भारत में गुलाम वंश की स्थापना किसने की?
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Answer (Detailed Solution Below)Option 2 : कुतुब-उद-दीन ऐबक Free SSC GD Previous Paper 2 (Held On: 13 Feb 2019 Shift 1)_Hindi 100 Questions 100 Marks 90 Mins सही उत्तर कुतुबुद्दीन ऐबक है।
Latest SSC GD Constable Updates Last updated on Oct 31, 2022 SSC GD Constable Final Result Out on 7th November 2022 for 2021 cycle! A total of 25271 vacancies have been considered for allocation in the forces. SSC GD Constable 2022 Notification had been released on 27th October 2022. A total of 24,369 vacancies have been released for the recruitment of GD Constables in various departments like BSF, CRPF, CISF, etc. Candidates can apply for the exams between 27th October 2022 to 30th November 2022. Applicants must note that they can apply for this recruitment only through the official website. The SSC GD Constable Exam Patternhas also been changed. Candidates can check all the details below. गुलाम/ममलूक वंशइस वंश का नाम मामलूक वंश(गुलामी बंधन से मुक्त) सर्वाधिक उपयुक्त है क्योंकि इस वंश वंश के 11 शासकों में से केवल 3 शासक दास थे उन्हें भी पद ग्रहण से पूर्व दासता से मुक्त कर दिया गया था। दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक इल्तुतमिश था। मामलूक वंश के शासकों ने 3 राजवंशों की स्थापना की। मामलूक वंश के राजवंश1. कुतुबी वंशकुतुबुद्दीन ऐबककुतुबुद्दीन ऐबक तुर्क जनजाति का था। काजी फखरूद्दीन अब्दुल अजीज कूफी ने सर्वप्रथम ऐबक को खरीदा एवं धनुर्विधा तथा घुडसवारी की शिक्षा दी। ऐबक कुरान पढ़ता था एवं कुरान याद की इस कारण वह कुरानख्वां के नाम से प्रसिद्ध हुआ।बाद में मुहम्मद गौरी ने उसे खरीद लिया। मुहम्मद गोरी ने उसे अमीर-ए-आखूर(अस्तबलों का अधिकारी) का पद दिया। कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गोरी का सबसे भरोसेमंद था इसी कारण गोरी ने ऐबक को अपने भारतीय विजित प्रदेशों की कमान सौंपी। भारत में ऐबक का शासन कालभारत में ऐबक का जीवन 3 चरणों में विभाजित था - 1192ई. - 1206ई. - गोरी के प्रतिनिधि के रूप में एवं कार्य सैनिक गतिविधियों से पूर्ण। 1206ई. - 1208ई. - भारतीय सल्तनत में मलिक या सिपहसालार के पद पर एवं कार्य राजनयिक। 1208ई. - 1210ई. - स्वतंत्र भारतीय राज्य का औपचारिक शासक के रूप में। नोट - ऐबक का अनौपचारिक राज्याभिषेक 25 जून 1206 को लाहौर में हुआ परन्तु औपचारिक मान्यता गौरी के भतीजे गयासुद्दीन महमूद द्वारा 1208 ई. में प्राप्त हुई। अब ऐबक भारतीय सल्तनत का औपचारिक शासक बना। ऐबक को भारत में तुर्की राज्य का संस्थापक माना जाता है। ऐबक को दानशीलता के कारण लाखबख्श एवं पीलबख्श(हाथियों का दान करने वाला) कहा जाता है। हसन निजामी एवं फर्रूखमुद्दीर ऐबक के दरबार में विद्वान थे। ऐबक ने दिल्ली में कुतुब मीनार का निर्माण प्रारंभ करवाया। ऐबक ने दिल्ली में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण करवाया। अढ़ाई दिन का झोंपडायह अजमेर में विग्रह राज-4 द्वारा बनाए गए संस्कृत महाविद्यालय के स्थान पर कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनाया गया। एबक के सेनानायक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को ध्वस्त किया था। कुतुबमीनारइसका निर्माण कार्य कुतुबुद्दीन ऐबक ने प्रारंभ किया था। बाद में इल्तुतमिश ने इसका निमार्ण कार्य करवाया था। इल्तुतमिश ने इसकी 3 मंजिलों का निर्माण करवाया था (अब तक कुल मंजिल-4)। 1369ई. में बिजली गिरने से मीनार की ऊपरी मंजिल क्षतिग्रस्त हो गयी। फिरोज शाह तुगलक ने क्षतिग्रस्त मंजिल की मरम्मत करवायी एवं एक नई मंजिल का निर्माण करवाया(अब कुल मंजिल-5)। 1505 ई. में भूकम्प की वजह से मीनार को क्षति पहुंची बाद में सिकन्दर लोदी ने इसकी मरम्मत करवायी। कुतुब मीनार का नाम सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर रखा गया। कुव्वल-उल-इस्लामकुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में मेहरौली नगर की आधार शिला रख इसी नगर में कुव्वल-उल-इस्लाम मस्जिद का 1197ई. में निर्माण करवाया। यह मस्जिद जैन एवं वैष्णव मंदिरों के अवशेषों पर बनाई गई है। कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु चौगान(पोलो) खेलते हुए घोड़े से गिरकर हुई। कुतुबुद्दीन ऐबक का मकबरा लाहौर में स्थित है। ऐबक की राजधानी लाहौर में थी परन्तु मुख्यालय दिल्ली में था। ऐबक को संभवतः कोई बेटा नहीं था। ऐबक की अचानक मृत्यु के बाद कुछ तुर्क अमीर एवं मलिकों ने आरामशाह को शासक नियुक्त कर दिया। बाद में बदायुं के गवर्नर इल्तुतमिश ने आरामशाह को पराजित कर सत्ता अपने हाथ में ले ली। 2. शम्शी राजवंशइल्तुतमिश इल्बारी जनजाति एवं शम्शी वंश से था। इल्तुतमिश ने शम्शी वंश की स्थापना की। इल्तुतमिशइल्तुतमिश, ऐबक का दामाद एवं बदायुं का गवर्नर(प्रशासक) था। इल्तुतमिश को अमीर-ए-शिकार का पद दिया गया। इल्तुतमिश भारत में तुर्की शासन का वास्तविक संस्थापक था। इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार को बनवाकर पूरा किया। इल्तुतमिश ने इक्ता व्यवस्था की शुरूआत की। इक्ता व्यवस्थाइक्ता/अक्ता सल्तनत काल में एक प्रकार की भूमि थी जो सैनिक एवं असैनिक अधिकारियों को उनकी सेवाओं के लिए वेतन के रूप में प्रदान की जाती थी। इस भूमि से प्राप्त राजस्व, भूमि प्राप्तकर्ता(इक्ताधारी) व्यक्ति को प्राप्त होता था। पद समाप्ति या सेवा समाप्ति के बाद यह भूमि सरकार द्वारा वापस ले ली जाती थी। इल्तुतमिश सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला दिल्ली का पहला शासक था। इल्तुतमिश ने यह उपाधि औपचारिक रूप से खलीफा अल मुंत सिर बिल्लाह से प्राप्त की थी। इल्तुतमिश पहला तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए। इल्तुतमिश ने चांदी का टंका एवं तांबे का जीतल प्रचलित किए। चांदी का सिक्का 175 ग्रेन का था। विदेशों प्रचलित टंकों पर टकसाल का नाम लिखने की परंपरा को भारतवर्ष में प्रचलित करने का श्रेय इल्तुतमिश को दिया जा सकता है। इल्तुतमिश ने दिल्ली को राजधानी बनाया। 1229 में इल्तुतमिश को खलीफा से खिअलत पत्र प्राप्त जिससे इल्तुतमिश वैध मुल्तान और दिल्ली सल्तनत स्वतंत्र राज्य बन गया(18 फरवरी 1229)। भारत में मुस्लिम प्रभुसत्ता का श्री गणेश इल्तुतमिश ने ही किया। तराइन का तीसरा युद्ध(1215-1216ई.)ख्वारिज्म शाह से पराजित होकर एलदौज(गजनी का शासक) भारत की तरफ अग्रसर हुआ तथा नासिरूद्दीन कुबाचा से लाहौर छीनकर पंजाब में पानेश्वर पर अधिकार करके तराइन के मैदान में आ गया। जिसके परिणामस्वरूप इल्तुतमिश ने तराइन के मैदान में जाकर एलदौज को पराजित किया और उसे बदायूं के किले में कैद कर दिया, जहां उसकी मृत्यु हो गई। परिणाम-इस विजय से दिल्ली का स्वतंत्र अस्तित्व निश्चित हो गया और गजनी से अंतिम रूप से संबंध विच्छेद हो गया। मंगोल आक्रमणइल्तुतमिश के शासन काल में मंगोल नेता चंगेज खां के (मूलनाम-तिमूचिन) ने ख्वारिज्म पर आक्रमण करते हुए ख्वारिज्म के युवराज जलालुद्दीन मांगबर्नी का पीछा करते हुए सिन्धु नदी के तट पर आ पहुंचा। मांगबर्नी ने इल्तुतमिश से सहायता के लिए प्रार्थना की लेकिन इल्तुतमिश ने नम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। इसके पिछे उसका मंगोलों से शत्रुता ने लेना का कारण था। इस प्रकार इल्तुतमिश ने मंगोलों से अपने राज्य की सुरक्षा की। इल्तुतमिश को भारत में गुम्बद निर्माण का पिता कहा जाता है। चहलगानीसल्तनत काल में चहलगानी 40 तुर्क सरदारों(या दासों) का समूह था। जो इल्तुतमिश ने स्थापित किया था ये सरदार तत्कालीन प्रशासनिक व्यवस्था में सुल्तान को अपना सहयोग देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। चहलगानी का अंत बलवन ने किया। इल्तुतमिश ने उज्जैन के महाकाल/महाकालेश्वर मंदिर को तुडवाया था। इल्तुतमिश ने सुल्तान के पद को वंशानुगत बनाया। इल्तुतमिश ने अपने महल के सामने संगमरमर की 2 शेरों की मूर्तियां स्थापित करवायी एवं उनके गले में घंटियां लटकाई। इन घण्टियों को बजाकर कोई भी व्यक्ति न्याय की मांग कर सकता था। इल्तुतमिश ने 1226ई. में रणथम्भौर पर विजय प्राप्त की थी। इल्तुतमिश के शासन काल में न्याय मांगने वाला व्यक्ति लाल रंग के वस्त्र पहनता था। इल्तुतमिश का सांस्कृतिक योगदानअपने पुत्र नासिरूद्दीन की कब्र पर सुल्तानगढ़ी का मकबरा बनवाया। जोधपुर में अतारकिन दरवाजा बनवाया। बदायुं में हौज शम्शी एवं शम्शी ईदगाह का निर्माण करवाया। इल्तुतमिश के दरबार में मिनहाज-उस-सिराज एवं मलिक ताजुद्दीन विद्वान थे। इल्तुतमिश के उत्तराधिकारीइल्तुतमिश की मृत्यु 30 अप्रैल, 1236 ई. में दिल्ली में हुई थी। दिल्ली में ही इल्तुतमिश को दफनाया गया था। इल्तुतमिश ने अपना उत्तराधिकारी रजिया(पुत्री) बनाने की इच्छा व्यक्त की थी। परन्तु तुर्क एक स्त्री को अपना शासक नहीं बनाना चाहते थे। इसी कारण इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद रूकन्नुद्दीन फिरोजशाह को गद्दी पर बैठाया गया। रजिया सुल्तानरूकन्नुद्दीन फिरोजशाह एक अयोग्य शासक था। इस कारण राज्य की सम्पूर्ण सत्ता उसकी मां शाह तुर्कान के हाथों में आ गई। इसके शासन में जगह-जगह विद्रोह होने लगे इसका लाभ उठाकर ‘रजिया सुल्तान’ ने सत्ता पर अधिकार कर लिया। रजिया ने लाल कपडे पहनकर दिल्ली की जनता से न्याय मांगा। जनता ने रजिया का समर्थन किया इस प्रकार उत्तराधिकार के प्रश्न पर पहली बार स्वंय जनता ने निर्णय लिया। रजिया ने महत्वपूर्ण पदों पर प्रमुख व्यक्तियों को प्रतिस्थापित किया। जमालुद्दीन याकूत - अमीर-ए-आखूर(अश्वशाला का प्रधान) अल्तूनिया - भटिण्डा(पंजाब) का सूबेदार बलवन - अमीर-ए-शिकार रजिया ने पर्दा त्याग दिया एवं पुरूषों के समान कुवा(कोट) और कुलाह(टोपी) पहनकर जनता के सामने आने लगी। जिससे तुर्की अमीर विद्रोही हो गये। लाहौर के सूबेदार कबीर खां तथा बठिण्डा के सूबेदार अल्तूनिया ने 1240ई. में विद्रोह कर दिया। उसे दबाने के लिए रजिया पंजाब की तरफ निकली किन्तु अल्तुनिया द्वारा मार्ग रोक कर युद्ध किया गया जिसमें याकूत मारा गया तथा रजिया को भटिण्डा के किले में बंद कर दिया गया। नोट - कुछ विद्वानों के अनुसार लाहौर के कबीर खां को रजिया ने हरा दिया और उसने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद उसे भटिण्डा के विद्रो का समाचार प्राप्त हुआ। तुर्की सरदारों ने दिल्ली में इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र बहराम शाह को सुल्तान मनोनीत कर दिया। लेकिन अल्तुनिया को उसकी इच्छानुसार पद नहीं मिलने पर उसने रजिया से विवाह कर लिया और दिल्ली की ओर प्रस्थान किया किन्तु मार्ग में कैथल(पंजाब) में डाकुओं के द्वारा 1240 ई. में अल्तूनिया तथा रजिया की हत्या कर दी गई। रजिया के शासन में ‘इक्तादारों’, ‘चहल-गानी’, ‘अमीर तुर्को’ ने विद्रोह किया जिससे शासन में करने में अनेक कठिनाइयां आयी। रजिया के पतन के कारणतुर्की अमीरों की बढ़ती हुई शक्ति रजिया का स्त्री होना(मिनहाज के अनुसार) मिनहाज ने रजिया के गुणों की प्रशंसा की है और लिखा है कि ,“सुल्तान रजिया एक महान् शासक थी - बुद्धिमान, न्यायप्रिय, उदारचित्त और प्रजा की शुभचिन्तक, समदृष्टा, प्रजापालक और अपनी सेनाओं की नेता, उसमें बादशाही के समस्त गुण विद्यमान थे - सिवाय नारीत्व के और इसी कारण मर्दो की दृष्टि में उसके सब गुण बेकार थे।” मिनहाज के अनुसार रजिया ने 3 वर्ष 5 माह 6 दिन राज्य किया। रजिया का याकूत को अमीर-ए-आखूर नियुक्त करना जिसके प्रति प्रेम का मिथ्या दोषारोपण करके तुर्क अमीरों(चालीस अमीरों का दल: चहल-गानी) ने विद्रोह किया। गैर तुर्को का प्रतिस्पद्र्धा दल बनाया। रजिया एक गैर-तुर्क दल बनाकर तुर्क अमीरों की शक्ति का सन्तुलन करना चाहती थी। लेकिन तुर्क अमीरों का इल्तुतमिश के शासनकाल के दौरान सभी उच्च पदों पर अधिकार हो गया था। अब वे इस एकाधिकार को बनाए रखना चाहते थे। मुइनुद्दीन बहराम शाह(1240-1242ई.)रजिया के बाद मुइनुद्दीन बहराम शाह सुल्तान बना। इसके शासनकाल में सुल्तान की शक्ति एवं अधिकारिता को कम करने के लिए तुर्की अमीरों ने ‘नयाब ए मुमलकत’ के पद की रचना की। नायब-ए-मुमलिकत - यह पद संरक्षक के समान था जिसके पास सुल्तान के समान शक्ति एवं पूर्ण अधिकार थे। वास्तविक शक्ति एवं सत्ता के अब 3 दावेदार थे - सुल्तान, वजीर और नायब। प्रथम नायब-ए-मुमलिकत - मलिक इख्तियारूद्दीन ऐतगीन/आइतिगिन। इसके शासन काल में 1241ई. में मंगोल का आक्रमण हुआ। यह आक्रमण मंगोलों द्वारा किया। वजीर मुहज्जबुद्दीन ने अमीर तुर्कों को सुल्तान के खिलाफ भडका दिया। 1242ई. में बहराम शाह को कैद कर उसकी हत्या कर दी गई। अलाउद्दीन मसूद शाहबहराम शाह की हत्या के बाद मलिक ईजूद्दीन किश्लू खां ने इल्तुतमिश के महलों पर कब्जा कर लिया एवं स्वंय को सुल्तान घोषित कर दिया परंतु तुर्क अमीर राजवंश में परिवर्तन नहीं चाहते थे। किश्लू खां ने नागौर का इक्ता एवं एक हाथी लेकर अपना पद एवं सिंहासन का दावा वापस ले लिया। अमीरों ने अलाउद्दीन मसूद शाह को सुल्तान चुना। मसूदशाह इल्तुतमिश के पुत्र रूकन्नुद्दीन फिरोजशाह का पुत्र था। मलिक कुतुबुद्दीन हसन को नायब बनाया गया। अलाउद्दीन मसूदशाह का अमीर-ए-हाजिब(विशेष सचिव), बलबन था। गयासुद्दीन बलबन - यह ‘चहलगानी’ का सदस्य था। इसने बहराम शाह के विरूद्ध विद्रोह में सबसे अधिक साहस दिखाया था। 1249ई. में इसे उलुग खां की उपाधि दी गयी थी। बलवन और मसूदशाह के बीच मतभेद होने पर बलबन ने 1246ई. में नासिरूद्दीन को पद पर बैठाने के लिए षड़यंत्र रचा एवं सुल्तान को कैद कर लिया। कैद में ही उसकी मृत्यु हो गयी। नासिरूद्दीन महमूदनासिरूद्दीन महमूद इल्तुतमिश का पौत्र था। वह उदार तथा मधुर स्वभाव वाला सुल्तान था जो ‘टोपियों को सिलकर’ एवं ‘कुरान की नकल’ कर व उसे बेचकर जीवन का निर्वाह करता था। 1249 में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरूद्दीन से कर दिया। इसके फलस्वरूप सुल्तान ने बलबन को 1249ई. में उलुगाखां और नायब-ए-मामलिकात का पद प्रदान किया। यह एक नाम मात्र का सुल्तान था। सारी शक्ति एवं अधिकार चालीस तथा बलबन के हाथ में थे। 1266ई. में अचानक मृत्यु हो गयी। इसका कोई पुत्री नहीं था। यह शम्शी राजवंश का अंतिम शासक था। नासिरूद्दीन महमूद की मृत्यु के बाद गयासुद्दीन बलबन शासक बना। बलबन ने बलवनी वंश की स्थापना की। 3. बलबनी राजवंशबलबनी राजवंश की स्थापना गयासुद्दीन बलबन ने की। बलबन गुलाम वंश तथा बलबनी राजवंश का महान शासक था। गियासुद्दीन बलबन(1266-1286ई.)गियासुद्दीन बलबन के बचपन का नाम बहाऊदीन था। बचपन में मंगोलों ने बलबन को चुराकर बगदाद ले जाकर जमालुद्दीन बसरी नामक व्यक्ति को बेच दिया। बसरी ने 1232ई. में गुजरात के रास्ते से बलबन को दिल्ली ले आया और 1233ई. में इल्तुतमिश को बेच दिया। इस प्रकार बलबान इल्तुतमिश का दास था। अपने कार्यों के आधार पर बलबन प्रत्येक सुल्तान के काल में विशेष पदों पर आसमीन हुआ।
राजत्व का सिद्धान्तबलबन ने अपने आप को नियामत-ए-खुदाई अर्थात पृथ्वी पर ईश्वर की छाया बताया कि मैं ईश्वर का प्रतिबिम्ब(जिल्ले इलाही) हूं। बलबन के राजत्व सिद्धान्त की दो विशेषताएं थी।
बलबन ने अपने आप को फारस(ईरान) के अफ्रीसीयाब के वंशज का बताया। दरबार में फारस के तर्ज पर ‘सिजदा’(घुटने टेक कर सुल्तान का अभिवादन करना) एवं ‘पैबोस’(लेटकर मुख से सुल्तान के चरण को चूमना) की प्रथा का प्रचलन किया। अपने शासन का अधार रक्त और लौह की नीति को अपनाया था। बलबन ने पारसी नववर्ष की शुरूआत में मनाए जाने वाले उत्सव नवरोज/नौरोज की भारत में शुरूआत की। तुर्कान-ए-चिहलगानीइल्तुतमिश द्वारा स्थापित चालीस तुर्को के संगठन तुर्कान-ए-चिहलगानी का अन्त बलबन ने किया। वह जानता था की यह संगठन उसे नुकसान पहुंचा सकता है। बलबन ने दीवान ए विजारत(वित्त विभाग) को सैन्य विभाग से अलग कर दीवान-ए-आरिज(सैन्य विभाग) की स्थापना की। विभाग के प्रमुख को आरिज-ए-मुमालिक कहा जाता था। बलबन ने अपना आरिज-ए-मुमलिक इमाद-उल-मुल्क को बनाया। इस विभाग द्वार सैना की भर्ती, प्रशिक्षण, वेतन एवं रख रखाव आदि की जिम्मेदारी होती थी। गुप्तचरों के प्रमुख अधिकारी को वरीद-ए-मुमालिक तथा गुप्तचरों को वरीद कहा जाता था। प्रत्येक इक्तादारो में गुप्तचर प्रणाली क्रियान्वित थी। 1286 ई. में बलबन का बड़ा बेटा शाहजादा मुहम्मद मंगोलों के द्वारा मारा गया और दूसरा बेटा बुगरा खां पश्चिम बंगाल का सूबेदार था। बड़े बेटे के वियोग में अस्वस्थ होकर 1287ई. में बलबन की मृत्यु हो गई। इसके बाद बुगरा खां के पुत्र कैकुवाद को सुल्तान बनाया गया। दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों में किलों को निर्मित करवाने वाला पहला सुल्तान बलबन था। दिल्ली का लाल महल था लाल भवन का निर्माण इसी ने करवाया। बलबन का दरबारी इतिहासकार अमीर खुसरो था। अमीर खुसरो ने इतिहासकार के रूप में अपने जीवन का आरम्भ शाहजादा मुहम्मद के काल से किया। अमीर खुसरो उत्तर प्रदेश के एटा जिले का निवासी था। उसने 7 सुल्तानों के काल को देखा था। अमीर खुसरो को तूतिए-हिन्द के नाम से भी जाना जाता है। इल्तुतमिश एवं बलबन का तुलनात्मक अध्ययन
कैकुवाद(1287-1290ई.)बलबल ने अपने पौत्र कैखुसरो/कायखुसरो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया परन्तु बलबन की मृत्यु के बाद तुर्क अमीर फिर सक्रिय हो गए तथा कैखुसरो के स्थान पर कैकुबाद को सुल्तान मनोनीत किया। इस प्रकार बलबन का उत्तराधिकारी उसके छोटे बेटे बुगरा खां का पुत्र कैकुबाद हुआ। इस नए सुल्तान ने मुइजुद्दीन कैकुबाद की उपाधि धारण की। यह बहुत विलासी प्रवृत्ति का था इसका फायदा कोतवाल फखरूद्दीन का दामाद निजामुद्दीन ने उठाया तथा सत्ता हस्तगत करना चाहा। बुगरा खां के समझाने पर कैकुवाद ने निजामुद्दीन को विश देकर मरवा दिया। 1290ई. में कैकुवाद को पालिसिस(लकवा) मार गया जिससे वह अपंग हो गया। कायूमार्स(1290ई.)कैकुबाद के अपंग होने पर उसके तीन वर्षीय पुत्र क्यूमर्श को सुल्तान बनाया गया। क्यूमर्श का संरक्षक जलालुद्दीन खिलजी को बनाया गया। नये सुल्तान को शम्मसुद्दीन कायूमार्स की उपाधि दी गई। जलालुद्दीन खिलजी ने 1290ई. में कैकुबाद एवं फयूमर्स की हत्या करके 1290ई. में खिलजी वंश की नींव डाली। नोट - गुलाम वंश का अन्तिम सुल्तान क्यूमर्स था। गुलाम वंश में कुल 11 शासकों ने शासन किया। Start Quiz! दास वंश का अंतिम सुल्तान कौन था?Notes: गुलाम वंश का अंतिम राजा कैकुबाद था। गुलाम वंश की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने की। कैकुबाद की हत्या जलालुद्दीन फिरोज ने कर दी।
दास वंश का प्रथम सुल्तान कौन था?दिल्ली पर शासन करने वाले सुल्तान 3 अलग-अलग वंशों के थे। कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतबी, इल्तुतमिश ने शम्सी व बलबन ने बलबनी वंश की स्थापना की थी। आरंभ में इसे दास वंश का नाम दिया गया क्योंकि इस वंश का प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक दास था।
दास राजवंश का संस्थापक कौन था?दास वंश की स्थापना कुतुब उद-दीन ऐबक द्वारा की गयी। यह वंश 1206 से 1290 तक रहा। यह दिल्ली सल्तनत के रूप में शासन करने वाले राजवंशों में से पहला था।
4 गुलाम वंश का प्रथम शासक कौन था?कुतुबुद्दीन ऐबक :- (1206-1210
1206 में महमूद गौरी की मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। इसी के साथ भारत में पहली बार गुलाम वंश की स्थापना हुई।
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