मोतियों का हार टूट जाने पर उसको बार बार क्यों पिरोया जाता है? - motiyon ka haar toot jaane par usako baar baar kyon piroya jaata hai?

टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार।
‘रहिमन’ फिर-फिर पोइए, टूटे मुक्ताहार॥

अर्थ

अपना प्रिय एक बार तो क्या, सौ बार भी रूठ जाय, तो भी उसे मना लेना चाहिए। मोतियों के हार टूट जाने पर धागे में मोतियों को बार-बार पिरो लेते हैं न।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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रहीम

रहीम · रहीम के दोहे · ख़ान ए ख़ाना मक़बरा

दोस्तों ! आज हम आपके लिए 100+ rahim ke dohe with hindi meaning- रहीम के दोहे नामक पोस्ट लेकर आए हैं। रहीमदास हिंदी के प्रसिद्ध कवि थे। वे अकबर के सेनापति और नवरत्नों में से एक थे। रहीम के दोहे rahim ke dohe व्याहारिक जीवन में काम आने वाली शिक्षा प्रदान करते हैं। रहीमदास के दोहे सरल, देशी हिंदी भाषा में होने के कारण जन जन में प्रचलित हैं। उनके कई दोहे तो जन कहावतों के रूप में प्रसिद्ध हैं। आज हम आपके लिए रहीम के 100+ दोहों का संग्रह हिंदी अर्थ सहित लेकर आये हैं।

  • 100+ rahim ke dohe with hindi meaning। रहीम के दोहे
    • 1 to 10 dohe of rahim
    • 10 to 20 rahim ke dohe in hindi
  • 20 to 30 hindi dohe
    • 31 to 40 dohe of rahim
  • 41 to 50 rahim ke dohe with hindi meaning
    • 51 to 60 rahim das ji ke dohe
    • 61 to 70 dohas of rahim
    • 71 to 80 rahim ke dohe in hindi class 12
    • 81 to 90 rahim ke dohe in hindi class 9
  • 91 to 100 rahim ke dohe poem

1 to 10 dohe of rahim

अनुचित उचित रहीम लघु, क‍रहिं बड़ेन के जोर।
ज्‍यों ससि के संजोग तें, पचवत आगि चकोर॥1॥

अर्थ- रहीम कहते हैं कि छोटे लोग उचित अनुचित कोई भी कार्य बिना बड़े लोगों के सम्बल के नहीं कर सकते। जैसे चंद्रमा का साथ पाकर चकोर अंगारे भी पचा जाता है।

अनुचित वचन न मानिए जदपि गुराइसु गाढ़ि।
है र‍हीम रघुनाथ तें, सुजस भरत को बाढ़ि॥2॥

मोतियों का हार टूट जाने पर उसको बार बार क्यों पिरोया जाता है? - motiyon ka haar toot jaane par usako baar baar kyon piroya jaata hai?
rahim ke dohe

अर्थ- अनुचित वचन चाहे जितनी गम्भीरता से कहे जाएं, नहीं मानना चाहिए। जैसे बार बार कहने पर भी भरत द्वारा राज्य न ग्रहण करने से उनका यश राम जी से भी ज्यादा हो गया।

अब रहीम चुप करि रहउ, समुझि दिनन कर फेर।
जब दिन नीके आइ हैं बनत न लगि है देर॥3॥


अर्थ- जब सारे काम बिगड़ रहे हों तो इसे समय का फेर समझ कर चुपचाप बैठ जाना चाहिए। जब अच्छा समय आएगा तो सारे काम बनने में देर नहीं लगेगी।

अरज गरज मानैं नहीं, रहिमन ए जन चारि।
रिनिया, राजा, माँगता, काम आतुरी नारि॥4॥

अर्थ- ये चार लोग न तो निवेदन मानते हैं न ही धमकाने से मानते हैं। ऋणी, राजा, भिखारी और कामातुर नारी।

उरग, तुरंग, नारी, नृपति, नीच जाति, हथियार।
रहिमन इन्‍हें सँभारिए, पलटत लगै न बार॥5॥

अर्थ- रहीम के दोहे सांप, घोड़ा, नारी, राजा, नीच व्यक्ति और हथियार इनसे सावधानीपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। ये कब हानि कर दें, इसका कोई भरोसा नहीं।

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥6।।

अर्थ- एक ही लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने पर सब हासिल हो जाता है। एक से अधिक लक्ष्य साधने की कोशिश में कुछ नहीं मिलता। जिस प्रकार जड़ की सिंचाई करने से पूरा पेड़ हरा भरा रहता है।

ओछो काम बड़े करैं तौ न बड़ाई होय।
ज्‍यों रहीम हनुमंत को, गिरधर कहै न कोय॥7॥

अर्थ- छोटे लोग कोई बहुत बड़ा काम भी कर डालें तो उन्हें वह बड़ाई नहीं मिलती । जो मिलनी चाहिए, जैसे पहाड़ उठाने के बाद भी हनुमान जी को कोई गिरिधर नहीं कहता।

कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्‍वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन॥8॥

अर्थ- एक ही जल केले, सीप और सांप के मुख में जाता है. लेकिन परिणाम अलग अलग होता है. केले में कपूर, सीप में मोती और सांप के मुंह में वह विष बन जाता है. सत्य ही है कि जैसी संगति होती है वैसा ही परिणाम होता है.

कमला थिर न रहीम कहि, यह जानत सब कोय।
पुरुष पुरातन की बधू, क्‍यों न चंचला होय॥9॥

अर्थ- रहीम कहते हैं लक्ष्मी कहीं स्थिर नहीं रहती। पुरातन पुरुष की चिरयौवना पत्नी आखिर चंचल क्यों नहीं होगी ?

जहाँ गाँठ तहँ रस नहीं, यह रहीम जग जोय।
मँड़ए तर की गाँठ में, गाँठ गाँठ रस होय॥10॥

अर्थ- पूरा संसार कहता है कि जहां गांठ होती है, वहां रस या प्रेम नहीं होता। लेकिन विवाह मण्डप में जो गांठ लगती है, उसमें हर गांठ में रस होता है।

10 to 20 rahim ke dohe in hindi

जे रहीम बिधि बड़ किए, को कहि दूषन का‍ढ़ि।
चंद्र दूबरो कूबरो, तऊ नखत तें बा‍ढि॥11॥

अर्थ- जिनको भगवान ने बड़ा बना दिया। उनमें कौन दोष निकाल सकता है? जैसे चंद्रमा टेढ़ा और दुबला होने के बाद भी नक्षत्रों से अधिक मान्य है।

जे सुलगे ते बुझि गए, बुझे ते सुलगे नाहिं।
रहिमन दोहे प्रेम के, बुझि बुझि कै सुलगाहिं॥12॥

अर्थ- जो सुलग रहे थे वे बुझ गए। जो बुझ गए, वे दोबारा नहीं सुलगे। लेकिन प्रेम की चिंगारी ऐसी है जो बुझने बाद फिर सुलग उठती है।

जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय।
ताकों बुरा न मानिए, लेन कहाँ सो जाय॥13॥

अर्थ- जिसके पास जितनी बुद्धि है वह उतनी बात ही करेगा। इसलिए उसका बुरा नहीं मानना चाहिए।

जसी परै सो सहि रहै, कहि रहीम यह देह।
धरती पर ही परत है, शीत घाम औ मेह॥14॥

अर्थ- इस शरीर पर जो कष्ट, सुख- दुख पड़ता है। यह सब सह लेता है। जिस प्रकार धरती पर ही धूप, सर्दी और वर्षा सब होती है।

जो बड़ेन को लघु कहें, नहिं रहीम घटि जाँहि।
गिरधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नाहिं॥15।।

अर्थ- रहीम के दोहे कहते हैं महान लोगों को छोटा कह देने से वे छोटे नहीं हो जाते। जैसे पहाड़ उठाने गिरिधर (श्रीकृष्ण) को मुरलीधर कहने से उनका मान कम नहीं होता।

जो रहीम उत्‍तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्‍यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥16॥

अर्थ- जो अच्छे स्वभाव के लोग हैं। कुसंगति भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। जैसे चन्दन में सर्प लिपटे रहते हैं। लेकिन उसमें विष नहीं व्याप्त होता।

जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्‍यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ो जाय॥17।।

अर्थ- नीच व्यक्ति यदि बड़ा पद पाता है। तो उसी प्रकार इतराता है जैसे शतरंज में जब प्यादा ऊंट बन जाता है तो टेढ़ा चलने लगता है।

जो रहीम गति दीप की, सुत सपूत की सोय।
बड़ो उजेरो तेहि रहे, गए अँधेरो होय॥18॥

अर्थ- रहीम के दोहे कहते हैं सुपुत्र दीपक की भांति होता है। जिसके घर पर रहने से उजाला रहता है। चले जाने से अंधेरा हो जाता है।

जो रहीम भावी कतौं, होति आपुने हाथ।
राम न जाते हरिन संग, सीय न रावन साथ॥19॥

अर्थ- होनी को रोका नहीं जा सकता। अगर होनी अपने हाथ में होती। तो राम हिरण के पीछे नहीं जाते और सीता रावण के साथ नहीं जाती।

टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्‍ताहार॥20॥

अर्थ- स्वजन अगर रूठ जाएं तो उन्हें बार बार मनाना चाहिए। जैसे मोतियों का हार टूट जाने पर बार बार पिरोया जाता है।

20 to 30 hindi dohe

तरुवर फल नहिं खात हैं, सरबर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥21॥

अर्थ- जिस प्रकार पेड़ अपना फल नहीं खाते। तालाब अपना जल नहीं पीते।उसी प्रकार सज्जन लोग परोपकार के लिए धन इकट्ठा करते हैं।

तेहि प्रमान चलिबो भलो, जो सब हिद ठहराइ।
उमड़ि चलै जल पार ते, जो रहीम बढ़ि जाइ॥22॥

अर्थ- जिसमें सबका हित हो, उसी प्रकार चलना चाहिए। ज्यादा बड़ी चाल उचित नहीं। जैसे किसी पात्र में ज्यादा जल भर जाए तो उमड़कर बाहर गिर जाता है।

थोथे बादर क्वाँर के, ज्‍यों रहीम घहरात।
धनी पुरुष निर्धन भये, करै पाछिली बात॥23॥

अर्थ- क्वार महीने के खाली बादल केवल गरजते हैं। उसी प्रकार धनी व्यक्ति जब निर्धन हो जाते हैं तो पुरानी बातों से अपनी बड़ाई करते हैं।

दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबंधु सम होय॥24॥

अर्थ- दीन व्यक्ति सबकी ओर देखता है। लेकिन उसकी ओर कोई नहीं देखता। जो दीन दुखियों की मदद करता है। वह भगवान के समान होता है।

देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरें, याते नीचे नैन॥25॥

अर्थ- रहीमदास बड़े दानी थे। दान देते समय वे सिर झुका लेते थे। एक बार किसी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया– देने वाला कोई और है, जो दिन रात भेजता रहता है अर्थात ईश्वर। लोग इस भ्रम में हैं कि मैं देता हूँ, यही सोचकर मेरी नजरें शर्म से झुक जाती हैं।

दोनों रहिमन एक से, जौ लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु बसंत के माँहिं॥26।।

अर्थ- कौवा और कोयल दोनों देखने में एक ही जैसे हैं। लेकिन उनकी पहचान बसंत में होती है। जब वे बोलते हैं।

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥27॥

अर्थ- वह छोटा तालाब धन्य है जिसका जल पीकर सभी तृप्त होते हैं। समुद्र की क्या बड़ाई जिसके पास लोग प्यासे ही रह जाते हैं।

धूर धरत नित सीस पै, कहु रहीम केहि काज।
जेहि रज मुनिपत्‍नी तरी, सो ढूँढ़त गजराज॥28॥

अर्थ- रहीम के दोहे कहते हैं हाथी अपने सिर पर धूल क्यों रखता है? वह उस धूल को ढूंढता है जिसके स्पर्श से मुनिपत्नी अहिल्या का उद्धार हो गया।

नात नेह दूरी भली, लो रहीम जिय जानि।
निकट निरादर होत है, ज्‍यों गड़ही को पानि॥29।।

अर्थ- दूर की रिश्तेदारी में ही प्रेम रहता है। पास में निरादर ही होता है। जैसे पास के तालाब को छोड़ कर लोग दूर नदी में नहाने जाते हैं।

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर बक्‍ता भए, हमको पूछत कौन॥30॥

अर्थ- बरसात का मौसम देखकर कोयल चुप हो गयी। वह कहती है अब तो मेंढक वक्ता बन गए हैं। अब हमें कौन पूँछेगा ?

31 to 40 dohe of rahim

रहिमन राम न उर धरै, रहत विषय लपटाय।
पसु खर खात सवादसों, गुर गुलियाए खाय॥31॥

अर्थ- मनुष्य विषयों से प्रेम करता है। राम नाम से नहीं। जिस प्रकार पशु घास तो बड़े स्वाद से कहता है। लेकिन मीठा गुड़ उसको जबरदस्ती खिलाना पड़ता है।

रहिमन रिस को छाँड़ि कै, करौ गरीबी भेस।
मीठो बोलो नै चलो, सबै तुम्‍हारो देस।32॥

अर्थ- क्रोध का त्याग कर देना चाहिए। न मानो तो गरीब का वेश धारण कर के मीठी वाणी बोलकर देखो। सभी तुम्हारे हितैषी लगेंगे।

रहिमन लाख भली करो, अगुनी अगुन न जाय।
राग सुनत पय पिअत हू, साँप सहज धरि खाय॥33॥

अर्थ- चाहे जितना भलाई का काम करो। लेकिन दुष्ट व्यक्ति की दुष्टता नहीं जाती। जैसे सांप को कितना भी राग सुनाओ और दूध पिलाओ। लेकिन मौका मिलने पे वह काट ही लेता है।

100+ रहीम के दोहे

रहिमन वित्‍त अधर्म को, जरत न लागै बार।
चोरी करी होरी रची, भई तनिक में छार॥34॥

अर्थ- अधर्म से प्राप्त किया धन नष्ट होते देर नहीं लगती। जिस प्रकार चोरी की लकड़ी से होली सजाई जाती है। जो थोड़ी देर में ही जलकर राख हो जाती है।

रहिमन विद्या बुद्धि नहिं, नहीं धरम, जस, दान।
भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिनु पूँछ बिषान॥35॥

अर्थ- जिसके पास विद्या, बुद्धि, धर्म, यश और दान नहीं है। इस धरती पर उसका जन्म व्यर्थ है। बिना सींग, पूंछ के वह पशु के समान है।

रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥36॥

अर्थ- थोड़े दिन की विपत्ति भी ठीक ही होती है। उससे अच्छे बुरे की पहचान हो जाती है।

रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।
उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं॥37॥

अर्थ- रहीम के दोहे कहते हैं कि वे लोग मृतक समान हैं जो कहीं मांगने जाते है। लेकिन जो लोग मांगने पर भी मना कर देते हैं। वे उनसे भी पहले मर चुके हैं।

रहिमन सीधी चाल सों, प्‍यादा होत वजीर।
फरजी साह न हुइ सकै, गति टेढ़ी तासीर॥38॥

अर्थ- शतरंज के खेल में सीधी चाल चलने वाला प्यादा वजीर बन जाता है। लेकिन टेढ़ी चाल चलने वाला ऊंट राजा नहीं बन सकता।

बरु रहीम कानन भलो, बास करिय फल भोग।
बंधु मध्‍य धनहीन ह्वै बसिबो उचित न योग॥39॥

अर्थ- जंगल में रह कर फल भोगना अच्छा है। लेकिन भाई बंधुओं के बीच धनहीन होकर रहना उचित नहीं है।

बिधना यह जिय जानि कै, सेसहि दिये न कान।
धरा मेरु सब डोलि हैं, तानसेन के तान॥40॥

अर्थ- ब्रम्हा ने अच्छा किया कि शेषनाग को कान नहीं दिए। नहीं तो तानसेन की तान पर शेषनाग के साथ धरती और पर्वत भी हिलने लगते।

41 to 50 rahim ke dohe with hindi meaning

वे रहीम नर धन्‍य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनेवारे को लगे, ज्‍यों मेंहदी को रंग॥41॥

अर्थ- जो परोपकार करते हैं, वे लोग स्वयं भी धन्य हो जाते हैं। जैसे मेंहदी पीसने वाले के हाथ में भी लग जाती है।

सदा नगारा कूच का, बाजत आठों जाम।
रहिमन या जग आइ कै, को करि रहा मुकाम॥42॥

अर्थ- इस संसार से जाने का नगाड़ा तो आठों पहर बजता रहता है। यहां हमेशा के लिए कोई नहीं रहता।

सब को सब कोऊ करै, कै सलाम कै राम।
हित रहीम तब जानिए, जब कछु अटकै काम॥43||

समय परे ओछे बचन, सब के सहै रहीम।
सभा दुसासन पट गहे, गदा लिए रहे भीम॥44॥

अर्थ- बुरा समय होने पर नीच वचनों को भी सह लेना चाहिए। जिस प्रकार भरी सभा में दुशासन द्रौपदी के वस्त्र खींच रहा था। गदाधारी भीम चुपचाप बैठे थे।

समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जाय।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछिताय॥45॥

अर्थ- सही समय पर ही पेड़ों पर फल लगते हैं और अपने समय पर गिर भी जाते हैं। समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं।

समय लाभ सम लाभ नहिं, समय चूक सम चूक।
चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक॥46॥

अर्थ- सही समय का लाभ उठाने से बड़ा कोई लाभ नहीं है। समय पर चूक जाने से बड़ी कोई चूक नहीं है। चतुर लोगों को समय पर चूक जाना बहुत खलता है।

साधु सराहै साधुता, जती जोखिता जान।
रहिमन साँचै सूर को, बैरी करै बखान॥47॥

अर्थ- सज्जन व्यक्ति सज्जनता की बड़ाई करता है, योगी योग्यता की। जो सच्चा वीर होता है, उसकी बड़ाई उसके शत्रु करते हैं।

सौदा करो सो करि चलौ, रहिमन याही बाट।
फिर सौदा पैहो नहीं, दूरी जान है बाट॥48॥

अर्थ- रहीम कहते हैं कि ईश्वर का भजन करने का यही सही समय है। नहीं रास्ता बहुत लंबा है। बाद में समय नहीं मिलेगा।

होय न जाकी छाँह ढिग, फल रहीम अति दूर।
बढ़िहू सो बिनु काज ही, जैसे तार खजूर॥49॥

अर्थ- ऐसे बड़े होने का क्या अर्थ जिसका कोई लाभ न हो। जैसे खजूर का पेड़। जिसकी छाया भी नहीं होती है और फल भी बहुत ऊंचाई पर लगते हैं।

रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो ना प्रीति।
काटे चाटै स्‍वान के, दोऊ भाँति विपरीति॥50॥

अर्थ- नीच लोगों से न बैर रखना चाहिए न ही प्रेम। क्योंकि कुत्ता चाहे काट ले या चाट ले, दोनों ही नुकसानदेह है।

51 to 60 rahim das ji ke dohe

रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित चेत।
चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत॥51॥

अर्थ- चिंता चिता से भी बढ़कर है। इससे सावधान रहो। क्योंकि चिता तो निर्जीव को जलाती है। लेकिन चिंता तो जीवित व्यक्ति को भी जला देती है।

रहिमन कबहुँ बड़ेन के, नाहिं गर्व को लेस।
भार धरैं संसार को, तऊ कहावत सेस॥52॥

अर्थ- ज्ञानी और समर्थ लोग लेशमात्र भी अहंकार नहीं करते। जैसे सारे संसार का भार धारण करने वाले शेष (शेषनाग) कहलाते हैं।

रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभु की धाक।
दाँत दिखावत दीन ह्वै, चलत घिसावत नाक॥53।।

अर्थ- कवि कहता है कि हाथी जैसा बलवान कोई और नहीं होता फिर भी वह ईश्वर को बड़ा मानकर दीनों की तरह अपने दांत दिखाता है और चलते हुए अपनी नाक (जमीन) जमीन पर रगड़ता है।

रहिमन खोजे ऊख में, जहाँ रसन की खानि।
जहाँ गॉंठ तहँ रस नहीं, यही प्रीति में हानि॥54

अर्थ- प्रेम को समझना है तो गन्ने को देखो। जिसमें रस ही रस भरा रहता है। लेकिन उसमें जहां गांठ होती है वहां रस नहीं रहता। यही प्रेम में भी होता है।

रहिमन गली है साँकरी, दूजो ना ठहराहिं।
आपु अहै तो हरि नहीं, हरि तो आपुन नाहिं॥55॥

अर्थ- रहीमदास जी कहते हैं कि हृदय का रास्ता अत्यंत संकरा है। जिसमें दो लोग एक साथ नहीं चल सकते। या तो इसमें घमंड ही रह सकता है या फिर भगवान।

रहिमन चाक कुम्‍हार को, माँगे दिया न देइ।
छेद में डंडा डारि कै, चहै नॉंद लै लेइ॥56॥

अर्थ- रहीम कहते हैं की कुम्हार का चाक मांगने से मिट्टी का दीपक भी नहीं देता लेकिन छेद में डंडा डालकर बड़ी बड़ी नांद भी ली जा सकती है।

रहिमन जगत बड़ाई की, कूकुर की पहिचानि।
प्रीति करै मुख चाटई, बैर करे तन हानि॥57॥

अर्थ- इस संसार की क्या बड़ाई करना। यह कुत्ते की तरह है। जो प्रेम करने पर तो मुंह चाटता है। बैर करने पर काटने दौड़ता है।

रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥58॥

अर्थ- यह जीभ तो पागल है जो अच्छी बुरी बातें कह देती है और खुद तो अंदर रहती है। सजा सर को भुगतनी पड़ती है।

रहिमन तब लगि ठहरिए, दान मान सनमान।
घटत मान देखिय जबहिं, तुरतहि करिय पयान॥59॥

अर्थ- रिश्तेदारों के यहां तभी तक ठहरना उचित है। जब तक उचित सम्मान मिलता रहे। जब सम्मान घटता हुआ प्रतीत हो तो तुरंत प्रस्थान कर देना चाहिए।

रहिमन तीर की चोट ते, चोट परे बचि जाय।
नैन बान की चोट ते, चोट परे मरि जाय॥60॥

अर्थ- तीर की चोट से तो व्यक्ति बच सकता है। लेकिन स्त्री के नैनों के बाण की चोट से नहीं बचा जा सकता।

61 to 70 dohas of rahim

रहिमन दुरदिन के परे, बड़ेन किए घटि काज।
पाँच रूप पांडव भए, रथवाहक नल राज॥61॥

अर्थ- विपत्ति के समय बड़े बड़े लोगों को छोटे काम करने पड़ जाते हैं। जैसे पांडवों को अपना रूप बदलना पड़ा और राजा नल को सारथी बनना पड़ा।

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥62॥

अर्थ- बड़ी वस्तुएं प्राप्त हो जाने पर छोटी चीजों को छोड़ नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां सुई का काम हो वहां तलवार कुछ नहीं कर सकती।

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥63॥

अर्थ- प्रेम रूपी धागे को कभी तोड़ना नहीं चाहिए। क्योंकि टूट जाने के बाद यह जुड़ता नहीं। अगर जुड़ भी जाये तो हमेशा के लिए गांठ पड़ जाती है।

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥64॥

अर्थ- अपने मन का कष्ट अपने मन में ही छुपा के रखना चाहिए। लोग उसे सुनकर खुश ही होंगे, कोई उसे बांट नहीं लेगा।

रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।65॥

अर्थ- अपने धन के अलावा कुछ भी विपत्ति में काम नहीं आता। जैसे बिना पानी के कमल को धूप से कोई नहीं बचा सकता।

रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥66॥

अर्थ- रहीमदास कहते हैं कि पानी( सम्मान) बनाये रखना चाहिए। जैसे बिना पानी के मोती नहीं बन सकता, बिना पानी(सम्मान) के मनुष्य का कोई मूल्य नहीं और बिना पानी के चूना किसी काम का नहीं।

रहिमन प्रीति न कीजिए, जस खीरा ने कीन।
ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फाँकें तीन॥67॥

अर्थ- ऊपर से दिखावटी प्रेम नहीं करना चाहिए। जैसे खीरा ऊपर से देखने में तो एक लगता है। लेकिन उसके अंदर तीन फांकें बनी होती हैं।

रहिमन प्रीति सराहिए, मिले होत रँग दून।
ज्‍यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून ||67॥

अर्थ- प्रेम सराहनीय है। ये दूसरे को भी अपने रंग में रंग लेता है। जैसे हल्दी लगने से रंग पीला और चूने से सफेद रंग हो जाता है।

रहिमन ब्‍याह बिआधि है, सकहु तो जाहु बचाय।
पायन बेड़ी पड़त है, ढोल बजाय बजाय॥68॥

अर्थ- रहीम कहते हैं कि विवाह एक रोग है अगर इससे बच सको तो बच जाओ। ये ऐसी जेल है जिसमें ढोल बजाकर पैरों में बेड़ियां डाली जाती हैं।

रहिमन बहु भेषज करत, ब्‍याधि न छाँड़त साथ।
खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ॥69॥

अर्थ- मनुष्य बहुत दवा करता है फिर भी रोग साथ नहीं छोड़ते। वन में रहने वाले जीवों को देखो, वे नीरोग हैं। सच है जिनका कोई नहीं उनके लिए भगवान हैं।

रहिमन बात अगम्‍य की, कहन सुनन को नाहिं।
जे जानत ते कहत नाहिं, कहत ते जानत नाहिं॥70॥

अर्थ- ईश्वर को जानने की बात कहने सुनने के लायक नहीं। क्योंकि जो जानते हैं, वे कहते नहीं और जो कहते हैं वे जानते नहीं।

71 to 80 rahim ke dohe in hindi class 12

रहिमन बिगरी आदि की, बनै न खरचे दाम।
हरि बाढ़े आकाश लौं, तऊ बावनै नाम॥71॥

अर्थ- अगर शुरुआत में बात बिगड़ जाए तो बाद में नहीं बनती। जैसे वामन भगवान ने बाद में अपना शरीर आकाश के बराबर बढा लिया। तब भी उनका नाम वामन ही रहा।

रहिमन भेषज के किए, काल जीति जो जात।
बड़े बड़े समरथ भए, तौ न कोउ मरि जात॥72॥

अर्थ- अगर दवाओं से मृत्यु को जीता जा सकता तो बहुत से समर्थ लोग कभी न मरते।

रहिमन यहि संसार में, सब सौं मिलिये धाइ।
ना जानैं केहि रूप में, नारायण मिलि जाइ॥73॥

अर्थ- रहीमदास कहते हैं इस संसार में सबसे प्रेम और सम्मान से मिलना चाहिए। क्योंकि न जाने किस रूप में ईश्वर मिल जाएं।

रहिमन याचकता गहे, बड़े छोट ह्वै जात।
नारायन हू को भयो, बावन आँगुर गात॥74॥

अर्थ- याचक बनने पर बहुत बड़ा व्यक्ति भी छोटा हो जाता है। राजा बलि से मांगने के लिए भगवान को 52 अंगुल का शरीर धारण करना पड़ा था।

रहिमन या तन सूप है, लीजै जगत पछोर।
हलुकन को उड़ि जान दै, गरुए राखि बटोर॥75॥

100+ रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित

अर्थ- यह शरीर सूप की तरह है। इससे संसार को छान लेना चाहिए। जो तुच्छ चीजें हैं उन्हें छोड़कर महत्वपूर्ण चीजों को इकट्ठा करना चाहिए।

रहिमन रहिबो वा भलो, जो लौं सील समूच।
सील ढील जब देखिए, तुरत कीजिए कूच॥76॥

अर्थ- किसी जगह पर तब तक रहना ही ठीक है, जब तक इज्जत मिलती रहे। जैसे ही इज्जत में कमी लगे, तुरंत वहां से चल देना चाहिए।

रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ।
जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ॥77॥

अर्थ- आंख से आंसू निकल कर मन का दुख सबके सामने प्रकट कर देते हैं। सच ही है जिसे घर से निकाल दिया जाय, वह घर के भेद तो बता ही देगा।

रहिमन अती न कीजिये, गहि रहिये निज कानि।
सैजन अति फूले तऊ डार पात की हानि॥78॥

अर्थ- रहीम के दोहे कहते हैं कि किसी चीज की अति नहीं करनी चाहिए। स्वयं पर नियंत्रण रखना चाहिए। जैसे- सहजन के वृक्ष पर अधिक फल फूल हो जाने पर उसकी नाजुक डालियाँ टूट जाती हैं।

रन, बन, ब्‍याधि, विपत्ति में, रहिमन मरै न रोय।
जो रच्‍छक जननी जठर, सो हरि गये कि सोय॥79॥

अर्थ- युद्ध में, जंगल में, विपत्ति में परेशान होकर रोना नहीं चाहिए। जिन ईश्वर ने मां के पेट में हमारी रक्षा की। क्या वे सो गए हैं? अर्थात वही रक्षा करेंगे।

यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय।
बैर, प्रीति, अभ्‍यास, जस, होत होत ही होय॥80॥

अर्थ- बैर, प्रेम, अभ्यास, यश कोई जन्म से ही नहीं प्राप्त कर लेता। ये धीरे धीरे बढ़ते हैं।

81 to 90 rahim ke dohe in hindi class 9

यह रहीम मानै नहीं, दिल से नवा जो होय।
चीता, चोर, कमान के, नये ते अवगुन होय॥81॥

अर्थ- जब तक कोई दिल से न झुके तो उसे झुका हुआ नहीं मानना चाहिए। जैसे चीता, चोर और धनुष झुकते हैं तो खतरनाक होते हैं।

मान सहित विष खाय के, संभु भये जगदीस।
बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो सीस॥82॥

अर्थ- सम्मानपूर्वक जहर पीकर भी शंकर संसार के पूज्य हो गए। बिना मान के, चोरी से अमृत पीने के कारण राहु को अपना सिर कटाना पड़ा।

मनि मनिक महँगे किये, ससतो तृन जल नाज।
याही ते हम जानियत, राम गरीब निवाज॥83॥

अर्थ- मणि, माणिक्य आदि पदार्थ महंगे बनाये जिनका उपयोग धनी लोग करते हैं। जल, घास और अनाज सस्ता बनाया। जिनका उपयोग गरीब भी कर सके। इसी से हमें पता चलता है कि ईश्वर गरीबों के रक्षक हैं।

मथत मथत माखन रहै, दही मही बिलगाय।
रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय॥84॥

अर्थ- जिस प्रकार दूध को मथने पर दही और मट्ठा अलग हो जाते है। केवल मक्खन ही साथ रहता है। उसी प्रकार सच्चा मित्र वही है जो कष्ट के समय साथ दे।

बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥85॥

अर्थ- एक बार बात बिगड़ जाए तो फिर बनती नहीं है। जैसे फटे दूध को मथकर मक्खन नहीं निकाला जा सकता।

बसि कुसंग चाहत कुसल, यह र‍हीम जिय सोस।
महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्‍यो परोस॥86॥

अर्थ- रहीम कहते हैं कुसंगति में रह कर भी कुशल चाहने वाले को देखकर अफसोस होता है। जैसे रावण के पड़ोस में रहने से समुद्र की महिमा कम हो गयी। उसी प्रकार कुसंगति का असर जरूर होता है।

बढ़त रहीम धनाढ्य धन, धनौ धनी को जाइ।
घटै बढ़ै बाको कहा, भीख माँगि जो खाइ॥87॥

अर्थ- धनी का ही धन बढ़ता है। क्योकि धन धनाढ्य के पास ही जाता है। जो गरीब है, भिक्षा मांगकर जीवन यापन करता है, उनका धन घटता बढ़ता नहीं है।

बड़े बड़ाई नहिं तजैं, लघु रहीम इतराइ।
राइ करौंदा होत है, कटहर होत न राइ॥88॥

अर्थ- बड़े लोग अपना बड़प्पन नहीं छोड़ते। छोटे लोग ही थोड़े में इतराने लगते हैं। जिस प्रकार सरसों फूलकर करौंदे जितनी बड़ी तो हो सकती है। लेकिन कटहल कितना भी छोटा हो जाये। सरसों जैसा नहीं हो सकता।

बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल॥89।।

अर्थ- अपनी बड़ाई नहीं करनी चाहिए। न ही बड़े बोल बोलने चाहिए। जैसे हीरा अपना मूल्य कभी नहीं बताता कि उसका मूल्य लाखों में है.

कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग।
वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग॥90॥

अर्थ- रहीमदास जी कहते हैं कि दो विपरीत गुण-धर्म वालों का साथ नहीं हो सकता। जैसे केला और बेर का साथ। जब फलों से लदा बेर का पेड़ हवा में झूमता है तो उसके काँटों से केले के पत्ते फट जाते है।

91 to 100 rahim ke dohe poem

काज परै कछु और है, काज सरै कछु और।
रहिमन भँवरी के भए नदी सिरावत मौर॥91॥

अर्थ- इस संसार जब किसी से काम होता है, तब उससे दूसरी तरह व्यवहार होता है। काम निकलने के बाद व्यवहार बदल जाता है। जिस प्रकार विवाह के समय मौर (टोपी) को सिर पर रखते है। लेकिन भांवर हो जाने के बाद नदी में डाल देते हैं।

खीरा सिर तें काटिए, मलियत नमक बनाय।
रहिमन करुए मुखन को, चहिअत इहै सजाय॥92॥

अर्थ- कड़वा बोलने वाले लोगों को उसी प्रकार दंडित किया जाना चाहिए। जिस प्रकार कड़वे खीरे का सिर काटकर उसमें नमक लगाकर उसकी कड़वाहट मिटाई जाती है।

कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम।
केहि की प्रभुता नहिं घटी, पर घर गये रहीम॥93॥

अर्थ- दूसरे घर पर रहने से किसका सम्मान कम नहीं हो जाता? जैसे गंगा के समुद्र में मिलने से उसका नाम और महिमा दोनों लुप्त हो जाते हैं।

खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे ना दबैं, जानत सकल जहान॥94॥

अर्थ- खैर, खून, खांसी, खुशी, बैर, प्रेम, शराब पीना इनको छुपाया नहीं जा सकता। इनका पता लग ही जाता है।

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछू न चाहिए, वे साहन के साह॥95॥

अर्थ- इस संसार में जिसकी इच्छाएं मिट गई। वह चिंतामुक्त और मन से उन्मुक्त हो जाता है। असली शहंशाह वे ही हैं, जिन्हें कुछ नहीं चाहिए।

छिमा बड़न को चाहिए, छोटेन को उतपात।
का रहिमन हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात॥96॥

अर्थ- छोटे लोगों द्वारा की गई गलतियों और उपद्रव को बड़ों को क्षमा कर देना चाहिए। जैसे भृगु द्वारा भगवान विष्णु को लात मारने पर उन्होंने क्षमा कर दिया था। इससे उनका सम्मान कम नहीं हुआ था।

कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत॥97॥

अर्थ- रहीम कहते हैं संपत्ति रहने पर तो बहुत सारे सगे संबंधी और मित्र बन जाते हैं। लेकिन विपत्ति में जो साथ दे वही मित्र है।

बड़े पेट के भरन को, है रहीम दुख बा‍ढ़ि।
यातें हाथी हहरि कै, दयो दाँत द्वै का‍ढ़ि॥98॥

अर्थ- रहीम कहते हैं कि बड़े पेट को भरने के लिए बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं। इसी लिए बड़े पेट वाले हाथी ने घबरा कर अपने दोनों दांत बाहर निकाल दिए।

बिपति भए धन ना रहे, रहे जो लाख करोर।
नभ तारे छिपि जात हैं, ज्‍यों रहीम भए भोर॥99॥

विपत्ति पड़ने पर लाखों करोड़ों का धन भी उसी प्रकार खर्च हो जाता है। जिस प्रकार सुबह होने पर आकाश में तारे छिप जाते हैं।

भार झोंकि के भार में, रहिमन उतरे पार।
पै बूड़े मझधार में, जिनके सिर पर भार॥100॥

अर्थ- सारी जिम्मेदारियों को छोड़ कर ही इस भवसागर से पार उतरा जा सकता है। जिन लोगों ने सारी जिम्मेदारियों का भार अपने सिर पर उठा रखा है। वे यहीं माया के चक्कर में फंसे रह जाते हैं।

भूप गनत लघु गुनिन को, गुनी गनत लघु भूप।
रहिमन गिर तें भूमि लौं, लखों तो एकै रूप॥101।।

अर्थ- राजा गुणी लोगों को छोटा समझता है और गुणवान लोग राजा को छोटा समझते हैं। लेकिन यदि ऊंचे पहाड़ से देखो तो सभी एक जैसे दिखते हैं।

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100+ rahim ke dohe with hindi meaning- रहीम के दोहे नामक इस संग्रह में रहीमदास के प्रमुख दोहों का अर्थ सहित वर्णन किया गया है. आपने देखा होगा की ये दोहे हमारे दैनिक जीवन से सम्बंधित है. साथ ही ये rahim ke dohe दैनिक व्यवहार में हमारा मार्गदर्शन भी करते हैं. इन दोहों का संकलन इस प्रकार किया गया है की ये class 6 से लेकर class 12 तक के students के लिए समान रूप से उपयोगी हैं. अपनी राय कमेन्ट करके जरूर बताएं।

मोतियों का हार टूट जाने पर उन्हें बार बार क्यों पिरोया जाता है?

जिस प्रकार सच्चे मोतियों का हार टूट जाने पर उसे बार-बार पिरोया जाता है, उसी प्रकार सज्जनों को भी बार-बार रूठने पर मनाकर रखना चाहिए; क्योंकि वे मोतियों के समान ही मूल्यवान होते हैं। यहाँ कवि ने सज्जन को मोती के समान बहुमूल्य माना है और उसका साथ बनाये रखने का परामर्श दिया है। भाषा- ब्रज। शैली- मुक्तक।

रहीम के अनुसार कौन लोग धन्य हैं?

अर्थ: रहीम कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है। जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है.

5 कौन दीनबन्धु के समान होता है?

जो रहीम दिनहिं लखै, दीनबंधु सम होय।। रहीम कहते हैं कि ग़रीब सबकी ओर देखता है, पर ग़रीब को कोई नहीं देखता। जो ग़रीब को प्रेम से देखता है, उससे प्रेम-पूर्ण व्यवहार करता है और उसकी मदद करता है, वह दीनबंधु भगवान के समान हो जाता है।

कवि रहीम ने परोपकारी व्यक्ति की क्या क्या विशेषताएँ बताई हैं?

उन्होंने भक्ति, नीति और श्रंगार का बहुत सुंदर निरूपण किया है। वे विशेष रूप से अपने नीतिपरक दोहों के लिए विख्यात हैंरहीम को लोक व्यवहार का बहुत अच्छा ज्ञान था। उनके लिखे दोहे कहावतों और लोकोक्तियों का रूप ग्रहण कर चुके हैं