भाषा की शिक्षा हमारे लिए अति आवश्यक है। तथा इसके कई उद्देश्य हैं जो कि इस प्रकार है। 1 सरल एवं शुद्ध और स्पष्ट और प्रभावशाली भाषा में छात्र अपने भावों और विचारों को आसानी से व्यक्त कर सकता है। 2 भाषा की शिक्षा से बालक के शब्द और वाक्य को लोकोक्तियों आदि के कोष में वृद्धि करता है। 3 भाषा की शिक्षा से छात्रों को इस योग्य बनाना कि वे उचित भाव के साथ वचन करके कार्य कलाम का आनंद प्राप्त कर सकें। 4 भाषा की शिक्षा से बालक भाषा में निरंतर शुद्धता एवं गति के निरंतर विकास करते हुए वचन का प्रयास करते रहते हैं। 5 भाषा शिक्षण से बालक क्रम विचार प्रणाली में निपुण हो सके। Show Rjwala Rjwala is an educational platform, in which you get many information related to homework and studies. In this we also provide trending questions which come out of recent recent exams. भाषा शिक्षण (Language Teaching) एक प्रक्रिया है या हम कह सकते हैं कि एक माध्यम है जिसकी सहायता से इस बात पर बल दिया जाता है कि बालक को किस प्रकार से पढ़ना-लिखना सिखाया जाए जिससे बालक भाषा का समझ के साथ प्रयोग करना सीख सके।बच्चों की भाषा को उसके समाज के व्यवस्था के अनुरूप ढालने के लिए भाषा शिक्षण जरूरी होता है। लेव वाइगोत्सकी के अनुसार – बालकों के भाषा सीखने में समाज तथा परिवार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भाषा बाल विकास में सहायक होता है तथा शिक्षक द्वारा बालक की इसी प्रवृत्ति का ध्यान रखते हुए शिक्षण नीति अपनाई जानी चाहिए।
भाषा शिक्षण के महत्व एवं भाषा शिक्षण के उद्देश्यभाषा शिक्षण के प्रमुख महत्व एवं उद्देश्य निम्नलिखित है:-
उपरोक्त लिखित सभी बातें भाषा शिक्षण के महत्व एवं भाषा शिक्षण के उद्देश्य को बताता है। इस लेख में हम लोगों ने जाना कि भाषा शिक्षण किसे कहते हैं? भाषा शिक्षण के महत्व क्या है एवं भाषा शिक्षण के उद्देश्य कौन-कौन से हैं? भिन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिकों तथा भाषाशास्त्रियों ने भाषा शिक्षण के नीचे लिखे उद्देश्य निर्धारित किए हैं- 1. प्राथमिक कक्षाएँ (i) बालकों को इस योग्य बनाना कि पाठ्यक्रम में निर्धारित शब्दावली के आधार पर बोली गयी उच्चरित भाषा को भली-भाँति समझ सकें। (ii) बालकों को इस योग्य बनाना कि पाठ्यक्रम में निर्धारित शब्दावली के आधार पर भाषा को ठीक-ठीक बोल सकें। वे जिस वातावरण में रहते हैं, उसको सामने रखते हुए जहाँ तक बन सके, उनका उच्चारण शुद्ध होना चाहिए। (iii) उन्हें इस योग्य बनाना कि पाठ्यक्रम में निर्धारित शब्दावली के आधार पर वे उचित प्रवाह के साथ सस्वर वाचन कर सकें। (iv) बालकों में ऐसी क्षमता उत्पन्न करना कि वे उचित गति से उपयुक्त पाठ्य सामग्री का मौन वाचन करते हुए उसे ठीक-ठीक समझ सकें तथा उनसे इस सम्बन्ध में जो-जो प्रश्न पूछे जाएँ, उन प्रश्नों का जैसा चाहिए, वैसा उत्तर दे सकें। (v) बालकों को इस योग्य बनाना कि वे पाठ्यक्रम में निर्धारित शब्दावली के भीतर छोटे-छोटे वाक्य तथा अनुच्छेद बनाने में समर्थ हो सकें। यह आवश्यक नहीं कि इन वाक्यों अनुच्छेदों को बनाते समय सम्बन्धित विषय भी वे स्वयं ही सोचें। 2. माध्यमिक कक्षाएँ – (i) छात्रों को इस योग्य बनाना कि वे पाठ्यक्रम में निश्चित की गई शब्दावली के भीतर, सामान्य गति से बोली गई उच्चरित भाषा को स्पष्ट रूप से समझ सकेँ । (ii) छात्रों में इतनी क्षमता उत्पन्न करना कि वे पाठ्यक्रम में निर्धारित शब्दावली के आधार पर भाषा को ठीक-ठीक बोल सकें। जिस वातावरण में रहते हैं, उसको सामने रखते हुए जहाँ तक बन पाए, उनका उच्चारण शुद्ध होना चाहिए। (iii) छात्रों को इस योग्य बनाना कि वे पाठ्यक्रम में निर्धारित शब्दावली के भीतर, अच्छी गति से सस्वर तथा मौन वाचन कर सकें। परंतु इस बात की सावधानी रखी जाए कि पाठ्यक्रम के बाहर का अवतरण ऐसा न हो जिसके लिए विशेष योग्यता की आवश्यकता पड़े। (iv) छात्रों को इस योग्य बनाना कि वे पाठ्यक्रम से बाहर किसी अपठित अवतरण को शब्दकोश की सहायता से पढ़ सकें तथा उन्हें समझ भी सकें । परंतु इस बात की सावधानी रखी जाए कि पाठ्यक्रम के बाहर का अवतरण ऐसा न हो जिसके लिए विशेष योग्यता की आवश्यकता पड़े । (v) छात्रों को इस योग्य बनाना कि वे शुद्ध हिंन्दी में कोई साधारण पत्र लिख सकें अथवा किसी सरल विषय पर अपने विचार व्यक्त कर सकें । 3. उच्च कक्षाएँ (i) छात्रों को इस योग्य बनाना कि वे सामान्य गति से बोली गई भाषा को ठीक-ठीक समझ सकें। (ii) छात्रों को इस योग्य बनाना कि उचित विराम चिह्नों का प्रयोग करते हुए वे शुद्ध भाषा में वार्तालाप कर सकें। उनकी बोलचाल की भाषा में किसी भी प्रकार का उच्चारण सम्बन्धी दोष नहीं होना चाहिए। (iii) छात्रों में यह क्षमता उत्पन्न करना कि वे उच्च स्तर पर सस्वर वाचन तथा मौन वाचन कर सकें। (iv) छात्रों को इस योग्य बनाना कि वे वर्णनात्मक तथा सूचनात्मक सामग्री का संक्षेपीकरण कर सकें। (v) छात्रों में इतनी योग्यता उत्पन्न करना कि वे पत्र लिख सकें, देखी हुई तथा सुनी हुई घटनाओं का विवरण दे सकें तथा किसी सामान्य विषय पर शुद्ध तथा सरल भाषा में अपने व्यक्तिगत विचार व्यक्त कर सकें। भाषा शिक्षण के अन्य उद्देश्य कौशलों के विकास के दृष्टिकोण से भाषा शिक्षण के कुछ अन्य उद्देश्य भी हैं। इन उद्देश्यों को पाँच वर्गों में रखा जा सकता है- 1. ज्ञानात्मक उद्देश्य- ज्ञानात्मक उद्देश्यों का तात्पर्य है- छात्रों को भाषा एवं साहित्य की कुछ बातों का ज्ञान देना। प्रायः निम्नलिखित बातों की जानकारी देना ज्ञानात्मक उद्देश्य के अन्तर्गत आता है- (i) ध्वनि, शब्द एवं वाक्य रचना का ज्ञान देना। (ii) उच्च माध्यमिक स्तर पर निबंध, कहानी, उपन्यास, नाटक, काव्य-गीत, गद्य-गीत आदि साहित्य विधाओं का ज्ञान देना। (iii) सांस्कृतिक, पौराणिक, व्यावहारिक एवं जीवनगत अनुभूतियों, गाथाओं, तथ्यों, घटनाओं आदि का ज्ञान देना तथा लेखक की जीवनगत, रचनागत विशेषताओं एवं समीक्षा सिद्धांतों का उच्च माध्यमिक स्तर पर ज्ञान देना। यह विषय वस्तु से सम्बन्धित है। (iv) रचना-कार्य के मौखिक एवं लिखित रूपों का ज्ञान देना जिनमें वार्तालाप, सस्वर वाचन, अन्त्याक्षरी, भाषण, वाद-विवाद, संवाद, साक्षात्कार, निबंध, सारांशीकरण, कहानी, आत्मकथा, पत्र, तार आदि शामिल हैं। (v) उच्चतर माध्यमिक स्तर पर छात्रों के भाषा साहित्य के इतिहास की रूपरेखा से भी परिचित कराना चाहिए। भाषा में ज्ञानात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन निम्नलिखित होंगे- (i) छात्र इन्हें पहचान सकेगा। (ii) वह इनका प्रत्यभिज्ञान कर सकेगा। (iii) वह इनके अशुद्ध रूपों में त्रुटियाँ पकड़ सकेगा। (iv) वह इनके उदाहरण दे सकेगा। (v) वह इनकी तुलना कर सकेगा। (vi) वह इनमें परस्पर अंतर कर सकेगा। (vii) वह उनका परस्पर सम्बन्ध बता सकेगा। (viii) वह इनका विश्लेषण कर सकेगा। (ix) वह इनका संश्लेषण कर सकेगा। (x) वह इनका वर्गीकरण कर सकेगा। 2. कौशलात्मक उद्देश्य – इस उद्देश्यों का सम्बन्ध भाषायी कौशलों से होता है जिनमें पढ़ना, लिखना, बोलना, अर्थ ग्रहण करना आदि सम्मिलित हैं। कौशलात्मक उद्देश्यों के अन्तर्गत प्रायः निम्नलिखित बातें आती हैं- (i) सुनकर अर्थ ग्रहण करना। (ii) शुद्ध एवं स्पष्ट वाचन करना। (iii) गद्य-पद्य पढ़कर अर्थ ग्रहण करना। (iv) बोलकर भावाभिव्यक्ति करना। (v) लिखकर भावाभिव्यक्ति करना। इनमें से दूसरे, तीसरे और चौथे तथा पाँचवें क्रम में वाचन, गद्य, पद्य, मौखिक, भाव-प्रकाशन रचना के उद्देश्यों के लिए अपेक्षित योग्यताओं की चर्चा पहले ही की जा चुकी है। सुनने से सम्बद्ध योग्यताओं की चर्चा यहाँ की जा रही है, लक्षण अथवा अपेक्षित परिवर्तन भी कहा जाता है। सुनकर अर्थ ग्रहण करने से आशय यह है कि छात्र में निम्नलिखित योग्यताएँ आ जाएँ- (i) धैर्यपूर्वक सुनना। (ii) सुनने के शिष्टाचार का पालन करना। (iii) मनोयोगपूर्वक सुनना। (iv) ग्रहणशीलता मन:स्थिति बनाए रखना। (v) शब्दों, मुहावरों व उक्तियों का प्रसंगानुकूल अर्थ व भाव समझ सकना। (vi) स्वराघात, बलाघात तथा स्वर के उतार-चढ़ाव के अनुसार अर्थ ग्रहण कर सकना। (vii) श्रत सामग्री के विषय को जान सकना। (viii) महत्त्वपूर्ण विचारों, भावों एवं तथ्यों का चयन कर सकना । (ix) विचारों, भावों एवं तथ्यों का परस्पर सम्बन्ध समझ सकना । (x) सारांश ग्रहण कर सकना । (xi) भाव या विचार को ग्रहण कर सकना । (xii) वक्ता के मनोभाव समझ सकना । (xiii) भावानुभूति कर सकना । (xiv) अभिव्यक्ति के ढंग को समझ सकना । (xv) भावों, विचारों तथा तथ्यों का मूल्यांकन कर सकना । वार्तालाप, वाद-विवाद, प्रवचन, भाषण, आदेश, निर्देश, कविता, आकाशवाणी, प्रसारण जैसी सामग्रियों को सुनकर उपयुक्त योग्यताओं का विकास किया जा सकता है। 3. रसात्मक एवं समीक्षात्मक उद्देश्य- इन उद्देश्यों में दो उद्देश्य आते हैं- (i) साहित्य का रसास्वादन और (ii) साहित्य की सामान्य समालोचना । इन उद्देश्यों का सम्बन्ध उच्च माध्यमिक कक्षाओं से ही है। इन उद्देश्यों के सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा पूर्व में ही की जा चुकी है। 4. सृजनात्मक उद्देश्य- सृजनात्मक उद्देश्य से तात्पर्य है-छात्रों को साहित्य सृजन की प्रेरणा देना और उन्हें रचना में मौलिकता लाने की योग्यता का विकास करने के लिए प्रेरित करना। इस कार्य के लिए निबंध, कहानी, संवाद, पत्र, उपन्यास एवं कविता को माध्यम बनाया जा सकता है। इसके शिक्षण के समय छात्रों को मौलिकता लाने की प्रेरणा दी जा सकती है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए छात्र से जिन योग्यताओं की अपेक्षा की जाती है, वे निम्नलिखित हैं- (i) वह विषय तथा उसके अन्तर्गत भावों एवं विचारों के लिए उपयुक्त साहित्य की विधा का चयन कर सकेगा। (ii) वह स्वानुभूत भावों तथा विचारों को अभिव्यक्त कर सकेगा। (iii) वह स्वानुभूत भावों तथा विचारों को प्रभावपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त कर सकेगा। (iv) वह गृहीत व स्वानुभूत विचारों को कल्पना की सहायता से नया रूप दे सकेगा (v) वह विषय तथा प्रसंग के अनुकूल भाषा एवं शैली का उपयोग कर सकेगा। 5. अभिवृत्यात्मक उद्देश्य- इस उद्देश्य का तात्पर्य यह है कि छात्रों में उपयुक्त दृष्टिकोण एवं अभिवृत्तियों का विकास किया जाए। भाषा शिक्षण के माध्यम से इस सम्बन्ध में दो उद्देश्यों की प्राप्ति होनी चाहिए- (i) भाषा और साहित्य में रुचि। (ii) सद्वृत्तियों का विकास। भाषा और साहित्य में रुचि लेने के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए छात्र में निम्नलिखित योग्यताओं का विकास आवश्यक है- (i) पाठ्यक्रम के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें पढ़ना। (ii) अच्छी-अच्छी कविताएँ कण्ठस्थ करना। (iii) कक्षा और विद्यालय की पत्रिका में योगदान देना। (iv) विद्यालय से बाहर होने वाले साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लेना। (v) साहित्यकारों के चित्र एकत्रित करना। (vi) साहित्यिक महत्त्व की पत्रिकाएँ एकत्रित करना। (vii) अपना एक पुस्तकालय बनाना। (viii) साहित्यिक संस्थाओं का सदस्य बनना। (ix) अपने मित्रों तथा संसर्ग में आने वाले व्यक्तियों में भाषा और साहित्य के प्रति रुचि जाग्रत करने का प्रयास करना। इसे भी पढ़े…
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