मधुप गुन गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी? - madhup gun guna kar kah jaata kaun kahaanee yah apanee?

प्रश्न – मधुप गुन – गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी में अलंकार से संबन्धित प्रश्न परीक्षा में कई प्रकार से पूछे जाते हैं। जैसे कि – यहाँ पर कौन सा अलंकार है? दी गई पंक्तियों में कौन सा अलंकार है? दिया गया पद्यान्श कौन से अलंकार का उदाहरण है? पद्यांश की पंक्ति में कौन-कौन सा अलंकार है, आदि।

मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,

मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।

इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास

यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्‍यंग्‍य मलिन उपहास

तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।

तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-

अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।

यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं।

भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।

उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।

अरे खिल-खिलाकर हँसतने वाली उन बातों की।

मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्‍वप्‍न देकर जाग गया।

आलिंगन में आते-आते मुसक्‍या कर जो भाग गया।

जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्‍दर छाया में।

अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

उसकी स्‍मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।

सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्‍यों मेरी कंथा की?

छोटे से जीवन की कैसे बड़े कथाएँ आज कहूँ?

क्‍या यह अच्‍छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?

सुनकर क्‍या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्‍मकथा?

अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्‍यथा।


जयशंकर_प्रसाद - Jay Shankar Prasad


#poem gazal Shayari

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मधुप गुन-गुनाकर कह जाता / जयशंकर प्रसाद

मधुप गुन गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी? - madhup gun guna kar kah jaata kaun kahaanee yah apanee?

मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास, 
यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्‍यंग्‍य मलिन उपहास, 
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।

तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती, 
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही ख़ाली करने वाले, 
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं, 
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।

उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की, 
अरे खिल-खिलाकर हँसने वाली उन बातों की, 
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्‍वप्‍न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्‍या कर जो भाग गया, 
जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्‍दर छाया में, 
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

उसकी स्‍मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की, 
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्‍यों मेरी कथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्‍या यह अच्‍छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्‍या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्‍मकथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्‍यथा।

मधुप गुनगुना कर कविता छायावादी काव्याधारा के प्रमुख आधार स्तम्भ जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित है। साहित्यिक जगत में प्रसाद जी एक सफल व श्रेष्ठ कवि, नाटककार कथाकार व निंबंध लेखक के रूप में विख्यात रहे है।

प्रसंग

मधुप गुनगुना कर कविता में कवि ने अपने आत्मकथा ना लिखने की अनेक कारणों का वर्णन करा है। वह बताती हैं उन्होंने कोई ऐसा कार्य नहीं करा है ऐसा कुछ भी अर्जित नहीं करा है जिसको वह अपनी आत्मकथा में जगह दे अर्थात उनकी आत्मकथा का को पढ़कर को कोई प्रेरणा नहीं मिलेगी। वस्तुत प्रेमचंद जी ने अपने मासिक पत्र हंस में प्रकाशन हेतु प्रसाद जी से अपनी आत्मकथा का अक्षांश आग्रह पूर्वक मांगा था तभी जयशंकर प्रसाद जी ने यह कविता रची।

                
                                                                                 
                            

मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,


मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्यंग्य मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिलाकर हँसतने वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्दर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़े कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्मकथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

मधुप गुन गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी?

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी, मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी । इस गंभीर अनंत- नीलिमा में असंख्य जीवन- इतिहास यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य - मलिन उपहास तब भी कहते हो - कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती । तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे—यह गागर रीती ।

मधुप गुणगान कौन कर रहा है?

'मधुप' मनरूपी भंवरा है जो 'गुनगुना' कर भावों को प्रकट करता है। मुरझाकर गिरती 'पत्तियाँ' नश्वरता की प्रतीक हैं। कवि ने अपनी इस कविता में 'अनंत-नीलिमा', 'गागर रीति', 'उज्ज्वल गाथा', 'चांदनी रातों की', 'अनुरागिनी उषा', 'स्मृति पाथेय', 'थके पथिक', 'सीवन को उधेड़', 'कंथा' आदि प्रतीकात्मक शब्दो, का सहज-सुंदर प्रयोग किया है।

मधुप गुन गुनाकर कह जाता कविता के माध्यम से कवि ने अपनी आत्मकथा न लिखने के पीछे क्या कारण बताए हैं?

मधुप गुनगुना कर कविता में कवि ने अपने आत्मकथा ना लिखने की अनेक कारणों का वर्णन करा है। वह बताती हैं उन्होंने कोई ऐसा कार्य नहीं करा है ऐसा कुछ भी अर्जित नहीं करा है जिसको वह अपनी आत्मकथा में जगह दे अर्थात उनकी आत्मकथा का को पढ़कर को कोई प्रेरणा नहीं मिलेगी।

यह दीप अकेला एवं मधुप गुनगुनाकर कह जाता के कवि कौन हैं?

मधुप गुनगुनाकर कह जाता / जयशंकर प्रसाद