ध्वनि प्रदूषण के कारण कौन कौन से हैं? - dhvani pradooshan ke kaaran kaun kaun se hain?

अगर आप ध्वनि प्रदूषण को नजरअंदाज कर रहे हैं तो सावधान हो जाइये इससे न केवल आप बहरे हो सकते हैं बल्कि याददाश्त एवं एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, अवसाद जैसी बीमारियों के अलावा नपुंसकता और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों की चपेट में भी आ सकते हैं। ध्वनि प्रदूषण वो प्रदूषण है जो उच्च और असुरक्षित स्तर तक ध्वनि के कारण पर्यावरण में लोगों में बहुत सी स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का, पशुओं, पक्षियों और पेड़ों आदि की असुरक्षा का कारण बनता है।

ये हो सकती है बीमारियां

ध्वनि प्रदूषण से चिंता, बेचैनी, बातचीत करने में समस्या, बोलने में व्यवधान, सुनने में समस्या, उत्पादकता में कमी, सोने के समय व्यवधान, थकान, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, घबराहट, कमजोरी, ध्वनि की संवेदन शीलता में कमी जिसे हमारे शरीर की लय बनाए रखने के लिये हमारे कान महसूस करते हैं, आदि। यह लंबी समयावधि में धीरे-धीरे सुनने की क्षमता को कम करता है। ऊंची आवाज में लगातार ढोल की आवाज सुनने से कानों को स्थायी रुप से नुकसान पहुंचता है। सड़क पर चलते बाइक, ऑटो सहित अन्य बेवजह हार्न बजाते रहते हैं। कुछ की अंगुली हार्न पर ही लगातार रहती है। इसकी आवाज से न सिर्फ कान का मर्ज बढ़ता दिख रहा है बल्कि लगातार शोर में रहने पर मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन बोलने में व्यवधान बेचैनी नींद की कमी आदि समस्या उत्पन्न हो रही है।

रात के दस बजे से सुबह के छह बजे तक प्रतिबंध

नियम के मुताबिक, रात के दस बजे से सुबह के छह बजे तक खुली जगह में किसी तरह का ध्वनि प्रदूषण डीजे, लाउडस्पीकर, बैंड बाजा, स्कूटर कार बस का हॉर्न, धर्म के नाम पर वाद्ययंत्र का इस्तेमाल या संगीत बजाने फैलाने पर पूरी तरह प्रतिबंध है। इन नियमों का उल्लंघन करने वाले दोषियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 290 और 291 के अलावा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत एक लाख रुपए का जुर्माना अथवा पांच साल तक की जेल या फिर दोनों सजा एक साथ हो सकती है।

परेशाानी होने पर शिकायत करें लोग

पीएमआरए के प्रधान गुरमेल सिंह व रोहित जुनेजा ने बताया, अदालतों और न्यायालय के आदेशों को लागू करना कानून प्रवर्तन एजेंसियों का काम है और इसके लिए पुलिस में शिकायत की जानी चाहिए। रात भर लोग जागरण करते हैं लेकिन अगर लोग ठान लें और पुलिस में शिकायत करें तो ऐसा नहीं होगा और लोग ध्वनि प्रदूषण से होने वाली समस्याओं से बच सकेंगे।

गुरमेल सिंह।

रोहित जुनेजा।

कम करें फोन का इस्तेमाल : डॉ. गुरदेव

डाॅ. गुरदेव सिंह कहते हैं कि स्वास्थ्य के लिहाज से ध्वनि प्रदूषण काफी हानिकारक है। इससे व्यक्ति बहरेपन से लेकर कई तरह की गंभीर बीमारियों का शिकार हो सकता है। ऐसे में ध्वनि प्रदूषण और फोन का कम इस्तेमाल करना चाहिए और जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए।

धर्मशाला, दिनेश कटोच। आधुनिक जीवन शैली व पर्यावरण के प्रति बेरुखी आम आदमी के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। संसाधन जोडऩे की होड़ में इंसान यह भूलता जा रहा है कि इनके दुष्प्रभाव किस कदर घातक साबित होंगे। जनसंख्या वृद्धि और शहरों में वाहनों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ शादी समारोहों में धड़ल्ले से डीजे के प्रयोग से ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है। नियमों को ताक पर रखकर यह सब कुछ निरंतर हो रहा है।

हालांकि रात को 10 से सुबह 6 बजे के बीच ध्वनि प्रदूषण पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन स्थिति इसके विपरीत है।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1972 में असहनीय ध्वनि को प्रदूषण का ही अंग माना है। इसका दुष्प्रभाव मनुष्यों के साथ-साथ पशु-पक्षियों एवं वनस्पतियों पर भी पड़ता है। अगर ध्वनि प्रदूषण को देखने के लिए उठाए कदमों की बात करें तो लाखों की जनसंख्या वाले कांगड़ा जिले में केवल एक ही ध्वनि मापक यंत्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास है। वर्ष 2011 की गणना के अनुसार 15,10,076 की जनसंख्या अब काफी बढ़ चुकी है। इन हालात में व्यवस्था शून्य ही है।

पुलिस विभाग के पास चार ही ही यंत्र हैं। हालांकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व पुलिस प्रशासन दोनों ही ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिए कदम तो उठा रहे हैं, लेकिन किसी के ऊपर पर भी ठोस रूप से जिम्मेदारी तय नहीं है और इसका लाभ नियमों को तोडऩे वाले लोग उठा रहे हैं।

क्या हैं मानक

ध्वनि की तीव्रता को मापने के लिए डेसीबेल इकाई निर्धारित की गई है। निंद्रावस्था में आसपास के वातावरण में 35 डेसीबेल से ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए और दिन का शोर भी 45 डेसीबेल से अधिक नहीं होना चाहिए।

ध्वनि प्रदूषण के स्रोत

प्राकृतिक क्रियाओं के फलस्वरूप भी ध्वनि प्रदूषण होता है परंतु प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण अपेक्षाकृत अल्पकालीन होता है तथा हानि भी कम होती है। बढ़ता शहरीकरण, परिवहन (रेल, वायु, सड़क) व खनन के कारण शोर की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है। विवाह, धार्मिक आयोजनों, मेलों, पार्टियों में लाउड स्पीकर का प्रयोग और डीजे के चलन भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है।

ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव

ध्वनि प्रदूषण के कारण बोलने में व्यवधान, चिड़चिड़ापन व नींद में व्यवधान होता है। ध्वनि की तीव्रता जब 90 डीबी से अधिक हो जाती है तो लोगों की सुनने की क्षमता क्षीण हो जाती है। जो लोग लगातार पांच से 10 घंटे से अधिक समय शोर-शराबे के बीच गुजारते हैं उनकी 55 फीसद सुनने की क्षमता कम हो जाती है।  दीर्घ अवधि तक ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों में न्यूरोटिक मेंटल डिसार्डर हो जाता है। उच्च शोर के कारण मनुष्य को उच्च रक्तचाप, उतेजना, हृदय रोग, आंख की पुतलियों में खिंचाव, मानसिक तनाव व अल्सर जैसे रोग हो सकते हैं।

कैसे पाएं ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण

सड़कों के किनारे पौधे लगाकर ध्वनि प्रदूषण से बचा जा सकता है। हरे पौधे ध्वनि की तीव्रता को 10 से 15 डीबी तक कम कर सकते हैं। प्रेशर हॉर्न बंद किए जाएं, इंजन व मशीनों की मरम्मत लगातार व रात्रि इस बजे के बाद विशेषकर डीजे पर पूरी तरह से प्रतिबंध हो।

शिकायत आने पर पुलिस के सहयोग से ध्वनि प्रदूषण के मामलों की जांच की जाती है। बोर्ड के पास एक ध्वनि मापक यंत्र है। समय-समय पर औद्योगिक क्षेत्रों के साथ अन्य जगहों पर भी ध्वनि प्रदूषण की जांच की जाती है। -डॉ. आरके नड्डा, पर्यावरण अभियंता प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड।

राजस्व एकत्रित करना ही मकसद नहीं है। पर्यावरण व लोगों की सुरक्षा के लिए वाहन चालकों को जागरूक भी किया जा रहा है। नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माने का भी प्रावधान है। -डॉ. संजय कुमार धीमान, आरटीओ फ्लाइंग।

पुलिस व प्रशासन संयुक्त रूप से ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए कदम उठाता है। अगर ध्वनि प्रदूषण के लिए शिकायतें ज्यादा आ रही हैं तो प्रशासन विशेष अभियान भी चलाएगा। ध्वनि मापक यंत्रों की कमी का मामला सरकार के समक्ष रखा जाएगा। -राकेश प्रजापति, उपायुक्त।

जिला पुलिस के पास ध्वनि प्रदूषण की जांच के लिए चार मापक यंत्र हैं। पुलिस  नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कदम उठाती है। शिकायत आने पर संबंधित क्षेत्रों के थाना प्रभारियों को यह हिदायत दी है कि नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करें। -विमुक्त रंजन, एसपी कांगड़ा।

ध्वनि प्रदूषण के मुख्य कारण कौन से हैं?

ध्वनि प्रदूषण के स्रोत बढ़ता शहरीकरण, परिवहन (रेल, वायु, सड़क) व खनन के कारण शोर की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है। विवाह, धार्मिक आयोजनों, मेलों, पार्टियों में लाउड स्पीकर का प्रयोग और डीजे के चलन भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है।

ध्वनि के कारण क्या हैं?

ध्वनि वस्तुओं को हिलाने से उत्पन्न होती है और श्रोता के कानों तक हवा या अन्य माध्यम में तरंगों के रूप में पहुँचती है। जब कोई वस्तु कंपन करती है, तो इससे वायु दाब में मामूली परिवर्तन होता है। ये वायु दाब परिवर्तन हवा के माध्यम से तरंगों के रूप में यात्रा करते हैं और ध्वनि उत्पन्न करते हैं।

ध्वनि प्रदूषण के कितने प्रकार होते हैं?

ध्वनि प्रदूषण से मनुष्यों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। 1- सामान्य प्रभाव। 2- श्रवण संबंधी प्रभाव। 3- मनोवैज्ञानिक प्रभाव।

ध्वनि प्रधान के कारण कौन एवं प्रभाव का वर्णन कीजिए?

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव अवांछनीय ध्वनि के रूप में ध्वनि प्रदूषण शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को हानि पहुंचा सकता है। ध्वनि प्रदूषण चिड़न तथा आक्रामकता, उच्च रक्तचाप, उच्च तनाव स्तर, बहरापन, नींद में बाधा तथा अन्य हानिकारक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है।