पराशर ऋषि के अनुसार नवम भाव को कुंडली के सबसे शुभ भावों में से एक माना गया है। - फोटो : अमर उजाला Show विस्तारवैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में नवम भाव व्यक्ति के भाग्य को दर्शाता है और इसलिए इसे भाग्य का भाव कहा जाता है। जिस व्यक्ति का नवम भाव अच्छा होता है वह व्यक्ति भाग्यवान होता है। इसके साथ ही नवम भाव से व्यक्ति के धार्मिक दृष्टिकोण का पता चलता है। अतः इसे धर्म का भाव भी कहते हैं। इस भाव से व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन का विचार किया जाता है। यह भाव जातकों के लिए बहुत ही शुभ होता है। इस भाव के अच्छा होने से जातक हर क्षेत्र में तरक्की करता है। आचार्य, पितृ, पूर्व भाग्य, पूजा, धर्म, पौत्र, जप, दैव्य उपासना, भाग्य आदि को नवम भाव से दर्शाया जाता है। नवम भाव के स्वामी का अन्य भावों से संबंध कुछ विशेष प्रकार के राजयोगों का निर्माण भी करता है, आइये जानते हैं ये राजयोग कब और कैसे बनते हैं। धार्मिक जीवन- जब लग्न या लग्नेश के साथ नवम भाव अथवा नवमेश का निकट संबंध हो तो मनुष्य के भाग्य और धर्म दोनों का उत्थान होता है। यदि चन्द्र तथा सूर्य से नवम भाव के स्वामी का संबंध चन्द्र व सूर्य अधिष्ठित राशियों के स्वामी से हो जाए तो मनुष्य का जीवन पूर्णतः धर्ममय हो जाता है। चाहे वह गृहस्थी हो या संन्यासी, ऐसा व्यक्ति ज्ञानियों में श्रेष्ठ जीवन वाला और मुक्ति प्राप्त करने वाला महात्मा होता है। राज्यकृपा- नवम भाव को राज्यकृपा का भाव भी कहते हैं। यदि इस भाव का स्वामी राजकीय ग्रह सूर्य, चन्द्र अथवा गुरु हो और बलवान भी हो तो मनुष्य को राज्य(सरकार आदि) की ओर से विशेष कृपा प्राप्त होती है अर्थात वह व्यक्ति राज्य अधिकारी, उच्च पद पर आसीन सम्मानीय व्यक्ति होता है। प्रभुकृपा- प्रभुकृपा का स्थान भी नवम भाव है। क्योंकि यह धर्म स्थान है और प्रभुकृपा के पात्र पुण्य कमाने वाले धार्मिक व्यक्ति ही हुआ करते हैं। इस भाव का स्वामी बलवान हो तथा शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट होकर जिस शुभ भाव में स्थित हो जाता है, मनुष्य को अचानक प्रभुकृपा व दैवयोग से उसी भाव द्वारा निर्दिष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है। जैसे नवमेश बलवान होकर दशम भाव में हो तो राज्य प्राप्ति, चतुर्थ भाव में हो तो वाहन व घर की प्राप्ति, द्वितीय भाव में हो तो अचानक धन की प्राप्ति होती है। राजयोग- पराशर ऋषि के अनुसार नवम भाव को कुंडली के सबसे शुभ भावों में से एक माना गया है। इस भाव के स्वामी का संबंध यदि दशम भाव व दशमेश के साथ हो तो मनुष्य अतीव भाग्यशाली, धनी, मानी तथा राजयोग भोगने वाला होता है। इसका कारण यह है कि दशम भाव केंद्र भावों में से सबसे प्रमुख तथा शक्तिशाली केंद्र है। यह एक विष्णु स्थान भी है। इसी प्रकार नवम भाव त्रिकोण भावों में सबसे प्रमुख व शक्तिशाली त्रिकोण है तथा यह एक लक्ष्मी स्थान है। क्योंकि भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी अत्यंत प्रिय है इसलिए नवम भाव व नवमेश का संबंध दशम भाव तथा दशमेश से होना सर्वाधिक शुभ माना जाता है। इस प्रकार नवम व दशम भाव का परस्पर संबंध धर्मकर्माधिपति राजयोग को जन्म देता है। कुण्डली में लग्न से दशम भाव में चन्द्रमा हो तो अनेक प्रकार की कुशलता, वाग्विलास, साहस, उधम इत्यादि से परिपूर्ण होता हैं।महागुरु गौरव मित्तल जन्म कुंडली में दशम भाव को होने का अपना मतलब होता है। हर किसी की जन्म कुंडली में दशम भाव होता है। हालांकि, यह भाव अलग-अलग ग्रहों का होता है। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि जन्म कुंडली में दशम भाव में किस ग्रह के होने का मतलब क्या है… समुदितमृषिवर्यैर्यानवानां प्रयत्नादिह हि
दशमभावे सर्वकर्म प्रकामम्। दशम भाव से शुभ अशुभ कर्मों का विचार ऋषियों ने किया हैं, वह शुभ और अशुभ ग्रहों की द्दष्टि तथा राशि, ग्रहों के स्वभावों से बल के अनुसार समझना चाहिये। जन्म कुण्डली में दशम भाव की व्यापार और कर्मक्षेत्र में अगत्यता हैं। तनोः सकाशाद्दशमे शशांके वृत्तिर्भवेत्तस्य नरस्य
नित्यम् । जिसकी कुण्डली में लग्न से दशम भाव में चन्द्रमा हो तो अनेक प्रकार की कुशलता, वाग्विलास, साहस, उधम इत्यादि से परिपूर्ण होता हैं। दिवामणिः कर्मणि चन्द्रतन्वोर्द्रव्याण्यनेकोद्यमवृत्तियोगात्। जिसकी कुण्डली में चन्द्रमा से या लग्न से दशम घर में सूर्य हो तो अनेक उधम से धन का लाभ विशेषबल, सर्वदा सुन्दर शरीर, अंग में पुष्टता, मन में प्रसन्नता रहती हैं। तनोः शंशाकाद्दशमे बलीयान् स्याञ्जीवनं तस्य खगस्य वृत्त्या। लग्न से या चन्द्रमा से दशम स्थान में जो बलवान ग्रह हो उसी ग्रह के अनुसार जीविका होती हैं अथवा षड्वर्गों में पूर्णबली ग्रहों के दशान्तर्दशा में जीविका होती हैं। लग्नेन्दुतः कर्मणि चेन्महीजः स्यात्साहसाच्चौर्यनिषादवृत्तिः। लग्न से या चन्द्रमा से कर्मभाव में मंगल हो तो वह हठ से चोरी (चतुराई और कपट) तथा हिंसा करनेवाला होता है, और विषयों में आसक्त रहता हैं, कभी हठात् कहीं दूर देश में रहनेवाला होता हैं। लग्नेन्दुभ्यां कर्मगो रौहिणेयः कुर्यात् द्रव्यं नायकत्वं बहूनाम् । जिसकी कुण्डली में लग्न से या चन्द्रमा से कर्मस्थान में बुध हो तो वह लोगों का नायक, शिल्पकला जानने वाला, साहसी, धनी और पण्डितों की वृत्ति से जीवन चलानेवाला होता हैं। विलग्नतः शीतमयूखतो वाऽऽशाख्ये मघोनः सचिवो यदि स्यात् । जिसकी कुण्डली में लग्न से या चन्द्रमा से दसवें घर में बृहस्पति हो तो उसको अनेक प्रकार से धन का लाभ, ह्रदय की प्रसन्नता और राजा (सरकार) के आश्रय से प्रतिष्ठा बढ़ती हैं। होरायाश्च निशाकरादभृगुसुतो मेषूरणे संस्थितो लग्न से या चन्द्रमा से दशवें स्थान में शुक्र हो तो अनेक तरह के शास्त्रकलाओं के आधार से जीवन बिताने वाला होता हैं, दानमें, साधुओं की सेवा में मन लगाता हैं, विशेष धन का लाभ होता हैं, जनता का नायक एवं प्रख्यात यशवाला होता हैं। फिल्म और छोटे पर्दे के सफल कलाकारों में ये योग होता हैं । होरायाश्च
सुधाकराद्रविसुतः शैलूषमध्यस्थितो जिसकी जन्म कुण्डली में लग्न से या चन्द्रमा से कर्म (१०) स्थान में शनि हो तो वह निम्न कर्मों से आजीविका करनेवाला होता हैं, शरीर में दुर्बलता, खेद करनेवाला, कलह से भय धन धान्य की हानी, चिन्ता के उद्देश से चञ्चलता स्वभाव भी अच्छा नहीं होता हैं। कुंडली में दसवें घर का स्वामी कौन होता है?7. मेष लग्न में दसवें और एकादश भाव का स्वामी शनि है। कुंडली में शनि भी दसवें और एकादश का स्वामी होने से अशुभ ही माना जाता है।
कुंडली में दसवां घर किसका होता है?पाश्चात्य ज्योतिष में कुंडली के दशम भाव को पिता का भाव माना जाता है, क्योंकि कुंडली में दशम भाव ठीक चौथे भाव के विपरीत होता है जो कि माता का भाव है। प्राचीन काल में, पिता को ही गुरु माना जाता था और कुंडली में नवम भाव गुरु का बोध करता है।
दशम गुरु कौन है?गुरु गोविंद सिंह (1675-1708) सिखों के दसवें व अंतिम गुरु गोविंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 ई० को पटना में हुआ था। गुरु गोविंद सिंह सिखों के 9 वें गुरु गुरु तेग बहादुर सिंह के पुत्र थे।
9 भाव का स्वामी कौन है?गुरू नवम स्थान का स्वामी ग्रह माना जाता है। गुरू का इस स्थान में होना उत्तम माना जाता है।
|