मछली जल का मुंह क्यों नहीं छोड़ती? - machhalee jal ka munh kyon nahin chhodatee?

क्रमांक रोग और कारण लक्षण संक्रमण के कारण कार्यवाही ईलाज 1. अल्सर रोग सुडोमोनाज और एरोमोनास जीवाणुओं से होता है| रोग ग्रस्त मछली पर गुलाबी सफ़ेद खुले घाव जिन पर  प्राय सफ़ेद परत दिखती है जो कि कभी-कभी मधुरिका  व अन्य जीवाणुओं से दोबारा  प्रभावित होता है | पानी की अल्प  गुणवत्ता या पी०एच० का स्तर अत्याधिक होना| इन के कारण  छोटे-छोटे घाव भी रोग ग्रसित  हो जाते हैं प्राय: नई  आयात की  गई कोई कार्प और गोल्ड फिश पर भी असर होता  है|   पानी में मौजूद अमोनिया और नाईट्राइट  का निरीक्षण  करें | प्रदूषित जल के स्तर को कम करने के लिए पानी को ज्यादा मात्रा में बदलना चाहिए | मछली में  खुले घाव होने की  वजह से मछली जल्दी-जल्दी नमक की मात्रा छोड़ती है इसलिए
राँक साल्ट की मात्रा 1-3 ग्रा०/लीटर  डाली जानी  चाहिए | एंटी अल्सर उपचार का प्रयोग करें   अगर यह इलाज निष्फल रहता है तो मत्स्य चिकित्सक इससे शक्तिशाली एंटी बायोटिक दवाईओं  को प्रयोग करने की  सलाह देते हैं | 2. मछली में आँख का धुंधलापन नामक रोग खराब पानी, निम्न स्तर  का आहार, आँखों   के फलयूक, पुतली की खराबी तथा जीवाणुओं के संक्रमण से होता है|    रोगग्रस्त मछली की आँख में धुंधलापन आ जाता है जिसके कारण मछली को  ठीक से दिखाई नहीं  देता है| आंख के बाहरी भाग पर श्लेषमा   बना होता है| साधारणतः संक्रमण का मुख्य कारण खराब पानी का होना है इसके इलावा आहार में विटामिन की कमी के कारण भी धुंधलापन आ जाता है| कभी कभी डाईजेनेटिक फलयूक जैसे कि  डिपलोसटोमम भी संक्रमण का  कारण हो सकता है| पानी की गुणवत्ता को बढ़ाना चाहिए तथा विटामिन युक्त  आहार प्रयोग करना चाहिए | साफ़ पानी का प्रयोग करने से आँख का धुंधलापन समान्यतः ठीक हो जाता है| मछली की आँख  का फलयुक अनूठा होता है तथा इनका सही ढंग से उपचार करना मुश्किल है| 3. मछली में जलोदर रोग  आमतौर पर जीवाणुओं के संक्रमण से होता है इसके इलावा वायरल संक्रमण,पोषक परिवर्तनशील और रसांकर्षक समस्यायें भी इसका कारण हो सकता है| मछली में द्रव की मात्रा बढ़ने से शरीर खोह में सूजन आ जाती है| मछली की परत उठी हुई होती है  जो कि चीढ़ के खोल  की तरह दिखती  है तथा आँखें उभरी   हुई नजर आती हैं|
मुख्यतः यह संक्रमण खराब पानी तथा पानी में मौजूद अमोनिया और नाईट्राईट से होता है| इसका संक्रमण अक्सर अकेली  मछली तक सीमित रहता है | तुरंत पानी की जांच करें  और पानी की गुणवत्ता    को बढ़ाएं . राँक साल्ट  1-3ग्रा०/ लीटर नमक की मात्रा डालने से नमक की कमी को पूरा किया जा सकता है|  इस रोग का उपचार करना मुश्किल हो जाता है | अधिकाँश रोगों में विस्तृत एंटी बैक्टीरिया इलाज की पद्धती सही होती है| 4. मछली में सफेद दाग नामक रोग
Ichthyophthirius
Multifilis parasite के कारण होता है | मछली की चमड़ी, सुफना और गलफड़ा पर  नमक के दाने के बराबर छोटे-छोटे सफेद दाग होते हैं| इस सफेद रोग का मुख्य कारण खराब पानी, तापमान में उतार चढ़ाव तथा सही तरीके से  मछली पालन न करना है | मछली की संवेदनशील प्रजातियों को  ऐकवेरियम  में डालने से यह सफेद दाग   से ग्रसित हो जाती है| पानी पुर्णतय: प्रदूषण रहित होना चाहिए ताकि विपत्ति के कारणों को खत्म किया जा   सके| इसका उपचार एन्टीपेरासाईट चिकित्सा पद्धती से कर सकते हैं| उपचार को सही और उपयोगी बनाने के लिए जरूरी हो तो पानी का तापमान बढ़ा सकते हैं| परजीवी के कारण बचे हुए   घावों पर दोबारा संक्रमण हो सकता है |     5. मछली में जीवाणुओं से  संक्रमण ऐरोमोनास और सुडोमोनास जीवाणु  के कारण होते हैं | मछली की चमड़ी या   सुफना में  लालपन आना तथा  सुफना का खुरखुरा होना आदि संक्रमण और खुले घाव     ज्यादातर नई आयात की गई मछलियों में देखे जा सकते  है|मधुरिका के साथ-साथ प्राय: अन्य बीमारियां  भी प्रभावित करती हैं | इसका कारण खराब पानी,  विशेषकर पानी में मौजूद अमोनिया और
नाईट्राइट है| यदि अवस्था कमजोर है तो मछली के रखरखाव में आई कमी, एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने और आपसी लड़ाई के कारण उत्पन्न घाव दोबारा जीवाणुओं से संक्रमित हो जाते हैं |
पानी की गुणवत्ता को बढाएं और शीघ्रता से  उपचार करें | इस स्थिति में जल्द से जल्द इसका  उपचार शुरू करें| राँक साल्ट की मात्रा 1-3 ग्राम/प्रति लीटर इस्तेमाल करें ताकि नमक की कमी को पूरा किया जा सके | रोग अगर गम्भीर है तो  मत्स्यचिकित्सक द्वारा दिए गए परामर्श अनुसार कार्यवाही करें | 6. मधुरिका रोग का कारण  सेपरोलेगनिया और अचल्य है | मीठे पानी की  मछली की चमड़ी और सुफना में  घावों पर रोंवां की बढोत्तरी संक्रमण का  करती है | मछली में प्राय: अल्सर ,पैरासाईट और सफेद दाग, से बचे घाव दुबारा संक्रमित हो जाते हैं | साफ पानी में इस समस्या की संभावना बहुत  कम रहती है |  ऐसे स्थिति में तुरंत पानी की गुणवत्ता   बढाएं  और जल्द उपचार शुरू करें| प्राय:एंटी-फंगल चिकित्सा जैसे कि मैथाईलीन  ब्लू अधिक  प्रभावशाली होती हैं परन्तु इसका पानी की गुणवत्ता पर बुरा  असर पड़  सकता है| जब यह बीमारी खुले घाव पर पनपती  है तब राँक साल्ट     1-3 ग्राम प्रति लीटर की मात्रा डाल कर नमक की कमी को पूरा किया जाता है |
काटन वूल (फ्लैक्सी बेक्टर) नामक रोग कुछ इस तरह का ही होता है परन्तु यह वैक्टीरिया के कारण होता है और इसके लिए अलग तरह का उपचार बताया गया है | 7. फिनराँट रोग एरोमोनास,
सुडोमोनास या  फ्लेक्सिबेक्टर जीवाणुओं  के कारण होता है | मछली के सुफना    तितर बितर    हो जाते हैं  जिनके  उपरी किनारे गुलाबी- सफेद रंग के  तथा सुफना के तंतु में खून होता है | यह जीवाणु सभी तरह की मछली में पाए जाते हैं |  खराब पानी से उत्पन्न विपत्ति        संक्रमण का मुख्य कारण होता है | अगर पानी प्रदूषित हो तो  मछली के क्षतिग्रस्त सुफ़ना दुबारा संक्रमित हो सकते हैं |  मधुरिका भी    कई घाव पर आक्रमण कर सकती है | ऐसे स्थिति में तुरंत पानी  की गुणवत्ता को  बढाएं  और क्षतिग्रस्त मछली  को अलग कर
दें | तुरंत फिनराँट या एंटी बैक्टेरिया  उपचार शुरू कर देना चाहिए ताकि रोग को बढने से रोका जा सके इसके अतिरिक्त  मछली द्वारा छोड़े गए नमक की कमी को 1-3 ग्राम प्रति लीटर नमक डाल कर पूरा किया जाता है इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि उपचार के दौरान पानी प्रदूषण  रहित होना चाहिए |   8. मछली में स्विमब्लेडर रोग का कारण  जीवाणुओं से   संक्रमण, अनुचित आहार,गैस तथा शारीरिक विलक्षणता है| मछली को टैंक के उपरी व  निचले भाग में तैरने में परेशानी होती है| आमतौर पर इस रोग  से अंडाकार सुनहरी  मछली अधिक प्रभावित होती है|  कभी-कभी इस  रोग के लिए  पानी की   गुणवत्ता में कमी को दोषी माना जाता है| चयन करके पैदा की गई सुनहरी मछलियों में यह रोग
आनुवांशिक होता है| ऐसा होने पर पानी की  गुणवत्ता बढाए | मछली को सुखी खुराक,   भीगोया हुआ आहार तथा फ्लेक्स कम मात्रा में दें ताकि मछली के पेट में सूजन ना आये | उनके आहार में   डेफनिया का  प्रयोग करे जोकि रेचक का काम करता है| इस रोग के उपचार हेतू मछली के नियमित आहार में परिवर्तन करें   तथा पानी की गुणवत्ता  को बढ़ाये  | इस स्थिति में विशेष  एंटी वैक्टेरिया
ईलाज पद्धति का  प्रयोग करें | शारीरिक विलक्षणता वाली  सुनहरी मछलियों
का उपचार करना मुश्किल  है |   9. लिम्फोसिस्टीस   नामक रोग इरीडोवाइरस के कारण  होता है| इस वाइरस के कारण मछली की  चमड़ी तथा सुफ़ना पर भूरे- सफ़ेद रंग की सूजन हो जाती हैं| इसका प्रभाव   साफ़ तथा समुद्री पानी की मछलीयों पर पड़ता है और कई बार यह वाइरस चमड़ी के  रंग  जैसा हो जाता है| यह सूजन उभरी  हुई कोशिकाओं का झुण्ड होता है | यह एक   वायरल बीमारी है परन्तु इसका मुख्य कारण विपरीत परिस्थितियाँ, रखरखाव में कमी तथा दूषित पानी है| कुछ एक मछलियों में यह वायरस  बिना किसी  लक्षण के  उपस्थित रहता है| इस बीमारी के कारण मछलियों के मरने की बहुत कम सम्भावना होती है  यद्यपि घाव दुबारा  संक्रमित हो जाते हैं| अक्सर  संक्रमित मछली को अलग कर देना चाहिए| इसके लिए कोई ज्ञात उपचार उपलब्ध नहीं है| कुछ मत्स्य चिकित्सक घाव को ऑपरेशन से निकालने की सलाह देते हैं |

पानी में मछली बार बार अपना मुंह क्यों खोलती है?

मछलियां पानी के अंदर सांस लेने के लिए मुंह को खोलती हैं और गिल्स की तरफ पंप कर देती हैं। इसके बाद ये गिल्स में उपस्थित मेंमब्रेन की मदद से पानी में उपस्थित ऑक्सीजन को सोख लेती हैं। इसके बाद गिल्स खुलने से ये पानी बाहर आ जाता है।

जल मछली का मुंह कब छोड़ देता है?

Answer: में से पानी बहकर वापिस अपने स्थान पर आ जाता है अर्थात वह बंधक बनकर मछ तैयार नहीं होता है। उसे मछलियों से कोई मोह नहीं रह जाता है। ऐसी स्थिति में भी मछलियाँ पानी से अपना मोह या प्रेम नहीं छोड़ पाती हैं और वे पानी के अभाव में अपने प्राण त्याग देती हैं।

मछली पानी से बाहर क्यों नहीं निकलती?

इनमें बड़ी मात्रा में खून होता है जिसमें ऑक्सीजन की मात्रा पानी में घुली ऑक्सीजन की तुलना में कम होती है जिससे विसरण (Diffusion) होता है ऑक्सीजन खून में चली जाती है । पानी के बाहर मछलियों के गिल्स काम करना बंद कर देते हैं इसलिए मछलियां पानी के बाहर सांस नहीं ले पाती है और वह मर जाती है।

मछली किसका मुंह नहीं छोड़ती?

Solution : मछली पानी का मोह नहीं छोड़ पाती है।