पढ़ाई के लिए कौन सा देश है? - padhaee ke lie kaun sa desh hai?

बहुत से देशों में पतझड़ का मौसम स्कूल में नए साल की शुरुआत का वक़्त होता है. लेकिन, अगर कोई अमरीका, रूस, आइसलैंड या चिली में रहता है, तो बात एकदम अलग हो जाती है.

किस देश में बच्चे सब से कम घंटे स्कूल जाते हैं ?

किस देश के परिवार बच्चों के स्कूल के सामान पर सब से ज़्यादा ख़र्च करते हैं ?

किस देश में बच्चे औसतन ज़िंदगी के 23 साल पढ़ने में ख़र्च करते हैं ?

अगर आप सोचते हैं कि भारत में ही पढ़ाई बहुत महंगी है, तो दुनिया भर की शिक्षा व्यवस्था के इन आंकड़ों पर ग़ौर फ़रमाएं.

27.5 अरब डॉलर से कितना पेपर और गोंद ख़रीदा जा सकता है ?

अमरीका में किसी बच्चे के केजी से लेकर सेकेंडरी स्कूल तक की पढ़ाई में मां-बाप 685 डॉलर की स्टेशनरी ख़रीदते हैं. मतलब हर अमरीकी बच्चे की इंटरमीडियेट तक की पढ़ाई में क़रीब 50 हज़ार रुपए की सिर्फ़ स्टेशनरी का ख़र्च होता है. ये 2005 में इस मद में होने वाले ख़र्च से 250 डॉलर ज़्यादा है. पूरे देश की बात करें तो अमरीका ने 2018 में 27.5 अरब डॉलर की स्कूली बच्चों की स्टेशनरी ख़रीदी.

इस में अगर हम यूनिवर्सिटी का ख़र्च भी जोड दें, तो ये ख़र्च बढ़कर 83 अरब डॉलर यानी क़रीब 6 ख़रब रुपए होता है. इनमें सबसे महंगी चीज़ होती है कंप्यूटर. हर अमरीकी परिवार औसतन 299 डॉलर यानी 21 हज़ार रुपए का कंप्यूटर ख़रीदता है. इसके बाद सबसे बड़ा ख़र्च होता है कपड़ों का, जो 286 डॉलर प्रति बच्चा बैठता है. इसके बाद टैबलेट और कैलकुलेटर जैसी चीज़ों पर औसतन 271 डॉलर यानी 19 हज़ार रुपए औसत अमरीकी बच्चे का ख़र्च है. बाइंडर्स, फोल्डर, किताबों और दूसरी ऐसी ही चीज़ों पर 112 डॉलर प्रति बच्चा ख़र्च आता है.

अमरीका में बच्चों की स्कूल की ऐसी ज़रूरतों पर ख़र्च लगातार बढ़ता जा रहा है (स्रोत-डेलॉय)

डेनमार्क के बच्चे बाक़ी देशों के बच्चों से 200 घंटे ज़्यादा स्कूल में रहते हैं

33 विकसित देशों में से रूस के बच्चे सब से कम वक़्त स्कूल में बिताते हैं. वो साल में केवल 500 घंटे स्कूल में रहते हैं, जबकि दुनिया का औसत है 800 घंटे. रूस के बच्चों को हर क्लास के बाद ब्रेक भी मिलता है. यानी औसत रूसी बच्चा स्कूल में पांच घंटे रोज़ाना बिताता है. वो कुल आठ महीने ही स्कूल जाता है. इसके बावजूद रूस की साक्षरता 100 फ़ीसद है.

वहीं, दूसरी तरफ़ डेनमार्क है. यहां प्राइमरी में पढ़ने वाले बच्चों को साल में 1000 घंटे स्कूल में बिताने होते हैं. ये रूस के मुक़ाबले दो महीने ज़्यादा है. डेनमार्क में स्कूल के दिन भी बड़े होते हैं. शिक्षा के मामले में डेनमार्क दुनिया के टॉप के 5 देशों में लगातार शुमार होता रहा है. साफ़ है कि स्कूल में ज़्यादा वक़्त बिताने के फ़ायदे तो हैं. (स्रोत-ओईसीडी)

सस्ती पढ़ाई चाहिए, तो हांगकांग के बारे में बिल्कुल न सोचें!

विकसित देशों की बात करें तो स्कूल की पढ़ाई में एक लाख डॉलर तक के ख़र्च का फ़र्क़ हो सकता है. क्लास फ़ीस, किताबों, आने-जाने का ख़र्च, रहने का खर्च जोड़ लें, तो प्राइमरी से अंडरग्रेजुएट तक की पढ़ाई में हांगकांग सबसे महंगा बैठता है.

यहां के अभिभावकों को औसतन 1 लाख 31 हज़ार 161 डॉलर यानी 92 लाख रुपए से ज़्यादा की रक़म एक बच्चे की पढ़ाई में ख़र्च करनी पड़ती है. और बच्चे की पढ़ाई का ये ख़र्च वहां बच्चों को मिलने वाले वज़ीफ़े, क़र्ज़ और सरकारी मदद के अलावा है.

महंगी पढ़ाई के मामले में दूसरा नंबर संयुक्त अरब अमीरात का है. यहां एक बच्चे की पढ़ाई में औसतन 99 हज़ार डॉलर यानी क़रीब 70 लाख रुपए का ख़र्च आता है. वहीं सिंगापुर में एक बच्चे की अंडरग्रेजुएट तक की पढ़ाई का ख़र्च 71 हज़ार डॉलर तो अमरीका में औसतन 58 हज़ार डॉलर या 41 लाख रुपए पड़ता है. अमरीका में महंगी होती पढ़ाई के बावजूद बच्चों के अभिभावकों को कुल ख़र्च का 23 फ़ीसद बोझ ही उठाना पड़ता है. फ्रांस में एक बच्चे की पूरी पढ़ाई के लिए मां-बाप औसतन 16 हज़ार डॉलर या 11 लाख रुपए ही खर्च करते हैं. (स्रोत-एचएसबीसी/सैली मे)

पेड़ भी उठाते हैं बच्चों की पढ़ाई का बोझ!

डिजिटल होती दुनिया के बारे में ये बात सुनकर हैरान रह जएंगे. आज भी दुनिया भर में बड़ी तादाद में पेंसिल का इस्तेमाल पढ़ाई करने में होता है. पेंसिल ईजाद होने के चार सौ साल बाद भी आज हर साल 15 से 20 अरब पेंसिलें दुनिया में बनाई जाती हैं.

इसके लिए अमरीका में उत्तर-पश्चिम प्रशांत महासागर के तट पर उगने वाले सेडार के पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल होताा है. जबकि पेंसिल में इस्तेमाल होने वाली ग्रेफाइट चीन या श्रीलंका से आती है. दुनिया को भरपूर तादाद में पेंसिलें मिलती रहें, इसके लिए हर साल 60 हज़ार से 80 हज़ार के बीच पेड़ काटे जाते हैं. (स्रोत-द इकोनॉमिस्ट)

ऑस्ट्रेलिया के बच्चों की एक चौथाई उम्र स्कूल में गुज़र जाती है!

उम्र का एक दौर ऐसा आता है, जब पढ़ाई ख़त्म हो जाती है. लेकिन, न्यूज़ीलैंड और आइसलैंड में क़रीब दो दशक तक पढ़ना पड़ता है. किसी भी देश में बच्चों की पढ़ाई के औसत साल उसके प्राइमरी में दाखिले से लेकर यूनिवर्सिटी तक की पढ़ाई के साल को जोड़ कर निकाला जाता है.

इसके लिहाज़ से सब से ज़्यादा 22.9 साल तक ऑस्ट्रेलिया के बच्चे पढ़ते रहते हैं. वो 6 साल की उम्र से पढ़ना शुरू करते हैं, तो 28-29 साल के होने तक पढ़ते रहते हैं.

सबसे कम वक़्त पढ़ाई में गुज़ारने के मामले में अफ्रीकी देश नाइजर अव्वल है. यहां के बच्चे 7 साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू करते हैं. नाइजर में बच्चे औसतन 5.3 साल स्कूल में गुज़ारते हैं. ये ऑस्ट्रेलिया के मुक़ाबले 17 साल कम है. (स्रोत-ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स)

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये।

पढ़ाई के लिए आप इंग्लैंड जा सकते हैं यूके जहां पर बहुत अच्छी पढ़ाई होती है तथा अमेरिका कनाडा और यूरोप में जर्मनी यह काफी अच्छे माने जाते हैं पढ़ाई की दृष्टि से

padhai ke liye aap england ja sakte hain UK jaha par bahut acchi padhai hoti hai tatha america canada aur europe mein germany yeh kaafi acche maane jaate hain padhai ki drishti se

पढ़ाई के लिए आप इंग्लैंड जा सकते हैं यूके जहां पर बहुत अच्छी पढ़ाई होती है तथा अमेरिका कना

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पढ़ाई में कौन सा देश सबसे आगे है?

OECD यानी ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट के अनुसार कनाडा विश्व का सबसे पढ़ा- लिखा देश है।

पढ़ाई के लिए विदेश जाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

विदेश में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए दस्तावेज इस प्रकार हैं:.
कोर्स की आवश्यकता के अनुसार सीनियर सेकेंडरी सर्टिफिकेट्स, बैचलर्स या मास्टर्स डिग्री ट्रांसक्रिप्ट्स और मार्कशीट्स होनी चाहिए।.
अंग्रेजी भाषा परीक्षण जैसे IELTS, TOEFL अंक।.
GRE, GMAT, SAT आदि जैसी मानकीकृत परीक्षाओं का स्कोरकार्ड।.
प्रवेश निबंध.