गंगा नदी के पानी की क्या विशेषता है? - ganga nadee ke paanee kee kya visheshata hai?

गंगा नदी अपने विशेष जल और इसके विशेष गुण के कारण मूल्यवान मानी जाती है. इसका जल अपनी शुद्धता और पवित्रता को लम्बे समय तक बनाये रखता है. माना जाता है कि गंगा का जन्म भगवान् विष्णु के पैरों से हुआ था. साथ ही यह शिव जी की जटाओं में निवास करती हैं. गंगा स्नान , पूजन और दर्शन करने से पापों का नाश होता है, व्याधियों से मुक्ति होती है. जो तीर्थ गंगा किनारे बसे हुए हैं, वे अन्य की तुलना में ज्यादा पवित्र माने जाते हैं.

गंगा का वैज्ञानिक महत्व क्या है?

गंगा नदी का जल वर्षों प्रयोग करने पर और रखने पर भी ख़राब नहीं होता है. इसके जल के नियमित प्रयोग से रोग दूर होते हैं. हालांकि इन गुणों के पीछे का कारण अभी बहुत हद तक अज्ञात है. कुछ लोग इसे चमत्कार कहते हैं और कुछ लोग इसे जड़ी-बूटियों और आयुर्वेद से जोड़ते हैं. विज्ञान भी इसके दैवीय गुणों को स्वीकार करता है. अध्यात्मिक जगत में इसको सकारात्मक उर्जा का चमत्कार कह सकते हैं.

जीवन मंत्र डेस्क. हिंदू धर्म में गंगा नदी को बहुत पवित्र माना गया है। ग्रंथों में गंगा को देव नदी भी कहा गया है। विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों में गंगा जल का उपयोग भी किया जाता है। वर्तमान में गंगा नदी ज्यादातर हिस्सों में प्रदूषण की मार सह रही है, लेकिन उसे स्वच्छ रखने के प्रयास बड़े स्तर पर किए जा रहे हैं। गंगा जल को पवित्र मानने के पीछे धार्मिक कारणों के साथ साथ कई वैज्ञानिक तथ्य भी हैं।

गंगा जल से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य

  1. लखनऊ के नेशनल बॉटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआई) ने जांच में पाया है कि गंगा जल में बीमारी पैदा करने वाले ई कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है।
  2. वैज्ञानिकों को कहना है कि गंगा का पानी जब हिमालय से आता है तो कई तरह के खनिज और जड़ी -बूटियों का असर इस पर होता है। इससे इसमें औषधीय गुण आ जाते हैं।
  3. गंगा जल में वातावरण से ऑक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है। गंगा के पानी में प्रचुर मात्रा में गंधक भी होता है, इसलिए यह लंबे समय तक खराब नहीं होता।
  4. वैज्ञानिक परीक्षणों से पता चलता है कि गंगाजल से स्नान करने तथा गंगाजल को पीने से हैजा, प्लेग और मलेरिया आदि रोगों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।

धार्मिक महत्व

  • गंगा नदी में स्नान करने मात्र से पापों का नाश होता है तथा अनंत पुण्यफल की प्राप्ति होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करना चाहिए, ऐसा न कर सकते तो घर में ही पानी में गंगाजल डालकर नहाना चाहिए। गंगा स्नान करने से 10 तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।
  • राजा भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर स्वर्ग से देवी गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं। मान्यता है कि घर में गंगाजल रखने से पूरा परिवार बुरे समय से बचा रहता है।

5. गंगा ही एकमात्र ऐसी नदी है जिसमें सभी देवी और देवताओं ने स्नान करके इसके जल को पवित्र कर दिया है। हरिद्वार में भगवान विष्णु के चरण कमल इस नदी पर पड़े थे।

6. गंगा ही एक मात्र ऐसी नदी है जहां पर अमृत कुंभ की बूंदें दो जगह गिरी थी। प्रयाग और हरिद्वार। जबकि अन्य क्षिप्रा और गोदावरी में एक ही जगह अमृत बूंदे गिरी। अमृत की बूंदे इस गंगाजल में मिलने से संपूर्ण गंगा नदी का जल और भी ज्यादा पवित्र माना जाता है।

7. गंगा भगवान विष्णु का स्वरूप है। इसका प्रादुर्भाव भगवान के श्रीचरणों से ही हुआ है। तभी तो गंगा (मां) के दर्शनों से आत्मा प्रफुल्लित तथा विकासोन्मुखी होती है।

8. गंगा का जल कभी अशुद्ध नहीं होता और ना ही यह सड़ता है। इसीलिए इस जल को घर में एक तांबे या पीतल के लोटे में भरकर रखा जाता है। कई घरों में से कई सालों से यह जल रखा हुआ है। गंगा नदी दुनिया की एकमात्र नदी है जिसका जल कभी सड़ता नहीं है। नदी के जल में मौजूद बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु गंगाजल में मौजूद हानिकारक सूक्ष्म जीवों को जीवित नहीं रहने देते अर्थात ये ऐसे जीवाणु हैं, जो गंदगी और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं। इसके कारण ही गंगा का जल नहीं सड़ता है। मतलब यह कि वैसे जीवाणु इसमें जिंदा नहीं रह पाते हैं तो जल को सड़ाते हैं। गंगाजल में कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है।

9. गंगाजल में प्राणवायु की प्रचुरता बनाए रखने की अदभुत क्षमता है। इस कारण पानी से हैजा और पेचिश जैसी बीमारियों का खतरा बहुत ही कम हो जाता है। इस जल को कभी भी किसी भी शुद्ध स्थान से पीया जा सकता है। गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है।

10. गंगा के पानी में गंधक की प्रचुर मात्रा में है, इसलिए यह खराब नहीं होता है। इसके अतिरिक्त कुछ भू-रासायनिक क्रियाएं भी गंगाजल में होती रहती हैं। जिससे इसमें कभी कीड़े पैदा नहीं होते। यही कारण है कि गंगा के पानी को बेहद पवित्र माना जाता है।

भारत में बोतल बंद पानी के दिन बहुत बाद में आए हैं. पहले लोग अपने साथ पानी की बोतल लेकर नहीं चलते थे. लेकिन लगभग हर हिंदू परिवार में पानी का एक कलश या कोई दूसरा बर्तन ज़रुर होता था जिसमें पानी भरा होता था. गंगा का पानी.

पीढ़ियाँ गुज़र गईं ये देखते-देखते कि हमारे घरों में गंगा का पानी रखा हुआ है- किसी पूजा के लिए, चरणामृत में मिलाने के लिए, मृत्यु नज़दीक होने पर दो बूंद मुंह में डालने के लिए जिससे कि आत्मा सीधे स्वर्ग में जाए.

मिथक कथाओं में, वेद , पुराण , रामायण महाभारत सब धार्मिक ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन है.

कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करते ही थे, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाते थे.

इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज़ जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था. इसके विपरीत अंग्रेज़ जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था.

करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर एमई हॉकिन ने वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर गया.

दिलचस्प ये है कि इस समय भी वैज्ञानिक पाते हैं कि गंगा में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है.

'कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता'

लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई के निदेशक डॉक्टर चंद्र शेखर नौटियाल ने एक अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता बरकरार है.

डॉक्टर नौटियाल ने यह परीक्षण ऋषिकेश और गंगोत्री के गंगा जल में किया था, जहाँ प्रदूषण ना के बराबर है. उन्होंने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल लिया था. एक ताज़ा, दूसरा आठ साल पुराना और तीसरा सोलह साल पुराना.

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गंगा नदी का पानी औद्योगिक प्रदूषण के साथ साथ गंदगी का शिकार है

उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला. डॉ. नौटियाल ने पाया कि ताजे गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन दिन जीवित रहा, आठ दिन पुराने पानी में एक एक हफ़्ते और सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन. यानी तीनों तरह के गंगा जल में ई कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाया.

डॉ. नौटियाल बताते हैं, “गंगा के पानी में ऐसा कुछ है जो कि बीमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं को मार देता है. उसको नियंत्रित करता है.”

हालांकि उन्होंने पाया कि गर्म करने से पानी की प्रतिरोधक क्षमता कुछ कम हो जाती है.

वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफ़ाज वायरस होते हैं. ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं.

अपने अनुसंधान को और आगे बढ़ाने के लिए डॉक्टर नौटियाल ने गंगा के पानी को बहुत महीन झिल्ली से पास किया. इतनी महीन झिल्ली से गुजारने से वायरस भी अलग हो जाते हैं. लेकिन उसके बाद भी गंगा के पानी में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता थी.

डॉक्टर नौटियाल इस प्रयोग से बहुत आशांवित हैं. उन्हें उम्मीद है कि आगे चलकर यदि गंगा के पानी से इस चमत्कारिक तत्व को अलग कर लिया जाए तो बीमारी पैदा करने वाले उन जीवाणुओं को नियंत्रित किया जा सकता है, जिन पर अब एंटी बायोटिक दवाओं का असर नहीं होता.

मगर सबसे महत्वपूर्ण सवाल इस बात की पहचान करना है कि गंगा के पानी में रोगाणुओं को मारने की यह अद्भुत क्षमता कहाँ से आती है?

डॉक्टर नौटियाल का कहना है कि गंगा जल में यह शक्ति गंगोत्री और हिमालय से आती है.

वे बताते हैं, “गंगा जब हिमालय से आती है तो कई तरह की मिट्टी, कई तरह के खनिज, कई तरह की जड़ी बूटियों से मिलती मिलाती है. कुल मिलाकर कुछ ऐसा मिश्रण बनता जिसे हम अभी नहीं समझ पाए हैं."

वहीं दूसरी ओर एक लंबे अरसे से गंगा पर शोध करने वाले आईआईटी रुड़की में पर्यावरण विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर देवेंद्र स्वरुप भार्गव का कहना है कि गंगा को साफ़ रखने वाला यह तत्व गंगा की तलहटी में ही सब जगह मौजूद है.

प्रोफ़ेसर भार्गव का तर्क है, "गंगोत्री से आने वाला अधिकांश जल हरिद्वार से नहरों में डाल दिया जाता है. नरोरा के बाद गंगा में मुख्यतः भूगर्भ से रिचार्ज हुआ और दूसरी नदियों का पानी आता है. इसके बावजूद बनारस तक का गंगा पानी सड़ता नहीं. इसका मतलब कि नदी की तलहटी में ही गंगा को साफ़ करने वाला विलक्षण तत्व मौजूद है."

डाक्टर भार्गव कहते हैं कि गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है.

डॉ. भार्गव का कहना है कि दूसरी नदियों के मुकाबले गंगा में सड़ने वाली गंदगी को हजम करने की क्षमता 15 से 20 गुना ज्यादा है.

वे कहते हैं कि दूसरी नदी जो गंदगी 15-20 किलोमीटर में साफ़ कर पाती है, उतनी गंदगी गंगा नदी एक किलोमीटर के बहाव में साफ़ कर देती है.

मगर यह एक दूसरे वैज्ञानिक दल ने गंगा जल का अध्ययन कर ख़तरे की घंटी बजा दी है. इस अध्ययन में यह चौंकाने वाली बात सामने आई है कि कानपुर और इलाहाबाद के संगम में गंगा के पानी में खतरनाक बैक्टीरिया पल रहे हैं. ये सच्चाई अगले अंक में.

गंगा के जल की विशेषता क्या है?

गंगा नदी विश्व भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है। लम्बे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं।

गंगा नदी का दूसरा नाम क्या है?

गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है, केदारनाथ में मंदाकिनी और बद्रीनाथ में अलकनन्दा। यह उत्तराखंड में शतपथ और भगीरथ खड़क नामक हिमनदों से निकलती है। यह स्थान गंगोत्री कहलाता है। अलकनंदा नदी घाटी में लगभग २२९ किमी तक बहती है।

गंगा नदी का महत्व क्या है?

माना जाता है कि गंगा का जन्म भगवान् विष्णु के पैरों से हुआ था. साथ ही यह शिव जी की जटाओं में निवास करती हैं. गंगा स्नान , पूजन और दर्शन करने से पापों का नाश होता है, व्याधियों से मुक्ति होती है. जो तीर्थ गंगा किनारे बसे हुए हैं, वे अन्य की तुलना में ज्यादा पवित्र माने जाते हैं.

गंगा का पानी शुद्ध क्यों है?

एक यह कि गंगा जल में बैट्रिया फोस नामक एक बैक्टीरिया पाया गया है, जो पानी के अंदर रासायनिक क्रियाओं से उत्पन्न होने वाले अवांछनीय पदार्थों को खाता रहता है। इससे जल की शुद्धता बनी रहती है। दूसरा गंगा के पानी में गंधक की प्रचुर मात्रा मौजूद रहती है, इसलिए भी यह खराब नहीं होता।