‘शीतल वाणी में आग’ के होने से कवि का अभिप्राय यह है कि कवि की वाणी में शीतलता भले ही दिखाई दे रही हो यानी उसकी वाणी भले ही शांत हो, लेकिन कबीर की वाणी में एक जोश भी है, एक उत्साह है, एक ओजस्वी गुण विद्यमान है। कवि की वाणी केवल विनय अथवा विनम्रता का ही सूचक नहीं बल्कि जोशी एवं विद्रोह का प्रतीक भी है। पाठ के बारे में… इस पाठ में हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित दो कविताएं ‘आत्म परिचय’ एवं ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।’ प्रस्तुत की गई हैं। संदर्भ पाठ : हरिवंशराय बच्चन, आत्मपरिचय/दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। (कक्षा – 12, पाठ -1, हिंदी, आरोह)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर : मैं और, और जग और कहाँ का नाता- पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताइए। जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं- कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?
हमारी सहयोगी वेबसाइटें.. mindpathshala.com miniwebsansar.com Solution : कवि ने यहाँ विरोधाभास अलंकार का प्रयोग किया है। इस का आशय यह है कि कवि अपनी शीतल इस पंक्ति का अभिप्राय है कि यदि उसकी वाणी शीतल है, तो यह मान लेना कि उसमें विनय, विनम्रता के भाव ही होंगे गलत है। उसकी वाणी में शीतलता के गुण के अतिरिक्त ओजस्वी गुण भी विद्यमान है। उसकी वाणी शीतल रहती है क्योंकि वह धीरज नहीं खोता। वह संसार का विद्रोह करता है लेकिन अपनी वाणी को शीतल बनाए रखना चाहता है। वह अपने हृदय की आग को वाणी में समाहित तो करता है लेकिन शीतलता के गुण को बनाए रखते हुए। भाव यह है कि वह अपने दिल में विद्यमान दुख को वाणी के माध्यम से व्यक्त करता है लेकिन यह ध्यान रखता है कि वाणी में कोमलता बनी रहे। इस तरह से वह अपने मन की भड़ास भी निकाल देता है और स्वयं का आपा नहीं खोता। यह पंक्ति विरोधाभास को दर्शाती है क्योंकि शीतलता के साथ आग का मेल नहीं बैठता। जहाँ आग है, वहाँ शीतलता नहीं मिल सकती। आग का गुण है तपन देना। अतः तपन में शीतलता यानी ठंडापन नहीं मिल सकता। लेकिन यह पंक्ति कवि के विद्रोह को व्यक्त करने के लिए बड़ी उत्तम जान पड़ती है। ‘शीतल वाणी में आग’ होने का अभिप्राय यह है कि उसकी वाणी में शीतलता भले ही दिखाई देती हो, पर उसमें आग जैसे जोशीले विचार भरे रहते हैं। उसके दिल में इस जग के प्रति विद्रोह की भावना है पर वह जोश में होश नहीं खोता। वह अपनी वाणी में शीतलता बनाए रखता है। यहाँ आग से अभिप्राय कवि की आंतरिक पीड़ा से है। वह प्रिय वियोग की विरह वेदना को हृदय में समाए फिरता है। यह वियोग की वेदना उसे निरंतर जलाती रहती है। ‘शीतल वाणी में आग’ विरोधाभास की स्थिति है। पर यह पूरी तरह विरोधी नहीं है। यहाँ विरोध का आभास मात्र हाेता है। कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ-विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है? यह सही है कि ये दोनों भाव विपरीत प्रतीत होते हैं, पर कवि स्वयं को जग से जोड़कर भी और जग से अलग भी महसूस करता है। उसे यह बात भली प्रकार ज्ञात है कि वह पूरी तरह से जग-जीवन से निरपेक्ष नहीं रह सकता। दुनिया उसे चाहे कितने भी कष्ट क्यों न दे फिर भी वह दुनिया से कटकर नहीं रह सकता। वह भी इसी दुनिया का एक अंग है। इसके बावजूद कवि जग की ज्यादा परवाह नहीं करता। वह संसार के बताए इशारों पर नहीं चलता। उसका अपना पृथक् व्यक्तित्व है। वह अपने मन के भावों को निर्भीकता के साथ प्रकट करता है और वह इस बात का ध्यान नहीं रखता कि यह जग क्या कहेगा। उसकी स्थिति तो ऐसी है-’मैं दुनिया में हूँ, पर दुनिया का तलबगार नहीं हूँ।’ शीतल वाणी में आग होने के क्या अभिप्राय है?जहाँ आग है, वहाँ शीतलता नहीं मिल सकती। आग का गुण है तपन देना। अतः तपन में शीतलता यानी ठंडापन नहीं मिल सकता। लेकिन यह पंक्ति कवि के विद्रोह को व्यक्त करने के लिए बड़ी उत्तम जान पड़ती है।
शीतल वाणी में आग पद में कौन सा अलंकार है?शीतल वाणी में आग के होने का क्या अभिप्राय है? उत्तरः कवि ने यहाँ विरोधाभास अलंकार का प्रयोग किया है। इस का आशय यह है कि कवि अपनी शीतल और मधुर आवाज में भी जोश, आत्मविश्वास, साहस, दृढ़ता जैसी भावनाएं बनाए रखते हैं ताकि यह लोगों को जागृत कर सके। उनकी शीतल आवाज में विद्रोह की आग छिपी है।
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