ज्ञान निर्माण के कौन कौन से आधार हैं? - gyaan nirmaan ke kaun kaun se aadhaar hain?

ज्ञान का निर्माण क्या हैं? 

प्रायः विद्यालयों में विद्यार्थी तथा सूचना का पुनरूत्पादन करना सिखाते हैं जिसमें स्मृति की ही प्रधानता रहती हैं। किन्तु मात्र स्मृति नहीं छात्रों में समीक्षात्मक समझ, चिंतन, तर्क, विश्लेषण, व्याख्या, संश्लेषण, वर्गीकरण, मूल्यांकन आदि कौशल भी उच्च शैक्षणिक अध्ययन व अनुसंधान हेतु जरूरी होती हैं। इन कौशलों का उपयोग तथा विकास ज्ञान प्राप्ति व ज्ञान के स्थानांतरण में न होकर ज्ञान की खोज मे परिलक्षित होता हैं। 

अधिगम के निर्माणवाद के सिद्धांत के अनुसार अधिगम एक क्रियाशील प्रक्रिया है जिसमें अधिगमकर्ता उनके स्वयं के वर्तमान व पुराने ज्ञान तथा अनुभवों पर आधारित कई अवधारणों, विचारों तथा ज्ञान का निर्माण करते हैं। ज्ञान प्राप्त करने या ज्ञान के पुनरूत्पादन करने के स्थान पर ज्ञान निर्मित किया जाता हैं। वस्तुतः ज्ञान एक स्थिर वस्तु का संप्रत्यय नहीं है बल्कि ज्ञान के बारे में व्यक्ति के स्वयं के अनुभव उसे नए रूपों मे निर्मित करते रहते हैं। उदाहरणा से यह तथ्य स्पष्ट होगा। कक्षा 10 वीं के एक विद्यार्थी ने कहीं 'एक पुस्तक की आत्मकथा' पर निबंध पढ़ा। उसने यह ज्ञान प्राप्त किया कि आत्मकथा लेखन की शैली कैसी होती हैं। लगभग इसी निबंध के पैटर्न पर उसने 'एक कलन की आत्मकथा' पर निबंध रचना की। यह सीखे ज्ञान का पुनरूत्थान था। परन्तु यह ज्ञान का निर्माण नहीं था। अपने पुनरूत्पादन से उत्साहित होकर उसने विद्यालयीन पत्रिका में प्रकाशनार्थ "भारत माता की आत्मकथा" की रचना का संकल्प किया तथा इस हेतु विभिन्न सूचनाएं, तथ्य, ऐतिहासिक सत्यों की खोज छात्र ने विभिन्‍न इतिहास की पुस्तकों से की। उसने भारत नाम क्यों पड़ा? पूर्व में भारत महादेश का विस्तार कहाँ तक था? भारत में आर्य कहाँ से आए थे? सिंधु घाटी सभ्यता कितनी विकसित थी? भारत पर किन-किन विदेशी जातियों ने राज्य किया? भारत अंग्रेजी दासता से कब मुक्त हुआ और कैसें? देश का विभाजन तथा स्वतंत्रता के बाद भारत में कौन-कौन सी समस्याएं आई कौन से संकट आए? छात्र ने इंटरनेट पर भी इतिहास का अध्ययन किया। इस खोज अर्थ के उपरांत उसने "भारत माता की आत्मकथा" निबंध की स्वयं रचना की। उसकी यह खोज, ज्ञान की गहराई से जाकर तथ्य ज्ञान करने की पहल, परिश्रम ज्ञान की रचना या निर्माण का उदाहरण हैं। 

रूसी सामाजिक निर्माणवाद के प्रशंसा व्यगोत्स्की के ज्ञान के निर्माण को इस प्रकार रूपायित किया हैं-- 

1. ज्ञान को परावर्तित अमूर्तता के द्वारा निर्मित किया जाता हैं। 

2. इसे क्रियाशील तथा भागितापूर्ण अधिगम के रूप में निर्मित किया जाता हैं। 

3. यह इस मान्यता पर आधारित है कि अधिगम स्थिर तथा अन्तर्निहित नहीं होता बल्कि वह निरन्तर विकसित होता हैं। 

4. अधिगमकर्ता निष्क्रिय रूप से अर्थ को स्वीकार करने के स्थान पर क्रियाशील रूप से अर्थ को निर्मित करता हैं। 

उक्त दिये गये उदाहरण में छात्र के पास भारत के इतिहास की अमूर्त धारणा थी। उसने स्वयं की भागिता व सक्रियता से अधिगम की खोज की। भारत पर राज्य करने वाली विदेशी जातियों को उसने निष्क्रिय रूप से स्वीकार न कर गहराई में जाकर तथ्यानसंधान किये। इस प्रकार ज्ञान की रचना में वह सफल हुआ। सक्रिय रूप से स्वयं की गहन मानसिक शक्तियों के उपयोग से ज्ञान का निर्माण संभव होता हैं।

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मस्तिष्क में आई नवीन चेतना तथा विचारों का विकास स्वयं तथा देखकर होने लगा इस प्रकार से वह अपने वैचारिक क्षमता अर्थात् ज्ञान के आधार पर अपने नवीन कार्यों को करने एवं सीखने, किस प्रकार से कोई भी काम को आसान तरीके से किया जाये और उसे किस प्रकार से असम्भव बनाया जाये। इसी सोच विचारों की क्षमता या शक्ति को हम ज्ञान कहते है, जिसके आधार पर हम सभी प्रकार के कार्यों को करते है एवं निरन्तर आगे बढ़ते है अर्थात उन्नति करते है, यह उन्नति तरक्की और आगे बढ़ने की शक्ति ही व्यक्ति को और आगे बढ़ाने और अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देती है जिससे वह सदैव सत्कर्म एवं निरन्तर उचित कार्य करता है और आगे बढ़ता रहता है इस प्रकार से सरल एवं सुव्यवस्थित जीवन को चलाने की प्रक्रिया ही हमें ज्ञान से अवगत कराती है। 

किसी की निश्चित समय में किसी भी व्यक्ति या सम्पर्क में आने वाली कोई भी वस्तु जो कि जीवन को चलाने के लिए उपयोग में आती है उसके प्रति जागरूकता तथा साझेदारी ही ज्ञान कहलाती है।

हम अपने जीवन के अनुभवों के माध्यम से तथा निरीक्षण के माध्यम से प्राप्त करते है जो कि हमारे समक्ष घटित होती है घटना के आधार पर प्राप्त करते है। ज्ञान कितने प्रकार का होता है?

1. प्रयोगमूलक ज्ञान (Practical knowledge) - प्रयोजनवादी मानते है कि ज्ञान प्रयागे द्वारा प्राप्त होता है। हम विधियों का प्रयोग करके तथा किसी भी तथ्य को प्रयोग द्वारा समझते है व आत्मसात करते है।

2. प्रागनुभव ज्ञान (Preliminary knowledge) - स्वयं प्रत्यक्ष की भॉति ज्ञान को समझा जाता है जैसे गणित का ज्ञान प्रागनुभव ज्ञान है जो की सत्य है वह अनुभव के आधार पर होते है तथा-स्वयं में स्पष्ट एवं निश्चित ज्ञान प्रागनुभव ज्ञान होता है।

    ज्ञान के स्रोत (Sources of knowledge)

    मनुष्य सदैव स्रोतों के माध्यम से सीखता है ज्ञान के स्रोत ये है।

    1. प्रकृति (Nature)
    2. पुस्तकें (Books)
    3. इंद्रिय अनुभव (sense experience)
    4. साक्ष्य (Evidence)
    5. तर्क बुद्धि (Logic intelligence)
    6. अंतर्ज्ञान (Intuition)
    7. अन्त:दृष्टि द्वारा ज्ञान (Wisdom through insight)
    8. अनुकरणीय ज्ञान (Exemplary knowledge)
    9. जिज्ञासा (Curiosity)
    10. अभ्यास (Practice)
    11. संवाद (Dialogue)

    1. प्रकृति (Nature) - प्रकृति ज्ञान का प्रमुख स्रोत है एवं प्रथम स्रोत है प्रत्येक मनुष्य ज्ञान प्राप्त करता है जन्म से पूर्व एवं जन्म के पश्चात जैसे अभिमन्यु ने चक्र व्यहू तोड़कर अन्दर जाना अपनी माता के गर्भ से ही सीखा था और हम आगे किस प्रकार से प्रत्यके व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार प्रकृति से सीखता है जैसे- फलदार वृक्ष सदैव झुका रहता है कभी भी वह पतझड  की तरह नहीं रहता हमेशा पंछियों को छाया देता रहता है।

    सूर्य ब्रहृमाण्ड का चक्कर लगाता है पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है यह क्रिया सब अपने आप होती है और उसी से दिन रात का होना और मौसम का बनना तथा इस प्रकार से प्रकृति अपने नियमों का पालन करती है और उनसे हम सीखते है कि किस प्रकार से अपना जीवन ठीक से चला सकेंगे। 

    हमारे आस-पास के सभी पेड़ पौधे, नदी, तालाब तथा पर्वत पठार मैदान सभी से हम दिन रात सीखते रहते है वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों रूप हो सकते है। और इन्ही से हम अपना ज्ञानार्जन करते रहते है इस प्रकार से प्रकृति हमें सीखाती है और हम सीखते है।

    2. पुस्तकें (Books) - किताबें ज्ञान का प्रमुख स्रोत है प्राचीन समय मैं जब कागज का निर्माण नहीं  हुआ था तब हमारे पूर्वज ताम्रपत्र, पत्थर तथा भोज पत्रों पर आवश्यक बाते लिखते थे और उन्ही के आधार पर चलते थे अर्थात् नियमों का अनुसरण करते थे इस प्रकार से प्रत्येक पीढ़ियाँ समयानुसार उनका उपयोग करती थी और सदैव अनुपालन करती थी।

    वर्तमान युग आधुनिकता का युग है आज के समय में सभी लोग पाठ्य पुस्तकों के द्वारा तथा प्रमुख पुस्तकों के माध्यम से अपना अध्ययन करते है इनके द्वारा हम ज्ञान वृद्धि कर चौगुनी तरक्की कर सकते है। आज के युग में प्रत्येक विषय पर हमें किताबे मिल सकती है यह ज्ञान का भण्डार होती है आज के समय में हम जिस विषय में चाहे उस विषय की पुस्तक खरीद सकते है और अपने ज्ञान का अर्जन कर-सकते है।

    ऑनलाइन भी ई-लाइब्रेरी के द्वारा अध्ययन कर सकते है।

    3. इंद्रिय अनुभव (sense experience) - इंद्रिय अर्थात् शारीरिक अंग जोकि मनुष्य को उसकी जीवितता का आभास कराते है। वह सदैव उन्ही के द्वारा अनुभव करता जाता है, और संवेदना जागृत करता जाता है, यह संवेदना ही ज्ञान प्रदान करती है अनुभव के आधार पर वह प्रत्येक व्यक्ति अपनी कार्यशैली और प्रत्यक्षी करण कराती है, अर्थात् प्रत्येक पदार्थों से जो कि हमारे जीवन को चलाने में संचालित करते है उनके सहारे ही हम आगे बढते है तथा अपने जीवन में निरन्तर आगे बढ़ाते है।

    4. साक्ष्य (Evidence) - साक्ष्य के द्वारा हम दूसरों के अनुभवों एवं आधारित ज्ञान को मानते है जो हम अपने अनुभवों के द्वारा ज्ञान प्राप्त करते है। साक्ष्य में व्यक्ति स्वयं निरीक्षण नहीं करता है दूसरों के निरीक्षण पर ही तथ्यों का ज्ञान लेता है। इस प्रकार से हम कह सकते है कि हम किसी अन्य के अनुभवों के द्वारा ही हम सीखते है। किसी अन्य के द्वारा किसी भी वस्तु का ज्ञान देना और समझाना तथा बताना और उसी बात को समझना ही साक्ष्य है। 

    हमारा भौतिक वातावरण जो हमें प्रकृति के साथ रखकर कार्य करता है जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए उद्यत करता है, या प्रेरणा देता है वही साक्ष्य है।

    5. तर्क बुद्धि (Logic intelligence) - प्रतिदिन जीवन में होने वाले अनुभवों से हमें ज्ञान प्राप्त होता है तथा यही ज्ञान हमारा तर्क में परिवर्तित हो जाता है, जब हम इसे प्रमाण के साथ स्पष्ट कर स्वीकार करते है अर्थात् तर्क द्वारा हम संगठित करके हम ज्ञान का निर्माण करते है। यह एक मानसिक प्रक्रिया है।

    6. अंतर्ज्ञान (Intuition) - इसका तात्पर्य है किसी तथ्य को पा जाना। इसके लिए किसी भी तर्क की आवश्यकता नहीं होती है, हमारा उस ज्ञान में पूर्ण विश्वास हो जाता है।

    7. अन्त:दृष्टि द्वारा ज्ञान (Knowledge through insight) - यह ज्ञान प्रतिभाशाली लोगों को अकस्मात कुछ बोध होकर प्राप्त होता है, जैसे महात्मा बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे बैठने से ज्ञान प्राप्त हुआ और भी संत तथा महात्मा हुए है जिन्हें विभिन्न स्थानों पर बैठने से ज्ञान प्राप्त हुआ। कई मनाेि वज्ञानिकों द्वारा पशुओं पर किए गए प्रयोगों से सिद्ध हुआ कि समस्या से जुझते हुए जानवर अकस्मात समस्या का हल प्राप्त हो जाता है, ऐसा तब होता है जब वह समस्या की संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेता है। 

    8. अनुकरणीय ज्ञान (Exemplary knowledge) - मानव समाज में सभी मनुष्य विभिन्न मानसिक शक्तियों के है कुछ बहुत ही तीव्र बुद्धि वाले कुछ निम्न बुद्धि वाले होते है। इनमें जो प्रतिभाशाली होते है। वह प्रत्येक कार्य को इस प्रकार करते है कि वह सैद्धान्तिक बन जाता है। अत: उनके द्वारा किया गया किसी भी संग में कार्य जिसको हम स्वीकार करते है अनुकरणीय हो जाता है। अनुकरण के द्वारा ही हम सामाजिक कुरीतियों को दूर कर सकते है इसी के माध्यम से हम समाज को नई दिशा प्रदान कर सकते है।

    9. जिज्ञासा (Curiosity) - जानने की इच्छा, समझने की इच्छा किसी भी विषय या प्रकरण को अर्थात शीर्षक को समझने की उत्सुकता ही जिज्ञासा है। जिज्ञासा मनुष्य के अन्र्तमन की एक ऐसी क्रिया है जो सदैव जानने, समझने हेतु प्रोत्साहित करती है, जब तक कि उसको पूर्णत: उत्तर नहीं मिल जाता और वह संतुष्ट न हो जाता है। संतुष्टि उसको तभी प्राप्त होती है, जब वह पूर्ण रूप से मन की जिज्ञासा को शांत नहीं कर लेता हैं। इस प्रकार से वह ज्ञान एकत्रित करता है तथा उसका सदैव उपयोग करता है। 

    जिज्ञासा पूर्ण होने पर प्रत्येक व्यक्ति खोज, आविष्कार एवं अवलोकन तथा सीखने के माध्यम का उपयोग कर उसे दैनिक व्यवहार में लाता है और अपने अनुभवों को सांझा करता है जिससे अन्य लोगों में किसी भी कार्य को करने व आगे बढ़ने की उत्सुकता बढ़ती है।

    10. अभ्यास (Practice) - अभ्यास के माध्यम से ज्ञान का प्रादुर्भाव होता है। प्रत्येक मनुष्य अपने अनुभवों के माध्यम से सीखता है, प्रतिदिन वह नए अनुभवों को ग्रहण करता है और उसी को प्रमाण मानकर आगे कार्य रूप देकर उसे अपने जीवन में उतारता है तथा उसी के आधार पर प्रत्येक कार्य को करता है और आगे आने वाले सभी लोगों को इसी के अनुसार ज्ञान प्रदान करता जाता है। अभ्यास के माध्यम से ही विभिन्न आविस्कार हुए तथा हम आधुनिकता के इस युग में प्रत्येक कार्य को परिणाम तक पहुँचा सके है। यदि हमारा अभ्यास पूर्ण नहीं है तो हम परिणाम नहीं प्राप्त कर सकते है। 

    प्रत्येक मनुष्य में ईश्वरीय देन है कि, वह अपनी बौद्धिक क्षमता के अनुसार प्रत्येक क्षेत्र जिसमें उसको रूचि हो अभ्यास के द्वारा अच्छे कार्य करके उनका प्रदर्शन कर सकता है और समाज को एक नई दिशा प्रदान कर सकता है चाहे वह विज्ञान, समाज तथा शिक्षा या अन्य किसी भी क्षेत्र में हो उसी आधार पर वह अपने व्यक्तित्व अनुभवों को सदैव आविष्कारिक रूप में आगे बढ़ाता रहता है।

    11. संवाद (Dialogue) - संवाद ज्ञान को प्रसारित तथा बढ़ाने का एक माध्यम है जिसके द्वारा हम ज्ञान प्राप्त करते है एवं इसको आत्मसात करते है, जैसे कि लोकोक्तियाँ  एवं मुहावरों के द्वारा तथा अनेकों दार्शनिकों: समाज सुधारकों एवं विद्वजनो द्वारा प्रेरित अनुभवों के आधार पर संवाद के माध्यम से ज्ञान का प्रसारण करते है जो कि प्रत्येक मनुष्य को लाभान्वित करता है। 

    संवाद के उदाहरण - ‘‘स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत।’’ ‘‘पानी पीयो छानकर, गुरू करो जानकर।’’ पढे़गा इंडिया, बढे़गा इंडिया’’ आदि।

    इस प्रकार से कई संवाद प्रत्येक मनुष्य प्राणी के मन पर प्रभाव डालते है, जिससे ज्ञान का अर्विभाव होता है तथा वह प्रत्येक मनुष्य के मन मस्तिष्क पर अत्यधिक प्रभाव डालता है।

    ज्ञान का महत्व (Importance of knowledge)

    मानव जीवन में ज्ञान का बहुत अधिक महत्व है। मानव जीवन के लिये उसकी रीढ़ की हड्डी की तरह कार्य करता है इसलिए ज्ञान का महत्व आज और ज्यादा बढ़ गया है। ज्ञान का महत्व निम्नवत है-

    1. ज्ञान को मनुष्य की तीसरी आँख कहा गया है।
    2. ज्ञान भौतिक जगत और आध्यात्मिक जगत को समझने में मदद करता है।
    3. ज्ञान से ही मानसिक, बौद्धिक, स्मृति, निरीक्षण, कल्पना व तर्क आदि शक्तियों का विकास होता है।
    4. ज्ञान समाज सुधारने में सहायता करता है जैसे- अन्धविश्वास, रूढि़वादिता को दूर करता है।
    5. ज्ञान शिक्षा प्राप्ति हेतु साधन का काम करता है।
    6. ज्ञान अपने आप को जानने का सशक्त साधन है।
    7. ज्ञान का प्रकाश सूर्य के समान है ज्ञानी मनुष्य ही अपना और दूसरे का कल्याण करने में सक्षम होता है।
    8. ज्ञान विश्व के रहस्य को खोजता है।
    9. ज्ञान धन के समान है जितना प्राप्त होता है उससे अधिक पाने की इच्छा रखते है।
    10. ज्ञान सत्य तक पहुंचने का साधन है।
    11. ज्ञान शक्ति है।
    12. ज्ञान प्रेम तथा मानव स्वतंत्रता के सिद्धांतों का ही आधार है।
    13. ज्ञान क्रमबद्ध चलता है आकस्मिक नहीं आता है।
    14. तथ्य, मूल्य, ज्ञान के आधार के रूप में कार्य करते है।
    15. ज्ञान मानव को अंधकार से प्रकाश की और ले जाता है।

    ज्ञान के कितने आधार हैं?

    इसका विभाजन विषयों के आधार पर होता है। विषय पाँच होते हैं - रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श। ज्ञान लोगों के भौतिक तथा बौद्धिक सामाजिक क्रियाकलाप की उपज, संकेतों के रूप में जगत के वस्तुनिष्ठ गुणों और संबंधों, प्राकृतिक और मानवीय तत्त्वों के बारे में विचारों की अभिव्यक्ति है।

    ज्ञान के निर्माण में क्या शामिल है?

    (1) ज्ञान को परावर्तित अमूर्तता के द्वारा निर्मित किया जाता है। (2) इसे क्रियाशील तथा भागितापूर्ण अधिगम के रूप में निर्मित किया जाता है। (3) यह इस मान्यता पर आधारित है कि अधिगम स्थिर तथा अन्तर्निहित नहीं होता बल्कि वह निरन्तर विकसित होता है।

    ज्ञान का निर्माण कैसे किया जाता है?

    शिक्षण की प्रभावशीलता के मूल्यांकन का मानदण्ड सीखना होता है। शिक्षक जाने या अनजाने में अपने शिक्षण को सीखने से संबंध स्थापित करता है और जब यह संबंध स्थापित हो जाता है तो छात्र सीखने के द्वारा अपने पूर्व ज्ञान से नवीन ज्ञान की प्राप्ति करते हैं। प्रभावशाली शिक्षण के लिए शिक्षक को सीखने के नियमों का ज्ञान होना आवश्यक है।

    ज्ञान के निर्माण से आप क्या समझते हैं इसकी चार विशेषताएं बताइए?

    उत्तर – ज्ञान एक मानसिक निर्माण है जो व्यक्तियों को अपने अनुभवों को समझने, अपने आसपास की दुनिया को समझने और उसके अनुसार कार्य करने की अनुमति देता है। यह व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों प्रक्रियाओं का उत्पाद है, और यह समय के साथ विकसित होता है। ज्ञान स्पष्ट या निहित हो सकता है, और यह प्रस्तावक या प्रक्रियात्मक हो सकता है।