भाषा समाज में क्या संबंध है? - bhaasha samaaj mein kya sambandh hai?

भाषा का सीधा संबंध संस्कार और सभ्यता से है। विश्व में जितने भी देश अग्रणी हैं, वे अपनी भाषा की वजह स

भाषा का सीधा संबंध संस्कार और सभ्यता से है। विश्व में जितने भी देश अग्रणी हैं, वे अपनी भाषा की वजह से ही हैं। यदि हमें भारत को विश्व में सिरमौर बनाना है, तो अपनी भाषा खासकर ¨हदी को मजबूत करना होगा। बच्चे भाषा का संस्कार पहले घर से ही सीखते हैं, फिर स्कूल में। जिस तरह से हमारा देश प्रगति कर रहा है, उसी प्रकार से हमें अपने संस्कार को आगे बढ़ाना चाहिए। कहने को हमारा देश आधुनिक होता जा रहा है। सोशल मीडिया दिनचर्या का हिस्सा बन गई है। बच्चों के साथ बड़े भी अपनी भाषा में बदलाव लाते जा रहे हैं। इसका सीधा प्रभाव हमारे संस्कारों पर पड़ रहा है। फेसबुक, वाट्सअप आदि सोशल मीडिया एप पर लोग मोबाइल पर कम शब्दों की सांकेतिक भाषा का प्रयोग कर बातचीत की आदत अपना रहे हैं। धीरे धीरे यह आदत हमारे स्वभाव और फिर संस्कार का हिस्सा बन जाती है। यदि हम सही प्रकार से भाषा का प्रयोग नहीं करेंगे, तो हम घर और स्कूल के माध्यम से भी बच्चों को संस्कार नहीं दे पाएंगे। हमें अपनी भाषा को सर्वोच्च स्थान देना चाहिए।

अशुद्धियों के प्रदूषण से बचाएं भाषा

भाषा के प्रति लोगों का नजरिया बेहद सामान्य हो गया है। लोगों ने भाषा को अपनी सुविधा के अनुसार ढाल लिया है। इससे फौरी तौर पर अभिव्यक्ति को विस्तार मिल जाता है, लेकिन भाषा अशुद्ध होती जा रही। आने वाले समय में नई पीढ़ी के लिए गंभीर समस्या होने वाली है। इसलिए इसे एक चुनौती के रूप में लेने का वक्त आ गया है। हमें भाषा को अशुद्धियों के प्रदूषण से बचाने का संकल्प लेना होगा।

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बड़ों की जिम्मेदारी भी बड़ी

हम बड़ों के द्वारा ही बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सकता है। इसके लिए जरूरी है कि पहले हम अपनी भाषा को महत्व दें। अपने संस्कारों को बेहतर बनाएं। दरअसल, बड़ों के आचरण को ही बच्चे जीवन में उतारते हैं। भाषा के महत्व और उपयोगिता के असंख्य आयाम है। वास्तव में जीवन और समाज का ऐसा कोई पक्ष नहीं है, जहां भाषा का उपयोग और आवश्यकता न हो। यहां तक कि भाषा का ऐतिहासिक, तुलनात्मक आदि अध्ययन भी भाषा के जरिये ही संभव है।

भाषा सामाजिक संपत्ति

भाषा एक सामाजिक संपत्ति है। इससे शिक्षित समाज का भी विकास, नव निर्माण संभव है। भौगोलिक, सांस्कृतिक और व्यवहारपरक विभिन्नता के कारण भाषा का प्रयोग भी सीमित व विशिष्ट होता है। इसके जरिये ही समाज भी सीमित विशिष्ट बनता है। जातीयता, प्रांतीयता का भी बोध होता है।

सांस्कृतिक सभ्यता का सरंक्षण

पीढ़ी दर पीढ़ी सांस्कृति, सभ्यता व भाषा के सभी तत्व संरक्षित रहते हैं। किसी भी सांस्कृतिक वर्ग की ललित और उपयोगी कलाओं का भंडार भाषा के माध्यम से ही स्थित व सुरक्षित रहता है। विश्व में विज्ञान से लेकर भाषा विज्ञान तक के नए अविष्कार व शोध होते रहते हैं। अध्ययन व शोध लेखन में नए-नए शब्द गढ़े व रचे जाते हैं। इन शब्दो से भाषा के द्वारा सामाजिक व वैज्ञानिक विकास की अभिव्यक्ति होती है। मनुष्य को सभ्य व पूर्ण बनाने के लिए शिक्षा जरूरी है। सभी प्रकार की शिक्षा का माध्यम भाषा ही है।

मानवीय मूल्यों का अहसास कराती भाषा

विश्व के हितों को ध्यान में रखते हुए जो ¨चतन, मनन गहराई से किया जाता है, वह दार्शनिक ¨चतन कहलाता है। यहां बताना चाहूंगी कि गांधी जी स्वयं अंग्रेजी के प्रभावी ज्ञाता व वक्ता थे। गांधी के विचार शिक्षा के संदर्भ में स्पष्ट थे। उनके अनुसार, हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाने जैसा है। उनका मानना था कि कि विदेशी भाषा के माध्यम से दी गई शिक्षा बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करती है। मौलिकता का अभाव पैदा होता है। जबकि मातृभाषा संस्कार के साथ नैतिक व मानवीय मूल्यों की भी शिक्षा देती है।

- तराना जमाल, प्रधानाध्यापक, लीड कान्वेंट स्कूल

बच्चों से बातचीत

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मत बिगाड़ें भाषा का स्वरूप

फोटो 5एसएचएन 3

आधुनिकता की आंधी में हम अपनी भाषा को दिन ब दिन छोटा करते जा रहे हैं। इस कारण हमारे संस्कार भी सिमट रहे हैं। हमें भाषा का स्वरूप नहीं बिगाड़ना चाहिए। भाषा के परिष्करण, परिमार्जन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इससे हमारा ज्ञान भी बढ़ेगा और संस्कार भी दिखेंगे।

अभिमान्या राघव, कक्षा - 5

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प्रभावी अभिव्यक्ति को जरूरी है शुद्ध भाषा

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अभिव्यक्ति का माध्यम है भाषा। जितनी अच्छी भाषा होगी, उतनी ही प्रभावी हमारी अभिव्यक्ति। मेरा मानना है कि भाषा को मूल स्वभाव में ही बोलना चाहिए, लिखना चाहिए। आजकल लोग भाषा को बिगाड़ रहे हैं। कम शब्दों के चक्कर में ज्ञान भी कम करते जा रहे, जो बड़ी समस्या बन रही है। हमें भाषा के संस्कार को समझना, अपनाना होगा।

शुभ्या शुक्ला, कक्षा - 5

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भाषा में झलकने चाहिए संस्कार

फोटो 5एसएचएन 5

भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा हम अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं। भाषा से ही हम किसी को प्रभावित कर सकते हैं। अच्छे शब्दों के प्रयोग व प्रभावी शैली में जब हम बात करते है तो उसमें हमारे संस्कार भी झलकते हैं। जीवन में यदि अच्छी भाषा का प्रयोग सीख लिया तो मानो जग जीत लिया। गांधीजी ने भी यही शिक्षा दी, बुरा न बोलो, बुरा न सुनो, बुरा न देखा।

उमम तसनीम खान, कक्षा - 7

भाषा के संस्कार की पहली पाठशाला घर

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¨हदी है हम वतन हैं, ¨हदुस्तान हमारा..इन पंक्तियों में कवि ने ¨हदी भाषा का महत्व समझाने की कोशिश की। भाषा के संस्कार में बड़ों की अहम भूमिका होती है। घर, परिवार, विद्यालय में जैसा बोला जाता, लिखा जाता, उसे ही बच्चे सीखते हैं। इसलिए बड़ों की बड़ी जिम्मेदारी है भाषा के संस्कार निखारें।

आकर्षि परमार, कक्षा 8

दिल में उतर जाए, ऐसी बोलें भाषा

फोटो 5एसएचएन 7

व्यक्तित्व को निखारती है भाषा। सफलता की तरह भाषा का भी शार्टकट नहीं होना चाहिए। प्रत्येक शब्द, वाक्य को समझकर ही बोलना, लिखना चाहिए। रामचरित मानस की चौपाई और गीता के श्लोक को देखें, ऐसी भाषा का प्रयोग किया गया तो कि सीधे मन मस्तिष्क में उतर जाए। ऐसी भी भाषा को आत्मसात करने की जरूरत है।

अंशिका गुप्ता, कक्षा - 9

भाषा के संस्कार की दुश्मन बनी संचार क्रांति

फोटो 5एसएचएन 8

दो दशक पूर्व तक चिट्टी लिखते समय भाषा का विशेष खयाल रखा जाता था। उम्र को ध्यान में रखकर संबोधन होता था। अच्छे शब्दों का चयन पर ध्यान रहता था। अब संचार क्रांति के युग में पत्र इतिहास बन गए। सोशल मीडिया पर संक्षेप की भाषा विकसित हो गई, जो काफी खतरनाक है। कहीं यह आदत संस्कार न बन जाए, इस पर ध्यान देना होगा।

जन्नत फातिमा, कक्षा - 9

Edited By: Jagran

भाषा और समाज का क्या संबंध है?

भाषा और समाज का संबंध अभिन्न है। मनुष्य के पास भाषा सीखने की क्षमता होती है, किंतु वह भाषा को तभी सीख पाता है जब उसे एक भाषायी समाज का परिवेश प्राप्त होता है। एक ओर समाज के माध्यम से ही भाषा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचती है, तो दूसरी ओर भाषा के माध्यम से समाज संगठित और संचालित होता है।

भाषा का समाज में क्या महत्व है?

सामान्यत: भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं, यह हमारे समाज के निर्माण, विकास, अस्मिता, सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान का भी महत्वपूर्ण साधन है। भाषा के बिना मनुष्य अपूर्ण है और अपने इतिहास और परंपरा से विछिन्न है।

भाषा समाज से आप क्या समझते हैं?

जिस समाज के हम सदस्य होते हैं, उसी समाज की भाषा हम सबसे पहले बोलते सीखते हैं। हमारी ही तरह अन्य लोग इस समाज के सदस्य होते हैं जो अनिवार्य रूप से इस समाज की भाषा बोलते-समझते । एक भाषा बोलने-समझने वाले ऐसे ही लोगों के समूह को "भाषा-समाज" या "भाषा-समुदाय" कहा जा सकता है ।

हिंदी भाषा का समाज में क्या स्थान है?

जनतांत्रिक आधार पर हिंदी विश्व भाषा है क्योंकि उसके बोलने-समझने वालों की संख्या संसार में तीसरी है। विश्व के 132 देशों में जा बसे भारतीय मूल के लगभग 2 करोड़ लोग हिंदी माध्यम से ही अपना कार्य निष्पादित करते हैं ।