केंद्रीय भू-जल बोर्ड की रिपोर्ट

  • केंद्रीय भू-जल बोर्ड की रिपोर्ट कहती है कि 2017 में मानसून पूर्व देश में सामान्य तौर पर पाँच से दस मीटर की गहराई पर पानी निकलता था। इसमें दिल्ली, चंडीगढ़ और राजस्थान के कुछ क्षेत्र भी शामिल थे जहाँ 40 मीटर पर पानी निकलता था।
  • देश में सबसे ज्यादा गहराई 130 मीटर से ज्यादा पर बीकानेर में भूजल निकलता है। बोर्ड ने ये निष्कर्ष देश में 23 हजार से ज्यादा मॉनीटरिंग सेंटरों से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर निकाले हैं।
  • रिपोर्ट में देश के करीब साढ़े 13 हजार कुओं का निरीक्षण किया गया जिसमें पाया गया कि 48 फीसदी कुओं में पानी का स्तर घटता है और इतने कुओं में ही बढ़ता है। घटना बढ़ना दोनों 2 से 4 मीटर की रेंज में होता है। लेकिन चेतावनी वाली बात ये है कि 2007 से 2017 के दस सालों के दौरान देश के 61 फीसदी कुओं के जलस्तर में गिरावट दर्ज हुई और इनमें से 43 फीसदी का पानी दो मीटर तक नीचे चला गया। ये गिरावट कमोबेश सभी राज्यों में दर्ज हुई है।
  • देश में उपलब्ध पानी का 85 फीसदी खेती में लगता है और इसमें से भी 65 फीसदी भूमिगत जल खेती में इस्तेमाल होता है साथ ही पीने और घरेलू इस्तेमाल में महज 6 फीसदी पानी इस्तेमाल किया जाता है। भारत में खेती के लिए दुनिया में सबसे ज्यादा पानी का इस्तेमाल होता है और इसकी वजह पैदावार के परंपरागत तरीके हैं।
  • भू-जल स्तर में गिरावट के अलावा इसके प्रदूषित और अस्वास्थ्यकर होने की चिंताएँ अलग हैं। देश के 224 जिलों में फ्रलोराइड का स्तर मानक से ऊपर चल रहा है और इसमें राजस्थान के सबसे ज्यादा 30 जिले हैं। इसी तरह आर्सेनिक का स्तर 10 राज्यों के 80 जिलों में मानक से अधिक है और इसमें सबसे ज्यादा यूपी के 20, असम के 18, बिहार के 15 और हरियाणा के 13 जिले शामिल हैं। इसकी एक वजह फैक्ट्रियों से निकला रासायनिक पानी का जमीन में जाना भी है। इसे भी रोकने के इंतजाम नहीं दिखते हैं। हालांकि बेहतर जल प्रबंधन प्रणाली को अपनाकर हम जल संकट को कुछ हद तक कम कर सकते हैं।

जल प्रबंधन प्रणाली कैसे सुनिश्चित हो

  • हमारे देश की आबादी को सुरक्षित और स्वच्छ पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने में उपयुक्त तकनीक तथा नवाचार अहम भूमिका निभा सकते हैं। यदि इन तकनीकों और नवाचारों में भारत की परंपरागत ज्ञान प्रणाली की अंतर्दृष्टि समाहित हो तो देश के विभिन्न क्षेत्रें में पेयजल आपूर्ति का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
  • वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है। कृत्रिम वर्षा जल संरक्षण के अंतर्गत वैज्ञानिक विधियों या संरचनाओं को शामिल किया जाता है जिसमें तालाब, चेकडैम, गेबियन स्ट्रक्चर, स्टॉप डैम, सोखता गड्ढा, अधोभूमि अवरोधक, रोक बांध, रिचार्ज शॉफ्रट, अस्थायी बांध, गली प्लग (नाली अवरोधक) आते हैं।
  • छत पर प्राप्त वर्षा जल का भूमि जलाशयों में पुनर्भरण जिन संरचनाओं द्वारा होता है, उनमें शामिल हैं- बंद या बेकार पड़े कुएं, नलकूप (हैण्ड पंप), पुनर्भरण पिट (गड्ढा) पुनर्भरण खाई।
  • जहाँ जल की आपूर्ति बाधित होती है, सतही संसाधन का अभाव है या संसाधन पर्याप्त नहीं होता, वहाँ छत पर प्राप्त वर्षा जल का संचयन जल समस्या का बेहतर समाधान है।
  • सूखे अनुपयोगी कुएं का उपयोग पुनर्भरण संरचना के रूप में किया जा सकता है। पुनर्भरित किये जा रहे वर्षा जल को एक पाइप के माध्यम से कुएं के तल या उसके जल स्तर के नीचे ले जाया जाता है ताकि कुएं के तल में गड्ढे होने व जलभृत में हवा के बुलबुलों को फँसने से रोका जा सके।
  • भू-जल स्तर में निरंतर हो रही गिरावट के मद्देनजर समुद्र में बह जाने वाले वर्षा जल का भी संचयन आवश्यक है। भू-जल संसाधन में वृद्धि के लिए वर्षाजल का पुनर्भरण भी आवश्यक है।
  • भारत में कुल उपलब्ध जल में से सबसे ज्यादा यानी करीब (तीन-चौथाई) जलोपयोग सिर्फ सिंचाई के लिए होता है। सिंचाई में उपयोग तथा इलाके की जरूरत के अनुसार वर्षा आधारित खेती, प्राकृतिक खेती व सूखारोधी बीजों का चलन जैसे-जैसे बढ़ता जाएगा, पेयजल समेत शेष प्रकार के उपयोग के लिए जल की सहज उपलब्धता सुनिश्चित होती जाएगी।
  • पेयजल से लेकर प्रत्येक मकसद में जितनी जरूरत उतने पानी की निकासी व प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा खेतों में सिंचाई के लिए बूंद-बूंद सिंचाई तथा फव्वारा पद्धति का प्रयोग करना चाहिए।
  • खेती में रसायनों व कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग से जल ही नहीं बल्कि मिट्टी व इंसानों को भी खतरा है। इसलिए प्राकृतिक खेती की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • हैंडपंप सुरक्षित जल का सबसे उपयुक्त साधन है। इसलिए, इससे 15 मीटर दूर तक कचरा/मलमूत्र के निस्तारण को रोकना होगा साथ ही जलस्रोतों को जीवाणुरहित करना होगा। इसके लिए कुओं में ब्लीचिंग पाउडर का घोल डलवाने की जिम्मेदारी सामूहिक रूप से निभानी होगी।

सरकारी प्रयास

  • राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (NRDWP) के अंतर्गत सुरक्षित पानी हर समय और सभी स्थितियों में सुलभ होना चाहिए। इस योजना का उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण व्यक्ति को 2022 तक 70 लीटर स्वच्छ जल प्रति व्यक्ति प्रतिदिन उनके घरेलू परिसर के भीतर या 50 मीटर तक की दूरी तक प्रदान करना है।
  • वर्ष 2018 में शुरू हुए ‘स्वजल योजना’ के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में पाइपलाइन से जल आपूर्ति बढ़ाकर, देश के ग्रामीण क्षेत्रें में लोगों को सुरक्षित पीने के पानी की सुलभ सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। इस योजना को 28 राज्यों के उन 117 जिलों तक विस्तारित किया गया जिसमें राष्ट्रीय औसत के 44 प्रतिशत की तुलना में केवल 25 प्रतिशत पाइप्ड जलापूर्ति वाले आवास हैं।
  • भारत सरकार के विभिन्न उपक्रमों द्वारा कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के अंतर्गत, पानी की गुणवत्ता और इससे संबंधित विभिन्न महत्वपूर्ण मापदंडों पर अग्रणी पहल की गई है।
  • भारत सरकार का लक्ष्य 2022 तक सतही जल आधारित पाइप जलापूर्ति योजनाओं के माध्यम से 90 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को एक दीर्घकालिक टिकाऊ समाधान के रूप में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना है।
  • सरकार जल उपचार तकनीकों को अधिक किफायती और पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए प्रयासरत है।
  • पीने के पानी में आर्सेनिक और फ्रलोराइड संदूषण की समस्याओं को रोकने के लिए नीति आयोग ने सामुदायिक जलशोधन संयंत्रों को चालू रखने की सिफारिश की थी जिसके पश्चात् आर्सेनिक/फ्रलोराइड प्रभावित ग्रामीण बस्तियों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए ‘राष्ट्रीय जल गुणवत्ता उपमिशन’ शुरू किया।

गौरतलब है कि भारत सरकार स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए लगातार प्रयास कर रही है फिर भी इसके समक्ष कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं।

चुनौतियाँ

  • भू-जल पर लगातार बढ़ती निर्भरता और इसका निरंतर अत्यधिक दोहन भू-जल स्तर को कम कर रहा है और पेयजल आपूर्ति की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जो एक जटिल चुनौती है।
  • जल स्रोतों के सूखने, भू-जल तालिका में तेजी से कमी, सूखे की पुनरावृत्ति और विभिन्न राज्यों में बिगड़ते जल प्रबंधन विभिन्न प्रकार की चुनौतियाँ पेश कर रहे हैं।
  • बंद पड़े बोर पंपों, जलापूर्ति पाइपलाइनों की मरम्मत समय पर नहीं हो पा रही जिससे क्षेत्र विशेष में पयेजल संकट विद्यमान हो गया है।
  • औद्योगीकरण और नगरीकरण के दबाव के कारण पानी के स्रोत नष्ट होते चले गए। इस चिंतनीय पक्ष को लगातार विभिन्न सरकारों द्वारा नजरअंदाज किया गया।
  • अधिकांश शहरों और लगभग 19,000 गाँवों के भू-जल में फ्रलोराइड, नाइट्रेट, कीटनाशक आदि स्वीकार्य सीमा से अधिक मौजूद पाए गए। इस लिहाज से पानी की गुणवत्ता चुनौतीपूर्ण है।
  • विश्व बैंक और यूनिसेफ द्वारा प्रायोजित अध्ययन दर्शाते हैं कि ग्रामीण भारत में न केवल पेयजल अपर्याप्त है बल्कि देशभर में इसका असंतुलन बहुत व्यापक है।
  • जल जनित रोग भारत में स्वास्थ्य संबंधी सबसे बड़ी चुनौती है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल ऑफ इंडिया-2018 में प्रकाशित आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार भारत में सूचित किए गए करीब एक चौथाई या चार मामलों में से एक संचारी रोगों की वजह से तथा हर पाँच मौतों में से एक जल जनित रोगों के कारण होती है।
  • दुनिया के 30 देशों में जल संकट एक बड़ी समस्या बन चुकी है और अगले एक दशक में वैश्विक आबादी के करीब दो-तिहाई हिस्से को जल की अत्यधिक कमी का सामना करना पड़ेगा। वास्तविक अर्थों में भारत में जल संकट एक प्रमुख चुनौती बन चुका है।

आगे की राह

निष्कर्षतः किसी भी देश की वृद्धि और विकास के लिए प्रभावी जल प्रबंधन बहुत आवश्यक है, इसलिए जल-संचयन और भंडारण पर अधिक गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। कृषि और उद्योगों के साथ विशाल आबादी की पानी संबंधी माँगों को पूरा करने के लिए भारत को जल उपलब्धता, अनुकूलतम प्रबंधन, बेहतर आवंटन प्रक्रिया, रिसाव की उच्च-दर में कमी लाना, गंदे पानी का पुनः प्रयोग और वर्षाजल संचयन के साथ जलापूर्ति के वैकल्पिक संसाधनों को बढ़ाने के लिए मरम्मत, नवीनीकरण और पुनर्स्थापन (आरआरआर) के लिए व्यक्तिगत, सामूहिक और संस्थानिक प्रयासों को प्रोत्साहित करना चाहिए। ग्रामीण समुदाय अपने प्राकृतिक जल संसाधनों का प्रबंधन करने हेतु जल-संचयन ढाँचों का निर्माण कर सकते हैं और जल-संरक्षण की अपनी प्राचीन परंपराओं को अपनाने के लिए संगठित होकर अपनी दीर्घकालिक जल प्रबंधन समस्याओं का समाधान पा सकते हैं। राष्ट्र के समक्ष आ रही जल संकट की गंभीर चुनौती का सामना करने के लिए हमें अपने सबसे निचले-स्तर के लोगों के अनुभव का इस्तेमाल करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में ग्रामीण समुदायों को संगठित करने और उन्हें अपनी पारंपरिक जानकारी का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किए जाने से काफी सहायता मिल सकती है।

भारत में जल संसाधनों की प्रमुख समस्याएं कौन सी हैं?

भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण नदियों के प्रवाह में कमी, भूजल संसाधनों के स्तर में कमी एवं तटीय क्षेत्रों के जलभृतों में लवण जल का अवांछित प्रवेश हो रहा है। कुछ आवाह क्षेत्रों में नहरों से अत्यधिक सिंचाई के परिणामस्वरूप जल ग्रसनता एवं लवणता की समस्या पैदा हो चुकी है।

जल की समस्या क्या है?

इस समय देश की आधी से ज्यादा आबादी भयंकर जल-संकट से गुजर रही है। पानी की समस्या बीते वर्षों में विकराल हो चली है। बहुत कम संख्या में बची झीलें, तालाब और नदियां अपने अस्तित्व को जूझ रही हैं। 2020 में जारी इकोलॉजिकल थ्रेट रजिस्टर की रिपोर्ट के अनुसार आज भारत की लगभग साठ करोड़ जनता पानी की जबर्दस्त किल्लत से जूझ रही है।

भारत में जल की कमी के क्या कारण हैं?

अतः देश की बढ़ती आबादी हेतु पीने के पानी व खाद्यान्न आपूर्ति के लिए भूजल स्तर में सुधार करने व जल उत्पादकता बढ़ाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. भूजल स्तर कम होने के कारण अनेक क्षेत्रों में हानिकारक तत्वों जैसे आर्सेनिक, कैडमियम, फ्लोराइड, निकिल व क्रोमियम की सान्द्रता भी बढ़ती जा रही है.

जल की समस्या का समाधान क्या है?

ग्रामीण क्षेत्रों में नदियों पर एनीकट बनाकर नदियों के गहराई वाले पानी को लिफ्ट करके 3५ - 40 गांव की सामूहिक पेयजल योजनाएं बनाई जानी चाहिए। लोगों को जल संरक्षण के बारे में जागरूक करना चाहिए। अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाकर उनका संरक्षण करना चाहिए, ताकि वायुमंडल में नमी होने पर बादल आकर्षित होकर वर्षा करें।