9 भोलानाथ और उसके साथी कैसे खेल खेलते थे? - 9 bholaanaath aur usake saathee kaise khel khelate the?

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Chapter-1 Mata ka Aanchal

1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?

उत्तर:- बच्चे को हृदयस्पर्शी स्नेह की पहचान होती है। बच्चे को विपदा के समय अत्याधिक ममता और स्नेह की आवश्यकता थी। भोलानाथ का अपने पिता से अपार स्नेह था पर जब उस पर विपदा आई तो उसे जो शांति व प्रेम की छाया अपनी माँ की गोद में जाकर मिली वह शायद उसे पिता से प्राप्त नहीं हो पाती। माँ के आँचल में बच्चा स्वयं को सुरक्षित महसूस करताहै।

2. आपके विचार से भोलनाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?

उत्तर:- भोलानाथ भी बच्चे की स्वाभाविक आदत के अनुसार अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में रूचि लेता है। उसे अपनी मित्र मंडली के साथ तरह-तरह की क्रीड़ा करना अच्छा लगता है। वे उसके हर खेल व हुदगड़ के साथी हैं। अपने मित्रों को मजा करते देख वह स्वयं को रोक नहीं पाता। इसलिए रोना भूलकर वह दुबारा अपनी मित्र मंडली में खेल का मजा उठाने लगता है। उसी मग्नावस्था में वह सिसकना भी भूल जाता है।

3. आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।

उत्तर:- मुझे भी अपने बचपन के कुछ खेल और एक – आध तुकबन्दियाँ याद हैं :-

  1. १ अटकन – बटकन दही चटाके।
  2. बनफूल बंगाले।
  3. २ अक्कड़ – बक्कड़ बम्बे बो,
  4. अस्सी नब्बे पूरे सौ।

4. भोलनाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर:- भोलानाथ व उसके साथी खेल के लिए आँगन व खेतों पर पड़ी चीजों को ही अपने खेल का आधार बनाते हैं। उनके लिए मिट्टी के बर्तन, पत्थर, पेड़ों के पत्ते, गीली मिट्टी, घर के समान आदि वस्तुएँ होती थी जिनसे वह खेलते व खुश होते। आज जमाना बदल चुका है। आज माता-पिता अपने बच्चों का बहुत ध्यान रखते हैं। वे बच्चों को बेफिक्र खेलने-घूमने की अनुमति नहीं देते। हमारे खेलने के लिए आज क्रिकेट का सामान, भिन्न-भिन्न तरह के वीडियो गेम व कम्प्यूटर गेम आदि बहुत सी चीज़ें हैं जो इनकी तुलना में बहुत अलग हैं। भोलानाथ जैसे बच्चों की वस्तुएँ सुलभता से व बिना मूल्य खर्च किए ही प्राप्त हो जाती हैं परन्तु आज खेल सामग्री स्वनिर्मित न होकर बाज़ार से खरीदनी पड़ती है। आज के युग में खेलने की समय-सीमा भी तय कर ली जाती है। अतः आज खेल में स्वच्छंदता नहीं होती है।

5. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?

उत्तर:- पाठ में ऐसे कई प्रसंग आए हैं जिन्होंने मेरे दिल को छू लिए –

  1. रामायण पाठ कर रहे अपने पिता के पास बैठा हुआ भोलानाथ का आईने में अपने को देखकर खुश होना और जब उसके पिताजी उसे देखते हैं तो लजाकर उसका आईना रख देने की अदा बड़ी प्यारी लगती है।
  2. बच्चे का अपने पिता के साथ कुश्ती लड़ना। शिथिल होकर बच्चे के बल को बढ़ावा देना और पछाड़ खा कर गिर जाना। बच्चे का अपने पिता की मूंछ खींचना और पिता का इसमें प्रसन्न होना बड़ा ही आनन्दमयी प्रसंग है।
  3. बच्चों द्वारा बारात का स्वांग रचते हुए समधी का बकरे पर सवार होना। दुल्हन को लिवा लाना व पिता द्वारा दुल्हन का घूँघट उठाने ने पर सब बच्चों का भाग जाना, बच्चों के खेल में समाज के प्रति उनका रूझान झलकता है तो दूसरी और उनकी नाटकीयता, स्वांग उनका बचपना।
  4. कहानी के अन्त में भोलानाथ का माँ के आँचल में छिपना, सिसकना, माँ की चिंता, हल्दी लगाना, बाबू जी के बुलाने पर भी मन की गोद न छोड़ना मर्मस्पर्शी दृश्य उपस्थित करता है; अनायास माँ की याद दिला देता है।

6. इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं।

उत्तर:- १. गाँवों में हरे भरे खेतों के बीच वृक्षों के झुरमुट और ठंडी छांवों से घिरा कच्ची मिट्टी एवं छान का घर हुआ करता था आज ज्यादा तर गाँवों में पक्के मकान ही देखने मिलते है।

२. पहले गाँवों में भरे पूरे परिवार होते थे। आज एकल संस्कृति ने जन्म लिया है।

३. अब गाँव में भी विज्ञान का प्रभाव बढ़ता जा रहा है; जैसे – लालटेन के स्थान पर बिजली, बैल के स्थान पर ट्रैक्टर का प्रयोग, घरेलू खाद के

स्थान पर बाज़ार में उपलब्ध कृत्रिम खाद का प्रयोग तथा विदेशी दवाइयों का प्रयोग किया जा रहा है।

४. पहले की तुलना में अब किसानों (खेतिहर मज़दूरों) की संख्या घट रही है।

५. पहले गाँव में लोग बहुत ही सीधा-सादा जीवन व्यतीत करते थे। आज बनावटीपन देखने मिलता है।

7. पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।

उत्तर:- मुझे भी मेरे बचपन की एक घटना याद आ रहीं है।

मैं आँगन में खेल रहा था कुछ बच्चें पत्थर से पेड़ पर फँसी पतंग निकालने का प्रयास कर रहे थे। एक पत्थर मुझे आँख पर लगा। मैं जोरों से रोने लगा। मुझे पीड़ा से रोता हुआ देखकर माँ भी रोने लगी फिर माँ और पिता जी मुझे डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने जब कहा डरने की बात नहीं है तब दोनों की जान में जान आई।

8. यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर:- माता का अँचल में माता-पिता के वात्सल्य का बहुत सरस और मनमोहक वर्णन हुआ है। इसमें लेखक ने अपने शैशव काल का वर्णन किया है।

भोलानाथ के पिता के दिन का आरम्भ ही भोलानाथ के साथ शुरू होता है। उसे नहलाकर पूजा पाठ कराना, उसको अपने साथ घूमाने ले जाना, उसके साथ खेलना व उसकी बालसुलभ क्रीड़ा से प्रसन्न होना, उनके स्नेह व प्रेम को व्यक्त करता है।

भोलानाथ की माता वात्सल्य व ममत्व से भरपूर माता है। भोलानाथ को भोजन कराने के लिए उनका भिन्न-भिन्न तरह से स्वांग रचना एक स्नेही माता की ओर संकेत करता है। जो अपने पुत्र के भोजन को लेकर चिन्तित है।

दूसरी ओर उसको लहुलुहान व भय से काँपता देखकर माँ भी स्वयं रोने व चिल्लाने लगती है। अपने पुत्र की ऐसी दशा देखकर माँ काह्रदय भी दुखी हो जाता है। माँ का ममतालु मन इतना भावुक है कि वह बच्चे को डर के मारे काँपता देखकर रोने लगती है। उसकी ममता पाठक को बहुत प्रभावित करती है।

9. माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।

उत्तर:- लेखक ने इस कहानी के आरम्भ में दिखाया है कि भोलानाथ का ज्यादा से ज्यादा समय पिता के साथ बीतता है। कहानी का शीर्षक पहले तो पाठक को कुछ अटपटा-सा लगता है पर जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है बात समझ में आने लगती है। इस कहानी में माँ के आँचल की सार्थकता को समझाने का प्रयास किया गया है। भोलानाथ को माता व पिता दोनों से बहुत प्रेम मिला है। उसका दिन पिता की छत्रछाया में ही शुरू होता है। पिता उसकी हर क्रीड़ा में सदैव साथ रहते हैं, विपदा होने पर उसकी रक्षा करते हैं।

परन्तु जब वह साँप से डरकर माता की गोद में आता है और माता की जो प्रतिक्रिया होती है, वैसी प्रतिक्रिया या उतनी तड़प एक पिता में नहीं हो सकती।माता उसके भय से भयभीत है, उसके दु:ख से दुखी है, उसके आँसू से खिन्न है। वह अपने पुत्र की पीड़ा को देखकर अपनी सुधबुध खो देती है। वह बस इसी प्रयास में है कि वह अपने पुत्र की पीड़ा को समाप्त कर सके। माँ का यही प्रयास उसके बच्चे को आत्मीय सुख व प्रेम का अनुभव कराता है। उसके बाद तो बात शीशे की तरह साफ़ हो जाती है कि पाठ का शीर्षक ‘माता का आँचल’ क्यों उचित है। पूरे पाठ में माँ की ममता ही प्रधान दिखती है, इसलिए कहा जा सकता है कि पाठ का शीर्षक सर्वथा उचित है। इसका अन्य शीर्षक हो सकता है – ‘माँ की ममता’।

10. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?

उत्तर:- बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम की अभिव्यक्ति कई तरह से करते हैं –

१. माता-पिता के साथ विभिन्न प्रकार की बातें करके अपना प्यार व्यक्त करते हैं।

२. माता-पिता को कहानी सुनाने या कहीं घुमाने ले जाने की या अपने साथ खेलने को कहकर।

३. वे अपने माता-पिता से रो-धोकर या ज़िद करके कुछ माँगते हैं और मिल जाने पर उनको विभिन्न तरह से प्यार करते हैं।

४. माता-पिता के साथ नाना-प्रकार के खेल खेलकर।

५. माता-पिता की गोद में बैठकर या पीठ पर सवार होकर।

६. माता-पिता के साथ रहकर उनसे अपना प्यार व्यक्त करते हैं।

11. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?

उत्तर:- प्रस्तुत पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है उसकी पृष्ठभूमि पूर्णतया ग्रामीण जीवन पर आधारित है। प्रस्तुत कहानी तीस के दशक की है। तत्कालीन समय में बच्चों के पास खेलन-कूदने का अधिक समय हुआ करता था। उनपर पढ़ाई करने का आज जितना दबाव नहीं था। ये अलग बात है कि उस समय उनके पास खेलने के अधिक साधन नहीं थे। वे लोग अपने खेल प्रकृति से ही प्राप्त करते थे और उसी प्रकृति के साथ खेलते थे। उनके लिए मिट्टी, खेत, पानी, पेड़, मिट्टी के बर्तन आदि साधन थे। आज तीन वर्ष की उम्र होते ही बच्चों को नर्सरी में भर्ती करा दिया जाता है। आज के बच्चे विडियो गेम, टी.वी., कम्प्यूटर, शतरंज़ आदि खेलने में लगे रहते हैं या फिर क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, बेडमिण्टन या कार्टून आदि में ही अपना समय बीता देते हैं।

12. फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आँचलिक रचनाओं को पढ़िए।

उत्तर:- १ फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास ‘मैला आँचल’ पठनीय है।

२ नागार्जुन का उपन्यास ‘बलचनमा’ आँचलिक है।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

1.‘माता का अँचल’ पाठ में भोलानाथ के पिता की दिनचर्या का वर्णन करते हुए आज के एक सामान्य व्यक्ति की दिनचर्या से उसकी तुलना कीजिए।

उत्तर:- ‘माता का अँचल’ पाठ में वर्णित भोलानाथ के पिता की दिनचर्या के बारे में यह पता चलता है कि वे सुबह जल्दी उठते और नहा-धोकर पूजा-पाठ पर बैठ जाते थे। वे अकसर बालक भोलानाथ (अपने पुत्र) को भी अपने साथ बिठा लिया करते थे। वे प्रतिदिन रामायण का पाठ करते थे। पूजा के समय वे भोलानाथ को भभूत से तिलक लगा देते थे। पूजा-पाठ के उपरांत वे रामनामी बही पर एक हज़ार बार राम-राम लिखते थे और अपनी पाठ करने की पोथी में रख लेते थे। इसके उपरांत वे पाँच सौ बार कागज के टुकड़े पर राम-राम लिखते और उन्हीं कागजों पर आटे की छोटी-छोटी गोलियाँ रखकर लपेटते। उन गोलियों को लेकर वे गंगा जी के तट पर जाते और अपने हाथों से मछलियों को खिला देते थे। इस समय भी भोलानाथ उनके साथ ही हुआ करता था। आज के आम आदमी की सुबह इस सुबह की दिनचर्या से इसलिए भिन्न है क्योंकि आज इस भौतिकवादी युग में धन-दौलत के पीछे लगी भागम-भाग के कारण आम आदमी के पास इतना समय ही नहीं है।

2.चिड़िया उड़ाते-उड़ाते भोलानाथ और उसके साथियों ने चूहे के बिल में पानी डालना शुरू किया। इस घटना का के या परिणाम निकला?

उत्तर:- खेल से चिड़ियों को उड़ाने के बाद भोलानाथ और उसके साथी को चूहों के बिल में पानी डालने का ध्यान आया। सभी ने एक टीले पर जाकर चूहों के बिल में पानी उलीचनी शुरू किया। पानी नीचे से ऊपर फेंकना था। यह कार्य करते हुए सभी थक गए थे। तभी उनकी आशा के विपरीत चूहे के स्थान पर साँप निकल आया, साँप से भयभीत होकर सभी रोतेचिल्लाते बेतहाशा भागने लगे। कोई औधा गिरा, कोई सीधा। किसी का सिर फूटा, किसी का दाँत टूटा। सभी भागते ही जा रहे थे। भोलानाथ की देह लहू-लुहान हो गई। पैरों के तलवे में अनेक काँटे चुभ गए थे।

3.‘माता का अँचल’ पाठ में वर्णित समय में गाँवों की स्थिति और वर्तमान समय में गाँवों की स्थिति में आए परिवर्तन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- पहले गाँवों की स्थिति बहुत अच्छी न थी। वहाँ बिजली, पानी, परिवहन जैसी सुविधाएँ नाम मात्र की थी। लोगों की आजीविका का साधन कृषि थी। आज गाँवों में टेलीविज़न के प्रचार-प्रसार से लोगों में एकाकी प्रवृत्ति बढ़ी है। बच्चे परंपरागत खेलों से विमुख होकर वीडियोगेम, टेलीविज़न आदि के साथ अपना समय बिताना चाहते हैं। इस बढ़ती आधुनिकता ने ग्रामीण संस्कृति को पतन की ओर उन्मुख कर दिया है।

4.पिता भले ही बच्चे से कितना लगाव रखे पर माँ अपने हाथ से बच्चे को खिलाए बिना संतुष्ट नहीं होती है- ‘माता का अँचल’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- भोलानाथ के पिता भोलानाथ को अपने साथ रखते, घुमाते-फिराते, गंगा जी ले जाते। वे भोलानाथ को अपने साथ चौके में बिठाकर खिलाते थे। उनके हाथ से भोजनकर जब भोलानाथ का पेट भर जाता तब उनकी माँ थोड़ा और खिलाने का हठ करती। वे बाबू जी से पेट भर न खिलाने की शिकायत करती और कहती-देखिए मैं खिलाती हूँ। माँ के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भरता है। यह कहकर वह थाली में दही-भात मिलाती थी और अलग-अलग तोता-मैना, हंस-कबूतर आदि पक्षियों के बनावटी नाम लेकर भोजन का कौर बनाती तथा उसे खिलाते हुए यह कहती कि खालो नहीं तो ये पक्षी उड़ जाएँगे। इस तरह भोजन जल्दी से भरपेट खा लिया करता था।

5. बच्चे रोना-धोना, पीड़ा, आपसी झगड़े ज्यादा देर तक अपने साथ नहीं रख सकते हैं। माता के अँचल’ पाठ के आधार पर बच्चों की स्वाभाविक विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर:- बच्चे मन के सच्चे होते हैं। वे आपसी झगड़े, रोना-धोना, कष्ट की अनुभूति आदि जितनी जल्दी करते हैं उतनी ही जल्दी भूल जाते हैं। वे आपस में फिर इस तरह घुल-मिल जाते हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो। ‘माता का अँचल’ पाठ में बच्चों के सरल तथा निश्छल स्वभाव का पता चलता है। वे लड़ाई-झगड़े की कटुता को अधिक देर तक अपने मन में नहीं रख सकते हैं। खेल-खेल में रो देना या हँस देना उनके लिए आम बात है। अपने मनोरंजन के लिए वे किसी को चिढ़ाने से। भी नहीं चूकते हैं। सुख-दुख से बेपरवाह हो वे अपनी ही दुनिया में मगन रहते हैं।

6.मूसन तिवारी को बैजू ने चिढ़ाया था, पर उसकी सजा भोलानाथ को भुगतनी पड़ी, ‘माता का अँचल’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- एक दिन भोलानाथ और उसके साथी बाग से आ रहे थे कि उन्हें मूसन तिवारी (गुरु जी) दिखाई दिए। उन्हें कम दिखई पड़ता था। साथियों में से ढीठ बैजू ने उन्हें चिढ़ाते हुए कहा ‘बुढ़वा बेईमान माँगे करेला का चोखा ।’ गुरु जी को चिढ़ाकर सभी बच्चे घर की ओर भागने लगे। गुरु जी बच्चों को पकड़ने के लिए भागे पर बच्चे हाथ न आए। वे पाठशाला चले गए। पाठशाला से चार बच्चे भोलानाथ और बैजू को पकड़ने के लिए घर आ गए। शरारती बैजू तथा अन्य बच्चे भाग गए पर भोलानाथ को गुरु जी के शिष्य पकड़कर पाठशाला ले गए। जिन बच्चों ने गुरु जी को चिढ़ाया था, उनके साथ रहने के कारण उन्होंने भोलानाथ को दंडित किया।

7.भोलानाथ और उसके साथी खेल ही खेल में दावत की योजना किस तरह बना लेते थे?

उत्तर:- भोलानाथ और उसके साथी खेलते-खेलते भोजन बनाने की योजना बना लेते। फिर वे सब भोजन बनाने के उपक्रम में जुट जाते घड़े के मुँह का चूल्हा बनाया जाता। दीये (दीपक के पात्र) की कड़ाही और पूजा की आचमनी की कलछी बनाते। वे पानी को घी, धूल को आटा, बालू को चीनी बनाकर भोजन बनाते तथा सभी भोजन के लिए पंगत में बैठ जाते। उसी समय बाबू जी भी आकर पंगत के अंत में बैठ जाते। उनको देखते ही बच्चे हँसते-खिलखिलाते हुए भाग जाते।

8.भोलानाथ और उसके साथी खेल-खेल में फ़सल कैसे उगाया करते थे?

उत्तर:- खेलते-खेलते भोलानाथ और उसके साथी खेती करने और फ़सल उगाने की योजना बनाते चबूतरे के छोर पर घिरनी गाड़कर बाल्टी को कुआँ बना लेते पूँज की पतली रस्सी से चुक्कड़ बाँधकर कुएँ में लटका दिया जाता। दो लड़के बैलों की भाँति मोट खींचने लगते। चबूतरा, खेत, कंकड़, बीज बनता और वे खेती करते। फ़सल तैयार होने में देर न लगती। वे जल्दी से फ़सल काटकर पैरों से रौंदकर ओसाई कर लेते।

9.भोलानाथ की माँ उसे किस तरह कन्हैया बना देती?

उत्तर:- भोलानाथ जब अपने साथियों के साथ गली में खेल रहा होता तभी भोलानाथ की माँ उसे अचानक ही पकड़ लेती और भोलानाथ के लाख ना-नुकर करने पर भी चुल्लूभर कड़वा तेल सिर पर डालकर सराबोर कर देती। उसकी नाभि और। लिलार पर काजल की बिंदी लगा देती। बालों में चोटी गूंथकर उसमें फूलदार लट्टू बाँधती और रंगीन कुरता-टोपी पहनाकर ‘कन्हैया’ बना देती थी।

मूल्यपरक प्रश्न

1.आर्जकल बच्चे घरों में अकेले खेलते हैं, पर भोलानाथ और उसके साथी मिल-जुलकर खेलते थे। इनमें से आप भावी जीवन के लिए किसे उपयुक्त मानते हैं और क्यों?

उत्तर:- यह सत्य है कि आजकल के बच्चे कंप्यूटर पर गेम, वीडियो गेम, टेलीविज़न पर कार्टून देखते हुए अकेले समय बिताते हैं, परंतु भोलानाथ का समय साथियों के साथ खेलते हुए बीतता था। खेत में चिड़ियाँ उड़ाना हो या चूहे के बिल में पानी डालना या खेती करना, बारात निकालना आदि खेल ऐसे थे जिनमें बच्चों का एक साथ खेलना आवश्यक था। मैं मिलजुलकर खेलने को भावी जीवन के लिए उपयुक्त मानता हूँ, क्योंकि-

• इससे सामूहिकता की भावना मजबूत बनती है।

• इस प्रकार के खेलों से सहयोग की भावना विकसित होती है।

• मिल-जुलकर खेलने से सभी बच्चे अपना-अपना योगदान देते हैं, जिससे सक्रिय सहभागिता की भावना का उदय होता है।

• मिल-जुलकर खेलने से बच्चों में हार-जीत को समान रूप से अपनाने की प्रेरणा मिलती है जिनका भावी जीवन में बड़ी उपयोगिता होती है।

2.भोलानाथ के पिता भोलानाथ को पूजा-पाठ में शामिल करते, उसे गंगा तट पर ले जाते तथा लौटते हुए पेड़ की डाल पर झुलाते। उनका ऐसा करना किन-किन मूल्यों को उभारने में सहायक है?

उत्तर:- भोलानाथ के पिता उसको अपने साथ पूजा पर बैठाते। पूजा के बाद आटे की गोलियाँ लिए हुए गंगातट जाते। मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाते, वहाँ से लौटते हुए उसे पेड़ की झुकी डाल पर झुलाते। उनके इस कार्यव्यवहार से भोलानाथ में कई मानवीय मूल्यों का उदय एवं विकास होगा। ये मानवीय मूल्य हैं-

1. भोलानाथ द्वारा अपने पिता के साथ पूजा-पाठ में शामिल होने से उसमें धार्मिक भावना का उदय होगा।

2. प्रकृति से लगाव उत्पन्न होने के लिए प्रकृति का सान्निध्य आवश्यक है। भोलानाथ को अपने पिता के साथ प्रकृति के निकट आने का अवसर मिलता है। ऐसे में उसमें प्रकृति से लगाव की भावना उत्पन्न होगी।

3.मछलियों को निकट से देखने एवं उन्हें आटे की गोलियाँ खिलाने से भोलानाथ में जीव-जन्तुओं के प्रति लगाव एवं दया भाव उत्पन्न होगा।

4.नदियों के निकट जाने से भोलानाथ के मन में नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने की भावना का उदय एवं विकास होगा।

5.वृक्षों से निकटता होने तथा उनकी शाखाओं पर झूला झूलने से भोलानाथ में पेड़ों के संरक्षण की भावना विकसित होगी।

3.वर्तमान समय में संतान द्वारा माँ-बाप के प्रति उपेक्षा का भाव दर्शाया जाने लगा है जिससे वृद्धों की समस्याएँ बढ़ी हैं तथा समाज में वृद्धाश्रमों की जरूरत बढ़ गई है। माता का अँचल’ पाठ उन मूल्यों को उभारने में कितना सहायक है जिससे इस समस्या पर नियंत्रण करने में मदद मिलती हो।

उत्तर:- वर्तमान समय में भौतिकवाद का प्रभाव है। अधिकाधिकथन कमाने एवं सुख पाने की चाहत ने मनुष्य को मशीन बनाकर रख दिया है। ऐसे में संतान के पास बैठने, उसके साथ खेलने और घूमने-फिरने का माता-पिता के पास समय नहीं हैं। इस कारण एक ओर माता-पिता बूढ़े होने पर उपेक्षा का शिकार होते हैं तो दूसरी ओर वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ रही है। ‘माता का अंचल’ पाठ में भोलानाथ का अधिकांश समय अपने पिता के साथ बीतता था। वह अपने पिता के साथ पूजा में शामिल होता था तो पिता जी भी मनोविनोद के लिए उसके साथ खेलों में शामिल होते थे। इससे भोलानाथ में अपने माता-पिता से अत्यधिक लगाव, सहानुभूति, मिल-जुलकर साथ रहने की भावना, माता-पिता के प्रति दृष्टिकोण में व्यापकता, माता-पिता के प्रति उत्तरदायित्व, सामाजिक सरोकारों में प्रगाढ़ता, आएगी जिससे वृद्धों की उपेक्षा एवं वृद्धाश्रम की बढ़ती आवश्यकता पर रोक लगाने में सहायता मिलेगी।

भोलानाथ और उसके साथी कैसे खेल खेलते थे?

Answer: भोलानाथउसके साथी खेल के लिए आँगन व खेतों पर पड़ी चीजों को ही अपने खेल का आधार बनाते हैं। उनके लिए मिट्टी के बर्तन, पत्थर, पेड़ों के पत्ते, गीली मिट्टी, घर के समान आदि वस्तुए होती थी जिनसे वह खेलते व खुश होते।

भोलानाथ के पिता उसके साथ कौन सा खेल खेलते थे?

उत्तरः भोलानाथ कभी-कभी पिताजी के साथ कुश्ती खेला करता था।

भोलानाथ का असली नाम क्या है?

Passage. पिता जी हमें बड़े प्यार से ′ भोलानाथ ′ कहकर पुकारा करते। पर असल में हमारा नाम था ′ तारकेश्वरनाथ ′ ।

प्रश्न 5 आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाते थे?

भोलानाथ को भी जब साथी बालकों की टोली दिखाई देती है तो उनका खेलना-कूदना देखकर, वह गुरु जी की डाँट-फटकार तथा अपना सिसकना भूल जाता है और उनके साथ खेलने में मग्न हो जाता है। बच्चों के साथ उसे लगता है कि अब डर, भय और किसी तरह की चिंता की आवश्यकता नहीं रही। यही कारण है कि भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाता है।