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प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. दीपावली में साफ-सफाई और घी के दीपकों का अपना महत्त्व है। इस बहाने वर्षा-ऋतु के बाद पैदा होने वाली गंदगी और कीटाणु नष्ट होते हैं। घर के लोग अपने हाथ से दिए सजाते हैं, उनमें तेल भरते हैं, फिर उन्हें जलाए रखने का प्रयास करते हैं। इस बहाने वे त्योहार में लीन होते हैं। वे समाज की परंपराओं के साथ समरस होते हैं। परंतु आज, उपभोक्तावादी संस्कृति ने बिजली के कृत्रिम बल्बों की लड़ियाँ पैदा कर दी हैं। अब जो कुछ करना है, बिजली-कर्मचारी करेगा। आपको केवल पैसा खर्च करना है। पहले शादी-ब्याह में सब रिश्तेदारों की अपनी भूमिका होती थी। लड़की वाले अपने हाथों से काम करते थे और बरात का जमकर स्वागत करते थे। परंतु आज, सारा काम बैंक्वेट हाल या होटल के कर्मचारी कर देते हैं। शादी का उत्साह एक रस्म में बदल चुका है। कुछ करने–धरने को नहीं रहा। इससे जीवन में वैसी खुशी और ताजगी भी नहीं रही। सचमुच उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारे जीवन-रस को सोख लिया है। भाषा-अध्ययन प्रश्न 9. वाक्य क्रियाविशेषण विशेषण
उत्तर:
(ग) Hope given NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 3 are helpful to complete your homework. If you have any doubts, please comment below. NCERT-Solutions try to provide online tutoring for you. लेखक के अनुसार सुख से क्या अभिप्राय है?लेखक के अनुसार उपभोग का भोग करना ही सुख है। अर्थात् जीवन को सुखी बनाने वाले उत्पाद का ज़रूरत के अनुसार भोग करना ही जीवन का सुख है।
लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है class 9?गाँधी जी चाहते थे कि हम भारतीय अपनी बुनियाद पर कायम रहें, अर्थात् अपनी संस्कृति को न त्यागें। परंतु आज उपभोक्तावादी संस्कृति के नाम पर हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी मिटाते जा रहे हैं। इसलिए उन्होंने उपभोक्तावादी संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती कहा है।
उपभोक्तावाद की संस्कृति से आप क्या समझते हैं?Answer: आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे जीवन पर हावी हो रही है। मनुष्य आधुनिक बनने की होड़ में बौद्धिक दासता स्वीकार कर रहे हैं, पश्चिम की संस्कृति का अनुकरण किया जा रहा है। आज उत्पाद को उपभोग की दृष्टि से नहीं बल्कि महज दिखावे के लिए खरीदा जा रहा है।
प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो short answer?प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो। उपभोक्तावाद के बढ़ते प्रभाव ने मनुष्य को सुविधाभोगी बना दिया। परंतु आज सुख-सुविधा का दायरा बढ़कर, समाज में प्रतिष्ठा बढ़ाने का साधन बन गया है। सामाजिक प्रतिष्ठा विभिन्न प्रकार की होती है जिनके कई रूप तो बिल्कुल विचित्र हैं।
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