प्रश्न 253 : प्रतिव्यक्ति आय किसे कहते हैं ? Show Answer: प्रति व्यक्ति आय उस आय को कहा जाता है जब किसी देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद को जब उस देश की उस वर्ष की मध्यावधि तिथि की जनसंख्या से विभाजित किया जाता है। यह हमें उस देश के निवासियों को प्राप्त होने वाली औसत आय की मौद्रिक जानकारी देता है। अर्थात यह बताता है की उस देश में उत्पन्न होने वाली धनराशि को यदि बाँटा जाए तो सबके भाग में कितना पहुँचेगा। प्रति व्यक्ति आय (Per capita income) किसी देश, राज्य, नगर, या अन्य क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की औसत आय होती है। इसका अनुमान उस क्षेत्र में रहने वाले सभी लोगों की आय के जोड़ को क्षेत्र की कुल जनसंख्या से विभाजित कर के लगाया जाता है। प्रति व्यक्ति आय विभिन्न देशों के अलग-अलग जीवन स्तर का एक महत्वपूर्ण सूचकांक होती है। यह मानव विकास सूचकांक में सम्मिलित तीन संख्याओं में से एक है। अनौपचारिक बोलचाल में प्रति व्यक्ति आय को औसत आय (average income) भी कहा जाता है और आमतौर पर अगर एक राष्ट्र की औसत आय किसी दूसरे राष्ट्र से अधिक हो, तो पहला राष्ट्र दूसरे से अधिक समृद्ध और सम्पन्न माना जाता है।[1] कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ वार्षिक रूप से विश्वभर के देशों की प्रति व्यक्ति आय की सूचियाँ बनाती हैं। यह सूचियाँ दो आधारों पर बनाई जाती हैं:[2]
संपत्ति के मापन में प्रति व्यक्ति आय[संपादित करें]प्रति व्यक्ति आय का उपयोग किसी एक देश के लोगों की संपत्ति का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है, किसी अन्य देश की तुलना में। आमतौर पर यह किसी सर्वमान्य अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा जैसे यूरो या डॉलर में मापा जाता है। लेकिन इस मापन प्रणाली में एक खोट भी है। वह यह की यह किसी देश की केवल मौद्रिक संपति को ही उस देश के लोगों में बाँटता है और अन्य आर्थिक गतिविधियों को माप में नहीं लेता। हो सकता है की किसी देश विशेष की प्रति व्यक्ति आय मौद्रिक संदर्भ में तो कम हो लेकिन उस देश में होने वाली आर्थिक गतिविधियों का मौद्रिक मुल्य कहीं अधिक हो। इसलिए इसे किसी देश के विकास का एकमात्र पैमाना माना जा सकता। भाषा की समृद्धि और उसकी अभिव्यक्ति क्षमता के विकास हेतु मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग उपयोगी होता है। भाषा में इनके प्रयोग से सजीवता और प्रवाहमयता आ जाती है, फलस्वरूप पाठक या श्रोता शीघ्र ही प्रभावित हो जाता है। जिस भाषा में इनका जितना अधिक प्रयोग होगा, उसकी अभिव्यक्ति क्षमता उतनी ही प्रभावपूर्ण व रोचक होगी। मुहावरा‘मुहावरा’ शब्द अरबी भाषा का है जिसका अर्थ है ‘अभ्यास होना’ या ‘आदी होना’। इस प्रकार मुहावरा शब्द अपने–आप में स्वयं मुहावरा है, क्योंकि यह अपने सामान्य अर्थ को छोड़कर असामान्य अर्थ प्रकट करता है। वाक्यांश शब्द से स्पष्ट है कि मुहावरा संक्षिप्त होता है, परन्तु अपने इस संक्षिप्त रूप में ही किसी बड़े विचार या भाव को प्रकट करता है। उदाहरणार्थ एक मुहावरा है– ‘काठ का उल्लू’। इसका अर्थ यह नहीं कि लकड़ी का उल्लू बना दिया गया है, अपितु इससे यह अर्थ निकलता है कि जो उल्लू (मूर्ख) काठ का है, वह हमारे किस काम का, उसमें सजीवता तो है ही नहीं। इस प्रकार हम इसका अर्थ लेते हैं– ‘महामूर्ख’ से। हिन्दी के महत्त्वपूर्ण मुहावरे, उनके अर्थ और प्रयोग (अ)1. अंक में समेटना–(गोद में लेना, आलिंगनबद्ध करना) 2. अंकुश लगाना–(पाबन्दी या रोक लगाना) 3. अंग बन जाना–(सदस्य बनना या हो जाना) 4. अंग–अंग ढीला होना–(बहुत थक जाना) 5. अण्डा सेना–(घर में बैठकर अपना समय नष्ट करना) 6. अंगूठा दिखाना–(इनकार करना) 7. अन्धे की लकड़ी–(एक मात्र सहारा) 8. अंन्धे के हाथ बटेर लगना–(अनायास ही मिलना) 9. अन्न–जल उठना–(प्रस्थान करना, एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले 10. अक्ल के अन्धे–(मूर्ख, बुद्धिहीन) 11. अक्ल पर पत्थर पड़ना–(कुछ समझ में न आना) 12. अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना–(मूर्खतापूर्ण कार्य करना) 13. अक्ल का अंधा/अक्ल का दुश्मन होना–(महामूर्ख होना।) 14. अपनी खिचड़ी अलग पकाना–(अलग–थलग रहना, किसी की न 15. अपना उल्लू सीधा करना–(स्वार्थ सिद्ध करना) 16. अपने मुँह मियाँ मिठू बनना–(आत्मप्रशंसा करना) राजू अपने मुँह . 17. अक्ल के घोड़े दौड़ाना–(केवल कल्पनाएँ करते रहना) 18. अँधेरे घर का उजाला–(इकलौता बेटा) 19. अपना सा मुँह लेकर रह जाना–(लज्जित होना) 20. अरण्य रोदन–(व्यर्थ प्रयास) 21. अक्ल चरने जाना–(बुद्धिमत्ता गायब हो जाना) 22. अड़ियल टटू–(जिद्दी) 23. अंगारे उगलना–(क्रोध में लाल–पीला होना) 24. अंगारों पर पैर रखना–(स्वयं को खतरे में डालना) 25. अन्धे के आगे रोना–(व्यर्थ प्रयत्न करना) 26. अंगूर खट्टे होना–(अप्राप्त वस्तु की उपेक्षा करना) 27. अंगूठी का नगीना–(सजीला और सुन्दर) 28. अल्लाह मियाँ की गाय–(सरल प्रकृति वाला) 29. अंतड़ियों में बल पड़ना–(संकट में पड़ना) 30. अन्धा बनाना–(मूर्ख बनाकर धोखा देना) 31. अंग लगाना–(आलिंगन करना) 32. अंगारे बरसना–(कड़ी धूप होना) 33. अक्ल खर्च करना–(समझ को काम में लाना) 34. अड्डे पर चहकना–(अपने घर पर रौब दिखाना) 35. अन्धाधुन्ध लुटाना–(बहुत अपव्यय करना) 36. अपनी खाल में मस्त रहना–(अपनी दशा से सन्तुष्ट रहना) 37. अन्न न लगना–(खाकर–पीकर भी मोटा न होना) 38. अधर में लटकना या झूलना–(दुविधा में पड़ा रह जाना) 39. अठखेलियाँ सूझना–(हँसी दिल्लगी करना) 40. अंग न समाना–(अत्यन्त प्रसन्न होना) 41. अंगूठे पर मारना–(परवाह न करना) 42. अंटी मारना–(कम तौलना) 43. अंग टूटना–(थकावट से शरीर में दर्द होना) 44. अंधेर नगरी–(जहाँ धांधली हो) 45. अंकुश न मानना–(न डरना) 46. अन्न का टन्न करना–(बनी चीज को बिगाड़ देना) 47. अन्न–जल बदा होना–(कहीं का जाना और रहना अनिवार्य हो जाना) 48. अधर काटना–(बेबसी का भाव प्रकट करना) 49. अपनी हाँकना–(आत्म श्लाघा करना) 50. अर्श से फर्श तक–(आकाश से भूमि तक) 51. अलबी–तलबी धरी रह जाना–(निष्प्रभावी होना) 52. अस्ति–नास्ति में पड़ना–(दुविधा में पड़ना) 53. अन्दर होना–(जेल में बन्द होना) 54. अरमान निकालना–(इच्छाएँ पूरी करना)। (आ)55. आग पर तेल छिड़कना–(और भड़काना) 56. आग पर पानी डालना–(झगड़ा मिटाना) 57. आग–पानी या आग और फूस का बैर होना–(स्वाभाविक शत्रुता होना) 58. आँख लगना–(झपकी आना) 59. आँखों से गिरना–(आदर भाव घट जाना) 60. आँखों पर चर्बी चढ़ना–(अहंकार से ध्यान तक न देना) 61. आँखें नीची होना–(लज्जित होना) 62. आँखें मूंदना–(मर जाना) 63. आँखों का पानी ढलना (निर्लज्ज होना) 64. आँख का काँटा–(बुरा होना) 65. आँख में खटकना–(बुरा लगना) 66. आँख का उजाला–(अति प्रिय व्यक्ति) 67. आँख मारना–(इशारा करना) 68. आँखों पर परदा पड़ना–(धोखा होना) 69. आँख बिछाना–(स्वागत, सम्मान करना) 70. आँखों में धूल डालना–(धोखा देना) 71. आँख में घर करना–(हृदय में बसना) 72. आँख लगाना– (बुरी अथवा लालचभरी दृष्टि से देखना) 73. आँखें ठण्डी करना–(प्रिय–वस्तु को देखकर सुख प्राप्त करना) 74. आँखें फाड़कर देखना–(आश्चर्य से देखना) 75. आँखें चार करना–(आमना–सामना करना) 76. आँखें फेरना–(उपेक्षा करना) 77. आँख भरकर देखना–(इच्छा भर देखना) 78. आँख खिल उठना–(प्रसन्न हो जाना) 79. आँख चुराना–(कतराना) 80. आँख का काजल चुराना–(सामने से देखते–देखते माल गायब 81. आँख निकलना–(विस्मय होना) 82. आँख मैली करना–(दिखावे के लिए रोना/बुरी नजर से देखना) 83. आँखों में धूल झोंकना–(धोखा देना) 84. आँखें दिखाना–(डराने–धमकाने के लिए रोष भरी दृष्टि से देखना) 85. आँखें तरेरना–(क्रोध से देखना) 86. आँखों का तारा–(अत्यन्त प्रिय) 87. आटा गीला होना–(कठिनाई में पड़ना) 88. आँचल में बाँधना–(ध्यान में रखना) 89. आकाश में उड़ना–(कल्पना क्षेत्र में घूमना) 90. आकाश–पाताल एक करना–(कठिन परिश्रम करना) 91. आकाश–कुसुम होना–(दुर्लभ होना) 92. आसमान सिर पर उठाना–(उपद्रव मचाना) 93. आगा पीछा करना–(हिचकिचाना) 94. आकाश से बातें करना–(काफी ऊँचा होना) 95. आवाज़ उठाना–(विरोध में कहना) 96. आसमान से तारे तोड़ना–(असम्भव काम करना) 97. आस्तीन का साँप–(विश्वासघाती मित्र) 98. आठ–आठ आँसू रोना–(बहुत पश्चात्ताप करना) 99. आसन डोलना–(विचलित होना) 100. आग–पानी साथ रखना–(असम्भव कार्य करना) 101. आधी जान सूखना–(अत्यन्त भय लगना) 102. आपे से बाहर होना–(क्रोध से अपने वश में न रहना) 103. आग लगाकर तमाशा देखना–(लड़ाई कराकर प्रसन्न होना) 104. आगे का पैर पीछे पड़ना–(विपरीत गति या दशा में पड़ना) 105. आटे दाल की फ़िक्र होना–(जीविका की चिन्ता होना) 106. आधा तीतर आधा बटेर–(बेमेल चीजों का सम्मिश्रण) 107. आग लगने पर कुआँ खोदना–(पहले से कोई उपाय न करना) 108. आव देखा न ताव–(बिना सोचे–विचारे) 109. आँखों में खून उतरना–(अत्यधिक क्रोधित होना) 110. आग बबूला होना–(अत्यधिक क्रोधित होना) 111. आसमान से गिरकर खजूर के पेड़ पर अटकना–(उत्तम स्थान को 112. आप मरे जग प्रलय–(मृत्यु उपरान्त मनुष्य का सब कुछ छूट जाना) 113. आसमान टूटना–(विपत्ति आना) 114. आटे दाल का भाव मालूम होना–(वास्तविकता का पता चलना) 115. आड़े हाथों लेना–(खरी–खोटी सुनाना) (इ)116. इधर–उधर की हाँकना–(अप्रासंगिक बातें करना) 117. इज्जत उतारना–(सम्मान को ठेस पहुँचाना) 118. इतिश्री करना–(कर्त्तव्य पूरा करना/सुखद अन्त होना) 119. इशारों पर नाचना–(गुलाम बनकर रह जाना) 120. इधर की उधर करना–(चुगली करके भड़काना) 121. इन्द्र की परी–(अत्यन्त सुन्दर स्त्री) 122. इन तिलों में तेल नहीं–(किसी भी लाभ की आशा न करना) (ई)123. ईंट से ईंट बजाना–(नष्ट–भ्रष्ट कर देना) 124. ईंट का जवाब पत्थर से देना–(दुष्ट के साथ दुष्टता करना) 125. ईद का चाँद होना–(बहुत दिनों बाद दिखाई देना) 126. ईंट–ईंट बिक जाना–(सर्वस्व नष्ट हो जाना) 127. ईमान देना/बेचना–(झूठ बोलना अथवा अपने धर्म, सिद्धान्त आदि के (उ)128. उँगली उठाना–(इशारा करना, आलोचना करना।) 129. उँगली पर नचाना–(वश में रखना) 130. उड़ती चिड़िया पहचानना–(दूरदर्शी होना) 131. उँगलियों पर गिनने योग्य–(संख्या में न्यूनतम/बहुत थोड़े) 132. उजाला करना–(कुल का नाम रोशन करना) 133. उल्लू बोलना–(उजाड़ होना) 134. उल्टी गंगा बहाना–(नियम के विरुद्ध कार्य करना) 135. उल्टी खोपड़ी होना–(ऐसा व्यक्ति जो उचित ढंग के विपरीत आचरण करता हो) 136. उल्टे छुरे से मूंडना–(किसी को मूर्ख बनाकर उससे धन ऐंठना या अपना काम निकालना) 137. उँगली पकड़ते ही पहुँचा पकड़ना–(अल्प सहारा पाकर सम्पूर्ण की 138. उन्नीस बीस होना–(दो वस्तुओं में थोड़ा बहुत अन्तर होना) 139. उल्टी पट्टी पढ़ाना–(बहकाना) 140. उड़न छू होना–(गायब हो जाना) 141. उबल पड़ना–(एकदम गुस्सा हो जाना) 142. उल्टी माला फेरना–(अहित सोचना) 143. उखाड़ पछाड़ करना–(त्रुटियाँ दिखाकर कटूक्तियाँ करना) 144. उम्र का पैमाना भर जाना–(जीवन का अन्त नज़दीक आना)। 145. उरद के आटे की तरह ऐंठना–(क्रोध करना) 146. ऊँचे नीचे पैर पड़ना–(बुरे काम में फँसना) 147. ऊँट की चोरी झुके–झुके–(किसी निन्दित, किन्तु बड़े कार्य को गुप्त 148. ऊँट का सुई की नोंक से निकलना–(असम्भव होना) 149. ऊधौ का लेना न माधौ का देना–(किसी से किसी प्रकार का सम्बन्ध न (ए)150. एक ही लकड़ी से हाँकना–(अच्छे–बुरे की पहचान न करना) 151. एक ही थैली के चट्टे–बट्टे होना–(सभी का एक जैसा होना) 152. एड़ियाँ घिसना / रगड़ना–(सिफ़ारिश के लिए चक्कर लगाना) 153. एक म्यान में दो तलवारें–(एक वस्तु या पद पर दो शक्तिशाली 154. एक ढेले से दो शिकार–(एक कार्य से दो उद्देश्यों की पूर्ति करना) 155. एक की चार लगाना–(छोटी बातों को बढ़ाकर कहना) 156. एक आँख से देखना–(सबको बराबर समझना) 157. एड़ी–चोटी का पसीना एक करना–(घोर परिश्रम करना) 158. एक–एक नस पहचानना–(सब कुछ समझना) 159. एक घाट पानी पीना–(एकता और सहनशीलता होना) 160. एक पंथ दो काज–(एक कार्य के साथ दूसरा कार्य भी पूरा करना) 161. एक और एक ग्यारह होते हैं–(संघ में बड़ी शक्ति है) 162. ऐसी–तैसी करना–(दुर्दशा करना) 163. ऐबों पर परंदा डालना–(अवगुण छुपाना) (ओ)164. ओखली में सिर देना–(जानबूझकर अपने को जोखिम में डालना) 165. ओस पड़ जाना–(लज्जित होना) 166. ओले पड़ना–(विपत्ति आना) (औ)167. औने–पौने करना–(जो कुछ मिले उसे उसी मूल्य पर बेच देना) 168. औंधे मुँह गिरना–(पराजित होना) 169. औंधी खोपड़ी–(मूर्खता) 170. औकात पहचानना–(यह जानना कि किसमें कितनी सामर्थ्य है) 171. और का और हो जाना–(पहले जैसा ना रहना, बिल्कुल बदल जाना) (क)172. कंधा देना–(अर्थी को कंधे पर उठाकर अन्तिम संस्कार के लिए श्मशान ले जाना) 173. कंचन बरसना–(अधिक आमदनी होना) 174. कच्चा चिट्ठा खोलना–(सब भेद खोल देना) 175. कच्चा खा/चबा जाना–(पूरी तरह नष्ट कर देने की धमकी देना) 176. कब्र में पाँव लटकना–(वृद्ध या जर्जर हो जाना/मरने के करीब होना) 177. कलेजे पर पत्थर रखना–(धैर्य धारण करना) 178. कढ़ी का सा उबाल–(मामूली जोश) 179. कलम का धनी–(अच्छा लेखक) 180. कलेजे का टुकड़ा–(बहुत प्यारा) 181. कलेजा धक से रह जाना–(डर जाना) 182. कलेजे पर साँप लोटना–(ईर्ष्या से कुढ़ना) 183. कलेजा ठण्डा होना–(मन को शान्ति मिलना) 184. कली खिलना–(खुश होना) 185. कलेजा मुँह को आना–(दुःख होना) 186. कंधे से कंधा छिलना–(भारी भीड़ होना) 187. कान में तेल डालना–(चुप्पी साधकर बैठे रहना) 188. किए कराए पर पानी फेरना–(बिगाड़ देना) 189. कान भरना–(चुगली करना) 190. कान का कच्चा–(किसी भी बात पर विश्वास कर लेना) 191. कच्ची गोली खेलना–अनुभवहीन होना। 192. काँटों पर लेटना–(बेचैन होना) 193. काँटा दूर होना–(बाधा दूर होना) 194. कोढ़ में खाज होना–(एक दुःख पर दूसरा दुःख होना) 195. काटने दौड़ना–(चिड़चिड़ाना/क्रोध करना) 196. कान गरम करना–(दण्ड देना) 197. काम तमाम करना–(मार डालना) 198. कीचड़ उछालना–(बदनाम करना) 199. कट जाना–(अलग होना) 200. कदम उखड़ना–(भाग खड़े होना) 201. कान कतरना–(अधिक होशियार हो जाना) 202. काफूर होना–(गायब हो जाना) 203. काजल की कोठरी–(कलंक लगने का स्थान) 204. कूप मण्डूक–(सीमित ज्ञान) 205. किस्मत फूटना–(बुरे दिन आना) 206. कुत्ते की दुम–(वैसे का वैसा) 207. कुएँ में ही भाँग पड़ना–(सभी लोगों की मति भ्रष्ट होना) 208. कौड़ी के मोल–(व्यर्थ होकर रह जाना) 209. कान में डाल देना–(सुना देना या अवगत कराना) 210. काला नाग–(खोटा या घातक व्यक्ति) 211. किरकिरा हो जाना–(विघ्न पड़ना) 212. काया पलट जाना–(और ही रूप हो जाना) 213. कुआँ खोदना–(हानि पहुँचाना) 214. कूच कर जाना–(चले जाना) 215. कौड़ी–कौड़ी पर जान देना–(कंजूस होना) 216. काले कोसों–(बहुत दूर) 217. कुत्ते की मौत मरना–(बुरी मौत मरना) 218. कलम तोड़ देना/कर रख देना–(प्रभावपूर्ण लेखन करना) 219. कसर लगना–(हानि या क्षति होना) 220. कमर कसना–(तैयार होना) 221. कलई खुलना–(भेद खुलना या रहस्य प्रकट होना) 222. कसौटी पर कसना–(परखना) 223. कहते न बनना–(वर्णन न कर पाना) 224. कागजी घोड़े दौड़ाना–(केवल लिखा–पढ़ी करते रहना) 225. कान पर जूं तक न रेंगना–(बिलकुल ध्यान न देना) 226. कागज काले करना–(अनावश्यक लिखना) 227. काठ मार जाना–(स्तब्ध रह जाना) 228. कान काटना–(पराजित करना) 229. कान खड़े होना–(आशंका या खटका होने पर चौकन्ना होना) 230. कान खाना/खा जाना–(ज़्यादा बातें करके कष्ट पहुँचाना) 231. कालिख पोतना–(बदनामी करना) 232. किताब का कीड़ा–(हर समय पढ़ाई में लगा रहने वाला) 233. किराए का टटू होना–(कम मजदूरी वाला अयोग्य व्यक्ति) 234. किला फ़तेह करना–(विजय पाना/विकट या कठिन कार्य पूरा कर डालना) 235. किस्सा खड़ा करना–(कहानी गढ़ना) 236. कील काँटे से लैस–(पूरी तरह तैयार) 237. कुठाराघात करना–(तीव्र या ज़ोरदार प्रहार करना) 238. कूच का डंका बजना–(सेना का युद्ध के लिए निकलना) 239. कोल्हू का बैल होना–(निरन्तर काम में लगे रहना) 240. कौए उड़ाना–(बेकार के काम करना) 241. कंगाली में आटा गीला–(अभाव में भी अभाव) (ख)242. खरी–खोटी सुनाना–(बुरा–भला कहना) 243. ख्याली पुलाव पकाना–(कल्पनाएँ करना) 244. खाक में मिलना–(पूर्णत: नष्ट होना) 245. खाक छानना–(दर–दर भटकना) 246. खालाजी का घर–(जहाँ मनमानी चले) 247. खिचड़ी पकाना–(गुप्त मन्त्रणा करना) 248. खीरा–ककड़ी समझना–(दुर्बल और तुच्छ समझना) 249. खून–पसीना एक करना–(कठिन परिश्रम करना) 250. खेल–खेल में–(आसानी से) 251. खेत रहना–(युद्ध में मारा जाना) 252. खोपड़ी को मान जाना–(बुद्धि का लोहा मानना) 253. खून खौलना–(गुस्सा चढ़ना) 254. खून सवार होना–(किसी को मार डालने के लिए उद्यत होना) 255. खरा खेल फर्रुखाबादी–(निष्कपट व्यवहार) 256. खुले हाथ–(उदारता से) 257. खून खुश्क होना–(भयभीत होना) 258. खाल उधेड़ना–(कड़ा दण्ड देना) 259. खून के चूंट पीना–(बुरी लगने वाली बात को सह लेना) 260. खून पीना–(तंग करना/मार डालना) 261. खून सफेद हो जाना–(दया न रह जाना) 262. खूटे के बल कूदना–(कोई सहारा मिलने पर अकड़ना) (ग)263. गले का हार होना–(अत्यन्त प्रिय होना) 264. गड़े मुर्दे उखाड़ना–(पुरानी बातों पर प्रकाश डालना) 265. गिरगिट की तरह रंग बदलना–(किसी बात पर स्थिर न रहना) 266. गुरु घण्टाल–(बहुत धूर्त) 267. गुस्सा नाक पर रहना–(जल्दी क्रोधित हो जाना) 268. गूलर का फूल–(असम्भव बात/अदृश्य होना) 269. गाँठ बाँधना–(याद रखना) 270. गुदड़ी का लाल–(असुविधाओं में उन्नत होने वाला) 271. गोबर गणेश–(बुद्ध) 272. गाल फुलाना–(रूठना) 273. गँवार की अक्ल गर्दन में–(मूर्ख को दण्ड मिले, तभी होश में आता है।) 274. गीदड़–भभकी–(दिखावटी क्रोध) 275. गागर में सागर भरना–(थोड़े में बहुत कुछ कहना) 276. गाल बजाना–(डींग हाँकना)। 277. गोल कर जाना–(गायब कर देना) 278. गढ़ जीतना–(कठिन कार्य पूरा होना) 279. गुस्सा पी जाना–(क्रोध रोकना) (घ)280. घड़ों पानी पड़ना–(बहुत लज्जित होना) 281. घर फूंक तमाशा देखना–(अपना नुकसान करके आनन्द मनाना) 282. घाट–घाट का पानी पीना–(बहुत अनुभव प्राप्त करना) 283. घाव पर नमक छिड़कना–(दुःखी को और दुःखी करना) 284. घास छीलना–(व्यर्थ समय बिताना) 285. घात लगाना–(ताक में रहना/उचित अवसर की प्रतीक्षा में रहना) 286. घी के दीए जलाना–(खुशियाँ मनाना) 287. घोड़े बेचकर सोना–(निश्चिन्त होकर सोना) 288. घोड़े दौड़ाना–(अत्यधिक कोशिश करना) 289. घी खिचड़ी होना–(खूब मिल–जुल जाना) 290. घर का न घाट का–(कहीं का नहीं) 291. घर में गंगा बहना–(अनायास लाभ प्राप्त होना) 292. घिग्घी बँधना–(डर के कारण बोल न पाना) 293. घोड़े पर चढ़े आना–(उतावली में होना) 294. घट में बसना–(मन में बसना) 295. घर काटे खाना–(मन न लगना/सूनापन अखरना) 296. घाव हरा करना–(भूले दुःख की याद दिलाना) 297. घुटने टेकना–(अपनी हार/असमर्थता स्वीकार करना) 298. घूरे के दिन फ़िरना–(कमज़ोर आदमी के अच्छे दिन आना) 299. चक जमाना–(पूरी तरह से अधिकार या प्रभुत्व स्थापित होना) 300. चंगुल में फँसना–(मीठी–मीठी बातों से वश में करना) 301. चाँदी का जूता मारना–(रिश्वत या घूस देना) 302. चाँद पर थूकना–(भले व्यक्ति पर लांछन लगाना) 303. चित्त पर चढ़ना–(सदा स्मरण रहना) 304. चादर से बाहर पाँव पसारना–(सीमा के बाहर जाना) 305. चुल्लू भर पानी में डूब मरना–(शर्म के मारे मुँह न दिखाना) 306. चूलें ढीली करना–(अधिक परिश्रम के कारण बहुत थकावट होना) 307. चुटिया हाथ में होना–(संचालन–सूत्र हाथ में होना, पूर्णतः नियन्त्रण में होना) 308. चेरी बनाना/बना लेना–(दास या गुलाम बना लेना) 309. चूना लगाना–(धोखा देना) 310. चारपाई से लगना–(बीमारी से उठ न पाना) 311. चण्डाल चौकड़ी–(निकम्मे बदमाश लोग) 312. चाँद खुजलाना–(पिटने की इच्छा होना) 313. चार दिन की चाँदनी–(कम दिनों का सुख) 314. चचा बनाकर छोड़ना–(खूब मरम्मत करना) 315. चल बसना–(मर जाना) 316. चींटी के पर निकलना–(मरने के दिन निकट आना) 317. चोली दामन का साथ–(अत्यन्त निकटता) 318. चैन की बंशी बजाना–(मौज़ करना) 319. चिराग तले अँधेरा–(अपना दोष स्वयं दिखाई नहीं देता) 320. चोर की दाढ़ी में तिनका–(अपराधी सदैव सशंक रहता है) 321. चार चाँद लगना–(शोभा बढ़ जाना) 322. चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना–(आश्चर्य) 323. चूड़ियाँ पहनना–(कायर होना)। (छ)324. छक्के छूटना–(हिम्मत हारना) 325. छप्पर फाड़कर देना–(अनायास ही धन की प्राप्ति) 326. छाती पर मूंग दलना–(निरन्तर दुःख देना) 327. छाती भर आना–(दिल पसीजना) 328. छाँह न छूने देना–(पास तक न आने देना) 329. छठी का दूध याद दिलाना–(संकट में डाल देना) 330. छूमन्तर होना–(गायब हो जाना) 331. छक्के छुड़ाना–(हिम्मत पस्त करना) 332. छक्का –पंजा भूलना–(कुछ भी याद न रहना) 333. छाती ठोंकना–(साहस दिखाना) (ज)334. जान के लाले पड़ना–(जान पर संकट आ जाना) 335. जबान कैंची की तरह चलना–(बढ़–चढ़कर तीखी बातें करना) 336. जबान में लगाम न होना–(बिना सोचे समझे बिना लिहाज के बातें करना) 337. जलती आग में घी डालना–(क्रोध भड़काना) 338. जड़ जमना–(अच्छी तरह प्रतिष्ठित या प्रस्थापित होना) 339. जान में जान आना–(चैन मिलना) 340. जहर का चूँट पीना–(कड़ी और कड़वी बात सुनकर भी चुप रहना) 341. जिगरी दोस्त–(घनिष्ठ मित्र) 342. ज़िन्दगी के दिन पूरे करना–(कठिनाई में समय बिताना)। 343. जीती मक्खी निगलना–(जान बूझकर अन्याय सहना) 344. जी चुराना–(किसी काम या परिश्रम से बचने की चेष्टा करना) 345. ज़मीन पर पैर न रखना–(अकड़कर चलना) 346. जोड़–तोड़ करना–(उपाय करना) 347. जली–कटी सुनाना–(बुरा–भला कहना) 348. जूतियाँ चाटना–(चापलूसी करना)। 349. जान हथेली पर रखना–(प्राणों की परवाह न करना) 350. जितने मुँह उतनी बातें–(एक ही विषय पर अनेक मत होना) 351. जी खट्टा होना–(विरत होना) 352. जामे से बाहर होना–(अति क्रोधित होना) 353. ज़हर की पुड़िया–(मुसीबत की जड़) 354. जोंक होकर लिपटना–(बुरी तरह पीछे पड़ना) 355. जी भर आना–(दुःखी होना) 356. जहर उगलना–(कड़वी बातें करना) 357. झण्डा गड़ना–(अधिकार जमाना) 358. झकझोर देना–(हिला देना/पूर्णत: त्रस्त कर देना) 359. झाँव–झाँव होना–(जोरों से कहा–सुनी होना) 360. झाडू फिरना/फिर जाना–(नष्ट करना) 361. झुरमुट मारना–(बहुत से लोगों का घेरा बनाकर खड़े होना) 362. झूमने लगना–(आनन्द–विभोर हो जाना) (ट)363. टिप्पस लगाना–(सिफारिश करवाना) 364. टूट पड़ना–(आक्रमण करना) 365. टेढ़ी खीर–(कठिन काम या बात) 366. टका–सा जवाब देना–(साफ़ इनकार कर देना) 367. टाट उलटना–(दिवाला निकलना) 368. टोपी उछालना–(बेइज्जती करना) 369. टाँग अड़ाना–(व्यवधान डालना) 370. टाँय–टाँय फिस होना–(काम बिगड़ जाना) 371. ठण्डे कलेजे से–(शान्त होकर/शान्त भाव से) 372. दूंठ होना–(निष्प्राण होना). 373. ठन–ठन गोपाल–(पैसा पास न होना) 374. ठौर–ठिकाने लगना–(आश्रय मिलना) 375. ठीकरा फोड़ना–(दोष लगाना) (ड)376. डंक मारना–(घोर कष्ट देना) 377. डंड पेलना–(निश्चिन्ततापूर्वक जीवनयापन करना) 378. डाली देना–(अधिकारियों को प्रसन्न रखने के लिए कुछ भेंट देना) 379. डींग मारना–(अनावश्यक बातें कहना) 380. डूबना–उतराना–(संशय में रहना) 381. डंका बजना–(ख्याति होना) 382. डेढ़ चावल की खिचड़ी पकाना–(बहुमत से अलग रहना) 383. डाढ़ी पेट में होना–(छोटी उम्र में ही बहुत ज्ञान होना) 384. डेढ़ बीता कलेजा करना–(अत्यधिक साहस दिखाना) 385. ढंग पर चढ़ना–(प्रभाव या वश में करना) 386. ढोंग रचना–(किसी को मूर्ख बनाने के लिए पाखण्ड करना)। 387. ढिंढोरा पीटना–(प्रचार करना) 388. ढाई दिन की बादशाहत–(थोड़े समय के लिए पूर्ण अधिकार (त)389. तंग आ जाना–(परेशान हो जाना) 390. तकदीर का खेल–(भाग्य में लिखी हई बात) 391. तबलची होना–(सहायक के रूप में होना) 392. ताक पर रखना–(व्यर्थ समझकर दूर हटाना) 393. तीसमार खाँ बनना–(अपने को शूरवीर समझ बैठना) 394. तिल का ताड़ बनाना–(किसी बात को बढ़ा–चढ़ाकर कहना) 395. तार–तार होना–(पूरी तरह फट जाना) 396. तेली का बैल–(हर समय काम में लगे रहना) 397. तुर्की–ब–तुर्की बोलना–(जैसे को तैसा) 398. तीन–तेरह करना–(पृथक्ता की बात करना) 399. तीन–पाँच करना–(टाल–मटोल करना) 400. तालू से जीभ न लगना–(बोलते रहना) 401. तूती बोलना–(रौब जमाना) 402. तेल की कचौड़ियों पर गवाही देना–(सस्ते में काम करना) 403. तालू में दाँत जमना–(विपत्ति या बुरा समय आना) 404. तेवर चढ़ना–(गुस्सा होना) 405. तारे गिनना–(रात को नींद न आना) 406. तलवे चाटना–(खुशामद करना) (थ)407. थाली का बैंगन–(ढुलमुल विचारों वाला/सिद्धान्तहीन व्यक्ति) 408. थुड़ी–थुड़ी होना–(बदनामी होना) 409. थैली का मुँह खोलना–(खुले दिल से व्यय करना) 410. थूककर चाटना–(कही हुई बात से मुकर जाना)। 411. थाह लेना–(किसी गुप्त बात का भेद जानना) (द)412. दंग रह जाना–(अत्यधिक चकित रह जाना) 413. दाँतों तले उँगली दबाना–(आश्चर्यचकित होना) 414. दाल में काला होना–(संदेह होना) 415. दुम दबाकर भागना/भाग जाना/भाग खड़े होना–(चुपचाप भाग 416. दूध का दूध और पानी का पानी–(पूर्ण न्याय करना) 417. दो नावों पर सवार होना–(दुविधापूर्ण स्थिति में होना या खतरे में 418. द्वार झाँकना–(दान, भिक्षा आदि के लिए किसी के दरवाजे पर जाना) 419. दिन–रात एक करना–(प्रयास करते रहना) 420. दिमाग दिखाना–(अहम् भाव प्रदर्शित करना) 421. दिन दूनी रात चौगुनी होना–(बहुत शीघ्र उन्नति करना) 422. दूध का धुला होना–(बहुत पवित्र होना) 423. दाँत काटी रोटी–(घनिष्ठ मित्रता) 424. दाना पानी उठना–(जगह छोड़ना) 425. दिल का गुबार निकालना–(मन की बात कह देना) 426. दिन पहाड़ होना–(कार्य के अभाव में समय गुजारना) 427. दाहिना हाथ–(बहुत बड़ा सहायक होना) 428. दमड़ी के तीन होना–(सस्ते होना) 429. दिन में तारे दिखाई देना–(बुद्धि चकराने लगना) 430. दम भरना–(भरोसा करना) 431. दिमाग आसमान पर चढ़ना–(बहुत घमण्ड होना) 432. दर–दर की ठोकरें खाना–(बहुत कष्ट उठाना) 433. दाँत खट्टे करना–(पराजित करना) 434. दिल भर आना–(शोकाकुल होना या भावुक होना) 435. दाँत पीसकर रह जाना–(क्रोध रोक लेना) 436. दिनों का फेर होना–(भाग्य का चक्कर) 437. दिल में फफोले पड़ना–(अत्यन्त कष्ट होना) 438. दाल जूतियों में बँटना–(अनबन होना) 439. देवता कूच कर जाना–(घबरा जाना) 440. दो दिन का मेहमान –(जल्दी मरने वाला) 441. दमड़ी के लिए चमड़ी उधेड़ना–(छोटी–सी बात के लिए अधिक माँग 442. दुम दबाकर भागना–(डरकर कुत्ते की भाँति भागना) 443. दूध के दाँत न टूटना–(ज्ञान व अनुभव न होना) (ध)444. धोती ढीली होना–(घबरा जाना) 445. धौंस जमाना–(रौब दिखाना/आतंक जमाना) 446. ध्यान टूटना–(एकाग्रता भंग होना) 447. ध्यान रखना–(देखभाल करना/सावधान रहना) 448. धज्जियाँ उड़ाना–(दुर्गति) 449. धूप में बाल सफ़ेद होना–(अनुभवहीन होना) (न)450. नंगा कर देना–(वास्तविकता प्रकट करना/असलियत खोलना) 451. नंगे हाथ–(खाली हाथ) 452. नमक–मिर्च लगाना–(बढ़ा–चढ़ाकर कहना) 453. नुक्ता–चीनी करना–(छिद्रान्वेषण करना) 454. निन्यानवे के फेर में पड़ना–(धन संग्रह की चिन्ता में पड़ना) 455. नौ दो ग्यारह होना–(भाग जाना) 456. नाच नचाना–(मनचाही करना) 457. नाक भौं चढ़ाना–(असन्तोष प्रकट करना) 458. नीला–पीला होना–(गुस्सा होना) 459. नाको–चने चबाना–(बहुत तंग होना) 460. नीचा दिखाना–(अपमानित करना) 461. नाक में नकेल डालना–(वश में करना) 462. नमक अदा करना–(उपकारों का बदला चुकाना) 463. नाक कटना–(इज्जत चली जाना) 464. नाक रगड़ना–(बहुत विनती करना) 465. नकेल हाथ में होना–(वश में होना) 466. नहले पर दहला मारना–(करारा जवाब देना) 467. नानी याद आना–(मुसीबत का एहसास होना) 468. नाक का बाल होना–(अत्यन्त प्रिय होना) 469. नस–नस पहचानना–(किसी के अवांछित व्यवहार को विस्तार से जानना) 470. नाव में धूल उड़ाना–(व्यर्थ बदनाम करना) (प)471. पत्थर की लकीर होना–(स्थिर होना या दृढ़ विश्वास होना) 472. पहाड़ टूट पड़ना–(मुसीबत आना) 473. पाँचों उँगली घी में होना–(पूर्ण लाभ में होना) 474. पानी उतर जाना–(लज्जित हो जाना) 475. पेट में दाढ़ी होना–(चालाक होना) 476. पेट का पानी न पचना–(अत्यन्त अधीर होना) 477. पीठ में छुरा भोंकना–(विश्वासघात करना) 478. पैरों पर खड़ा होना–(स्वावलम्बी होना) 479. पानी–पानी होना–(शर्मसार होना) 480. पगड़ी रखना–(इज़्ज़त रखना) 481. पेट में चूहे दौड़ना–(भूख लगना) 482. पाँव उखड़ जाना–(पराजित होकर भाग जाना) 483. पत्थर पर दूब जमना–(अप्रत्याशित घटित होना) 484. पापड़ बेलना–(विषम परिस्थितियों से गुज़रना) 485. पेट का हल्का–(बात को अपने तक छिपा न सकने वाला) 486. पटरी बैठना–(अच्छे सम्बन्ध होना) 487. पीठ पर हाथ रखना–(पक्ष मज़बूत बनाना) 488. पाँव तले जमीन खिसकना–(घबरा जाना) 489. पाँव फूंक–फूंक कर रखना–(सतर्कता से कार्य करना) 490. पीठ दिखाना–(पराजय स्वीकार करना) 491. पानी में आग लगाना–(असम्भव कार्य करना) 492. पंख न मारना–(पहुँच न होना) (फ)493. फ़रिश्ता निकलना–(बहुत भला और परोपकारी सिद्ध होना) 494. फिकरा कसना–(व्यंग्य करना) 495. फीका लगना–(घटकर या हल्का प्रतीत होना) 496. फूटी आँखों न भाना–(बिल्कुल अच्छा न लगना) 497. फूला न समाना–(बहुत प्रसन्न होना) 498. फूल सूंघकर रह जाना–(अत्यन्त थोड़ा भोजन करना) 499. फूंक–फूंक कर कदम रखना–(अत्यन्त सतर्कता के साथ काम करना) 500. फूलकर कुप्पा होना–(बहुत प्रसन्न होना) 501. फावड़ा चलाना–(मेहनत करना) 502. फूंक मारना–(किसी को चुपचाप बहकाना) 503. फट पड़ना–(एकदम गुस्से में हो जाना) 504. बंटाधार होना–(चौपट या नष्ट होना) 505. बहती गंगा में हाथ धोना–(बिना प्रयास ही यश पाना) 506. बाग–बाग होना–(अति प्रसन्न होना) 507. बीड़ा उठाना–(दृढ़ संकल्प करना) 508. बेपर की उड़ाना–(अफवाहें फैलाना/निराधार बातें चारों ओर 509. बट्टा लगाना–(दोष या कलंक लगना) 510. बाल–बाल बचना–(बिल्कुल बच जाना) 511. बाल बाँका न होना–(कुछ भी हानि या कष्ट न होना) 512. बालू में से तेल निकालना–(असम्भव को सम्भव कर देना) 513. बाँछे खिलना–(अत्यन्त प्रसन्न होना) 514. बखिया उधेड़ना–(भेद खोलना) 515. बच्चों का खेल–(सरल काम) 516. बाएँ हाथ का खेल–(अति सरल काम) 517. बात का धनी होना–(वचन का पक्का होना) 518. बेसिर पैर की बात करना–(व्यर्थ की बातें करना) 519. बछिया का ताऊ–(मूर्ख) 520. बड़े घर की हवा खाना–(जेल जाना) 521. बेदी का लोटा–(ढुलमुल) 522. बल्लियाँ उछलना–(बहुत खुश होना) 523. बावन तोले पाव रत्ती–(बिल्कुल ठीक हिसाब) 524. बाज़ार गर्म होना–(काम–धंधा तेज़ होना) 525. बात ही बात में–(तुरन्त) 526. बरस पड़ना–(अति क्रुद्ध होकर डाँटना) 527. बात न पूछना–(आदर न करना) 528. बिल्ली के गले में घण्टी बाँधना–(स्वयं को संकट में डालना) (भ)529. भण्डा फोड़ना–(रहस्य खोलना/भेद प्रकट करना) 530. भविष्य पर आँख होना–(आगे का जीवन सुधारने के लिए प्रयत्नशील रहना) 531. भिरड़ के छत्ते में हाथ डालना–(जान–बूझकर बड़ा संकट अपने पीछे 532. भीगी बिल्ली बनना–(डर जाना) 533. भूमिका निभाना–(निष्ठापूर्वक अपने काम का निर्वाह करना) 534. भेड़ियां धसान–(अंधानुकरण) 535. भाड़े का टटू–(पैसे लेकर ही काम करने वाला) 536. भाड़ झोंकना–(समय व्यर्थ खोना) 537. भैंस के आगे बीन बजाना–(बेसमझ आदमी को उपदेश) 538. भागीरथ प्रयत्न करना–(कठोर परिश्रम) (म)539. मुख से फूल झड़ना–(मधुर वचन बोलना) 540. मन के लड्डू खाना–(व्यर्थ की आशा पर प्रसन्न होना) 541. मन ही मन में रह जाना–(इच्छाएँ पूरी न होना) 542. माथे पर शिकन आना–(मुखाकृति से अप्रसन्नता/रोष आदि प्रकट 543. मीठी छुरी चलाना–(प्यार से मारना/विश्वासघात करना) 544. मुँह पर नाक न होना–(कुछ भी लज्जा या शर्म न होना)। 545. मुट्ठी गरम करना–(रिश्वत देना) 546. मन मैला करना–(खिन्न होना) 547. मुट्ठी में करना–(वश में करना) 548. मुँह की खाना–(हार जाना/अपमानित होना) 549. मीन मेख निकालना–(त्रुटि निकालना) 550. मुँह में पानी आना–(लालच भरी दृष्टि से देखना/खाने हेतु लालच) 551. मंच पर आना–(सामना) 552. मिट्टी का माधो–(मूर्ख) 553. मक्खी नाक पर न बैठने देना–(इज़्ज़त खराब न होने देना) 554. मोहर लगा देना–(पुष्टि करना) 555. मीठी छुरी चलाना–(विश्वासघात करना) 556. मुँह बनाना–(खीझ प्रकट करना) 557. मुँह काला करना–(कलंकित करना) 558. मैदान मारना–(विजय प्राप्त करना) 559. मुहर्रमी सूरत–(शोक मनाने वाला चेहरा) 560. मक्खी मारना–(बेकार बैठे रहना) 561. माथे पर शिकन न आना–(कष्ट में थोड़ा भी विचलित न होना) 562. म्याऊँ का ठौर पकड़ना–(खतरे में पड़ना) 563. मुँह पकड़ना–(बोलने न देना) 564. मुँह धो रखना–(आशा रखना) (य)565. यम की यातना–(असह्य कष्ट) 566. यमराज का द्वार देख आना–(मरकर जीवित हो जाना) 567. युग बोलना–(बहुत समय बाद होना) 568. युधिष्ठिर होना–(अत्यन्त सत्य–प्रिय होना) 569. रफूचक्कर होना–(भाग जाना) 570. रँगा सियार–(धोखेबाज़ होना) 571. राई का पहाड़ बनाना–(बढ़ा–चढ़ाकर कहना) 572. रातों की नींद हराम होना–(चिन्ता, भय, दु:ख, आदि के कारण रातभर नींद न आना) 573. रीढ़ टूटना–(आधारहीन रहना) 574. रंग बदलना–(बदलाव होना) 575. रोंगटे खड़ा होना–(भय से रोमांचित हो जाना) 576. रास्ते पर लाना–(सुधार करना) 578. रंग में भंग होना–(आनन्द में विघ्न आना) 579. रास्ता नापना–(चले जाना) 580. रंग लाना–(हालात पैदा करना) (ल)581. लंगोटी बिकवाना–(दरिद्र कर देना) 582. लकीर का फकीर होना–(रूढ़िवादी होना)। 583. लेने के देने पड़ना–(लाभ के बदले हानि) 584. लासा लगाना–(किसी को. फँसाने की युक्ति करना) 585. लोहे के चने चबाना–(कठिनाइयों का सामना करना) 586. लौ लगाना–(प्रेम में मग्न हो जाना/आसक्त हो जाना) 587. ललाट में लिखा होना–(भाग्य में लिखा होना) 588. लंगोटिया यार–(बचपन का मित्र) 589. लम्बी तानकर सोना–(निष्क्रिय होकर बैठना) 590. लाल–पीला होना–(गुस्से में होना) 591. लंगोटी में फाग खेलना–(दरिद्रता में आनन्द लूटना) 592. लल्लो–चप्पो करना–(चिकनी–चुपड़ी बातें करना) 593. लहू के आँसू पीना–(दुःख सह लेना) 594. लुटिया डुबोना–(कार्य खराब कर देना) 595. वकालत करना–(पक्ष का समर्थन करना) 596. वक्त की आवाज़–(समय की पुकार) 597. वारी जाऊँ–(न्योछावर हो जाना) 598. विधि बैठना–(युक्ति सफल होना/संगति बैठना) 599. विष उगलना–(क्रोधित होकर बोलना) 600. विष की गाँठ–(उपद्रवी) 601. विष घोलना–(गड़बड़ पैदा करना) (श्र), (श)602. श्रीगणेश करना–(कार्य आरम्भ करना) 603. शहद लगाकर चाटना–(किसी व्यर्थ की वस्तु को सँभालकर रखना) 604. शैतान के कान कतरना/काटना–(बहुत चालाक होना) 605. शान में बट्टा लगाना–(शान घटना) 606. शेर की सवारी करना–(खतरनाक कार्य करना) 607. शिकंजा कसना–(नियन्त्रण और कठोर करना) 608. शेर और बकरी का एक घाट पर पानी पीना–(ऐसी स्थिति होना जिसमें दुर्बल को सबल का कुछ भी भय न हो) (स)609. सफ़ेद झूठ–(सर्वथा असत्य) 610. साँप को दूध पिलाना–(शत्रु पर दया करना) 611. साँप सूंघना–(निष्क्रिय या बेदम हो जाना) 612. सिर आँखों पर–(विनम्रता तथा सम्मानपूर्वक ग्रहण करना) 613. सिर ऊँचा करना–(सम्मान बढ़ाना) 614. सोने की चिड़िया–(बहुत कीमती वस्तु) 615. सिर उठाना–(विरोध करना) 616. सिर पर भूत सवार होना–(धुन लग जाना) 617. सिर मुंडाते ओले पड़ना–(काम शुरू होते ही बाधा आना) 618. सिर पर हाथ होना–(सहारा होना) 619. सिर झुकाना–(पराजय स्वीकार करना) 620. सिर खपाना–(व्यर्थ ही सोचना) 621. सिर पर कफ़न बाँधना–(बलिदान देने के लिए तैयार होना) 622. सिर गंजा करना–(बुरी तरह पीटना) 623. सिर पर पाँव रखकर भागना–(तुरन्त भाग जाना) 624. साँप छछूदर की गति होना–(असमंजस की दशा होना) 625. समझ पर पत्थर पड़ना–(विवेक खो देना) 626. साँच को आँच नहीं–(सच बोलने वाले को किसी का भय नहीं)। 627. सूरज को दीपक दिखाना–(किसी व्यक्ति की तुच्छ प्रशंसा करना) 628. संसार से उठना–(मर जाना) 629. सब्जबाग दिखाना–(लालच देकर बहकाना) 630. सिट्टी–पिट्टी गुम होना–(होश उड़ जाना) 631. सिक्का जमाना–(प्रभाव स्थापित करना) 632. सेमल का फूल होना–(अल्पकालीन प्रदर्शन) 633. सूखते धान पर पानी पड़ना–(दशा सुधरना) 634. सुई की नोंक के बराबर–(ज़रा–सा) 635. हवाई किले बनाना—(कोरी कल्पना करना) 636. हाथ खाली होना–(पैसा न होना) 637. हथियार डालना–(संघर्ष बन्द कर देना) 638. हक्का–बक्का रह जाना—(अचम्भे में पड़ जाना) 639. हाथ खींचना–(सहायता बन्द कर देना) 640. हाथ का मैल–(तुच्छ और त्याज्य वस्तु) 641. हाथ को हाथ न सूझना–(घना अँधेरा होना) 642. हाथ–पैर मारना–(कोशिश करना) 643. हाथ डालना–(शुरू करना) 644. हाथ साफ़ करना–(बेइमानी से लेना या चोरी करना) 645. हाथों हाथ रखना–(देखभाल के साथ रखना) 646. हाथ धो बैठना–(किसी व्यक्ति या वस्तु को खो देना) 647. हाथों के तोते उड़ जाना–(होश हवास खो जाना)। 648. हाथ पीले कर देना—(लड़की की शादी कर देना) 649. हाथ–पाँव फूल जाना—(डर से घबरा जाना) 650. हाथ मलना या हाथ मलते रह जाना–(पश्चात्ताप करना) 651. हाथ पर हाथ धरे रहना–(बेकाम रहना) 652. हाथी के पैर में सबका पैर–(बड़ी चीज के साथ छोटी का साहचर्य) 653. हाल पतला होना–(दयनीय दशा होना) मुहावरा मध्यान्तर प्रश्नावली1. मुहावरा है 2. ‘मुहावरा’ शब्द है 3. मुहावरे का प्रयोग वाक्य में किया जाता है 4. मुहावरे का अक्षय कोष है 5. ‘आधा तीतर आधा बटेर मुहावरे’ का अर्थ है। 6. ‘कलेजे पर पत्थर रखना’ का अर्थ है 7. ‘गुदड़ी का लाल’ मुहावरे का अर्थ है 8. ‘तीन तेरह करना’ मुहावरे का अर्थ है 9. ‘बाग–बाग होना’ मुहावरे का अर्थ है। 10. राई का पहाड़ बनाना कहावतें‘कहावतें’ हिन्दी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ होता है, ‘कही हुई बातें।’ यदि हम इसके अर्थ पर विचार करते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक कही हुई बात कहावत नहीं होती, बल्कि जिस कहावत में जीवन के अनुभव का सार–संक्षेपण चमत्कृत ढंग से किया जाए, उसे कहावत के अन्तर्गत माना जाता है। उदाहरणार्थ रवीश ने कहा, “मैं अकेला ही कुआँ खोद लूँगा।” इस पर सभी ने रवीश की हँसी उड़ाते हुए कहा, व्यर्थ की बातें करते हो, “अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता”। यहाँ कहावत का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है “एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता।” कहावत को सूक्ति, सुभाषित और लोकोक्ति भी कहते हैं। इनमें से कहावत शब्द ही उपयुक्त है, क्योंकि सूक्ति या सुभाषित का अर्थ है–सुन्दर उक्ति या बात। लोकोक्ति शब्द इसलिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि लोकोक्ति का अर्थ– लोक(जनसाधारण) की उक्ति होता है। मुहावरा और कहावत में अन्तरमुहावरा कहावत मुहावरा एक वाक्यांश होता है।कहावत एक वाक्य होता है।मुहावरे का स्वतन्त्र रूप में प्रयोग होता है।कहावत का स्वतन्त्र रूप में प्रयोग नहीं होता।मुहावरे में उद्देश्य, विधेय का बन्धन नहीं होता लेकिन अर्थ की स्पष्टता के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।कहावत में उद्देश्य और विधेय का पूर्ण विधान होता है इसलिए अर्थ स्वतः स्पष्ट हो जाता है।मुहावरे किसी बात को कहने का विचार अथवा अनुभव का मूल है।कहावत उस कथन में व्यक्त किए गए तरीका अथवा पद्धति है।मुहावरा में काल, वचन तथा पुरुष के प्रकार का परिवर्तन नहीं होता।कहावत में उसके रूप में किसी अनुरूप परिवर्तन हो जाता है।मुहावरा का प्रयोग लाक्षणिक अर्थ अथवा अप्रस्तुत व्यंजना के लिए होता है।कहावतं का प्रयोग प्रायः अन्योक्ति व्यक्त करने के लिए होता है।हिन्दी की कुछ प्रचलित कहावतें, उनके अर्थ और प्रयोग (अ)1. अंधों में काना राजा–मूल् के मध्य कुछ चतुर। 2. अंधेर नगरी चौपट राजा–अन्याय का बोलबाला। 3. अंधा बाँटे रेवड़ी फिर–फिर अपनों को दे–स्वार्थी व्यक्ति पक्षपात करता है। 4, अंधी पीसे कुत्ता खाय–जब कार्य कोई करे उसका फायदा दूसरा व्यक्ति 5. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता–अकेला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर 6. अपनी–अपनी ढपली, अपना–अपना राग–मनमानी। 7. अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत–अवसर निकल 8. अपनी करनी पार उतरनी–अपने किए का फल भोगना। 9. अधजल गगरी छलकत जाए–कम ज्ञान, धन, सम्मान वाले व्यक्ति 10. अक्ल बड़ी या भैंस–शारीरिक बल से बौद्धिक बल अधिक अच्छा 11. अन्त भला तो सब भला–परिणाम अच्छा हो जाए तो सब कुछ अच्छा 12. अंधे की लकड़ी–बेसहारे का सहारा। 13. अटकेगा सो भटकेगा–दुविधा या सोच विचार में पड़ोगे तो काम नहीं होगा। 14. अपना हाथ जगन्नाथ–स्वयं का काम स्वयं करना अच्छा होता है। 15. अपनी पगड़ी अपने हाथ–अपने सम्मान को बनाए रखना अपने ही 16. अपना रख पराया चख–निजी वस्तु की रक्षा एवं अन्य वस्तु का उपभोग। 17. अच्छी मति जो चाहो बूढ़े पूछन जाओ–बड़े बूढ़ों की सलाह से कार्य सिद्ध हो सकते हैं। 18. अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी–दोनों साथियों में एक से अवगुण। 19. अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है–कटु वचन सत्य होने पर भी बुरा लगता है। 20. अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता–अपनी चीज को कोई बुरा नहीं बताता। 21. अपनी चिलम भरने को मेरा झोंपड़ा जलाते हो–अपने अल्प लाभ के लिए दूसरे की भारी हानि करते हो। 22. अभी दिल्ली दूर है–अभी कसर है। 23. अब की अब के साथ, जब की जब के साथ–सदा वर्तमान की ही चिन्ता करनी चाहिए। 24. अस्सी की आमद नब्बे खर्च–आय से अधिक खर्च। 25. अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना–पूर्ण स्वतन्त्र होना। 26. अपने झोपड़े की खैर मनाओ–अपनी कुशल देखो। 27. अपनी टांग उघारिये आपहि मरिए लाज–अपने घर की बात दूसरों से कहने पर बदनामी होती है। 28. अटका बनिया देय उधार–स्वार्थी और मज़बूर व्यक्ति अनचाहा कार्य भी करता है। 29. अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है–अपने घर में, क्षेत्र में सभी जोर बताते हैं। 30. अपना सोना खोटा तो परखैया का क्या दोष–हममें ही कमजोरी हो तो 31. अढाई दिन की बादशाहत–थोड़े दिन की शान–शौकत। (आ)32. आँख का अंधा नाम नयनसुख–नाम के विपरीत गुण। 33. आँख के अंधे गाँठ के पूरे–मूर्ख किन्तु धनी। 34. आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास–जब कोई व्यक्ति किसी अच्छे कार्य के लिए जाता है, किन्तु बुरे कामों में फँस जाता है; तब यह कहावत कही जाती है। 35. आगे नाथ न पीछे पगहा–बिल्कुल स्वतन्त्र। 36. आटे के साथ घुन भी पिस जाता है–अपराधी की संगति से निरपराध भी दण्ड का भागी बनता है। 37. आधी छोड़ सारी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै—अधिक लोभ करने से हानि ही होती है। 38. आगे जाए घुटने टूटे, पीछे देखे आँखें फूटे–जिधर जाएँ उधर ही मुसीबत। 39. आई मौज़ फ़कीर की दिया झोपड़ा फूंक–मौजी और विरक्त आदमी। 40. आप न जावै सासुरे औरों को सिख देत–कोई कार्य स्वयं तो न करे पर दूसरों को सीख दे। 41. आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर–सबको मरना है। 42. आदमी पानी का बुलबुला है–मनुष्य जीवन नाशवान है। 43. आम के आम गुठलियों के दाम–दुहरा फायदा। 44. आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या काम–अपने मतलब की बात 45. आदमी की दवा आदमी है–मनुष्य ही मनुष्य की सहायता कर सकता है। 46. आ पड़ोसन लड़ें–बिना बात झगड़ा करना। 47. आसमान पर थूका मुँह पर आता है–बड़े लोगों की निन्दा करने से अपनी ही बदनामी होती है। 48. आठ कनौजिये नौ चूल्हे–अलगाव की स्थिति। 49. आई तो रोज़ी नहीं तो रोज़ा–कमाया तो खाया नहीं तो भूखे। 50. आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ–आजीवन किसी चीज़ से पिण्ड न छूटना। 51. इतना खाएँ जितना पचे–सीमा के अन्दर कार्य करना चाहिए। 52. इस हाथ दे उस हाथ ले–कर्म का फल शीघ्र मिलता है। 53. इसके पेट में दाढ़ी है–उम्र कम बुद्धि अधिक। 54. इधर न उधर, यह बला किधर–अचानक विपत्ति आ जाना। 55. इमली के पात पर दण्ड पेलना–सीमित साधनों से बड़ा कार्य करने का 56. इन तिलों में तेल नहीं किसी भी लाभ की सम्भावना न होना। 57. इधर कुआँ उधर खाई–हर तरफ़ मुसीबत। (ई)58. ईंट की देवी माँगे का प्रसाद–जैसा व्यक्ति वैसी आवभगत। 59. ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया–संसार में कहीं दुःख है कहीं (उ)60. उसी की जूती उसी का सिर–जिसकी करनी उसी को फल मिलता है। 61. उगले तो अंधा, खाए तो कोढ़ी–दुविधा में पड़ना। 62. उल्टे बाँस बरेली को विपरीत कार्य करना। (ऊ)63. ऊँट किस करवट बैठता है–न जाने भविष्य में क्या होगा। 64. ऊधौ का लेन न माधौ का देन––किसी से कोई वास्ता न रखना। (ए)65. एक अनार सौ बीमार–एक ही वस्तु के अनेक आकांक्षी। 66. एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा–दोहरा कटुत्व। 67. एक सड़ी मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है–अच्छे समाज को एक बुरा व्यक्ति कलंकित कर देता है। 68. एक हाथ से ताली नहीं बजती–झगड़े में दोनों पक्षों की गलती होती है, 69. एक पन्थ दो काज/एक ढेले से दो शिकार–एक उपाय से दो कार्यों का होना। 70. एक आँख से रोवे, एक आँख से हँसे–दिखावटी रोना। 71. एक टकसाल के ढले हैं–सब एक जैसे हैं। 72. एक मुँह दो बात–अपनी बात से पलट जाना। 73. एक और एक ग्यारह होते हैं—एकता में बल है। 74. ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय–बूढ़ा और बेकार आदमी दूसरे पर बोझ हो जाता है। (ओ)75. ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना–जब कार्य करना ही है तो आने वाली कठिनाइयों से नहीं डरना चाहिए। 76. ओछे की प्रीति बालू की भीति–दुष्ट व्यक्तियों की मित्रता क्षणिक होती है कृष्ण के आड़े वक्त में सोनू ने उसकी मदद नहीं की, बल्कि उसे हानि पहुँचाने का प्रयास किया। जबकि दोनों में मित्रता थी। सच है ओछे की प्रीति बालू की भीति। 77. ओस चाटे प्यास नहीं बुझती–बहुत कम वस्तु से आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती। (क)78. कबीरदास की उल्टी बानी, बरसे कम्बल भीगे पानी–उल्टी बात कहना। 79. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा–इधर–उधर की सामग्री एकत्र करके कोई रचना करना। 80. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली–अत्यधिक अन्तर। 81. काठ की हाण्डी बार–बार नहीं चढ़ती–अन्याय बार–बार नहीं चलता। 82. कर सेवा खा मेवा–अच्छे कार्य का फल अच्छा मिलता है। 83. कभी घना–घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वह भी मना–जो मिले 84. कब्र में पाँव लटकाए बैठा है–मरने वाला है। 85. कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता–ऊपरी वेशभूषा से किसी के अवगुण 86. कोयला होय न उजला सौ मन साबुन धोय–दुष्ट व्यक्ति की प्रकृति 87. कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी चलता जाता है–महान् व्यक्ति छोटी–सी नुक्ता–चीनी पर ध्यान नहीं देता है। 88. काम का ना काज का दुश्मन अनाज का–निकम्मा व्यक्ति। 89. कोठी वाला रोवे छप्पर वाला सोवै–अधिक धन चिन्ता का कारण 90. कहे खेत की, सुने खलिहान की–कहा कुछ गया और समझा कुछ गया। 91. काम को काम सिखाता है–काम करते–करते आदमी होशियार हो जाता है। 92. कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता–हठी पुरुष समझाने से दूसरों का कहना नहीं मानता। 93. कोऊ नृप होय हमें का हानी—किसी के पद, धन या अधिकार मिलने से हम पर कोई प्रभाव नहीं होता। 94. कौआ चला हंस की चाल–दूसरों की नकल पर चलने से असलियत 95. कुएँ की मिट्टी कुएँ में ही लगती है–लाभ जहाँ से होता है, वहीं खर्च हो जाता है। 96. कुंजड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता–कोई अपने माल को खराब नहीं कहता। 97. कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है–सफ़ाई सबको पसन्द होती है। 98. किया चाहे चाकरी राखा चाहे मान–स्वाभिमान की रक्षा नौकरी में नहीं हो सकती। 99. कखरी लरका गाँव गोहार–वस्तु के पास होने पर दूर–दूर उसकी 100. कोयले की दलाली में हाथ काले–बुरी संगति का परिणाम बुरा होता है। 101. काला अक्षर भैंस बराबर–निरक्षर व्यक्ति। 102. कानी के ब्याह को सौ जोखो–पग–पग पर बाधाएँ। (ख)103. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है–जब कोई व्यक्ति अपने साथी 104. खुदा गंजे को नाखून नहीं देता–अयोग्य को अधिकार नहीं मिलता। 105. खेत खाए गदहा, मारा जाए जुलाहा–जब किसी व्यक्ति के अपराध पर दण्ड किसी अन्य को मिलता है तब यह कहावत चरितार्थ होती है। 106. खोदा पहाड़ निकली चुहिया–अधिक कार्य का अत्यल्प फल। 107. खाक डाले चाँद नहीं छिपता–अच्छे आदमी की निंदा करने से कुछ नहीं बिगड़ता। 108. खुदा की लाठी में आवाज़ नहीं होती–कोई नहीं जानता कि भगवान कब, कैसे, क्यों दण्ड देता है। 109. खग ही जाने खग की भाषा–सब अपने–अपने सम्पर्क के लोगों का हाल समझते हैं। 110. खरी मजूरी चोखा काम–पूरी मज़दूरी देने पर ही काम अच्छा होता है। 111. खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे–खिसियाहट में क्रोधवश लोग अटपटा कार्य करते हैं। 112. खुशामद से ही आमद है–खुशामद से ही धन आता है। 113. खेती, खसम लेती है–कोई काम अपने हाथ से करने पर ही ठीक होता है। 114. खूटे के बल बछड़ा कूदे–किसी की शह पाकर ही आदमी अकड़ दिखाता है। (ग)115. गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज–बनावटी त्याग। 116. गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास–जो व्यक्ति सामने आए उसकी प्रशंसा करना। कुछ लोगों की आदत होती है कि उनके सामने जो व्यक्ति आता है उसी की प्रशंसा करने लगते हैं, ऐसे लोगों के लिए ही कहा जाता 117. गाँठ का पूरा आँख का अंधा–पैसे वाला तो है पर है मुर्ख। 118. गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त—जिसका काम है वो आलस्य में रहे और 119. गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचे–भला करने वाले के साथ दुष्टता करना। 120. गए रोज़े छुड़ाने नमाज़ गले पड़ी–अपनी मुसीबत से पीछा छुड़ाने 121. गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता है किसी भी उपाय से स्वभाव 122. गीदड़ की शामत आए तो गाँव की ओर भागे–विपत्ति में बुद्धि काम 123. गरजै सो बरसै नहीं–डींग हाँकने वाले काम नहीं करते। (घ)124. घर का भेदी लंका ढावे–रहस्य जानने वाला बड़ा घातक होता है। 125. घोड़ा. घास से यारी करे तो खाए क्या–व्यापार में रिश्तेदारी नहीं 126. घोड़ों को घर कितनी दूर–पुरुषार्थी के लिए सफलता सरल है। 127. घोड़े को लात, आदमी को बात–दुष्ट से कठोरता का और सज्जन से नम्रता का व्यवहार करें। 128. घायल की गति घायल जाने–जो कष्ट भोगता है वही दूसरे के कष्ट को समझ सकता है। 129. घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध—किसी आदमी की प्रतिष्ठा अपने निवास स्थान पर कम होती है। 130. घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते–घर में आने वाले का सत्कार करना चाहिए। 131. घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपनी ही मक्खियाँ उड़ाएगा–उन्नति करके आदमी अपना ही भला करता है। 132. घर की मुर्गी दाल बराबर–अपने घर के गुणी व्यक्ति का सम्मान न करना। 133. घर खीर तो बाहर भी खीर–सम्पन्नता में सर्वत्र प्रतिष्ठा मिलती है। (च)134. चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय–बहुत कंजूस होना। 135. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात–अल्प समय के लिए लाभ। 136. चोर की दाढ़ी में तिनका–अपराधी सदा शंकित रहता है। 137. चौबे गए छब्बे बनने, दूबे बनकर आए–लाभ के बदले हानि। 138. चोर के पैर नहीं होते–अपराधी अशक्त होता है। 139. चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता–निर्लज्ज पर उपदेशों का असर नहीं 140. चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी–शाम होते ही सोने लगना। 141. चूहों की मौत बिल्ली का खेल–किसी को कष्ट देकर मौज़ करना। 142. चींटी की मौत आती है तो पर निकलते हैं–घमण्ड करने से नाश होता 143. चूहे का बच्चा बिल खोदता है–जाति स्वभाव में परिवर्तन नहीं होता। 144. चोरी और सीना जोरी–दोषी भी हो घुड़की भी दे। 145. चोर–चोर मौसरे भाई–एक पेशे वाले आपस में नाता जोड़ लेते हैं। 146. चुपड़ी और दो–दो–अच्छी चीज और वह भी बहुतायत में। 147. चोरी का माल मोरी में—गलत ढंग से कमाया धन यों ही बर्बाद होता है। 148. छछुन्दर के सिर पर चमेली का तेल–किसी व्यक्ति को ऐसी वस्तु की प्राप्ति हो, जिनके लिए वह सर्वथा अयोग्य हो। 149. छोटा मुँह बड़ी बात– छोटे लोगों का बढ़–चढ़कर बोलना। (ज)150. जल में रहकर मगर से बैर–बड़ों से शत्रुता नहीं चलती। 151. जब तक साँस तब तक आस–आशा जीवनपर्यन्त बनी रहती है। 152. जहाँ न जाए रवि वहाँ जाए कवि–कवि की कल्पना अनन्त होती है। 153. जान है तो जहान है–जीवन ही सब कुछ है। 154. जिसकी लाठी उसकी भैंस–जबर्दस्त का बोल–बाला। 155. जहँ–जहँ पाँव पड़े सन्तन के तहँ–तहँ होवै बन्टाधार—मनहूस आदमी हर काम को बनाने के बजाय उसमें विघ्न ही डालता है। 156, जहाँ देखे तवा परात वहाँ गाए सारी रात–लालच में कोई काम करना। 157. जाकै पैर न फटे बिवाई वह क्या जाने पीर पराई–स्वयं दुःख भोगे बिना दूसरे के दर्द का एहसास नहीं होता। 158. जहाँ मुर्गा नहीं होता क्या सवेरा नहीं होता—किसी एक की वजह से 159. जाय लाख रहे साख–इज्जत रहनी चाहिए व्यय कुछ भी हो जाए। 160. जान बची लाखो पाए–किसी झंझट से मुक्ति। 161. जान मारे बनिया पहचान मारे चोर–बनिया और चोर जान पहचान वाले को ही ज़्यादा ठगते हैं। 162. जिन ढूंढा तिन पाइया गहरे पानी पैठ–जो संकल्पशील होते हैं, वे कठिन परिश्रम करके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं। 163. जस दूल्हा तस बनी बरात–जैसा मुखिया वैसे ही अन्य साथी। 164. जैसे साँपनाथ वैसे नागनाथ–दोनों एक समान। 165. जीभ जली और स्वाद भी कुछ न आया–बदनामी भी हुई और लाभ भी नहीं मिला। 166. जहाँ जाय भूखा वहाँ पड़े सूखा–दुःखी कहीं भी आराम नहीं पा सकता। 167. जड़ काटते जाना और पानी देते रहना–ऊपर से प्रेम दिखाना, अप्रत्यक्ष में 168. जितने मुँह उतनी बातें––एक ही बात पर भिन्न–भिन्न कथन। 169. जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा–जो मन में है वह प्रकट होगा ही। 170. जैसा करोगे वैसा भरोगे–अपनी करनी का फल मिलता है। 171. जैसा मुँह वैसा थप्पड़–जो जिसके योग्य हो उसे वही मिलता है। 172. जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे परदेश–निकम्मा आदमी घर में हो या बाहर कोई अन्तर नहीं। 173. जितना गुड़ डालो, उतना ही मीठा–जितना खर्च करोगे वस्तु उतनी ही अच्छी मिलेगी। 174. जिस थाली में खाना उसी में छेद करना—जो उपकार करे उसका अहित करना। 175. जिसका खाइये उसका गाइये–जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लें। 176. जिसका काम उसी को साजै–जो काम जिसका है वही उसे ठीक तरह 177. जितनी चादर देखो उतने पैर पसारो–अपनी आमदनी के हिसाब से खर्च करो। 178. ज्यों–ज्यों भीजे कामरी त्यों–त्यों भारी होय–जैसे–जैसे समय बीतता है 179. जैसा देश वैसा भेष–किसी स्थान का पहनावा, उस क्षेत्र विशेष के अनुरूप होता है। (झ)180. झूठ के पाँव नहीं होते– झूठ बोलने वाला एक बात पर नहीं टिकता। 181. झोंपड़ी में रह, महलों का ख़्वाब देखें–सामर्थ्य से बढ़कर चाह रखना ‘झोपड़ी में रह, महलों का ख़्वाब देखें’ कहावत उन लोगों पर सटीक बैठती है, जो पूरी तरह से अर्थाभाव में जीते हैं, किन्तु मालदार सेठ बनने का ख़्वाब देखते हैं। (ट)182. टके की मुर्गी नौ टके महसूल–कम कीमती वस्तु अधिक मूल्य पर देना। 183. टके का सब खेल–“धन–दौलत से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं।” (ठ)184. ठोक बजा ले चीज़, ठोक बजा दे दाम–अच्छी वस्तु का अच्छा मूल्य। 185. ठोकर लगे तब आँख खुले—“कुछ गँवाकर ही अक्ल आती है। (ड)186. डण्डा सबका पीर–सख्ती करने से लोग नियंत्रित होते हैं। 187. डायन को दामाद प्यारा–अपना सबको प्यारा होता है। 188. ढाक के तीन पात–सदैव एक–सी स्थिति में रहने वाला। 189. ढोल के भीतर पोल/ढोल में पोल–केवल ऊपरी दिखावा। (त)190. तलवार का घाव भरता है, पर बात का घाव नहीं भरता–मर्मभेदी बात आजीवन नहीं भूलती। 191. तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले–जब कोई व्यक्ति किसी की सहायता करता है और जलन अन्य व्यक्ति को होती है। 192. तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बटोही होवे जैसा—बिना स्त्री के पुरुष का कोई ठिकाना नहीं। 193. तू डाल–डाल, मैं पात–पात–एक से बढ़कर दूसरा चालाक। 194. तख्त या तख्ता–शान से रहना या भूखो मरना। 195. तुम्हारे मुँह में घी–शक्कर–तुम्हारी बात सच हो। 196. तेल देखो तेल की धार देखो–सावधानी और धैर्य से काम लो। 197. तलवार का खेत हरा नहीं होता–अत्याचार का फल अच्छा नहीं होता। 198. थूक से सत्तू सानना– कम सामग्री से काम पूरा करना। 199. थोथा चना बाजे घना–अकर्मण्य अधिक बात करता है। 200. थोड़ी पूँजी धणी को खाय–अपर्याप्त पूँजी से व्यापार में घाटा होता है। (द)201. दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम–अस्थिर–विचार वाला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर पाता है। 202. दूध का जला छाछ भी फूंक–फूंककर पीता है—ठोकर खाने के बाद आदमी सावधान हो जाता है। 203. दूर के ढोल सुहावने–दूर से ही कुछ चीजें अच्छी लगती हैं। 204. दाल भात में मूसलचन्द–दो के बीच अनावश्यक व्यक्ति का हस्तक्षेप करना। 205. दाने–दाने पर मुहर–हर व्यक्ति का अपना भाग्य। 206. दाम संवारे काम–पैसा सब काम करता है। 207. दुधारू गाय की लात सहनी पड़ती है–जिससे कुछ पाना होता है, उसकी 208. दूध पिलाकर साँप पोसना–शत्रु का उपकार करना। 209. दूसरे की पत्तल लम्बा–लम्बा भात–दूसरे की वस्तु अच्छी लगती है। 210. दोनों दीन से गए पाण्डे हलुआ मिला न माँडे—किसी तरफ़ के न होना। 211. दो मुल्लों में मुर्गी हलाल–दो को दिया काम बिगड़ जाता है। (ध)212. धन्ना सेठ के नाती बने हैं अपने को अमीर समझते हैं। 213. धूप में बाल सफेद नहीं किए हैं–सांसारिक अनुभव बहुत है। (न)214. नंगा क्या नहायेगा, क्या निचोड़ेगा–जिसके पास कुछ है ही नहीं, वह क्या अपने पर खर्च करेगा और क्या दूसरों पर। 215. न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी–काम न करने के उद्देश्य से असम्भव बहाने बनाना। 216. नाच न आवे आँगन टेढ़ा–जब कोई व्यक्ति दूसरों के दोष निकालकर अपनी अयोग्यता को छिपाने का प्रयास करता है। 217. नीम न मीठा होय सींचो गुड़ घी–से–बुरे लोगों का स्वभाव नहीं 218. नाक दबाने से मुँह खुलता है–कठोरता से कार्य सिद्ध होता है। 219. नक्कारखाने में तूती की आवाज–बड़ों के बीच में छोटे आदमी की 220. नानी क्वांरी मर गई, नाती के नौ–नौ ब्याह–झूठी बड़ाई। 221. नदी नाव संयोग–कभी–कभी मिलना। 222. नकटा बूचा सबसे ऊँचा–निर्लज्ज आदमी सबसे बड़ा है। 223. नेकी कर और कुएँ में डाल–भलाई का काम करके फल की आशा मत करो। 224. नौ नकद, न तेरह उधार–नकद का काम उधार के काम से अच्छा है। 225. नया नौ दिन पुराना सौ दिन–पुरानी चीजें ज्यादा दिन चलती हैं। (प)226. पत्नी टटोले गठरी और माँ टटोले अंतड़ी–पत्नी देखती है कि मेरे पति के पास कितना धन है और माँ देखती है कि मेरे बेटे का पेट अच्छी तरह भरा है या नहीं। 227. पढ़े फ़ारसी बेचे तेल यह देखो कुदरत का खेल–योग्यतानुसार कार्य न मिलना। 228. पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं–पराधीनता सदैव दुःखदायी होती है। 229. पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं—सभी के गुण समान नहीं होते, 230. पराये धन पर लक्ष्मी नारायण–दूसरे के धन पर गुलछरें उड़ाना। 231. पाँचों सवारों में मिलना–अपने को बड़े व्यक्तियों में गिनना। 232. पानी पीकर जात पूछते हो–काम करने के बाद उसके अच्छे–बुरे पहलुओं पर विचार करना। (फ)233. फ़कीर की सूरत ही सवाल है—फ़कीर कुछ माँगे या न माँगे, यदि सामने आ जाए तो समझ लेना चाहिए कि कुछ माँगने ही आया। 234. फलेगा सो झड़ेगा– उन्नति के पश्चात् अवनति अवश्यम्भावी है (ब)235. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद–जब कोई व्यक्ति ज्ञान के अभाव में किसी वस्तु की कद्र नहीं करता है। 236. बद अच्छा बदनाम बुरा–बुरे कर्मों की अपेक्षा कलंकित होना अधिक बुरा है। 237. बनिया मीत न वेश्या सती–बनिया किसी का मित्र नहीं होता और वेश्या चरित्रवान नहीं होती। 238. बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय–जो कुछ हो चुका है उसे भूलकर भविष्य के लिए सँभल जाना चाहिए। 239. बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ ते होय–बुरे कर्मों का परिणाम अच्छा नहीं हो सकता। (भ)240. भीगी बिल्ली बताना–बहाना बनाना। 241. भूल गए राग रंग, भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नून तेल लकड़ी–जब कोई स्वतन्त्र प्रकृति का व्यक्ति बुरी तरह से गृहस्थी के चक्कर में पड़ जाता है। 242. भैंस के आगे बीन बजे, भैंस खड़ी पगुराय–मूर्ख अच्छी वस्तु की कद्र नहीं करते, मूों को उपदेश देना व्यर्थ है। (म)243. मन चंगा तो कठौती में गंगा–यदि मन शुद्ध है तो तीर्थाटन आवश्यक नहीं है। 244. मान न मान मैं तेरा मेहमान–जब कोई व्यक्ति जबर्दस्ती किसी पर बोझा बनता है तब यह कहावत कही जाती है। 245. मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक सीमित क्षेत्र तक पहुँच। 246. मेरी ही बिल्ली और मुझसे म्याऊँ–जब कोई व्यक्ति अपने आश्रयदाता को (य)247. यह मुँह और मसूर की दाल–जब कोई व्यक्ति अपनी योग्यता से अधिक पाने की अभिलाषा करता है तब यह कहावत चरितार्थ होती है। (र)248. रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई–स्वाभिमानी व्यक्ति बुरी अवस्था को प्राप्त होने पर भी अपनी शान नहीं छोड़ता है। 149. राम नाम जपना, पराया माल अपना– ऊपर से भक्त, भीतर से ठग होना आज के अधिकतर साधु–संत अपने बुरे कामों से जनमानस को मूर्ख बनाकर ‘राम नाम जपना, पराया माल अपना’ वाली नीति को चरितार्थ कर ठग रहे हैं। प्रति व्यक्ति आय का सूत्र क्या होता है?इसकी गणना कुल आय (जैसे जीडीपी या सकल राष्ट्रीय आय) में आय के सभी स्रोतों को मापकर और कुल जनसंख्या द्वारा विभाजित करके की जाती है।
प्रति व्यक्ति आय क्या है Short answer?Solution : प्रति व्यक्ति आय: जब देश की कुल आय को उस देश की जनसंख्या से भाग दिया जाता है तो जो राशि मिलती है उसे हम प्रति व्यक्ति आय कहते हैं।
व्यक्ति की आय क्या है?Answer: प्रति व्यक्ति आय उस आय को कहा जाता है जब किसी देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद को जब उस देश की उस वर्ष की मध्यावधि तिथि की जनसंख्या से विभाजित किया जाता है। यह हमें उस देश के निवासियों को प्राप्त होने वाली औसत आय की मौद्रिक जानकारी देता है।
प्रति व्यक्ति आय का क्या लाभ है?प्रति व्यक्ति आय का सबसे आम लाभ यह है कि यह धन या धन की कमी का पता लगाने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, प्रति व्यक्ति आय एक लोकप्रिय मीट्रिक है जिसका उपयोग यू.एस. ब्यूरो ऑफ़ इकोनॉमिक एनालिसिस (बीईए) संयुक्त राज्य में सबसे अमीर काउंटियों को रैंक करने के लिए करता है।
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