फूल मखाने कैसे पैदा होते हैं? - phool makhaane kaise paida hote hain?

विश्व का सर्वाधिक लगभग 80 प्रतिशत मखाने का उत्पादन भारत में होता है, वह भी बिहार राज्य में। भारत के अलावा जापान और रूस में भी इसका उत्पादन होता है। कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे होते हैं जिन्हें हम बड़े चाव से खाते हैं लेकिन हमें पता ही नहीं होता कि वह कहाँ और कैसे पैदा होते हैं। पिछली पोस्ट में हमने हींग के बारे में जाना था आज मखाने के सन्दर्भ में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि मखाना कैसे बनता है और क्या हैं मखाना खाने के फायदे?

देश भर के विभिन्न क्षेत्रों में कई लोग इन बीजों का उपयोग देवताओं को भेंट के रूप में भी करते हैं, खासकर नवरात्रि के दौरान।

  • मखाना क्या होता है?
  • मखाना कैसे बनता है?
    • मखाने की खेती और प्रसंस्करण में प्रयुक्त होने वाले उपकरण
    • मखाने की बुवाई के लिए आवश्यक जल क्षेत्र
    • बुवाई का समय
      • मखाने की किस्में
    • मखाने की खेती का तरीका
      • बुवाई और रोपाई
      • बीजों का उपचार और अंकुरण
      • फसल पकने का समय
      • फसल की बुहराई (बीजों का संग्रहण )
    • मखाने का प्रसंस्करण
  • मखाने की खेती में लागत, मुनाफा और कीमत
    • मखाना की कीमत
  • मखाना खाने के फायदे
  • मखाना कैसे खाएं?
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मखाना क्या होता है?

मखाने जिन्हें अंग्रेजी में फॉक्स नट (Fox nuts) भी कहा जाता है इसके अलावा इसे यूरेल फेरॉक्स, कमल के बीज, गोर्गन नट और फूल मखाना के रूप में भी जाना जाता है। यह जानना भी बहुत रोचक होगा कि यह हमारे राष्ट्रीय फूल कमल से ही प्राप्त होता है। अपनी सुंदरता के लिए जाने जाने वाले फूल में कमल के बीज या मखाना सहित बहुत कुछ होता है।

मखाना कैसे बनता है?

मखाना खाने में जितना स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है और जितने मखाना खाने के फायदे होते हैं, इसका उत्पादन उतना ही कठिन होता है। यह एक कोई सामान्य फसल उगाने जैसा नहीं है , इसको बोने से लेकर फसल प्राप्त करना और फिर उसका प्रसंस्करण करना बहुत ही मेहनत का कार्य होता है। मखाने को बोने से लेकर आप तक पहुँचने में लगभग 8-10 माह का समय लगता है।

मखाने की खेती और प्रसंस्करण में प्रयुक्त होने वाले उपकरण

फूल मखाने कैसे पैदा होते हैं? - phool makhaane kaise paida hote hain?

गांज – यह बांस की कंनियों से बना एक उपकरण है जो लगभग 50 सेंटीमीटर लम्बा और परिधि 35 सेंटीमीटर होती है। इसका उपयोग बीजों को तालाब के ताल से बाहर निकलने में होता है।

फूल मखाने कैसे पैदा होते हैं? - phool makhaane kaise paida hote hain?

करा – यह एक बांस का खम्भा होता है, इसका प्रयोग जलाशय के बीजों को जमा करने के लिए छोटे-छोटे खण्डों में बांटने के लिए किया जाता है।

फूल मखाने कैसे पैदा होते हैं? - phool makhaane kaise paida hote hain?

खैंची यह भी बांस का बना हुआ छोटा उपकरण होता है इसका उपयोह लावे के भण्डारण के पहले लावे को चमकाने के लिए करते हैं।

फूल मखाने कैसे पैदा होते हैं? - phool makhaane kaise paida hote hain?

चलनी यह अलग-अलग आकर के छेदों वाली छलनियाँ होती है जिसका व्यास लगभग आड़े से सवा सेमी तक होता है। गुर्री(बीजों) को उनके आकर के हिसाब से अलग अलग करने में किया जाता है।

फूल मखाने कैसे पैदा होते हैं? - phool makhaane kaise paida hote hain?

अफरा एवं थापी – थापी लकड़ी की बनी होती है और अफरा चौकोर आकार का होता है जिस पर रख कर गर्म बीजों को तोडा जाता है। थापी को बीजों को तोड़ने के लिए हथोड़े के रूप में प्रयोग किया जाता है।

मखाने की बुवाई के लिए आवश्यक जल क्षेत्र

इसकी बुवाई स्थिर जल वाले क्षेत्रों में की जाती है। जिसकी गहराई 1 फ़ीट से लेकर 5 फ़ीट तक होती है। अधिक उत्पादन के लिए काली मिटटी उपयुक्त होती है। पारम्परिक रूप से मखाने की खेती जलाशयों में ही की जाती है जहाँ वर्ष भर पानी जमा रहता है, लेकिन ऐसी निचली जमीन का प्रयोग कर भी खेती की जा सकती है जहाँ पानी की गहराई 1 से 2 फ़ीट हो और जल आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। इस पद्धति से खेती करने से मखाने की फसल के बाद अन्य फसलें भी उगाई जा सकती है और कीट नियंत्रण भी परम्परागत तरीके से की जाने वाली खेती की तुलना में आसान होता है।

बुवाई का समय

बुवाई से पहले तालब में से जलकुम्भी या कोई भी जलिय घास निकाल दी जाती है। यह काम अक्टूबर के अंत तक कर लिया जाता है अच्छे से जल क्षेत्र की सफाई नहीं करने पर पैदावार में कमी हो सकती है। बुवाई दिसंबर से जनवरी के बीच कर ली जाती है। मखाने की बुवाई करने के 45 बाद जब तक पत्तियाँ पानी को ढक न लें निराई (खरपतवार हटाने का काम) की जाती है।

मखाने की किस्में

मुख्यत: 2 प्रकार की उन्नत किस्में बोई जाती है पहली सबौर मखाना 1, दूसरी स्वर्ण वैदेही

फूल मखाने कैसे पैदा होते हैं? - phool makhaane kaise paida hote hain?

सबौर मखाना किस्म के100 किलो बीज से लगभग 55-60 किलो मखाना प्राप्त होता है।

फूल मखाने कैसे पैदा होते हैं? - phool makhaane kaise paida hote hain?

यह भी मखाने की उन्नत किस्म है जिससे अच्छी पैदावार होती है।

मखाने की खेती का तरीका

बुवाई और रोपाई

यह दो तरीके से की जाती है सीधी बीजों द्वारा बुवाई या पौधों की रोपाई। पुराने जलाशयों में जहाँ पहले से मखाने की खेती की जा रही है वहां बुवाई ज्यादा फायदेमंद होती है लेकिन नए जलाशयों में रोपाई करना अच्छा होता है। सीधी बुवाई में रोपाई के अपेक्षा ज्यादा बीज (गुर्री) की आवश्यकता होती है।

बीजों का उपचार और अंकुरण

सबसे पहले बीज के अंकुरण के लिए उसे एक सप्ताह तक भीगे हुए जूट के बोर में छायादार जगह पर रखा जाता है। बीच-बीच में पानी का छिड़काव भी किया जाता है ताकि अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी बनी रहे।

बुवाई से पहले बीजों को कीटनाशक से उपचारित किया जाता है ताकि किसी फसल किसी किस्म की बीमारी से नष्ट न हो। बीजों की अंकुरण क्षमता 50 से 60 प्रतिशत तक ही होती है। पौधों की पर्याप्त वृद्धि के लिए उनके बीच लगभग 1 मीटर की दूरी राखी जाती है। पौध रोपण मार्च तक पूरा कर लिया जाता है।

मखाने की खेती के लिए भी रासायनिक उर्वरक जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और चूने का प्रयोग आवश्यकतानुसार किया जाता है।

फसल पकने का समय

अप्रेल-मई तक जलाशय की सतह पौधों के पत्तों से भर जाती है और फूल आना शुरू हो जाते हैं। बैंगनी-नीला रंग का फूल बहुत आकर्षक लगता है। मई के मध्य से फल लग्न शुरू हो जाता है। इसके फल स्पंजी और कटीला होता है जिसमें लगभग 8-10 बीज कक्ष होते हैं। प्रति फल लगभग 100 बीज होते हैं। एक पौधे से लगभग 400-700 ग्राम बीजों का उत्पादन होता है।

जुलाई के मध्य तक फल पानी में ही फटने लगता है और बीज पानी पर तैरने लगता है। 1-2 दिनों बाद बीज तलहटी पर बैठ जाते हैं। अगस्त-सितंबर तक पौधा गलने लगता है और पौधों को उखाड़ लिया जाता है। और पत्तों को वही नष्ट कर दिया जाता है जो अगली फसल के लिए उर्वरक का कार्य करते हैं।

मखाने की फसल में भी कई प्रकार के रोगों और कीटों के लगने की सम्भावना बानी रहती है। फसल को बचने के लिए विभिन्न कीटनाशकों और नीम के तेल का प्रयोग किया जाता है।

फसल की बुहराई (बीजों का संग्रहण )

मखाने के बीजों को निकलने की प्रक्रिया को बुहरायी कहते हैं। यह सामान्यत: अगस्त-सितंबर के महीने में किया जाता है। इस कार्य हेतु दक्ष व्यक्तियों की जरूरत होती है जो जलाशय में बार-बार गोता लगा कर बीजों को एक जगह जमा करते हैं। इन एकत्र किये बीजों को गांज की मदद से निकाल लिया जाता है।

पानी से बाहर निकलने के बाद बीजों की सफाई की जाती है ताकि उनके ऊपर का आवरण निकल जाता है। सफाई के बाद इन्हे प्रसंस्करण के लिए भेज दिया जाता है।

मखाने का प्रसंस्करण

अभी तक यह कार्य परम्परागत तरीके से ही किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले मखाने की बीजों अर्थात गुर्री को पहले धूप में अच्छी तरह सुखाया जाता है। सूखने के बाद इन्हें चलनियों की सहायता से उनके आकर के अनुसार अलग कर लिया जाता है। और एक बार फिर से धूप में सुखाया जाता है। सूखने के बाद उसी दिन लोहे की कढ़ाईयों में सेंका जाता है। सावधानी पूर्वक इतना ही भुना जाता है ताकि बीज का छिलका न फटे।

अब फिर से गुर्रियों को ठंडा कर 3-4 दिनों के लिए छाया में रख दिया जाता है ताकि अंदर का लावा(सफ़ेद स्पंजी भाग) छिलके से अलग हो जाए। अब गुर्रियों से लावा निकलने के लिए थोड़ी-थोड़ी मात्रा में इन्हें फिर से भुना जाता है। जब बीज फटने लगते हैं तो इन्हें अफरा और थापी की मदद से तोड़ कर सफ़ेद लावा निकल लिया जाता है, यही मखाना होता है। अब इस मखाने को खेंची की मदद से साफ़ कर चमका लिया जाता है।

मखाने की खेती में लागत, मुनाफा और कीमत

प्रति हेक्टेयर अर्थात 4 बीघा क्षेत्र में मखाने की खेती में लगभग 60,000 रुपयों की लागत आती है। गुर्री को बेचने पर शुद्ध मुनाफा लगभग 1,60,000 होता है।

मखाना की कीमत

अभी अक्टूबर 2020 में मखाने की कीमत (खुदरा) मूल्य लगभग 800 से 1100 रु प्रति किलो के बीच है। ज्यादा जानकारी के लिए आप Amazon पर भी देख सकते हैं

मखाना खाने के फायदे

यह एक बहुत ही पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ है।

इसमें कोलेस्ट्रॉल, वसा और सोडियम की मात्रा बहुत कम होती है। इसे दो मुख्य भोजन के बीच की भूख को शांत करने के लिए एक आदर्श नाश्ता कहा जा सकता है। इसके अलावा, यह एक आदर्श वजन घटाने वाला स्नैक भी है क्योंकि इसमें कैलोरी बहुत कम होती है लेकिन यह फाइबर से भरपूर होता है।

मखाने अपने उच्च मैग्नीशियम और कम सोडियम के कारण उच्च रक्तचाप, हृदय रोगों और मोटापे से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद होते हैं।

  • कम ग्लाइसेमिक सूचकांक(low glycemic index) के कारण यह मधुमेह रोगियों के लिए भी लाभकारी होता है।
  • इनमें एक एंटी-एजिंग एंजाइम पाया जाता है जो शरीर में क्षतिग्रस्त प्रोटीन की मरम्मत करने में मदद करता है।
  • आयुर्वेदिक मान्यताओं से पता चलता है कि फॉक्स नट्स में कसैले गुण होते हैं जो किडनी को फायदा पहुंचाते हैं।
  • मखाना लस मुक्त, प्रोटीन युक्त और अच्छे कार्ब्स से भरपूर होता हैं।

मखाना कैसे खाएं?

मखाने को खाने का सबसे आसान तरीका है इसे थोड़े से तेल में भून कर ऊपर से कालीमिर्च और नमक छिड़क दें और गरमा गर्म स्नेक्स के रूप में खाएं। इसके अतिरिक्त मखाने की खीर और अन्य व्यंजन भी बनाये जाते हैं जो बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक होते हैं।

अब आप जब जान ही गए है मखाना खाने के फायदे तो बाज़ार में भी मखाना स्नेक्स के रूप में तैयार मिलता है जिसे आप खरीद कर तुरंत खा सकते हैं।

फूल मखाना कैसे बनता है?

ये कमल के पौधे का हिस्सा होता है और इसे वाटर लिलि से भी निकाला जा सकता है। ये असल में कमल के फूल का बीज होता है जिसे प्रोसेस किया जाता है जिससे ये मखाना बनता है। वो खूबसूरत फूल जिसे लक्ष्मी जी को चढ़ाया जाता है वही फूल हमें मखाना देता है और इसलिए मखाने को इतना शुद्ध माना जाता है।

क्या मखाना कमल के बीज से बनता है?

मखाना दरअसल कमल के फूल के बीज से बनता है जिस वजह से बहुत से लोग इसे फूल मखाना भी कहते हैं। देश के कई हिस्सों में कमल फूल के कई हिस्से बाज़ार में मिलते हैं जैसे कमल ककड़ी जो कि इसके पौधे का तना होता है और पानी के नीचे होता है। इसके अलावा पूजा में इसका फूल और पत्ता तो इस्तेमाल ही होता है।

फूल मखाना क्या होता है?

मखाना (phool makhana) को फॉक्ट नट या कमल का बीज भी कहा जाता है। प्राचीन काल से मखाना को धार्मिक पर्वों में उपवास के समय खाया जाता है। मखाना से मिठाई, नमकीन और खीर भी बनाई जाती है। मखाना पौष्टिकता से भरपूर होता है, क्योंकि इसमें मैग्ननेशियम, पोटाशियम, फाइबर, आयरन, जिंक आदि भरपूर मात्रा में होता है।

मखाना कहाँ से आता है?

बिहार में मिथिला के दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, सुपौल, सीतामढ़ी, पूर्णिया, कटिहार आदि जिलों में मखाना का सार्वाधिक उत्पादन होता है। मखाना के कुल उत्पादन का ८८% बिहार में होता है।