Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर Textbook Exercise Questions and Answers. Show RBSE Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओरRBSE Class 9 Hindi ल्हासा की ओर Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5.
प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8.
प्रश्न 9. प्रश्न
10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रस्तुत यात्रा-वृत्तान्त अन्य विधाओं से निम्नलिखित मायनों से भिन्न है -
भाषा अध्ययन : प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. पाठेतर सक्रियता - यह यात्रा राहुलजी ने 1930 में की थी। आज के समय यदि तिब्बत की यात्रा की जाए तो राहुलजी की
यात्रा से कैसे भिन्न होगी? क्या आपके किसी परिचित को घुमक्कड़ी/यायावरी का शौक है? उसके इस शौक का उसकी पढ़ाई। काम आदि पर क्या प्रभाव पड़ता होगा, लिखें। अपठित गद्यांश को पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए आम दिनों में समुद्र किनारे के इलाके बेहद खूबसूरत लगते हैं। समुद्र लाखों लोगों को भोजन देता और लाखों उससे जुड़े दूसरे कारोबारों में लगे हैं। दिसम्बर 2004 में सुनामी या समुद्री भूकम्प से उठने वाली तूफानी लहरों के प्रकोप ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कुदरत की यह देन सबसे बड़े विनाश का कारण भी बन सकती है। प्रकृति कब अपने ही ताने-बाने को उलट कर रख देगी, कहना मुश्किल है। हम उसके बदलते मिजाज को उसका कोप कह लें या कुछ और, मगर यह अबूझ पहेली अक्सर हमारे विश्वास के चीथड़े कर देती है और हमें यह एहसास करा जाती है कि हम एक कदम आगे नहीं, चार कदम पीछे हैं। एशिया के एक बड़े हिस्से में आने वाले उस भूकंप ने कई द्वीपों को इधर-उधर खिसकाकर एशिया का नक्शा ही बदल डाला। प्रकृति ने पहले भी अपनी ही दी हुई कई अद्भुत चीजें इंसान से वापस ले ली हैं जिसकी कसक अभी तक है। द:ख जीवन को माँजता है. उसे आगे बढ़ने का हनर सिखाता है। वह हमारे जीवन में ग्रहण लाता है ताकि हम पूरे प्रकाश की अहमियत जान सकें और रोशनी को बचाए रखने के लिए जतन करें। इस जतन से सभ्यता और संस्कृति का निर्माण होता है। सुनामी के कारण दक्षिण भारत और विश्व के अन्य देशों में जो पीड़ा हम देख रहे हैं, उसे निराशा के चश्मे से न देखें। ऐसे समय में भी मेघना, अरुण और मैगी जैसे बच्चे हमारे जीवन में जोश, उत्साह और शक्ति भर देते हैं। 13 वर्षीय मेघना और अरुण दो दिन अकेले खारे समुद्र में तैरते हुए जीव-जन्तुओं से मुकाबला करते हुए किनारे आ लगे। इंडोनेशिया की रिजा पड़ोसी के दो बच्चों को पीठ पर लादकर पानी के बीच तैर रही थी कि एक विशालकाय साँप ने उसे किनारे का रास्ता दिखाया। मछुआरे की बेटी मैगी ने रविवार को समुद्र का भयंकर शोर सुना, उसकी शरारत को समझा, तुरन्त अपना बेड़ा उठाया, और अपने परिजनों को उस पर बिठा उतर आई समुद्र में, 41 लोगों को लेकर। महज 18 साल की यह जलपरी चल पड़ी पगलाए सागर से दो-दो हाथ करने। दस मीटर से ज्यादा ऊँची सुनामी लहरें जो कोई बाधा, रुकावट मानने को तैयार नहीं थीं, इस लड़की के बुलंद इरादों के सामने बौनी ही साबित हुईं। जिस प्रकृति ने हमारे सामने भारी तबाही मचाई है, उसी ने हमें ऐसी ताकत और सूझ दे रखी है कि हम फिर से खड़े होते हैं और चुनौतियों से लड़ने का एक रास्ता ढूँढ़ निकालते हैं। इस त्रासदी से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए जिस तरह पूरी दुनिया एकजुट हुई है, वह इस बात का सबूत है कि मानवता हार नहीं मानती। प्रश्न 1. 2. दुःख और कष्टों का सामना करने से जीवन में विपत्तियों से जूझने की हिम्मत प्राप्त होती है। कठिनाइयों का सामना करते रहने से जीवन में आगे बढ़ने का साहस बढ़ता है, अच्छी प्रेरणा मिलती है और जीवन सुन्दर प्रतीत होता है। 3. मैगी ने दस मीटर ऊँची लहरों की परवाह न करके अपना बेड़ा उतार दिया और अपने साहस से संघर्ष करते हुए अपने परिजनों और इकतालीस लोगों को बचा लिया। मेघना और अरुण भी दो दिन तक खारे पानी में तैरते हुए, समुद्री जीव-जन्तुओं से मुकाबला करते हुए किनारे आ गए थे। 4. 'दृढ़ निश्चय' के लिए 'बुलन्द इरादे' तथा 'महत्त्व' के लिए 'अहमियत' शब्द का प्रयोग हुआ है। 5. 'पगलाए समुद्र से दो-दो हाथ' या 'सुनामी का सामना'। RBSE Class 9 Hindi ल्हासा की ओर Important Questions and Answersप्रश्न
1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न : निर्देश-निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर दिये गये प्रश्नों के सही उत्तर दीजिए : 1. यह व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था, इसीलिए जगह-जगह फौजी चौकियाँ और किले बने हुए हैं, जिनमें कभी पलटन रहा करती थी। आजकल बहुत-से फौजी मकान गिर चुके हैं। दुर्ग के किसी भाग में, जहाँ किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है, वहाँ घर कुछ आबाद दिखाई पड़ते हैं, ऐसा ही परित्यक्त एक चीनी किला था। हम वहाँ चाय पीने के लिए ठहरे। तिब्बत में यात्रियों के लिए बहुत-सी तकलीफें भी हैं और कुछ आराम की बातें भी। वहाँ जाति-पाँति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती हैं। बहुत निम्न श्रेणी के भिखमंगों को लोग चोरी के डर से घर के भीतर नहीं आने देते। नहीं तो आप बिलकुल घर के भीतर चले जा सकते हैं। प्रश्न 1. राहुल सांकृत्यायन ने कहाँ की यात्रा की थी और क्यों की थी? 2. लेखक, नेपाल से तिब्बत जाने का जो मख्य रास्ता है तथा जिससे प्राचीन समय में व्यापार होता था. जो सैनिकों के द्वारा घिरा रहता था, उसी रास्ते से गया था। 3. लेखक जिस रास्ते से तिब्बत गया था, वह नेपाल से होकर जाता था। उस रास्ते पर जगह-जगह पुलिस चौकियाँ और किले बने हुए हैं। उन किलों में पहले पलटन रहा करती थी। वह रास्ता व्यापारिक के साथ ही सैनिकों के आवागमन के लिए निर्धारित था। उस रास्ते में तिब्बत जाने वालों को कुछ सुविधाएँ मिल जाती थीं। 4. लेखक ने यह संकेत किया है कि वहाँ पर जाति-पाँति, ऊँच-नीच एवं छुआछूत की भावना नहीं थी। औरतें परदा नहीं करती थीं। वहाँ पर एकदम अपरिचित को भी घर में आने दिया जाता था, परन्तु निम्न श्रेणी के भिखमंगों से लोगों को चोरी करने का भय रहता था, इसलिए उन्हें घर के भीतर नहीं आने दिया जाता था। 2. परित्यक्त चीनी किले से जब हम चलने लगे, तो एक आदमी राहदारी माँगने आया। हमने वह दोनों चिटें उसे दे दी। शायद उसी दिन हम थोड्ला के पहले के आखिरी गाँव में पहुँच गये। यहाँ भी सुमति के जान-पहचान के आदमी थे और भिखमंगे रहते भी ठहरने के लिए अच्छी जगह मिली। पाँच साल बाद हम इसी रास्ते लौटे थे और भिखमंगे नहीं, एक भद्र यात्री के वेश में घोड़ों पर सवार होकर आये थे, किन्तु उस वक्त किसी ने हमें रहने के लिए जगह नहीं दी, और हम गाँव के सबसे गरीब झोंपड़े में ठहरे थे। बहुत कुछ लोगों की उस वक्त की मनोवृत्ति पर ही निर्भर है, खासकर शाम के वक्त छङ् पीकर बहुत कम होश-हवास को दुरुस्त रखते हैं। प्रश्न 1. किले को परित्यक्त तथा चीनी क्यों कहा गया है? बताइये। 2. तिब्बत यात्रा में निर्जन स्थानों पर डाकुओं का भय रहता था। उनके समक्ष स्वयं को अतीव साधारण यात्री दिखाने के लिए लेखक और उसका साथी भिखमंगे वेश में थे। 3. जहाँ पर लेखक और उसका साथी सुमति गये थे, वहाँ पर सुमति के जान-पहचान के आदमी रहते थे। इस कारण भिखमंगे वेश में रहते हुए भी उन्हें ठहरने की अच्छी जगह मिली। 4. लेखक को यह देखने को मिला कि वहाँ पर जान-पहचान वाले को ही ठहरने की जगह मिलती है, उसी को अतिथि-सत्कार प्राप्त होता है। जान-पहचान के बिना वहाँ पर अतिथि-सत्कार मिलना मुश्किल है। शाम के समय तो वहाँ के लोग छङ्पीकर मदमस्त हो जाते हैं फिर वे किसी की बात को नहीं सुनते हैं। भारत में लोग बिना जान-पहचान के भी अतिथि-सत्कार करते हैं। 3. डाँडे तिब्बत में सबसे खतरे की जगहें हैं। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ मीलों तक कोई गाँव-गिराँव नहीं होते। नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता। डाकुओं के लिए यही सबसे अच्छी जगह है। तिब्बत में गाँव में आकर खून हो जाए, तब तो खूनी को सजा भी मिल सकती है, लेकिन इन निर्जन स्थानों में मरे हुए आदमियों के लिए कोई परवाह नहीं करता। सरकार खुफिया विभाग और पुलिस पर उतना खर्च नहीं करती और वहाँ गवाह भी तो कोई नहीं मिल सकता। डकैत पहिले आदमी को मार डालते हैं, उसके बाद देखते हैं कि कुछ पैसा है कि नहीं। हथियार का कानून न रहने के कारण यहाँ लाठी की तरह लोंग पिस्तौल, बन्दूक लिये फिरते हैं। प्रश्न 1. तिब्बत के निर्जन स्थानों पर मरे हुए आदमियों की कोई परवाह क्यों नहीं करता है? 2. तिब्बत में डाँडे सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई पर हैं। उनके दोनों ओर दूर-दूर तक कोई गाँव भी नहीं है। नदियों एवं पहाड़ों के मोड़ों के कारण वहाँ पर आदमी न रहने के कारण सदा खतरा बना रहता है। 3. तिब्बत में और जगह की तरह हथियार का कानून न होने के कारण लोग अपनी सुरक्षा के लिए लाठी की तरह पिस्तौल और बन्दूक रखते हैं। 4. तिब्बत में उक्त जगहें डाकुओं के लिए बहुत अच्छी हैं; क्योंकि निर्जन स्थानों पर मरे हुए आदमियों की कोई परवाह नहीं करता। 4. अब हम तिी के विशाल मैदान में थे, जो पहाड़ों से घिरा टापू-सा मालूम होता था, जिसमें दूर एक छोटी-सी पहाड़ी मैदान के भीतर दिखाई पड़ती है। उसी पहाड़ी का नाम है तिमी समाधि-गिरि। आस पास के गाँव में भी सुमति के कितने ही यजमान थे, कपड़े की पतली-पतली चिरी बत्तियों के गंडे खतम नहीं हो सकते थे, क्योंकि बोधगया से लाये कपड़े के खतम हो जाने पर किसी कपड़े से बोधगया का गंडा बना लेते थे। वह अपने यजमानों के पास जाना चाहते थे। मैंने सोचा वह तो हफ्ताभर उधर ही लगा देंगे। मैंने उनसे कहा कि किस गाँव में ठहरना हो, उसमें भले ही गंडे बाँट दो, मगर आस-पास के गाँवों में मत जाओ। इसके लिए मैं तुम्हें ल्हासा पहुँचकर रुपये दे दूंगा। सुमति ने स्वीकार कर लिया। प्रश्न 1. तिकी-समाधि-गिरि किसका नाम है? वह कहाँ स्थित है? 2. सुमति द्वारा बनाये गंडे इसलिए खत्म नहीं हो पाते थे, क्योंकि वह बोध- गया से लाए कपड़े के खतम हो जाने पर भी किसी भी कपड़े को बोधगया का कपड़ा बनाकर उससे गंडे को तैयार कर देता था। 3. मंत्र पढ़कर गाँठ लगाए हुए धागे या कपड़े को गंडा कहा गया है। सुमति लालची और चालाक बौद्ध भिक्षु था। बोधगया से लाया गया धागा या कपड़े से ही गंडा बनाया जाता था लेकिन वह बोधगया से लाया हुआ कपड़ा खतम हो जाने पर भी दूसरे कपड़े को बोधगया का बताकर गंडा बना लेता था। 4. सुमति बौद्ध भिक्षु होने के नाते गंडे बाँटता था और गंडे बाँटने में वह काफी समय लगा देता था। इसलिए लेखक ने समय की बचत से उसे प्रलोभन दिया था कि ल्हासा पहुँच कर वह उसे रुपये दे देगा। 5. दूसरे दिन हमने भरिया ढूँढ़ने की कोशिश की, लेकिन कोई न मिला। सवेरे ही चल दिए होते तो अच्छा था, लेकिन अब 10-11 बजे की धूप में चलना पड़ रहा था। तिब्बत की धूप भी बड़ी कड़ी मालूम होती है, यद्यपि थोड़े से भी मोटे कपड़े से सिर को ढाँक लें तो गरमी खतम हो जाती है। आप दो बजे सूरज की ओर मुँह करके चल रहे हैं, ललाट धूप से जल रहा है और पीछे का कन्धा बर्फ हो रहा है। फिर हमने पीठ पर अपनी-अपनी चीजें लादी, डंडा हाथ में लिया और चल पड़े। यद्यपि सुमति के परिचित तिकी में भी थे। लेकिन वह एक और यजमान से मिलना चाहते थे। इसलिए आदमी मिलने का बहाना कर शेकर विहार की ओर चलने के लिए कहा। प्रश्न 1. लेखक को यात्रा के दौरान तेज धूप में क्यों चलना पड़ा था? 2. तिब्ब्त में धप बहत तेज पडती है। इसलिए 10-11 बजे तेज धप में चलना मश्किल हो जाता है। उस कडी धप से बचने के लिए मोटे कपड़े से सिर को ढंकना पड़ता है। दूसरी ओर वहाँ ठंड भी बहुत पड़ती है। दिन के दो बजे भी उसका प्रभाव कम नहीं होता। इसलिए जहाँ ललाट तेज धूप से जल रहा होता वहीं पीछे का कन्धा बर्फ हो रहा होता। 3. लेखक ने यह इसलिए कहा कि भरिया को ढूँढ़ने के कारण लेखक को यात्रा शुरू करने में देर हो गयी थी। जब उसने 10-11 बजे यात्रा प्रारम्भ की तब तेज धूप के कारण उसको चलने में कठिनाई हो रही थी। 4. तालची प्रकृति का था। वह वहाँ जाकर अपने अन्य किसी परिचित यजमान से धन-प्राप्ति की लालसा में मिलना चाहता था इसलिए उसने लेखक से शेकर विहार की ओर चलने को कहा। 6. तिब्बत की जमीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। इन जागीरों का बहुत ज्यादा हिस्सा मठों (विहारों) के हाथ में है। अपनी-अपनी जागीर में हरेक जागीरदार कुछ खेती खुद भी करता है, जिसके लिए मजदूर बेगार में मिल जाते हैं। खेती का इन्तजाम देखने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता। शेकर की खेती के मुखिया भिक्षु (नम्से) बड़े भद्र पुरुष थे। वह बहुत प्रेम से मिले, हालांकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था। यहाँ एक अच्छा मन्दिर था, जिसमें कन्जुर (बुद्धवचन-अनुवाद) की हस्तलिखित एक सौ तीन पोथियाँ रखी हुई थीं, मेरा आसन भी वहीं लगा। प्रश्न 1. नम्से कौन थे? वे लेखक से किस तरह मिले? 2. लेखक और उसके साथी ने चोर-डाकुओं के भय से भिखारियों की वेशभूषा बना रखी थी। जब लेखक भिक्षु नम्से से मिला, तो उस समय भी उसकी वेशभूषा वैसी ही थी। 3. लेखक बौद्ध-साहित्य का अध्ययन करने के उद्देश्य से ही तिब्बत की यात्रा पर गया था। उस मन्दिर में कन्जुर की एक सौ तीन हस्तलिखित पोथियाँ रखी थीं। लेखक उन दुर्लभ पोथियों का अवलोकन एवं ज्ञानार्जन करना चाहता था। इसी कारण लेखक के लिए उस मन्दिर का आकर्षण था और उसने वहाँ पर अपना आसन जमा लिया था। 4. तिब्बत में जमीन छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। प्रत्येक जागीरदार अपने हिस्से की कुछ भूमि पर खुद खेती करता है। वहाँ पर खेती के लिए मजदूर बेगार में मिल जाते हैं। जागीरों का अधिक हिस्सा बौद्ध विहारों के पास है, उनकी खेती की व्यवस्था के लिए मठ से कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता है। बोधात्मक प्रश्न : प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. ल्हासा की ओर Summary in Hindiलेखक-परिचय - राहुल सांकृत्यायन का जन्म सन् 1893 में आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में हुआ। इनका मूल नाम केदार पाण्डेय था। शिक्षा प्राप्त कर सन् 1930 में श्रीलंका जाकर इन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया। तब से इनका नाम राहुल सांकृत्यायन हो गया। ये पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, चीनी, तिब्बती आदि अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। इन्होंने पर्याप्त मात्रा में साहित्य रचना की। यात्रावृत्त, जीवनी, आत्मकथा, शोध आदि अनेक विधाओं पर इन्होंने लिखा। सन् 1963 में इनका देहान्त हो गया। पाठ-सार - 'ल्हासा की ओर' राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखित यात्रा-वृत्तांत है। इसमें उन्होंने सन् 1929-30 में अपनी तिब्बत यात्रा का वर्णन किया है। वे नेपाल के प्राचीन मार्ग से ल्हासा गये। उस यात्रा में उन्हें अनेक पुराने अवशेष मिले। तिब्बत में यात्रियों को बहुत कष्टों का सामना करना पड़ता था। वहाँ पर जाति-पाति, छुआछूत की परम्परा नहीं थी। तिब्बत में डांडे काफी खतरनाक होते हैं। वहाँ सुनसान स्थानों पर डाकू खून तक कर देते हैं.। लेखक और उसका साथी वहाँ भिखमंगों के वेश में थे। वहाँ पर एक ओर सफेद बर्फीले पहाड़ हैं तो दूसरी तरफ वनस्पतियों का अभाव है। लेखक का साथी सुमति (लोबजंग) तिब्बती लामा था। रास्ते में उसके अनेक यजमानों के गाँव थे। वह उन्हें गण्डे देता था। वे दो दिन यात्रा कर जिस बौद्ध विहार में रुके, वहाँ पर एक मन्दिर में बुद्धवचन-अनुवाद (कन्जुर) की एक सौ तीन हस्तलिखित भारी पुस्तकें थीं। लेखक उन्हीं की तलाश में गया था। इसलिए वह वहीं पर आसन लगाकर बैठ गया तथा उनका अवलोकन करने लगा। लेखक ने सुमति को अपने यजमानों के पास भेज दिया और साथियों सहित तिभी गाँव की ओर प्रस्थान किया। कठिन-शब्दार्थ :
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