राजस्थान में कौन सा अनाज सबसे ज्यादा खाया जाता है? - raajasthaan mein kaun sa anaaj sabase jyaada khaaya jaata hai?

ज्यादा नहीं, आज से सिर्फ 50 साल पहले हमारे खाने की परंपरा (Food Culture) बिल्कुल अलग थी. हम मोटा अनाज (Coarse Grains) खाने वाले लोग थे. मोटा अनाज मतलब- ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), सवां, कोदों और इसी तरह के मोटे अनाज. 60 के दशक में आई हरित क्रांति के दौरान हमने गेहूं और चावल को अपनी थाली में सजा लिया और मोटे अनाज को खुद से दूर कर दिया. जिस अनाज को हम साढ़े छह हजार साल से खा रहे थे, उससे हमने मुंह मोड़ लिया और आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज की तरफ वापस लौट रही है.

पिछले दिनों आयुष मंत्रालय के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने भी मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर बल दिया. पीएम मोदी बोले, ‘आज हम देखते हैं कि जिस भोजन को हमने छोड़ दिया, उसको दुनिया ने अपनाना शुरू कर दिया. जौ, ज्वार, रागी, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, ऐसे अनेक अनाज कभी हमारे खान-पान का हिस्सा हुआ करते थे. लेकिन ये हमारी थालियों से गायब हो गए. अब इस पोषक आहार की पूरी दुनिया में डिमांड है.’

पीएम मोदी के इस बयान के बाद देश में एक बार फिर से मोटे अनाज की चर्चा शुरू हो गई है.

क्या होता है मोटा अनाज?

भारत में 60 के दशक के पहले तक मोटे अनाज की खेती की परंपरा था. कहा जाता है कि हमारे पूर्वज हजारों वर्षों से मोटे अनाज का उत्पादन कर रहे हैं. भारतीय हिंदू परंपरा में यजुर्वेद में मोटे अनाज का जिक्र मिलता है. 50 साल पहले तक मध्य और दक्षिण भारत के साथ पहाड़ी इलाकों में मोटे अनाज की खूब पैदावार होती थी. एक अनुमान के मुताबिक देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन में मोटे अनाज की हिस्सेदारी 40 फीसदी थी.

मोटे अनाज के तौर पर ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), जौ, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, लघु धान्य या कुटकी, कांगनी और चीना जैसे अनाज शामिल हैं.

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मोटा अनाज

क्यों कहते हैं इसे मोटा अनाज

मोटा अनाज इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके उत्पादन में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती. ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं. धान और गेहूं की तुलना में मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की खपत बहुत कम होती है. इसकी खेती में यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत भी नहीं पड़ती. इसलिए ये पर्यावरण के लिए भी बेहतर है.

ज्वार, बाजरा और रागी की खेती में धान के मुकाबले 30 फीसदी कम पानी की जरूरत होती है. एक किलो धान के उत्पादन में करीब 4 हजार लीटर पानी की खपत होती है, जबकि मोटे अनाजों के उत्पादन नाममात्र के पानी की खपत होती है. मोटे अनाज खराब मिट्टी में भी उग जाते हैं. ये अनाज जल्दी खराब भी नहीं होते. 10 से 12 साल बाद भी ये खाने लायक होते हैं. मोटे बारिश जलवायु परिवर्तन को भी सह जाती हैं. ये ज्यादा या कम बारिश से प्रभावित नहीं होती.

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बाजरा में प्रोटीन प्रचूर मात्रा में पाया जाता है

सेहत के लिए कितना फायदेमंद है मोटा अनाज

ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज में पौष्टिकता की भरमार होती है. रागी भारतीय मूल का उच्च पोषण वाला मोटा अनाज है. इसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा होती है. प्रति 100 ग्राम रागी में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है.

रागी को डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है. उसी तरह से बाजरा में प्रोटीन की प्रचूर मात्रा होती है. प्रति 100 ग्राम बाजरे में 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 मिलीग्राम लौह तत्व और 132 मिलीग्राम कैरोटीन होता है. कैरोटीन हमारी आंखों को सुरक्षा प्रदान करता है.

ज्वार दुनिया में उगाया जाने वाला 5वां महत्वपूर्ण अनाज है. ये आधे अरब लोगों का मुख्य आहार है. आज ज्वार का ज्यादातर उपयोग शराब उद्योग, डबलरोटी के उत्पादन के लिए हो रहा है. बेबी फूड बनाने में भी ज्वार का इस्तेमाल होता है. बढ़ती आबादी के लिए खाद्यान्न की जरूरतों को पूरा करने में ज्वार अहम भूमिका निभा सकता है.

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मोटा अनाज की खेती पर सरकार दे रही है जोर

सरकार मोटे अनाज की खेती पर दे रही है जोर

केंद्र सरकार मोटे अनाज की खेती पर जोर दे रही है क्योंकि बढ़ती आबादी के लिए पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध करवाने में यही अनाज सक्षम हो सकते हैं. मोटे अनाज पोषण का सबसे बेहतरीन जरिया हैं. सरकार इसके पोषक गुणों को देखते हुए इसे मिड डे मील स्कीम और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी शामिल करने की सोच रही है.

केंद्र सरकार ने मोटा अनाज की खेती के लिए प्रेरित करने के लिए साल 2018 को मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया था. उस वक्त कृषि मंत्री रहे राधामोहन सिंह ने संयुक्त राष्ट्र संघ खाद्य एवं कृषि संगठन को पत्र लिखकर 2019 को मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाने की अपील की थी.

छत्तीसगढ़ और ओडिशा के कुछ इलाकों में मोटा अनाज की खेती बढ़ी है. दक्षिण भारत में भी मोटा अनाज का चलन बढ़ा है. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा में रोज के खान-पान में मोटा अनाज को शामिल किया जा रहा है.

बाजरा एक प्रमुख फसल है। एक प्रकार की बड़ी घास जिसकी बालियों में हरे रंग के छोटे छोटे दाने लगते हैं। इन दानों की गिनती मोटे अन्नों में होती है। प्रायाः सारे उत्तरी, पश्चिमी और दक्षिणी भारत में लोग इसे खाते हैं। बाजरा मोटे अन्नों में सबसे अधिक उगाया जाने वाला अनाज है। इसे अफ्रीका और भारतीय उपमहाद्वीप में प्रागेतिहासिक काल से उगाया जाता रहा है, यद्यपि इसका मूल अफ्रीका में माना गया है। भारत में इसे बाद में प्रस्तुत किया गया था। भारत में इसे इसा पूर्व २००० वर्ष से उगाये जाने के प्रमाण मिलते है। इसका मतलब है कि यह अफ्रीका में इससे पहले ही उगाया जाने लगा था। यह पश्चिमी अफ्रीका के सहल क्षेत्र से निकल कर फैला है।

बाजरे की विशेषता है सूखा प्रभावित क्षेत्र में भी उग जाना, तथा ऊँचा तापक्रम झेल जाना। यह अम्लीयता को भी झेल जाता है। यही कारण है कि यह उन क्षेत्रों में उगाया जाता है जहां मक्का या गेहूँ नही उगाये जा सकते। आज विश्व भर में बाजरा २६०,००० वर्ग किलोमीटर में उगाया जाता है। मोटे अन्न उत्पादन का आधा भाग बाजरा होता है।

इस अनाज की खेती बहुत सी बातों में ज्वार की खेती से मिलती जुलती होती है। यह खरीफ की फसल है और प्रायः ज्वार के कुछ पीछे वर्षा ऋतु में बोई और उससे कुछ पहले अर्थात् जाड़े के आरंभ में काटी जाती हैं। इसके खेतों में खाद देने या सिंचाई करने की विशेष आवश्यकता नहीं होती। इसके लिये पहले तीन चार बार जमीन जोत दी जाती है और तब बीज बो दिए जाते हैं। एकाध बार निराई करना अवश्य आवश्यक होता है। इसके लिये किसी बहुत अच्छी जमीन की आवश्यकता नहीं होती और यह साधारण से साधारण जमीन में भी प्रायः अच्छी तरह होता है। यहाँ तक कि राजस्थान की बलुई भूमि में भी यह अधिकता से होता है। गुजरात आदि देशों में तो अच्छी करारी रूई बोने से पहले जमीन तयार करने के लिय इसे बोते हैं। बाजरे के दानों का आटा पीसकर और उसकी रोटी बनाकर खाई जाती है। इसकी रोटी बहुत ही बलवर्धक और पुष्टिकारक मानी जाती है। कुछ लोग दानों को यों ही उबालकर और उसमें नमक मिर्च आदि डालकर खाते हैं। इस रूप में इसे 'खिचड़ी' कहते हैं। कहीं कहीं लोग इसे पशुओं के चारे के लिये ही बोते हैं। वैद्यक में यह वादि, गरम, रूखा, अग्निदीपक पित्त को कुपित करनेवाला, देर में पचनेवाला, कांतिजनक, बलवर्धक और स्त्रियों के काम को बढा़नेवाला माना गया है।

बाजरे का प्रयोग भारत तथा अफ्रीका में रोटी, दलिया तथा बीयर बनाने में होता है। फसल के बचे भाग का प्रयोग चारा\चारे, ईंधन तथा निर्माण कार्य में भी होता है। विश्व के विकसित भागों में इसका प्रयोग भोजन में ना होकर चारे के रूप में होता है। मुर्गी जो इसे चारे के रूप में खाती है/अंडो में ओमेगा ३ फैटी अम्ल ज्यादा पाया जाता है। दूसरे जंतु भी इसे चारे के रूप में खाकर अधिक उत्पादन करते है।

इसमें प्रोटीन तथा अमीनो अम्ल पर्याप्त मात्रा में मिल जाते हैं, इसमे कैंसर कारक टाक्सिन नहीं बनते है, जो कि मक्का तथाज्वार में बन जाते है।

राजस्थान में सबसे ज्यादा कौन सा अनाज खाया जाता है?

राजस्थान में गेहूं सबसे अधिक खपत और सबसे अधिक उत्पादित अनाज है।

भारत में सबसे ज्यादा खाया जाने वाला अनाज कौन सा है?

दाल, चावल, और रोटी (गेहूं के आटे की) ये तीन अनाज सबसे ज्यादा खाया जाता है। निसंदेह चावल सबसे अधिक खाया जाता हैं।

राजस्थान का मुख्य भोजन क्या है?

दाल बाटी चूरमा खाए बिना राजस्थान का खाना अधूरा माना जाता है, जो कि यहाँ पर बनाया तथा खाया जाने वाला विशेष व्यंजन है। इसमें दालें, सफेद आटे से बनी बाटी (बॉल के शेप में) और चूरमा बनाने के लिए बाटी बनाकर, सेंक कर देशी घी में डुबो कर उसे खूब कूटा जाता है।

विश्व में सबसे ज्यादा कौन सा अनाज खाया जाता है?

धान एशिया के लोग खाने में मुख्य रूप से चावल का इस्तेमाल करते हैं और अंटार्कटिका को छोड़कर दुनिया के लगभग हर क्षेत्र में धान का उत्पादन होता है। दुनिया की आधी आबादी का पेट चावल भरता है और यह मक्के के बाद यह दुनिया का दूसरा सबसे मुख्य अनाज है।