भद्रा काल में क्या नहीं करना चाहिए? - bhadra kaal mein kya nahin karana chaahie?

हाइलाइट्स

हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि भद्रा के समय कोई भी शुभ कार्य नहीं करने चाहिए.
भ्रदा काल में शुभ कार्य करने से उसका फल सकारात्मक नहीं होता है.

हिंदू धर्म में कोई भी कार्य करने से पहले शुभ दिन, शुभ तिथि, शुभ मुहूर्त का पता लगाया जाता है. हिंदू धर्म में ऐसे कई दिन होते हैं, जिनमें शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. जिस दिन भद्रा काल होता है, उस दिन शुभ कार्य नहीं करते हैं. भद्रा (Bhadra) शनि की सगी बहन हैं. हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि भद्रा के समय कोई भी शुभ कार्य नहीं करने चाहिए. इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से अशुभ असर मिलता है. पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन (Rakshabandhan) के दिन 11 अगस्त, गुरुवार को भद्रा काल का समय सुबह 10:38 बजे से रात 08:50 बजे तक है. ऐसे समय में बहनों को अपने भाइयों की कलाई में राखी तक नहीं बांधनी चाहिए. इसके अलावा कई ऐसे कार्य हैं, जो भद्रा काल के समय नहीं करने चाहिए. आइए जानते हैं पंडित इंद्रमणि घनस्याल से.

नहीं करने चाहिए ये कार्य
पुराणों के अनुसार भद्रा सूर्यदेव की पुत्री और शनि की बहन हैं. शनि की तरह ही इनका स्वभाव भी काफी गुस्सैल है. उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया है.

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ऐसी मान्यता है कि भद्रा काल में मांगलिक कार्य जैसे- मुंडन, गृह प्रवेश, संस्कार, विवाह संस्कार, रक्षाबंधन जैसे शुभ कार्य नहीं करने चाहिए. ऐसा माना जाता है कि भद्रा के समय कोई भी शुभ कार्य का अशुभ प्रभाव पड़ता है.

भद्रा के दुष्प्रभाव से बचने के लिए करें 12 नाम का जाप
भद्रा के दुष्प्रभाव से बचने के लिए भद्रा के 12 नामों का धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली तथा असुरक्षयकरी का रोज नियमित रूप से सुबह उठकर स्मरण करना चाहिए. इससे किसी भी व्याधि का भय नहीं होता. रोगी रोग से मुक्त हो जाता है और सभी ग्रह अनुकूल हो जाते हैं.

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Tags: Astrology, Rakshabandhan, Shanidev, Spirituality

FIRST PUBLISHED : August 10, 2022, 09:45 IST

सावन पूर्णिमा तिथि सुबह 10 बजकर 38 मिनट से शुरू होगी, जो अगले दिन 12 अगस्त की सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक रहेगी। इस दिन भद्रा लगने के कारण कुछ लोग रक्षाबंधन का पर्व 11 अगस्त को मनाएंगे तो कुछ 12 अगस्त भद्रा मुक्त राखी बंधवाएंगे। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 11 अगस्त को भद्रा काल रात 8.51 बजे तक है। मकर राशि पर चंद्रमा होने के कारण भद्रा पाताल लोक में चली जाएगी, जिससे भद्रा दोष समाप्त हो जाएगा। लेकिन क्या आपको पता है भद्रा काल किसे कहते हैं और यह भद्रा कब-कब लगती है। आइए जानते हैं भद्रा के उपाय और किन राशियों पर भद्रा का रहता है सबसे ज्यादा असर...

इस अवधि को कहा जाता है भद्रा काल

हिंदू धर्म में भद्रा काल को अशुभ समय माना गया है और इस अवधि में कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य नहीं किए जाते। अगर इस काल में कोई शुभ कार्य किया जाए तो उसके अशुभ परिणाम मिलने की संभावना अधिक रहती है। किसी भी शुभ कार्य में पंचांग की गणना की जाती है। पंचांग में तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण होता है। पंचांग के पांचवे भाग को करण कहते हैं। तिथि को पहले अर्ध भाग को प्रथम करण और तिथि के दूसरे अर्ध भाग को द्वितीय करण कहते हैं। ऐसे में एक तिथि में दो करण होते हैं। जब किसी तिथि पर विचार किया जाता है तो उसमें विष्टि नामक करण आता है, तब उस अवधि को भद्रा कहते हैं। ऋषि कश्यप ने भद्रा को दुखदायी और अशुभ काल बताते हुए कहा है-
न कुर्यात मंगलं विष्ट्या जीवितार्थी कदाचन।
कुर्वन अज्ञस्तदा क्षिप्रं तत्सर्वं नाशतां व्रजेत।।

अर्थात जो व्यक्ति अपने सुखमय जीवन व्यतीत करना चाहते है तो उसे भद्रा काल में कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। अगर आप अनजाने में कोई शुभ कार्य करते हैं तो उसका फल नहीं मिलेगा।

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इस समय रहती है भद्रा
हर महीने दो पक्ष आते हैं, एक शुक्ल और दूसरा कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष में चार बार भद्रा की पुनरावृति होती है, जैसे अष्टमी तिथि और पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्द्ध में भद्रा का साया रहता है। वहीं चतुर्थी और एकादशी के उत्तरार्ध में भद्रा रहती है। वहीं कृष्ण पक्ष में तृतीया तिथि और दशमी तिथि को उत्तरार्ध में भद्रा का साया रहता है और सप्तमी तिथि और चतुर्दशी तिथि के पूर्वार्द्ध में भद्रा रहती है।

भद्रा में कर सकते हैं ये कार्य
भद्रा काल में शुभ कार्य करना वर्जित बताया गया है लेकिन अगर आप मुकदमा शुरू करना चाहते हैं या मुकदमे संबंधी कार्य चल रहे हैं तो भद्रा काल सही समय माना जाता है। इसके साथ ही भद्रा में ऑपरेशन, शत्रु दमन, युद्ध, अग्नि कार्य, विवाद संबंधी काम, शस्त्रों से जुड़े कार्य और सभी अनैतिक कार्य इस काल में कर सकते हैं।

भद्रा में ये कार्य करना है वर्जित

भद्रा काल में कोई शुभ कार्य भी अनजाने में नहीं करने चाहिए। इस काल में विवाह संस्कार, मुंडन, रक्षाबंधन, गृह प्रवेश, नया कार्य, नया व्यवसाय आदि कोई शुभ व मांगलिक कार्य करना वर्जित बताया गया है। भद्रा काल में शुभ उद्देश्य से किए जाने वाले कार्य को कभी फल नहीं मिलता।

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इन राशियों पर होता है अधिक असर
पंचांग के अनुसार, अलग-अलग राशियों के माध्यम से भद्रा तीनों लोकों में घूमती रहती है। जब भद्रा पृथ्वी लोक (मृत्यु लोक) पर आती है तब कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते क्योंकि भद्रा की अवधि नाश करने वाली मानी गई है। वहीं जब भद्रा स्वर्ग और पाताल लोक में होती है तब वह शुभ फल प्रदान करने वाली मानी गई है।

चंद्रमा जब कर्क राशि, सिंह राशि, कुंभ राशि और मीन राशि में होते हैं तब भद्रा पृथ्वी पर वास करती है। वहीं जब चंद्रमा मेष राशि, वृष राशि, मिथुन राशि और वृश्चिक राशि में होते हैं तब भद्रा स्वर्ग लोक में वास करती है। वहीं जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर में होते हैं तब भद्रा का वास पाताल लोक होता है। भद्रा जब जिस लोक में होती है, तब वह वहीं मूलरूप से प्रभावी रहती है। ऐसे में पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा मकर राशि में होंगे, जिसकी वजह से भद्रा पाताल लोक में होगी इसलिए ज्योतिषाचार्य 11 अगस्त को राखी बंधवाने के लिए कह रहे हैं।

पंचांग के अनुसार, चंद्रमा जब मेष राशि, वृषभ राशि, मिथुन राशि, कन्या राशि, तुला राशि, वृश्चिक राशि, धनु राशि और मकर राशि में होते हैं तब भद्रा शुभ फल प्रदान करने वाली मानी गई है।

इस समय रहता है भद्रा का मुख
पंचांग के अनुसार, हर माह में दो पक्ष आते हैं, शुक्ल और कृष्ण पक्ष। इन पक्ष में पड़ने वाली तिथि में भद्रा का मुख रहता है।

शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के पांचवे प्रहर की पांच घटी में, अष्टमी तिथि के दूसरे प्रहर की कुलमान आदि की पांच घटी में, एकादशी तिथि के सातवें प्रहर की पांच घटी में और पूर्णिमा तिथि के चौथे प्रहर की शुरुआत की पांच घटी में भद्रा का मुख होता है।

उसी तरह कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि के आठवें प्रहर की पांच घटी में, सप्तमी तिथि के तीसरे प्रहर की पांच घटी में, दशमी तिथि के 6 प्रहर और चतुर्दशी तिथि के प्रथम प्रहर की पांच घटी में भद्रा का मुख रहता है।

इस समय रहता है भद्रा का पुच्छ काल
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के अष्टम प्रहर की अंत की तीन घटी दशमांश तुल्य को भद्रकाल का पुच्छ कहा गया है। पूर्णिमा तिथि के अंतिम तीन घटी में भद्रा पुच्छ में होती है।

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शनिदेव की बहन हैं भद्रा
पौराणिक कथा अनुसार, भद्र भगवान सूर्य की पुत्र और शनिदेव की बहन है। भविष्य पुराण के अनुसार भद्रा का स्वरूप बेहद भयानक है और इनके उग्र स्वभाव के कारण ही ब्रह्माजी ने भद्रा को सृष्टि के काल गणना में एक स्थान दिया है। ब्रह्माजी ने कहा है कि जो व्यक्ति इस कालगणना में कोई शुभ कार्य करेगा तो भद्रा उनको परेशान कर सकती है। इसलिए भद्रा में कोई भी शुभ कार्य नहीं कि जाते। इस काल में शुरू किए जाने वाला कोई भी कार्य या तो पूरे नहीं होते या किसी न किसी अड़चन की वजह से इसमें देरी होती है।

भद्रा से बचने के उपाय
ज्योतिष शास्त्र में भद्रा के दुष्प्रभावों से बचने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं। अगर भद्रा में कोई कार्य कर रहे हैं तो सुबह उठकर भद्रा के बारह नाम का स्मरण करें और भद्रा की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से भद्रा का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता है और आपके कार्य बिना किसी अड़चन के पूरे हो जाते हैं।

भद्रा को 12 नामों से जाना जाता है-
धन्या, दधमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारूद्रा, विष्टि, कुल पुत्रिका, भैरवी, महाकाली और असुर क्षयकारी

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भद्रा काल में क्या क्या नहीं करना चाहिए?

भद्रा काल में कौन-कौन से कार्य वर्जित है आचार्य राहुल वशिष्ठ जी ने बताया कि ग्रंथों के अनुसार भद्रा में कई कार्यों को निषेध माना गया है. जैसे मुण्डन संस्कार, गृहारंभ, विवाह संस्कार, गृह - प्रवेश, रक्षाबंधन, शुभ यात्रा, नया व्यवसाय आरंभ करना और सभी प्रकार के मंगल कार्य भद्रा में वर्जित माने गये हैं.

भद्रा कौन सी शुभ होती है?

- शुक्ल पक्ष की चतुर्थी व एकादशी तथा कृष्ण पक्ष की तृतीया व दशमी तिथि वाली भद्रा दिन में शुभ होती है, केवल रात्रि में अशुभ होती है। - शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी तिथि वाली भद्रा रात्रि में शुभ होती है, केवल दिन में अशुभ होती है।

भद्रा में पूजा कर सकते हैं क्या?

इसकी पौराणिक कथा की वजह से भद्रा काल में शुभ काम करने वर्जित माने जाते हैं। हालांकि भद्रा काल में पूजा-पाठ, जप, ध्यान आदि किए जा सकते हैं, लेकिन शादी ब्याह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि करने की मनाही होती है

भद्रा दोष क्या होता है?

यूं तो 'भद्रा' का शाब्दिक अर्थ है 'कल्याण करने वाली' लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या या उनका नाश करने वाली मानी गई है।