बेल की लकड़ी से हवन करने से क्या होता है? - bel kee lakadee se havan karane se kya hota hai?

बिल्व पत्र का वास्तु शास्त्र  by डॉ. जितेन्द्र व्यास  

बेल की लकड़ी से हवन करने से क्या होता है? - bel kee lakadee se havan karane se kya hota hai?
    आज मैंने भगवान शिव के अत्यंत प्रिय “बिल्व पत्र” के पर्यावरण वास्तु रहस्य को उजागर करने के लिए यह blog लिखा है, बिल्व पत्र में कई अद्भूत रहस्य हैं, जिनको जाने बिना हम सनातन सृष्टि के रचयिता शिव के आशीर्वाद से विमुख रह सकते हैं। “बेल या बिल्व पत्र क्या है?” ‘रोगान् बिलति भिन्नति’ – जो सभी प्रकार के रोगों व कष्टों का नाश करे। आप बिल्व पत्र के विधिवत प्रयोग सभी समाधान पा सकते हैं। इसका पत्ता, छाल, जड़, फल और लकड़ी सभी औषधि, कर्मकाण्ड, ज्योतिषीय उपायों में प्रयोग होता है। बेल पत्र को संस्कृत में “श्रीफल” भी कहा गया है। कम ही लोगों को पता होगा की बिल्व वृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु एवं अग्रभाग में स्वयं शिवजी का निवास होता है, यह बिल्व-फल लक्ष्मी जी के स्तन से उत्पन्न हुआ और महादेव जी का अत्यंत प्रिय वृक्ष है।

मनुष्य इसका उपयोग ग्रहों के प्रकोप की शांति के लिए कर सकता है, क्योंकि इसमें भगवान शिव का अंश है, अतः ग्रहों का उपद्रव शांत होगा ही। राहु, शनि, मंगल व केतू की दशा यदि अनिष्ट कारक बनी हुयी हो तो शनिवार के दिन गुरुमुखी मंत्र को बेल पत्र पर लिख कर भगवान शिव को काले तिलों के साथ अर्पित कर दें, तो अनिष्टकारी दशाओं का प्रकोप शांत हो जाता है, यह कार्य कुल सात शनिवार करना चाहिए।

यदि कोई जातक ‘बिल्वाष्टकम्’ को पढ़ते हुये 108 बेल पत्र शिवजी को चढ़ाएँ तो व्यक्ति अनन्त धन व ऐश्वर्य को प्राप्त करता है, जो की सोमयज्ञ, अश्वमेघ एवं सेकड़ों वाजपेय यज्ञ के करने से मिलता है।

1) श्रीयज्ञ में तथा लक्ष्मी संबंधी यज्ञ में समिधा की जगह बिल्व फल के टुकड़ों का हवन करना चाहिए, यज्ञ की पूर्णाहूति के समय बिल्व फल की आहुति अत्यंत शुभ मानी गयी है। नए घरमें प्रवेश पूर्व यदि बिल्व वृक्ष को पूर्व या ईशान कोण की तरफ लगा देने से घर के लगभग सभी दोष समाप्त हो जाते हैं।

2) बेल का कच्चा गुदा खिला देने से स्त्री को प्रसव पीड़ा बहुत कम हो जाती है।

3) बेल का बाहरी आवरण का चूर्ण बनाकर खाने से व्यक्ति के पेट के सभी रोग तथा बवासीर पूरी तरह से समाप्त हो जाता है।

4) बच्चे को नजर से बचाने के लिए उसके बिस्तर के नीचे बेलपत्र रख दें या बेल की छाल को बच्चे के शरीर पर धीरे-धीरे सात बार मारने से नजर उतार जाती है।

5) बेल की बाहरी आवरण के एक टुकड़े को बच्चे के कमर पर बांधने से उसके दांत निकलने को प्रक्रिया सुगम हो जाती है, उसका बुखार उतर जाता है, दस्त बंध हो जाती है,

6) यदि कोई Paranormal समस्या से पीड़ित हो तो उसे बेल का शर्बत (प्रक्रिया गुरुमुखी)  पीला देने से प्रेत बाधा और ऊपरी हवा से मुक्ति मिल जाती है।

Blog no. 64, Date: 9/9/2016

Contact: Dr. Jitendra Vyas

For consultancy call @ 09928391270

www.drjitendraastro.com,

शोध संस्थानों के ताजा शोध नतीजे बताते हैं कि हवन वातावरण को प्रदूषण मुक्त बनाने के साथ ही अच्छी सेहत के लिए जरूरी है। 

हवन के धुएँ से प्राण में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। हवन के माध्यम से बीमारियों से छुटकारा पाने का जिक्र ऋग्वेद में भी है।

धार्मिक परंपराओं में देव पूजा, उपासना, जप, ध्यान, स्नान से हर सुख को पाने के उपाय बताए गए हैं। 

यह धार्मिक कर्म परेशानियों, चिंताओं और कष्टों में अशांत मन को बल और सुख देते हैं। 

ऐसे सुखों और खुशियों का आनंद दोगुना तब हो जाता है, जब सुख और आनंद व्यक्ति और परिवार तक सीमित न रहे, बल्कि उसमें समाज या प्रकृति भी शामिल हो जाए। 

शास्त्रों में ऐसा ही एक धार्मिक कर्म बताया गया है – हवन। 

जिसका शुभ प्रभाव न केवल व्यक्ति बल्कि प्रकृति को भी लाभ ही पहुंचाता है। ग्रंथों में अनेक तरह के यज्ञ और हवन बताए गए हैं।


 विज्ञान भी हवन और यज्ञ के दौरान बोले जाने वाले मंत्र, प्रज्जवलित होने वाली अग्रि और धुंए से होने वाले प्राकृतिक लाभ की पुष्टि करता है। 

यज्ञ / हवन को सनातन संस्कृति में बहुत अधिक महत्व दिया गया है। 

आध्यात्मिक दृष्टि के साथ साथ ये शारीरिक और मानसिक लाभ भी पहुँचाते हैं। 

पूर्वकाल की कई कथाएं प्रचलित हैं जहाँ यज्ञ के माध्यम से विभिन्न कार्य सिद्ध किये गए निसन्तानो. को संतान और कुरूप या रोगी को स्वस्थग और रूपवान बना दिया गया।

लेकिन आज परिस्तिथि पूर्णतः भिन्न है। 

लोगों के पास पूजा का ही समय नही है तो कहाँ से करें? 

कुछ दशक पूर्व तक संध्या करने वाले लोग भी नित्य हवन करते थे विशेषतः ब्राह्मण सामुदाय परन्तु अब वहां भी इसका स्थान नही के बराबर ही रह गया है।

अधार्मिक, नास्तिक, तर्कवादी और पश्चिमी सभ्यता के चाटुकार आधुनिकतावादी और अतिवैज्ञानिक लोग यज्ञ के लाभ को नकारते हैँ परन्तु यज्ञ के मूल को नहीँ समझते ।

हवन के लिए पवित्रता की जरूरत होती है ताकि सेहत के साथ उसकी आध्यात्मिक शुद्धता भी बनी रहे।

हवन करने से पूर्व स्वच्छता का ख्याल रखें। 

हवन के लिए आम की लकड़ी, बेल, नीम, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पीपल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन की लकड़ी, तिल, जामुन की कोमल पत्ती, अश्वगंधा की जड़, तमाल यानि कपूर, लौंग, चावल, ब्राम्ही, मुलैठी की जड़, बहेड़ा का फल और हर्रे तथा घी, शकर जौ, तिल, गुगल, लोभान, इलायची एवं अन्य वनस्पतियों का बूरा उपयोगी होता है।

हवन के लिए गाय के गोबर से बनी छोटी-छोटी कटोरियाँ या उपले घी में डूबो कर डाले जाते हैं। 

हवन से हर प्रकार के 94 प्रतिशत जीवाणुओं का नाश होता है, अत: घर की शुद्धि तथा सेहत के लिए प्रत्येक घर में हवन करना चाहिए।

हवन के साथ कोई मंत्र का जाप करने से सकारात्मक ध्वनि तरंगित होती है, शरीर में ऊर्जा का संचार होता है, अत: कोई भी मंत्र सुविधानुसार बोला जा सकता है।

हवन में अधिकतर आम की लकड़ियों का ही प्रयोग किया जाता है। 

जब आम की लकड़ियों को जलाया जाता है तो उनमें से एक लाभकारी गैस उत्पन्न होती है जिससे वातावरण में मौजूद खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणु समाप्त हो जाते हैं। 

इसके साथ ही वातावरण भी शुद्ध होता है। बता दें गुड़ को जलने से भी यह गैस उत्पन्न होती है।

बेल की लकड़ी से हवन करने से क्या होता है? - bel kee lakadee se havan karane se kya hota hai?

सभी वनस्पतियों में कुछ तरल / तैलीय द्रव्य होते हैं जिन्हे विज्ञानं की भाषा में एल्केलॉइड कहा जाता है। 

आज वैज्ञानिक इन्ही एलेकेलॉइड्स पर शोध कर वििभिन्न पौधों से कई नई दवाइयाँ बना रहे हैं और पहले भी बना चुके हैं |

परन्तु वैज्ञानिक इन एल्केलॉइड्स केमिकल नकल ही बनाएंगे जो गोली/ कैप्सूल या सीरप रूप में आप महंगे दामों पर खरीदेंगे क्यूंकि एक दवा की रिसर्च में करोड़ों रूपए खर्च होते हैं जो कंपनिया आपसे ही वसूलती हैं। 

साथ में साइड इफ़ेक्ट अलग क्यूंकि गोली कैप्सूल आदि को बनाने में कई अन्य केमिकल लगते हैं। 

मनुष्य को दी जाने वाली तमाम तरह की दवाओं की तुलना में अगर औषधीय जड़ी बूटियां और औषधियुक्त हवन के धुएं से कई रोगों में ज्यादा फायदा होता है।

जबकि यज्ञ या हवन में जब ये वनस्पतियां जलती हैं तो ये अल्केलॉइड्स धुएं के साथ उड़ कर अआप्के शरीर से चिपक जाते हैं और और श्वास से भीतर जाते हैं और धुआं मनुष्य के शरीर में सीधे असरकारी होता है|

यह पद्वति दवाओं की अपेक्षा सस्ती और टिकाउ भी है। 

यानि सिर्फ हवन करने से ही नही बल्कि हवन में हिस्सा लेने और उसके धुएं से भी आप विभिन्न रोगों से बच सकते हैं और अपने शरीर को स्वस्थ बना सकते हैं।

एक अन्य रिसर्च के मुताबिक यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाए और हवन के धुएं का शरीर से सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे जानलेवा रोग फैलाने वाले जीवाणु खत्म हो जाते है और शरीर शुद्ध हो जाता है।

(1) एक वेबसाइट रिपोर्ट के अनुसार फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। 

जिसमे उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। 

जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नमक गैस उत्पन्न होती है जो की खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओ को मरती है तथा वातावरण को शुद्द करती है। 

इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।

(2) टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।

(3) हवन की मत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च करी की क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होता है अथवा नही|

उन्होंने ग्रंथो में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलने पर पाया की ये विषाणु नाश करती है।

फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा की सिर्फ आम की लकड़ी 1 किलो जलने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बॅक्टेरिया का स्तर 98 % कम हो गया।

यही नही. उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया की कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के 24 घंटे बाद भी जीवाणुओ का स्तर सामान्य से 88 प्रतिशत कम था। 

बार बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ की इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था। यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर 2007 में छप चुकी है।

रिपोर्ट में लिखा गया की हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का नाश होता है। 

जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।

बेल की लकड़ी से हवन करने से क्या होता है? - bel kee lakadee se havan karane se kya hota hai?

क्या हो हवन की समिधा -जलने वाली लकड़ी

  • क्या हो हवन की समिधा -जलने वाली लकड़ी
  • हव्य (आहुति देने योग्य द्रव्यों) के प्रकार 
  • होम द्रव्य 4 प्रकार के कहे गये हैं
  • हवन सामग्री  Hawan Smagiri
  • विभिन्न हवन सामग्रियाँ विभिन्न प्रकार के लाभ देती हैं विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता देती हैं.
  • सर भारी या दर्द होने पर किस प्रकार हवन से इलाज होता था इस श्लोक से देखिये :-
  • एक नज़र कुछ रोगों और उनके नाश के लिए प्रयुक्त होने वाली हवन सामग्री पर

समिधा के रूप में आम की लकड़ी सर्वमान्य है परन्तु अन्य समिधाएँ भी विभिन्न कार्यों हेतु प्रयुक्त होती हैं।

सूर्य की समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मङ्गल की खैर की, बुध की चिड़चिडा की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा कही गई है।

मदार की समिधा रोग को नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।

हव्य (आहुति देने योग्य द्रव्यों) के प्रकार 

प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना। 

विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। 

इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। 

इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।

होम द्रव्य 4 प्रकार के कहे गये हैं

होम-द्रव्य अथवा हवन सामग्री वह जल सकने वाला पदार्थ है जिसे यज्ञ (हवन/होम) की अग्नि में मन्त्रों के साथ डाला जाता है।

(1) सुगन्धित : केशर, अगर, तगर, चन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री छड़ीला कपूर कचरी बालछड़ पानड़ीआदि

(2) पुष्टिकारक : घृत, गुग्गुल ,सूखे फल, जौ, तिल, चावल शहद नारियल आदि

(3) मिष्ट – शक्कर, छूहारा, दाख आदि

(4) रोग नाशक -गिलोय, जायफल, सोमवल्ली ब्राह्मी तुलसी अगर तगर तिल इंद्रा जव आमला मालकांगनी हरताल तेजपत्र प्रियंगु केसर सफ़ेद चन्दन जटामांसी आदि

उपरोक्त चारों प्रकार की वस्तुएँ हवन में प्रयोग होनी चाहिए। 

अन्नों के हवन से मेघ-मालाएँ अधिक अन्न उपजाने वाली वर्षा करती हैं। 

सुगन्धित द्रव्यों से विचारों शुद्ध होते हैं, मिष्ट पदार्थ स्वास्थ्य को पुष्ट एवं शरीर को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए चारों प्रकार के पदार्थों को समान महत्व दिया जाना चाहिए। 

यदि अन्य वस्तुएँ उपलब्ध न हों, तो जो मिले उसी से अथवा केवल तिल, जौ, चावल से भी काम चल सकता है।

हवन सामग्री  Hawan Smagiri

तिल, जौं, सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , पानड़ी , लौंग , बड़ी इलायची , गोला , छुहारे नागर मौथा , इन्द्र जौ , कपूर कचरी , आँवला ,गिलोय, जायफल, ब्राह्मी तुलसी किशमिशग, बालछड़ , घी

विभिन्न हवन सामग्रियाँ विभिन्न प्रकार के लाभ देती हैं विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता देती हैं.

प्राचीन काल में रोगी को स्वस्थ करने हेतु भी विभिन्न हवन होते थे। 

जिसे वैद्य या चिकित्सक रोगी और रोग की प्रकृति के अनुसार करते थे पर कालांतर में ये यज्ञ या हवन मात्र धर्म से जुड़ कर ही रह गए और इनके अन्य उद्देश्य लोगों द्वारा भुला दिए गये.

सर भारी या दर्द होने पर किस प्रकार हवन से इलाज होता था इस श्लोक से देखिये :-

श्वेता ज्योतिष्मती चैव हरितलं मनःशिला।।

गन्धाश्चा गुरुपत्राद्या धूमं मुर्धविरेचनम्।। 

अर्थात अपराजिता , मालकांगनी , हरताल, मैनसिल, अगर तथा तेज़पात्र औषधियों को हवन करने से शिरो व्विरेचन होता है।

परन्तु अब ये चिकित्सा पद्धति विलुप्त प्राय हो गयी है।

एक नज़र कुछ रोगों और उनके नाश के लिए प्रयुक्त होने वाली हवन सामग्री पर

1. सर के रोग:– सर दर्द, अवसाद, उत्तेजना, उन्माद मिर्गी आदि के लिए

ब्राह्मी, शंखपुष्पी , जटामांसी, अगर , शहद , कपूर , पीली सरसो

2.स्त्री रोगों, वात पित्त, लम्बे समय से आ रहे बुखार हेतु

बेल, श्योनक, अदरख, जायफल, निर्गुण्डी, कटेरी, गिलोय इलायची, शर्करा, घी, शहद, सेमल, शीशम

3. पुरुषों को पुष्ट बलिष्ठ करने और पुरुष रोगों हेतु

सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , अश्वगंधा , पलाश , कपूर , मखाने, गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , लौंग , बड़ी इलायची , गोला

4. पेट एवं लिवर रोग हेतु

भृंगराज , आमला , बेल , हरड़, अपामार्ग, गूलर, दूर्वा , गुग्गुल घी , इलायची

5. श्वास रोगों हेतु

वन तुलसी, गिलोय, हरड , खैर अपामार्ग, काली मिर्च, अगर तगर, कपूर, दालचीनी, शहद, घी, अश्वगंधा, आक, यूकेलिप्टिस

मित्रों हवन यज्ञ का विज्ञानं इतना वृहद है की एक लेख में समेत पाना मुश्किल है परन्तु एक छोटा सा प्रयास किया है की इसके महत्त्व पर कुछ सूचनाएँ आप तक पहुंचा सकूँ। 


विभिन्न खोजें और हमारे ग्रन्थ यही निष्कर्ष देते हैं की सवस्थ पर्यावरण, समाज और शरीर के लिए हवन का आज भी बहुत महत्त्व है। 

जरूरत बस इस बात की है की हम पहले इसके मूल कारण को समझे और फिर इसे अपनाएं।

वन का शुभ प्रभाव न केवल व्यक्ति बल्कि प्रकृति को भी लाभ ही पहुंचाता है। 

ग्रंथों में अनेक तरह के यज्ञ और हवन बताए गए हैं। 

विज्ञान भी हवन और यज्ञ के दौरान बोले जाने वाले मंत्र, प्रज्जवलित होने वाली अग्रि और धुंए से होने वाले प्राकृतिक लाभ की पुष्टि करता है। 

वैज्ञानिक दृष्टि से हवन से निकलने वाले अग्रि के ताप और उसमें आहुति के लिए उपयोग की जाने वाली हवन की प्राकृतिक सामग्री यानी समिधा वातावरण में फैले रोगाणु और विशाणुओं को नष्ट करती है, बल्कि प्रदूषण को भी मिटाने में सहायक होती है। 

साथ ही उनकी सुगंध व ऊष्मा मन व तन की अशांत व थकान को भी दूर करने वाली होती है।

इस तरह हवन स्वस्थ और निरोगी जीवन का श्रेष्ठ धार्मिक और वैज्ञानिक उपाय है। 

खासतौर पर कुछ विशेष काल में किए गए हवन तो धार्मिक लाभ के साथ प्राकृतिक व भौतिक सुख भी देने वाले माने गए हैं। 

सफल जीवन के लिए बेहतर सेहत भी धन-संपदा मानी गई है। इसलिए उत्सव, पर्व, तिथियों पर व्रत-उपवास व धार्मिक परंपराओं में निरोगी जीवन व धन की कामना से अलग-अलग देवी-देवताओं की प्रसन्नता के लिए यज्ञ-हवन का विधान प्राचीन काल से प्रचलित हैं।

दरअसल, व्यावहारिक व वैज्ञानिक नजरिए से भी हवन त्योहार-पर्व विशेष ही नहीं, बल्कि हर रोज करना घर-परिवार और आस-पास का वातावरण शुद्ध बनाने वाला होता है। 

इसी उद्देश्य से शास्त्रों में हवन से धन, ऐश्वर्य के साथ ही अच्छे स्वास्थ्य और रोगों से छुटकारा पाने के लिए कुछ विशेष प्राकृतिक सामग्रियों से हवन का महत्व बताया गया है। 

पूजन-कर्म के साथ इन विशेष हवन सामग्रियों से हवन स्वयं या किसी योग्य ब्राह्मण से कराएं और निरोगी जीवन का लुत्फ उठाएं।

जानिए, अलग-अलग रोग और पीड़ाओं से मुक्ति के लिए कौन-सी हवन सामग्रियां बहुत प्रभावी होती हैं-

1. दूध में डूबे आम के पत्ते – बुखार

2. शहद और घी – मधुमेह

3. ढाक के पत्ते – आंखों की बीमारी

4. खड़ी मसूर, घी, शहद, शक्कर – मुख रोग

5. कन्दमूल या कोई भी फल – गर्भाशय या गर्भ शिशु दोष

6. भाँग,धतुरा – मनोरोग

7. गूलर, आँवला – शरीर में दर्द

8. घी लगी दूब या दूर्वा – कोई भयंकर रोग या असाध्य बीमारी

9. बेल या कोई फल – उदर यानी पेट की बीमारियां

10. बेलगिरि, आँवला, सरसों, तिल – किसी भी तरह का रोग शांति

11. घी – लंबी आयु के लिए

12. घी लगी आक की लकडी और पत्ते – शरीर की रक्षा और स्वास्थ्य के लिए।

इस तरह हवन स्वस्थ और निरोगी जीवन का श्रेष्ठ धार्मिक और वैज्ञानिक उपाय है। 

खासतौर पर कुछ विशेष काल में किए गए हवन तो धार्मिक लाभ के साथ प्राकृतिक व भौतिक सुख भी देने वाले माने गए हैं।

हवन के लिए कौन कौन सी लकड़ी चाहिए?

हवन में आमतौर पर समिधा (जलने वाली लकड़ी) के रूप में आम की लकड़ी सर्वमान्य है, लेकिन अन्य समिधाएं भी विभिन्न कार्यों के लिए इस्तेमाल होती हैं। सूर्य की समिधा मदार की होनी चाहिए। मदार रोग का नाश करती है। चंद्रमा की समिधा पलाश ‌की होने से व्यक्ति के सभी कार्य सिद्ध होते हैं।

घर में रोज हवन करने से क्या होता है?

हवन से ग्रह दोष से मिलती है शांति कहा जाता है कि पूजा-पाठ समेत कोई भी धार्मिक कार्य हवन के बिना अधूरा है। इसके जरिए आसपास की नकारात्मक ऊर्जा और बुरी आत्माओं के प्रभाव को खत्म किया जाता है। ग्रह दोष से पीड़ित व्यक्ति को ग्रह शांति के लिए हवन करने की सलाह दी जाती है।

बेल के पेड़ की पूजा करने से क्या होता है?

बेल के पेड़ की पूजा करने से मां लक्ष्‍मी प्रसन्‍न होती हैं और धन की प्राप्ति होती है। इसलिए सावन में शिवजी को बेलपत्र चढ़ाने के साथ ही बेल के वृक्ष को भी जल दें।

बेलपत्र के पेड़ के नीचे किसका वास होता है?

1 बिल्वपत्र के वृक्ष में लक्ष्मी का वास माना गया है। इसकी पूजा करने से दरिद्रता दूर होती है और बेलपत्र के वृक्ष और सफेद आक को जोड़े से लगाने पर निरंतर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।