गया में पिंडदान कैसे करना चाहिए? - gaya mein pindadaan kaise karana chaahie?

Pitru Paksha 2022 । हिंदू धर्म मे मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान परिवार वालों का आर्शीवाद देने के लिए स्वर्गलोक से पितरों की आत्मा धरती पर आती है। ऐसे में पितरों की आत्मिक शांति के लिए पिंडदान व तर्पण किया जाता है। मातृ देवो भवः तथा पितृ देवो भवः की भावना के साथ पितरों की आराधना की जाती है। हिंदू धर्मग्रंथों में भी पितृ श्राद्ध का विशेष उल्लेख किया गया है। हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक के 14 दिनों को श्राद्ध पक्ष के रूप में मनाया जाता है। हिंदू पुराणों में भी बताया गया है कि पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।

Pitru Paksha किसे करना चाहिए पिंडदान

धार्मिक मान्यता है कि Pitru Paksha के दौरान पुत्रों को अपने पूर्वजों का पिंडदान, तर्पण, व श्राद्ध के बाद ब्राह्मण भोज कराना चाहिए, लेकिन यदि पुत्र जीवित न हो तो पौत्र, प्रपौत्र या विधवा पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है। इसके अलावा पुत्र के जीवित नहीं रहने पर पत्नी का श्राद्ध पति भी कर सकता है। यदि पिता के कई पुत्र हो तो सबसे बड़े पुत्र को ही श्राद्ध करना चाहिए। यदि सभी भाई अलग-अलग रहते हैं तो सभी पुत्र अलग-अलग अपने घरों में श्राद्ध कर सकते हैं। इसके अलावा यदि संयुक्त परिवार के रूप में सभी साथ रहते हैं तो एक ही श्राद्ध करें तो वह अच्छा होता है।

भाई या उनके पुत्र भी कर सकते हैं श्राद्ध

यदि किसी का पुत्र नहीं तो तो उसके दिवंगत व्यक्ति का भाई व उसके पुत्र व या अन्य कुंटुम्बी भी श्राद्ध व पिंडदान कर सकते हैं। यदि कोई भी उत्तराधिकारी न हो तो प्रपौत्र या परिवार का कोई भी व्यक्ति श्राद्ध कर सकता है। तर्पण तथा पिंडदान केवल पिता के लिए ही नहीं बल्कि समस्त पूर्वजों एवं मृत परिजनों के लिए भी किया जा सकता है।

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जानें क्या है श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान का धार्मिक महत्व

पितृ पक्ष में पिंडदान मृत्यु तिथि के दिन ही किया जाता है। इस दौरान देवताओं और ऋषियों को जल अर्पित करके तृप्त किया जाता है। पितृ पक्ष में पुरुषों को जल, तिल जौ, दुग्ध, कुश और श्वेत पुष्प आदि से तर्पण और श्राद्ध संपन्न किया जाता है। गो-ग्रास देकर ब्राह्मण भोजन अवश्य कराना चाहिए। पिंडदान दोपहर के समय किया जाता है। जिन लोगों की मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो उनका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए।

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शास्त्र का वचन है- 'श्रद्ध्या इदं श्राद्धम्' अर्थात् श्रद्धा ही श्राद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने पूर्वजों के निमित्त यथा सामर्थ्य श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। मान्यता है कि श्राद्ध ना करने से हम अपने पितरों के कोप के भागी होते हैं। अत: प्रत्येक व्यक्ति को अपने पितरों की तृप्ति हेतु श्राद्ध करना आवश्यक है।

शास्त्रानुसार श्राद्ध के कई अवसर बताए गए हैं किंतु महालय अर्थात् पितृ पक्ष में तो श्राद्ध अवश्य ही करना चाहिए। इसी प्रकार श्राद्ध संगम तट, तीर्थ स्थान एवं पवित्र नदी के तट पर करने का भी बहुत महत्व होता है। इन सब में गया श्राद्ध की अपनी विशेष महिमा व महत्व है।

माना जाता है कि गया में श्राद्ध करने के पश्चात् पितर देवलोक प्रस्थान कर जाते हैं। कुछ विद्वान गया श्राद्ध को अंतिम श्राद्ध मानते हुए इसके पश्चात् श्राद्ध ना करने का परामर्श देते हैं जो पूर्णत: अनुचित है। ऐसी बात कहकर वे आम जनमानस को भ्रमित करते हैं। शास्त्रानुसार गया श्राद्ध के पश्चात् भी बदरीका क्षेत्र के 'ब्रह्मकपाली' में श्राद्ध करने का विधान है।

शास्त्रानुसार वर्णन है कि प्राचीन काल में जहां ब्रह्मा जी का सिर गिरा था उस क्षेत्र को 'ब्रह्मकपाली' कहा जाता है। गया में श्राद्ध करने के उपरांत
अंतिम श्राद्ध 'ब्रह्मकपाली' में किया जाता है।

हमारे शास्त्रों में श्राद्ध क्षेत्रों का वर्णन प्राप्त होता है जिनमें श्राद्ध करना श्रेष्ठ माना गया है, ये स्थान हैं- प्रयाग, पुष्कर, कुशावर्त (हरिद्वार), गया एवं ब्रह्मकपाली (बदरीका क्षेत्र)। कई लोगों को भ्रम होता है कि गया श्राद्ध करने के उपरांत श्राद्ध पक्ष में तर्पण व ब्राह्मण भोजन बंद कर देना चाहिए, यह एक गलत धारणा है।

शास्त्रानुसार गया में श्राद्ध करने के उपरांत भी अपने पितरों के निमित्त तर्पण व ब्राह्मण भोजन बंद नहीं करना चाहिए, केवल उनके निमित्त 'धूप' छोड़ना बंद करना चाहिए। गया श्राद्ध के उपरांत ब्रह्मकपाली में श्राद्ध किया जाना चाहिए। ब्रह्मकपाली में श्राद्ध करने के उपरांत तर्पण व ब्राह्मण भोजन की बाध्यता समाप्त हो जाती है लेकिन शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है कि गया एवं ब्रह्मकपाली में श्राद्ध करने के उपरांत भी अपने पितरों के निमित्त तर्पण व ब्राह्मण भोजन अथवा आमान्न (सीधा) दान किया जाना चाहिए।

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shradh vidhi at home : दस सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो गया। पूर्णिमा को पहला श्राद्ध हुआ। शनिवार को शुद्धि दिवस के रूप में जाना जाता है। इस दिन से तर्पण की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है।

गया में पिंडदान कैसे करना चाहिए? - gaya mein pindadaan kaise karana chaahie?

Yogesh Joshiकार्यालय संवाददाता,भभुआSun, 11 Sep 2022 10:29 AM

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दस सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो गया। पूर्णिमा को पहला श्राद्ध हुआ। शनिवार को शुद्धि दिवस के रूप में जाना जाता है। इस दिन से तर्पण की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है, जो अमावस्या तक यानी 16 दिनों तक चलेगी। इसी पुष्टि ज्योतिषाचार्य पंडित वागीश्वरी प्रसाद द्विवेदी ने की और बताया कि जो व्यक्ति गया में पिंडदान नहीं कर सकेंगे, वह अपने पितरों का घर पर ही एकोदिष्ट श्राद्ध कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि घरों में सामान्य रूप से पिंडदान किया जा सकता है। गया में पार्वण श्राद्ध होता है।

उन्होंने बताया कि इस विधि से हर पितर को एक पिंड दिया जाता है। घर पर एकोदिष्ट श्राद्ध पिता की तिथि पर किया जाता है, जबकि अन्य पितरों को तर्पण किया जाता है। पिता के ही पिंड में सभी पितर सहभागी हो जाते हैं। पितरों की पूजा करने से आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, धान्य की समृद्धि होती है। जो मृत आत्माओं का श्राद्ध नहीं करते, उनके पितर सदैव नाराज रहते हैं। देवी-देवताओं की आराधना के साथ ही स्वर्ग को प्राप्ति होने वाले पूर्वजों की भी श्रद्धा और भाव के साथ पूजा व तर्पण किया जाता है।

विद्वान डॉ. विवेकानंद तिवारी कहते हैं कि धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितरों के प्रसन्न होने पर ही देवी-देवता प्रसन्न रहते हैं। पितरों के लिए समर्पित श्राद्धपक्ष भादों पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक मनाया जाता है। परमपिता ब्रह्मा ने यह पक्ष पितरों के लिए ही बनाया है। जिन प्राणियों की मृत्यु के बाद उनका विधिनुसार श्राद्ध नहीं किया जाता है, उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। जो भी अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करते हैं, उन्हें पितृदोष का सामना करना पड़ता है। पितृदोष होने पर जातकों के जीवन में धन और सेहत संबंधी कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पितरों का तर्पण करने से उन्हें मृत्युलोक से स्वर्गलोक में स्थान मिलता है।

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पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व

डॉ. विवेकानंद बताते हैं कि पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है। हालांकि हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जा सकता है। लेकिन, पितृपक्ष के 15 या 16 दिनों में श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण करने का अधिक महत्व माना जाता है। इन दिनों में पितर धरती पर किसी न किसी रूप में अपने परिजनों के बीच में रहने के लिए आते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध करने के कुछ खास तिथियां भी होती हैं।

विधि

डॉ. विवेकानंद कहते हैं कि श्राद्ध पूरे विधि-विधान से करना चाहिए। मत्स्य पुराण के अनुसार, श्राद्ध की तिथि को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि कर सफेद वस्त्र धारण करें। दक्षिण दिशा में जल दें। पूरब की ओर मुख करके पितरों का मानसिक आह्वान करें। हाथ में तिल कुश लेकर बोलें कि आज मैं इस तिथि को अपने अमूक पितृ के निमित्त श्राद्ध कर रहा हूं। इसके बाद जल धरती पर छोड़ दें।

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किसकी श्राद्ध कब करें

- जिन लोगों के सगे-सबंधियों और परिवार के सदस्यों की मृत्यु जिस तिथि पर हुई है, पितृपक्ष में पड़ने वाली उस तिथि में उनका श्राद्ध करना चाहिए।

- जिस महिला की मृत्यु पति के रहते हो गई हो उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में किया जाता है।

- ऐसी स्त्री जो मृत्यु को तो प्राप्त हो चुकी किंतु उनकी तिथि नहीं पता हो तो उनका भी श्राद्ध मातृ नवमी को ही करने का विधान है।

- आत्महत्या, विष, दुर्घटना आदि से मृत्यु होने पर मृत पितरों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है।

- पिता के लिए अष्टमी तो माता के लिए नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

- अगर किसी कारणवश अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद न हो तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना उचित है।

गयाजी में पिंडदान में कितना समय लगता है?

क्या होती है 17 दिन की पूजा गया में 17 दिनों का पिंडदान शहर व उसके आसपास स्थित 54 वेदियों पर कराया जाता है।

गया में पिंड दान कब करना चाहिए?

गया जी कब जाना चाहिए? पुराणों के अनुसार पितरों के लिए खास आश्विन माह के कृष्ण पक्ष या पितृपक्ष में मोक्षधाम गयाजी आकर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और माता-पिता समेत सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। पितृ पक्ष पर गया जी में अपने पितरों का पिंड दान करते लोग।

गया में पिंड दान कैसे किया जाता है?

पिंडदान चावल का बनाकर किया जाता है लेकिन गया में फाल्गु नदी के तट की बालू का भी पिंडदान किया जाता है। बालू का पिंडदान चावल के पिंडदान के बराबर मान्य होता है। 11 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है और इनका समापन 25 सितंबर को होगा। पितरों की मुक्ति के लिए इन दिनों पिंडदान, तर्पण विधि और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं।

गया में पिंडदान के बाद क्या करना चाहिए?

गया में या कहीं भी पिंडदान के बाद परिवार का नाती को भोजन कराने से ये श्राद्धकर्म सबसे ज्यादा फलदायक माना जाता है. इसके साथ ही कच्चा आंवला के समान गोलाकार पिंड बनाकर अर्पण करना और गौमाता को पिंड खिलाना सर्वोत्तम माना गया है. श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन विषम संख्या एक, तीन या पांच होनी चाहिए.