प्रत्येक पशुपालक को गाभिन पशुओ की विशेष देखभाल करनी चाहिए , क्योंकि ब्याने के बाद दूध उत्पादन की मात्रा ओर गाय का स्वास्थ्य इसी पर निर्भर करता है। गर्भ में पलने वाले बच्चे के विकास के लिए भी गाय के खान पान एवं रहन -सहन का विशेष प्रबंधन करना आवश्यक है। गाय का गर्भकाल २७० से २८५ दिन के बिच होता है। इस दौरान गायों को आवश्यक प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट , खनिज व् वासा युक्त आहार की जरुरत होती है। संतुलित ओर पर्याप्त आहार देने से सेहतमंद बच्चे का जन्म होता है। Show गाय की गर्भावस्था उसके दूध उत्पादन के नजरिये से बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए इसके दौरान पशुपालकों को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
दुधारू गाय के ब्याने से दो महीने पहले दूध निकालना बंद कर देना चाहिए, ताकि पशु सूखी अवस्था में आ जाए। सुखाने के बाद जानवर को रोजाना लगभग 1.5 किलोग्राम दाना मिश्रण देना चाहिए। इस विधि को स्टीमिंग–अप कहा जाता है। स्टीमिंग –अप से ब्याने के बाद पशु से अधिकतम दूध उत्पादन होता है तथा यह शारीरिक बढ़वार में भी सहायक है। जिन पशुओं में अधिक दूध उत्पादन की क्षमता हो, उन्हें नकारात्मक ऊर्जा संतुलन से बचाने के लिए तथा उनसे अधिकतम दूध प्राप्त करने के लिए व्याने के दो सप्ताह पहले से प्रतिदिन 500 ग्राम सांद्र दाना देना चाहिए। इसे प्रतिदिन 300-400 ग्राम तब तक बढ़ाना चाहिए जब तक जानवर 1 किलोग्राम साद्र दाना प्रति 100 किलोग्राम शारीरिक वजन तक न खाने लग जाए। इसे चैलेंज फीडिंग कहा जाता है। इससे पशुओं में ऊर्जा का संतुलन समान्य बना रहता है और अधिकतम दूध उत्पादन प्राप्त होता है। ब्याने से पहले गाभिन गाय के राशन में कैल्शियम की मात्रा अधिक नहीं होनी चाहिए अन्यथा ब्याने के बाद पशु की आँतों से कैल्शियम का अवशोषण कम हो सकता है तथा पशु को मिल्क फीवर अथवा दूध ज्वर होने की आशंका हो सकती है। गाभिन गाय के राशन में पर्याप्त मात्रा में आयोडीन तथा ऊर्जा होनी चाहिए। ऊर्जा की कमी होने से प्रश्न को कीटोसिस नामक बीमारी हो सकती है। पशु के ब्याने के 15 दिन पहले उसे अन्य प्रशुओं से अलग कर देना चाहिए, जहां जानवर की विशेष देखभाल हो सके। एक आदर्श ब्याने वाले कक्ष का आकार 3 मीटर गुणा 4 मीटर होना चाहिए। साथ ही बिछावन की उपयुक्त व्यवस्था भी होनी चाहिए। इस काल में गाभिन गाय को अन्य जानवरों से चोट लगने की संभावना रहती है तथा अन्य जानवरों से किसी प्रकार के संक्रमण के कारण गर्भपात भी हो सकता है। इसलिए विशेष आवास और प्रबंधन जरूरी है। गाभिन पशु को हमेशा साफ-सुथरे वातावरण में रखना चाहिए। साधारण व्यायाम भी कराना चाहिए। पशु को डराना, धमकाना या परेशान नहीं करना चाहिए। पशु को दौड़ाना नहीं चाहिए। उन्हें गर्मी, सर्दी एवं बरसात से बचाना चाहिए। प्रसव का दिन निकट आने पर विशेषकर अंतिम दो-तीन दिनों में विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है, क्योंकि प्रसव दिन या रात किसी भी समय हो सकता है।
गाभिन गाय को क्या क्या खिलाएं?गाभिन गाय या भैंस को साधारणतया 25 से 30 किलोग्राम हरा चारा, दो से चार किलोग्राम सूखा चारा, दो से तीन किलोग्राम दाना एवं 50 ग्राम नमक रोज दें। } गाभिन पशु के ब्याने के करीब दो सप्ताह पहले अन्य पशुओं से अलग कर दें। अच्छी गुणवत्ता के शीघ्र पाचक चारों में चोकर अलसी मिलाकर दें।
गाय को कैल्शियम कब देना चाहिए?दुधारू पशुओं को प्रतिदिन 50 मिलीलीटर कैल्शियम देनी चाहिए।. पशु ज्यादातर समय पेट और गर्दन मोड़ कर बैठे रहते हैं।. पशुओं का शारीरिक तापमान सामान्य से कम हो जाता है।. कैल्शियम की कमी होने पर पशु बेहोश भी हो सकते हैं।. गाभिन गाय की क्या पहचान है?योनिद्वार में सूजन आ जाती है और योनि से कुछ लसलसा पदार्थ आने लगता है। पशु का अयन सख्त हो जाता है, पशु के कूल्हे की हड्डी वाले हिस्से के पास 2-3 इंच का गड्ढा पड़ जाता है। पशु बार-बार पेशाब करता है। पशु अगले पैरों से मिट्टी कुरेदने लगता है।
गाय को क्या नहीं खिलाना चाहिए?गाय को कुछ भी खिलाने से पुण्य की ही प्राप्ति होती है। लेकिन गाय को कभी भी बासी रोटी नहीं खिलानी चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना गया है। गाय को बासी रोटी खिलाने से कष्ट भोगने पड़ते हैं और मनुष्य को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
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