चित्रकूट की शरण किसने ली और क्यों class 9? - chitrakoot kee sharan kisane lee aur kyon chlass 9?

भगवान राम की तपस्थली के रूप में विश्व विख्यात धर्म नगरी चित्रकूट जिले में विधानसभा की दो सीटें हैं, चित्रकूट सदर और मानिकपुर. चित्रकूट ही वह स्थान है जहां पर अपने वनवास काल के दौरान भगवान श्रीराम ने भ्राता लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ लगभग साढ़े 11 वर्ष व्यतीत किए थे. चित्रकूट को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है और यह अपनी प्राकृतिक सुषमा के लिए काफी मशहूर था.

भगवान राम ने वाल्मीकि मुनि की आज्ञा पर यहां पर वनवास व्यतीत करने का निर्णय लिया था. वैसे तो चित्रकूट एक धार्मिक नगर है, लेकिन पिछले तीन-चार दशकों से इस स्थान की पहचान डकैतों के नाम पर होने लगी थी. साढ़े सात लाख का इनामी दस्यु सरगना ददुआ उर्फ शिवकुमार और अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया जैसे दुर्दांत डकैत चित्रकूट में अपने गुनाहों की खौफनाक खूनी कहानियां लिखते रहे.

हालांकि अब स्थितियों में बदलाव आया है और इस समय कोई भी डकैत गिरोह सक्रिय  नहीं है. चित्रकूट जिले की चित्रकूट विधानसभा प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 222 किलोमीटर और प्रयागराज से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. देश की राजधानी दिल्ली और अन्य महानगरों जैसे कोलकाता और मुंबई के लिए सीधी रेल सेवाओं से जुड़ा हुआ है.

सामाजिक तानाबाना

2011 की जनगणना के अनुसार चित्रकूट की कुल आबादी 9 लाख 91 हजार 730 थी जिनमें से पुरुषों की संख्या 5 लाख 27 हजार 721 और महिलाओं की संख्या 4 लाख 64 हजार 9 थी. इस विधानसभा के 87.03% लोग ग्रामीण क्षेत्रों में और 12.79% लोग शहरी क्षेत्र में निवास करते हैं. लिंग अनुपात के हिसाब से चित्रकूट विधानसभा में प्रति एक हजार पुरुषों के सापेक्ष महिलाओं की संख्या सिर्फ 879 है.

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साक्षरता के दृष्टिकोण से इस विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ 65.05 प्रतिशत लोग ही साक्षर हैं. जिनमें से पुरुष 75.80 प्रतिशत और महिलाएं सिर्फ 52.74 प्रतिशत ही साक्षर हो पाई हैं. जनसंख्या के दृष्टिकोण से कुल 5 लाख 31 हजार 072 लोग साक्षर हैं जिनमें से 3 लाख 30 हजार 339 पुरुष और 2 लाख 733 महिलाएं हैं. चित्रकूट विधानसभा सीट में 96.33% हिंदू और 3.48% मुसलमान आबादी रहती है.

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चित्रकूट विधानसभा क्षेत्र के सामाजिक तानेबाने की बात की जाए तो यह सीट ब्राह्मण बाहुल्य सीट हुआ करती थी और कुर्मी बिरादरी के वोटरों की संख्या इनके मुकाबले काफी कम थी. लेकिन धीरे-धीरे राम सजीवन सिंह, राम कृपाल सिंह पटेल के अलावा ददुआ और ठोकिया जैसे एक ही बिरादरी के जनप्रतिनिधियों और डकैतों की सपरस्ती में इस बिरादरी ने खूब तरक्की की और अब चित्रकूट विधानसभा में इनकी संख्या लगभग ब्राह्मण वोटरों के बराबर हो गई है. चित्रकूट विधानसभा में हमेशा ब्राह्मण और कुर्मी बिरादरी के जनप्रतिनिधियों का ही दबदबा रहा.

बहुजन समाज पार्टी के दौर में भी यह दबदबा कायम रहा और बसपा प्रत्याशी के रूप में चित्रकूट विधानसभा सीट के लिए सन 2007 में हुए चुनावों में दिनेश मिश्रा विधायक बने थे. इसके बाद समाजवादी पार्टी ने दस्यु सरगना ददुआ के बेटे वीर सिंह को विधानसभा का टिकट दे दिया और वह बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी राम सेवक शुक्ला को सोलह हजार एक सौ छत्तीस वोटों से हराकर विधायक बन गया.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

चित्रकूट की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो 1952 में हुए विधानसभा चुनाव में पहले विधायक के रूप में कांग्रेस से जगपत विजयी हुए थे. उन्होंने लगातार दूसरी बार भी चुनाव जीता और दो बार विधायक बने. 1974 और 1977 में सीपीआई के रामसजीवन सिंह ने जीत हासिल की.

1980 में कांग्रेस के शिव नरेश मिश्र, 1985 में सीपीआई के रामसजीवन सिंह, 1989 में सीपीआई के राम प्रसाद सिंह, 1991 में दोबारा सीपीआई के राम प्रसाद सिंह, 1993 में भाजपा के भैरों प्रसाद मिश्र, 1996 में भाजपा के वर्तमान सांसद राम कृपाल सिंह पटेल बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के रूप में विधायक चुने गए थे.

सन 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के रूप में राम कृपाल सिंह पटेल दोबारा विधायक चुने गए. इसके बाद सन 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा से दिनेश प्रसाद मिश्र विधायक बने. सन 2012 में सपा के वीर सिंह  सीपीआई के राम सजीवन सिंह और राम प्रसाद सिंह के बाद चित्रकूट विधानसभा में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के विधायक बनते रहे और वर्तमान में चित्रकूट विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय विधायक हैं और योगी सरकार में लोक निर्माण विभाग के राज्यमंत्री भी हैं.

2017 का जनादेश 

2017 में हुए विधानसभा चुनाव में चित्रकूट विधानसभा सीट में कुल 12 लोगों ने उम्मीदवारी की थी. इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय कुल पड़े 2 लाख 21 हजार 230 वोटों में से 90 हजार 366 (41.52 प्रतिशत) वोट पाकर विजयी हुए थे.

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चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय

जबकि समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार और कुख्यात डकैत ददुआ के बेटे वीर सिंह को 63 हजार 430 (29.14 प्रतिशत) वोट मिले थे जिसकी वजह से उसे अपनी विधायकी गंवानी पड़ी. बसपा के जगदीश प्रसाद गौतम को 47 हजार 780, सीपीआई के कामरेड अमित यादव को 3,378, निषाद पार्टी के उग्रसेन को 2,679, जेएएम के छेदीलाल को 2,543, अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के चंद्र किशोर दिवेदी को 1,746 और राष्ट्रीय लोकदल के आशीष सिंह रघुवंशी को 1,237 वोट मिले. जबकि 3,528 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था.

रिपोर्ट कार्ड

चित्रकूट विधानसभा से वर्तमान विधायक चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय का जन्म 9 जुलाई सन 1950 में हुआ था. चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय की तीन संतानें हैं जिनमें से बड़े पुत्र प्रशांत उपाध्याय कानपुर में डिप्टी जेलर हैं और छोटे पुत्र निशांत उपाध्याय प्रयागराज में ट्रेजरी ऑफिसर हैं. इनकी बेटी मीनाक्षी शुक्ल लखनऊ में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और दामाद राजेश शुक्ल सिंचाई विभाग में अधिशासी अभियंता हैं. चंद्रिका ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है.

चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय खंड विकास अधिकारी के पद से सरकारी सेवा प्रारंभ कर कन्नौज के मुख्य विकास अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. सन 1998 से 2004 तक वह मानव संसाधन मंत्री रहे बीजेपी के पुरोधा डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी के पर्सनल सेकेट्री भी रहे. 28 फरवरी 2010 में सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने 19 नवंबर 2010 को भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ले ली.

बीजेपी ने उन्हें जैविक ऊर्जा प्रकोष्ठ का प्रदेश संयोजक बनाया और उसके बाद वह बुंदेलखंड क्षेत्र के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष भी रहे. सन 2012 में बीजेपी ने चंद्रिका का प्रत्याशी बनाया था, लेकिन इस चुनाव में सिर्फ 32,507 वोट ही हासिल कर पाए थे और वह सपा और बसपा से पीछे रहते हुए तीसरे नंबर पर रहे थे.

2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी तत्कालीन विधायक वीर सिंह को पटकनी देते हुए उन्हें 26,936 वोटों से हरा दिया और विधायक बन गए. योगी सरकार द्वारा अगस्त 2019 में किए मंत्रिमंडल विस्तार में चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय को लोक निर्माण विभाग का राज्य मंत्री बना दिया गया. जनप्रतिनिधि के तौर पर काफी सक्रिय रहते हैं लेकिन पुराने प्रशासनिक सेवक होने के नाते सरकारी अधिकारियों के प्रति उदार भावना रखने के कारण यह अपने क्षेत्र के लोगों की नजर में अच्छे जनप्रतिनिधि साबित नहीं हो पा रहे.
 

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