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मशीन अनुवाद एक भाषा से दूसरी अन्य भाषा में अनुवाद के कार्य को कहा जाता है। मशीनी अनुवाद शब्द का प्रयोग ‘कंप्यूटर अनुवाद’ के लिए किया जाता है, जिसमें किसी पाठ या वाक्य का एक प्राकृतिक भाषा से दूसरी प्राकृतिक भाषा में स्वचालित अनुवाद किया जाता है। मशीनी अनुवाद के क्षेत्र में अनुसंधान की शुरूआत 1950 के बाद शुरू हुई थी। उसके बाद से विश्व स्तर पर भाषा वैज्ञानिक और कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने विविध भाषाओं के लिए मशीनी अनुवाद के तंत्र विकसित किए गए। साथ में उनके मूल्यांकन के लिए अनेक पद्धतियों का भी विकास किया। यह मूल्यांकन पद्धतियाँ मशीनी अनुवाद तंत्रों के गुणवत्ता की जाँच करने के लिए तथा विशिष्ट तंत्र की अनुवाद प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए उपयोगी साबित हुई है। मशीनी अनुवाद का अर्थमशीनी अनुवाद का अर्थ है-मशीन या कंप्यूटर प्रणाली के माध्यम से एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करना। अनुवाद की तीन प्रक्रियाएँ सर्वस्वीकृत हैं-विश्लेषण, अंतरण एवं पुनर्गठन। मशीनी अनुवाद में ये तीनों प्रक्रियाएँ कंप्यूटर द्वारा संपन्न होती हैं। ये प्रक्रियाएँ हैं (पाठ का) विश्लेषण, अंतरवर्ती प्रक्रिया या अंतरण और प्रजनन (generation) या समायोजना। मशीनी अनुवाद की परिभाषामानव अनवुाद एवं मशीनी अनुवाद के अनुसार अनुवाद दो भिन्न भाषाओं के बीच होने वाली एक भाषिक प्रक्रिया है। लक्ष्यभाषा के पाठ को अनूदित पाठ कहा जाता है। स्रोतभाषा और लक्ष्यभाषा के पाठ का मुख्य आधार उसका निहित संदेश होता है। दूसरे शब्दों में, दोनों पाठ निहित संदेश या अर्थ को व्यक्त करते हैं। मशीनी अनुवाद की सार्थकता इसी में है कि मशीन के लिए अनुवाद कार्यक्रम इस प्रकार से तैयार किया जाए कि उससे मशीन सरलतापूर्वक और अच्छी गुणवत्ता (क्वालिटी) वाला अनुवाद कर सके। मशीन अनुवाद का मुख्य उद्देश्यमशीन अनुवाद का मुख्य उद्देश्य भाषाओं द्वारा उत्पन्न हुए अवरोधें को दूर करना है। मशीनी अनुवाद की आवश्यकतासामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए हमें अनुवाद की सहायता की आवश्यकता होती है। एक समय था जब अनुवाद को वैयक्तिक रुचि के आधार पर किया जाता है। ऐसा अनुवाद ‘स्वांतःसुखाय’ होता था। इसके अंतर्गत धार्मिक ग्रंथों का अनुवाद आता है। आधुनिक युग में अनुवाद एक संगठित व्यवसाय के रूप में उभर कर आया है। यह आधुनिक युग की सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक आवश्यकताओं के द्वारा प्रेरित है। आज अनुवाद की आवश्यकता इतनी अधिक बढ़ गई है कि केवल मानव अनुवादकों से यह संभव नहीं रह गया है। प्रत्येक देश ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में हुए अनुसंधान एवं विकास से दूसरी भाषाओं की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक धरोहर की गहनता और व्यापकता से अपनी भाषाओं को संपन्न करना चाहता है। मानव अनुवाद एक धीमी प्रक्रिया है। मानव अनुवादक सीमित मात्रा में ही अनुवाद कर सकता है जबकि मशीन तीव्र गति से सैकड़ों पृष्ठों का अनुवाद कुछ ही समय में कर सकती है। इस प्रकार मशीनी अनुवाद प्रणाली हमें बड़ी मात्रा में समरूपी अनुवाद करने का त्वरित साधन उपलब्ध कराती है। नई-नई सूचनाओं एवं ज्ञान-विज्ञान का विकास प्रति क्षण हो रहा है। उन्हें अपनी भाषा में लाने का तीव्रतम उपाय मशीनी अनुवाद ही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने उत्पाद उपभोक्ताओं तक उनकी भाषा में लाना चाहती हैं। मानव क्षमताओं की सीमितता और उपलब्धता के कारण उनकी यह आवश्यकता मशीनी अनुवाद से ही पूरी की जा सकती है। विभिन्न प्रकार के राजनयिक दस्तावेज दोनों देशों की भाषाओं में तैयार किए जाते हैं। ऐसा केवल अनुवाद के कारण संभव हो पाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ में जो भी वक्तव्य दिए जाते हैं, उन्हें संयुक्त राष्ट्रसंघ की सभी भाषाओं में मशीन अनुवाद तंत्र द्वारा अनूदित कर उपलब्ध कराया जाता है। इस प्रकार अनुवाद की आवश्यकता अनुभव की जाती है। भारतीय संसद में भी इस प्रकार के प्रावधान किए जा रहे हैं। इस प्रकार आप यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि इन सभी कारणों से अनुवाद की जाने वाली सामग्री की मात्रा इतनी अधिक है कि मानव अनुवादक के सहारे इस विशाल सामग्री का अनुवाद निर्धारित समय-सीमा में कर पाना कठिन है, ऐसी स्थिति में एक ही उपाय रह जाता है कि मशीनी अनुवाद का सहारा लिया जाए और उसे निरंतर शोध एवं विकास प्रक्रिया से विश्वसनीय बनाया जाए। मशीनी अनुवाद के प्रकारमानव तथा मशीन के अंतःसंबंध को दृष्टि में रखते हुए अनुवाद के सामान्यतया तीन प्रकार माने जाते हैं-
1. मशीन साधित मानव अनुवाद: मशीन साधित मानव अनुवाद में मशीन मानव की सहायता करती है। इसी क्रम में अनुवाद स्मृतियों (Translation Memories) का विकास शामिल है, जिसके अंतर्गत कंप्यूटरीकृत शब्दकोशों, पदबंध कोशों, बहुशाब्दिक अभिव्यक्तियों का निर्माण आता है, जिससे अधिक समय नष्ट किए बिना मानव अनुवादक मशीन की सहायता लेकर अनुवाद कार्य को तीव्र गति से कर सकता है। 2. मानव साधित मशीनी अनुवाद: दूसरा प्रकार मानव साधित मशीनी अनुवाद है। इसमें विश्लेषण करते हुए जेनेरशन प्रक्रिया के लिए कई कार्यक्रम विकसित किए जाते हैं। इनमें टैगिंग (व्याकरणिक कोटियों की पहचान), एनोटेशन (क्रिया के साथ वाक्य के अन्य घटकों (कर्ता, कर्म, कारक संबंधों आदि की पहचान), मिश्र वाक्यों के अंतर्गत गौण उपवाक्यों का प्रधान उपवाक्य से संबंध आदि कार्यक्रम आते हैं। इनकी सहायता से मशीन को स्रोतभाषा के पाठ विश्लेषण (पार्सिंग) में सहायता मिलती है। 3. मशीनी अनुवाद: अंतिम प्रकार मशीनी अनुवाद है जिसमें विश्लेषण, अंतरण तथा समायोजन (जेनरेशन) की सारी प्रक्रियाएँ मशीन करती हैं। तेरहवीं इकाई में इन प्रकारों की विस्तृत जानकारी दी जाएगी। 4. नियम आधारित मशीन नियम आधरित मशीन अनुवाद में, स्रोत के बारे में भाषाई जानकारी और लक्ष्य टेक्स्ट अर्थ और वाक्यात्मक विश्लेषण का उपयोग कर अनुवाद किया जाता है। इस तकनीक में, हम लक्ष्य टेक्स्ट के साथ स्रोत टेक्स्ट की संरचना करते हैं। स्थानांतरण आधरित मशीन अनुवाद में प्रयुक्त भाषा जोड़ी का उपयोग किया जाता है, जिससे कि लक्ष्य भाषा में अनुवाद किया जा सकता है। इनटर्रलिंगुअल मशीन अनुवाद में, स्रोत टेक्स्ट सबसे पहले ईन्टरलिंगुआ लक्ष्य भाषा में बदल दिया जाता है और पिफर वह लक्ष्य भाषा में परिवर्तित कर दिया जाता है। वर्तमान में शब्दकोश प्रविष्टियों के रूप में शब्दकोश आधरित मशीन अनुवाद भी किया जाता है। 5. सांख्यिकीय मशीन अनुवाद: सांख्यिकीय मशीन अनुवाद समानांतर कोष का उपयोग करता है, जिसमें सांख्यिकीय प(ति का उपयोग करके अनुवाद शामिल है। उदाहरण आधरित मशीन अनुवाद में अनुवाद के लिए कुछ घटकों को चुना जाता है, और उसके बाद इन घटकों को लक्ष्य भाषा में अनुवाद किया जाता है और पिफर सभी अनुवादित घटकों को पुनः व्यवस्थित कर दिया जाता है। 6. हाइब्रिड मशीन अनुवाद: हाइब्रिड मशीन अनुवाद मशीन में सभी प्रकार के अनुवाद के तरीकों को जोड़ कर अनुवाद किया जाता है, जो एक बेहतर अनुवाद प्रस्तुत करता है। मशीनी अनुवाद की प्रक्रियाएँमशीनी अनुवाद से तात्पर्य है कि अनुवाद की उपर्युक्त तीनों प्रक्रियाएँ मशीन यानी कंप्यूटर संपन्न करे। हम कंप्यूटर में स्रोतभाषा के पाठ की सामग्री का इनपुट करें और आउटपुट के रूप में उससे लक्ष्यभाषा में अनूदित सामग्री प्राप्त कर लें। कंप्यूटर में स्रोतभाषा की व्यवस्था के आधार पर विश्लेषण प्रक्रिया को संपन्न करने की क्षमता हो, जिसके आधार पर मशीन स्रोतभाषा पाठ को पढ़कर उसे समझ सके और उसमें से अनुवाद तत्व निकाल सके। मशीनी अनुवाद में विश्लेषण की प्रक्रिया को ‘पार्सिंग’ कहा जाता है। अंतरण के अंतर्गत स्रोतभाषा से लक्ष्यभाषा के शब्दों, अभिव्यक्तियों आदि के आधार पर अंतरण कोश तैयार किया जाता है, जिसके आधार पर स्रोतभाषा की संरचनात्मक सामग्री का लक्ष्यभाषा की समरूपी संरचना में अंतरण किया जाता है। समायोजन की प्रक्रिया के अंतर्गत स्रोतभाषा की अंतरिम सामग्री का लक्ष्यभाषा की भाषिक संरचना के आधार पर समायोजन किया जाता है। इसे मशीनी अनुवाद की भाषा में ‘जेनरेशन’ कहते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि मानव अनुवाद तथा मशीनी अनुवाद की प्रक्रियाओं में समानता है-फर्क इतना है कि मशीनी अनुवाद में ये तीनों प्रक्रियाएँ पूर्णतया मशीन द्वारा संपन्न होती हैं। मशीनी अनुवाद के ये प्रक्रियात्मक चरण लंबे अनुसंधान और श्रम से साधित हुए हैं। अतः मशीनी अनुवाद के इतिहास को जानना आपको रुचिकर लगेगा। इंटरनेट और मशीनी अनुवादमशीनी अनुवाद को वेब अनुवाद के रूप में विकसित होने का अवसर मिला है। सर्वाधिक प्राचीन अनुवाद तंत्र ‘सिस्ट्रान’ पर आधारित ‘आल्ताविस्ता’ के माध्यम से विभिन्न यूरोपीय भाषाओं में परस्पर अनुवाद की सुविधा प्राप्त हुई है। इसके अंतर्गत सीमित पाठ का किसी भी यूरोपीय भाषा में अनुवाद प्राप्त किया जा सकता है। वेब आधारित अनुवाद के विकास में मशीनी अनुवाद के उद्देश्यों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है। पहले इस प्रकार के अनुवाद को ‘अनुवाद उपकरण’ के रूप में माना जाता था किंतु अब इसे ‘संप्रेषण उपकरण’ के रूप में माना जाने लगा है। इसमें अनुवाद की शुद्धता पर बल न देकर संप्रेषणीयता पर अधिक बल दिया जाता है। जैसा कि आपने ऊपर की गई चर्चा में पाया कि मशीनी अनुवाद की आवश्यकता आज के सूचना विस्फोट के युग में बढ़ती जा रही है और अब मशीनी अनुवाद सहायता के रूप में न होकर संप्रेषण सहायता के रूप में समझा जाने लगा है। आज विश्व की महत्वपूर्ण भाषाओं में वेब अनुवाद की सुविधा प्राप्त है। विभिन्न सर्विस प्रोवाइडर (याहू, हाॅटमेल, गूगल आदि) सर्च इंजिन का कार्य तो करते ही हैं, साथ ही अनुवाद की सुविधा के भी लिंक उपलब्ध कराते हैं। अन्य विश्वसनीय वेब अनुवाद तंत्र ‘‘https://translate.google.co.in/’’, ‘‘https://www.bing.com/translator’’ आदि के वेबसाइट पर भी उपलब्ध हैं जिनसे विभिन्न यूरोपीय भाषाओं तथा अंग्रेजी में परस्पर अनुवाद प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे अनेक उपलब्ध अनुवाद तंत्रों की सहायता से प्राप्त अनुवाद का पुनरीक्षण कर प्रकाशन योग्य बनाया जा सकता है। मशीनी अनुवाद के क्षेत्र में पिछले दिनों में दुनिया भर में अनुसंधान और विकास के काफी काम हुए हैं। भारतीय परिदृष्य में भी C-DAC, IIT कानपुर, आई आई टी हैदराबाद तथा कुछ विश्वविद्यालयों ने अलग-अलग रुपए विषय, आधार मानक, संरचना बुनियाद या कहें कि पैराडिगम से मशीनी ट्रांसलेशन के क्षेत्र में उपलब्धियों के उल्लेखनीय मुकाम हासिल किए हैं। इससे अनुवादकों तथा हम जैसे अनुवाद-उपभोक्ताओं में आशा और उत्साह का संचार हुआ है। हममें उम्मीद जगी है कि हमारे वैज्ञानिकों और भाषा वैज्ञानिकों के सद्प्रयास से जल्दी ही हमें machine translation की ऐसी टूल मिल जाएगी, जिससे हम अपने दिनों, सप्ताहों और महीनों के काम यथासंभव जल्दी से पूरा कर लेंगे। यह कोई हवाई कल्पना नहीं है। अनुवाद अपनी प्रकृति और अंतर्वस्तु में सृजनात्मक होता है और किसी भी सृजन में ज्ञान और नवाचार की बड़ी महŸार भूमिका होती है। हम मानते हैं कि Machine translation के जरिए अंग्रेजी टैक्स्ट का फिलहाल जो हिंदी अनुवाद सुलभ हो रहा हैए वह मुकम्मिल नहीं है। पर्याप्त तो खैर बिल्कुल ही नहीं है। किंतु हिंदी में मशीनी ट्रांसलेषन की अभी तक की उपलब्धि भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। हम यह भी मानते हैं कि machine translation की संकल्पना के सफल होने पर भी, मशीन से आउटपुट के रूप में प्राप्त होने वाला अनुवाद कभी भी वैसा नहीं हो पाएगा, जैसा आदमी करता है। मशीन का अनुवाद वैसा ही होगा, जैसा मशीन का शब्दकोश और विश्लेषण-व्याकरण होगा। सर्वांग संपूर्ण होने पर भी मशीन किसी रचना की पुनर्रचना नहीं कर सकती, जबकि अनुवाद में पाठ या कथन के विश्लेषण के साथ-साथ अनुवादकर्ता के चिंतन और मनन तथा कल्पनाशीलता की बड़ी भूमिका होती है। आदमी सृजन के समानांतर सृजन कर लेता है। आदमी It was not to be happened के लिए विधाता अथवा नियति को यह मंजूर नहीं था, जैसा सृजन संभव करता है। मशीन ऐसा नहीं कर सकती। अनुवाद केवल सृजनात्मक साहित्य का ही नहीं होता। हमें तो ढ़ेर सारे उपयोगी और कार्यविधि-साहित्य और वैज्ञानिक शोध-साहित्य का त्वरित और तत्काल अनुवाद लगातार चाहिए। वैसे भी हमारा समकालीन अनुवाद परिदृष्य कोई बहुत सुखद और संतोषप्रद नहीं है। अनुवाद का परिदृष्य व्यापक और बहुआयामी जरूर है, परंतु वस्तुगत और समयानुकूल हर्गिज नहीं है। हम या तो अनुवाद का मतलब पाठ का भाषांतरण समझते हैं अथवा समानांतर सृजन। भारत और समस्त विकासशील समाज के लिए इसे व्यावहारिक नहीं माना जा सकता। अनुवाद उपयोगी साहित्य का भी होता है और ललित साहित्य का भी। दोनों के सरोकार अलग-अलग होते हैं। इसे समझाना होगा। अनुवाद मूलतः एक सृजनात्मक कर्म है। वह एक भाषा के विचारों, भावों और उद्गारों का दूसरी भाषा में कोरा रूपांतरण नहीं है। आज की दुनिया में ज्ञान का जिस तरह से स्फोट हो रहा है, उससे हिंदी भाषी समाज को परिचित कराने के लिए, उसे ज्ञान जगत में संवर्द्धन का हिस्सेदार बनाने के लिए यह बहुत जरूरी हो गया है कि अनुवाद को व्यक्ति केंद्रित कर्म से आगे ले जाकर समूह केंद्रिक सृजनात्मक उत्पाद में परिणत किया जाए। इसके लिए जरूरी है कि मशीनी-ट्रांसलेषन की संकल्पना को विकसित किया जाए। साथ ही अनुवादक, भाषाविद् और भाषा वैज्ञानिकों एवं इस काम में अभिरुचि रखने वाले वैज्ञानिकों के साथ औद्योगिक घरानों का समूह बनाया जाए। अनुवाद को निजी तथा सार्वजनिक सहभागिता के आधार पर उद्यम का रूप दिया जाए। अनुवाद की मांग के आलोक में बाजार का समर्थन प्राप्त किया जाए। अनुवाद को अनुसृजन के रूप में विकसित किया जाए, जिससे कि मूल लेखन के समस्त विचार और भाव अनूदित पाठ में उद्भाषित हो सकें। ऐसा करने से रोजगार के नए अवसर विकसित होंगे और अनुवाद के प्रति बाजार की रुचि भी बढ़ेगी। कंप्यूटर आरम्भ में विदेशी यंत्र माना जाता था। 1984 में इसको लोगों ने देखा था। यह अंग्रेजी का गुलाम था। कंप्यूटर में न तो कभी हिन्दुस्तानी ज्ञान को महत्व दिया गया, न ही यहाँ की भाषा को। पर हमारे भारतीय इंजीनियरों (1983 में आई.आई.टी. कानपुर) ने एक ऐसी तकनीक विकसित की, जिसके माध्यम से कंप्यूटर हिन्दी की देवनागरी लिपि में तो काम कर ही सकता था, भारत की अन्य भाषाओं मंे भी वह कार्य कर सकता था। इसका नामकरण हुआ-जिस्ट कार्ड (Graphic Indian Script Terminal)। यह कार्ड कंप्यूटर के CPU (Central Processing Unit) अर्थात् केन्द्रीय संसाधक एकांष में लगाते ही अंग्रेजी जानने वाला कंप्यूटर हिन्दी सीख जाता था और बड़ी सरलता से वह हिन्दी में काम करने लगता था। परिणाम यह हुआ कि हिन्दी का प्रयोग कंप्यूटर पर बड़ी सहजता से होने लगा। आज बैंक भी हिन्दी अपना रहे हैं, और वहाँ के कंप्यूटर हिन्दी में भी काम कर रहे हैं। बैंक के बाद कंप्यूटर का प्रयोग सार्वजनिक रूप के रेल विभाग में प्रारम्भ हुआ। वहां आरक्षण के क्षेत्र में यह प्रयुक्त हुआ। फल यह हुआ कि वहाँ के कंप्यूटर हिन्दी बोलने लगे और आरक्षण की स्थिति, गाडि़यों की स्थिति-आगमन, प्रस्थान के विषय में जानकारी मिलने लगी और अब तो और बेचारा कंप्यूटर घर बैठे आपका आरक्षण भी करा देता है। अब एकदम नई तकनीक आ रही है। हिन्दी को कंप्यूटर के लिए उपयोगी बनाने में सबसे अधिक सहायता की, हमारी लिपि और वर्णमाला के ध्वन्यात्मक स्वरूप ने। इसी कारण जिस्ट तकनीक को आसानी से अपनाया जाने लगा। इसके सहयोग के लिए एक मानक कोडिंग प्रणाली की भी पर्याप्त महत्ता है जिसको ‘इस्की’ (Indian Standard Code for Information Interchange) कहा जाता है, इसके माध्यम से उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नागरी (हिन्दी) सहित अन्य भारतीय भाषाएँ भी आसानी से कंप्यूटर पर काम कर रही हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि इसके लिए ‘इनस्क्रिप्ट’ (Indian Language Script) नाम से एक कुंजी पटल (Key Board)बनाया गया है जो हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं तथा अंग्रेजी में भी काम कर सकता है, साथ ही उसमें लिप्यांतर का भी उसमें सामथ्र्य है। अनुवादः कंप्यूटर में अनुवाद की बड़ी समस्या थी, जिसे भी अब हल कर लिया गया है। पूना के ‘सी-डेक’ (उच्च कंप्यूटरी विकास केन्द्र) (Centre for Development of Advanced computers), ने ‘टैग’ (Tri Adjoining Gram) का भी विकास कर लिया है। इतना ही नहीं अब तो हिन्दी के साॅफ्टवेयर भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं जिनमें अक्षर, आलेख शब्दावली, शब्दरत्न, मल्टीवर्ड, संगम, देवबेस, नारद, चाणक्य, एप्पल, सुलिपि, भाषा आदि शब्दों का उल्लेख है। धीरे-धीरे विकास की गति बढ़ती जा रही है और आज डाॅस, विंडोज, और यूनिक्स परिवेश के अन्तर्गत हिन्दी में शब्द-संसाधन कार्य भी सहज सम्भव हो गया है। इसके साथ ही वर्तनी- संशोधक (Spell Checker) तथा ‘आन लाइन शब्दकोश’ सहित ई-मेल तथा वेब-प्रकाशन की तकनीक भी हिन्दी ज्ञाताओं ने विकसित कर ली है। ‘(Intellingence Best Script Font Code), fyIl (Language Indenpendent Programme Subtypes) जैसी तकनीकें भी सामने आ गयी हैं। साथ ही फिल्मों के हिन्दी में भी शीर्षक देने की सुविधा उपलब्ध है। अनुवाद के क्षेत्र में मशीनी अनुवाद हेतु भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान, कानपुर तथा हैदराबाद विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से एक तकनीक विकसित की गयी है जिसे ‘अनुसारक’ कहा जाता है साथ ही पूना के वैज्ञानिकों द्वारा मन्त्र (सी-डेक Machine Assistant Translation Load का भी विकास हो चुका है। इसके साथ ही आई बी एम टाटा कम्पनी ने भी आर के कम्प्यूटर के सहयोग से ‘हिन्दी डाॅस’ नाम से भी एक विशिष्ट तकनीक उपजायी है जिसमें ‘कमांड’ और ‘मैन्यु’ भी हिन्दी में ही उपलब्ध है। कंप्यूटर का हिन्दीकरण अभी रुका नहीं है और आगे भी नहीं रुकने वाला है। ‘मोटोरोला’ ने 1997 में ही हिन्दी में ‘पेजर’ का विकास कर दिया था। मशीनी अनुवाद का आरंभ कब से माना जाता है?मशीनी अनुवाद के क्षेत्र में अनुसंधान की शुरूआत 1950 के बाद शुरू हुई थी। उसके बाद से विश्व स्तर पर भाषा वैज्ञानिक और कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने विविध भाषाओं के लिए मशीनी अनुवाद के तंत्र विकसित किए गए। साथ में उनके मूल्यांकन के लिए अनेक पद्धतियों का भी विकास किया।
मशीनी अनुवाद का दूसरा नाम क्या है?कम्प्यूटर साफ्टवेयर की सहायता से एक प्राकृतिक भाषा के टेक्स्ट या कही गयी बात (स्पीच) को दूसरी प्राकृतिक भाषा के टेक्स्ट या वाक में अनुवाद करने को मशीनी अनुवाद या यांत्रिक अनुवाद कहते हैं।
मशीनी अनुवाद को क्या कहा जाता है?कंप्यूटर प्रोग्राम की सहायता से एक भाषा के पाठ का अनुवाद दूसरी भाषा में करने को यांत्रिक या मशीनी अनुवाद कहते हैं। किसी अन्य भाषा में लिखे पाठ का इसके द्वारा तुरंत अनुवाद किया जा सकता है जो सूचना तथा ज्ञान के प्रसार में अत्यंत सहायक है।
मशीनी अनुवाद की सर्वाधिक प्रगति कहाँ हुई?इस प्रणाली को वर्ष 2006 में बालाजापल्ली (Balajapalli) द्वारा विकसित किया गया था। यह मशीनी अनुवाद प्रणाली वाक्य, पदबंध, शब्द और स्वनिक कोश जैसे द्विभाषी कोश का प्रयोग कर स्रोत भाषा अंग्रेजी से तीन लक्ष्य. भाषाओं हिंदी, तमिल और कन्नड़ में अनुवाद करती है।
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