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1820 से 2015 के बीच भारत की प्रतिव्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि।आंकड़े 1990 के अंतर्राष्ट्रीय गीरी-खामिस डॉलर के लिए महंगाई को समायोजित कर रहे हैं। [१] [२] ग्रामीण विकास ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन और आर्थिक कल्याण की गुणवत्ता में सुधार करने की प्रक्रिया है,खासकर अपेक्षाकृत पृथक और कम आबादी वाले क्षेत्र। [३] ग्रामीण विकास कार्यों का उद्देश्य ग्रामीण समुदायों के सामाजिक और आर्थिक विकास को आगे बढ़ाना है।[४] संत कवि तिरुवल्लुवर ने ग्रामीण विकास के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा था कि "मिट्टी की जुताई करने वाले अधिकार के साथ जीते हैं शृंखला के शेष लोग उनके आश्रय की रोटी खाते हैं।" भारत में ग्रामीण विकास के लिए निम्नलिखित क्षेत्रों में नई और सार्थक पहल करने की क्षमता बनी हुई है।
कृषि क्षेत्रों का विकास तथा कृषि बाजार व्यवस्था[सम्पादन]1951 और 2010 के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पादन में कृषि क्षेत्र का घटता योगदान फार्म (उत्पादन)आउटपुट में भारत दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है। 2018 के अनुसार, कृषि ने 50℅ से अधिक भारतीय कार्यबल को रोजगार दिया और देश की जीडीपी में 17-18% का योगदान दिया।[६] 1965 के बाद से, बीजों की उच्च उपज देने वाली किस्मों के उपयोग, उर्वरकों में वृद्धि और सिंचाई की सुविधाओं ने भारत में हरित क्रांति में सामूहिक रूप से योगदान दिया,जिससे फसल की उत्पादकता में वृद्धि, फसल के पैटर्न में सुधार और कृषि को आगे और पिछड़े उद्योग से जोड़कर मजबूती प्रदान करके कृषि की स्थिति में सुधार किया।[७] हालांकि,हरित क्रांति का सभी क्षेत्रों में समान रूप से विकास न होने के कारण इसकी आलोचना भी की गई।इसके परिणामस्वरूप पंजाब,हरियाणा और पश्चमी उतर प्रदेश के क्षेत्रों में पूंजीवादी खेती में वृद्धि हुई,साथ हीं इसके कारण संस्थागत सुधारों की अनदेखी हुई,और आय असमानताएँ बढ़ी।[८] भारत में कृषि अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 1970 से 1971 तक जीडीपी का 44.5% है और ग्रामीण रोजगार का 68% प्रदान करता है। [९] कृषि विपणन व्यवस्था(agricultural market system)[सम्पादन]कृषि विपणन(agricultural marketing) वह प्रक्रिया है जिससे देश भर में उत्पादित कृषि पदार्थों का संग्रह,भंडारण,प्रसंस्करण,परिवहन,पैकिंग,वर्गीकरण और वितरण आदि किया जाता है।कृषि विपणन के विभिन्न पहलुओं को सुधारने के लिए 4 उपाय किए गए। पहला कदम-व्यवस्थित एवं पारदर्शी विपणन की दशाओं का निर्माण करने के लिए बाजार का नियमन करना था।दूसरा उपाय-सड़कों रेल मार्गों,भंडार गृहों,गोदामों शीत गृहों और प्रसंस्करण इकाइयों के रूप में भौतिक आधारिक संरचनाओं का प्रावधान किया जाना है।तीसरे उपाय में सरकारी विपणन द्वारा किसानों को अपने उत्पादों का उचित मूल्य सुलभ कराना है। गुजरात तथा देश के अन्य भागों में दुग्ध उत्पादन सहकारी समितियों ने ग्रामीण अंचलों के सामाजिक तथा आर्थिक परिदृश्य पर का कायाकल्प कर दिया है।चौथे उपाय-के अंतर्गत नीतिगत साधन है-जैसेकृषि उत्पादन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करना भारतीय खाद्य निगम द्वारा गेहूँ और चावल के सुरक्षित भंडार की रखरखाव और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (राशन व्यवस्था) के माध्यम से खाद्यान्नों और चीनी का वितरण। इसका उद्देश्य किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलाना तथा गरीबों को सहायिकी युक्त(subsidised)कीमत पर वस्तु उपलब्ध कराना है। सरकार के इन प्रयासों के बावजूद सरकारी संस्थाएँ और सहकारिता आएं शक्ल कृषि उत्पाद के मात्र 10% के आदान-प्रदान में सफल हो पा रही है देश अभी भी निजी व्यापारियों के हाथों में है।[१०] वैकल्पिक क्रय-विक्रय माध्यमों का प्रादुर्भाव[सम्पादन]पंजाब,हरियाणा और राजस्थान में अपनी मंडी,पुणे की हाड़पसार मंडी,आंध्र प्रदेश की रायथूवास नामक फल सब्जी मंड़ियाँ तथा तमिलनाडु की उझावर मंडी के कृषक बाजार वैकल्पिक क्रय-विक्रय माध्यम के कुछ उदाहरण हैं।जहाँ किसान स्वयं ही अपना उत्पाद बेचते हैं।इसके अलावा अनेक फास्ट फूड बनाने वाली राष्ट्रीय/बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कृषि उत्पादों के लिए किसानों से अनुबंध कर रही हैं।ये किसानों को उचित बीज तथा अन्य आगत तो उपलब्ध करवाते ही हैं।उन्हें पूर्व निर्धारित कीमतों पर माल खरीदने का आश्वासन ही देते हैं।है।[११] भारत सरकार की विभिन्न ग्रामीण विकास योजनाएं[सम्पादन]महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (MGNREGA) हालाँकि स्वतंत्र विश्लेषकों द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2018-19 में मनरेगा देश के सूखाग्रस्त ज़िलों में किसी भी तरह की मदद करने में विफल रहा।सरकार ने वर्ष 2020-21 में मनरेगा के बजट को भी घटा दिया है। दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना यह योजना, ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को रोजगार के लायक बनाने के लिए बनाया गया एक कौशल विकास कार्यक्रम है|यह योजना पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 98वीं जयंती के अवसर पर 25 सितंबर, 2014 को शुरू की गई थी|इस योजना का उद्देश्य 15-35 आयु वर्ग के युवाओं को लाभ पहुँचाना है|वर्ष 2014-15 तक इस कार्यक्रम के तहत 52000 उम्मीदवारों को कुशल बनाया गया है|ग्रामिण क्षेत्रों में साख और विपणन[सम्पादन]कृषि अर्थव्यवस्था की समृद्धि कुंजी के प्रयोग पर निर्भर करती है। महाजनों और छोटे व्यापारियों द्वारा कर्ज के ब्याज दर से निजात दिलाने के लिए 1969 में सामाजिक बैंकिंग आरंभ किया गया। इसके तहत 19 जुलाई 1969 को 14 वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।इसका मुख्य उद्येश्य समाज के वंचित वर्गों तक पूंजी की पहुँच सुनिश्चित कर सामाजिक कल्याण में वृद्धि करना तथा बैंकों पर निजी व्यापारियों और कार्पोरेट घरानों के एकाधिकार को समाप्त करना था। [१२]1982 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक(नाबार्ड)की स्थापना की गई। आज ग्रामीण बैंक की संस्थागत संरचना में अनेक बहु-एजेंसी संस्थान जैसे,व्यावसायिक बैंक,क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक,(R.B.I) सहकारी तथा भूमि विकास बैंक सम्मिलित हैैं।ये सस्ती ब्याज दरों पर पर्याप्त ॠण की पूर्ति करना चाहती हैं। उत्पादक गतिविधियों का विविधीकरण[सम्पादन]विविधीकरण द्वारा हम खेती से जोखिम को कम करके ग्रामीण जन समुदाय को उत्पादक और वैकल्पिक धारणीय आजीविका के अवसर उपलब्ध हो पाएँगे। विविधीकरण के दो पहलू हैं:-
यद्यपि भारत का अधिकांश कृषि रोजगार खरीफ की फसल से जुड़ा है,तथापि सिंचाई की सुविधा का अभाव वाले क्षेत्रों में रबी फसल के मौसम में जहाँ पर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ नहीं हैं,उन क्षेत्रों में लाभप्रद रोजगार दुर्लभ हो जाता है। गतिशील उप घटकों में कृषि प्रसंस्करण उद्योग,खाद्य प्रसंस्करण उद्योग,चर्म उद्योग तथा पर्यटन आदि सम्मिलित हैं। पशुपालन[सम्पादन]भारत में मिश्रित कृषि पशुधन व्यवस्था प्रचलित है,जिसमें गाय,भैंस,बकरी और मुर्गी बत्तख आदि बहुतायत में पाई जाती है।इसमें सबसे बड़ा मुर्गी पालन का है।ऊँट,गधे,घोड़े,अन्य पालतू पशु हैं।सबसे निम्न स्तर खच्चरों और टट्टुओं का है। वर्ष 1951-2014 की अवधि में देश में दुग्ध उत्पादन आठ गुना से अधिक बढ़ गया है। इसका मुख्य श्रेय ऑपरेशन फ्लड को दिया जाता है।गुजरात का अमूल दूध उत्पादन उद्योग ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम) 2014-15 से शुरू हुआ है। मिशन को पशुधन उत्पादन प्रणालियों में मात्रात्मक और गुणात्मक सुधार और सभी हितधारकों की क्षमता निर्माण सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सभी गतिविधियों को कवर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। मिशन पशुधन उत्पादकता में सुधार के लिए कवर करेगा और उस उद्देश्य के लिए आवश्यक परियोजनाओं और पहलों का समर्थन करेगा। यह मिशन पशुधन क्षेत्र के सतत विकास के उद्देश्य से तैयार किया गया है, जो गुणवत्ता वाले फ़ीड और चारे की उपलब्धता में सुधार पर केंद्रित है। एनएलएम सिक्किम सहित सभी राज्यों में लागू है।[१३] भारत में पशुओं की नस्ल सुधारने तथा उत्पादकता वृद्धि के लिए नई उन्नत प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाना चाहिए। मत्स्य पालन[सम्पादन]देश के समस्त मत्स्य उत्पादन का 49% अंतर्वती क्षेत्रों से तथा 51 %महासागरीय क्षेत्रों से प्राप्त होता है।यह मत्स्य उत्पादन जीडीपी का 1.4% है। सागरीय उत्पादकों में केरल,गुजरात,महाराष्ट्र और तमिलनाडु प्रमुख राज्य है। मछुआरा वर्ग में व्याप्त निम्न रोजगार,निम्न प्रति व्यक्ति आय,अन्य कार्यों की ओर श्रम के प्रवाह का अभाव,उच्च निरक्षरता दर तथा गंभीर ॠण-ग्रस्तता एक प्रमुख समस्या है। 60% निर्यात और 40% आंतरिक मत्स्य व्यापार महिलाओं द्वारा संपन्न होता है । मछली पालन और अधिक उन्नति करने के लिए संबंधित प्रदूषण की समस्या को नियमित और नियंत्रित करना आवश्यक है। बागवानी (उद्यम विज्ञान)[सम्पादन]प्रमुख बगवान उत्पाद हैं फल सब्जियां रेशेदार फसलें औषधीय तथा सुगंधित पौधे मसाले,चाय,कॉफी इत्यादि।1991-2003 की अवधि को स्वर्णिम क्रांति के प्रारंभ का काल मानते हैं, क्योंकि इसी दौरान बागवानी में सुनियोजित निवेश बहुत ही उत्पादक सिद्ध हुआ और इस क्षेत्र में एक धारणीय वैकल्पिक रोजगार का रूप धारण किया। भारत में आम,केला, नारियल का दूध जैसे फलों और अनेक मसालों के उत्पादन में आज भी अग्रणी देश माना जाता है।फल सब्जियों के उत्पादन में हमारा दूसरा स्थान है। पुष्परोपण,पौधशाला की देखभाल,संकर बीजों का उत्पादन,उत्तक संवर्धन,फल फूलों का संवर्धन और खाद्य प्रसंस्करण ग्रामीण महिलाओं के लिए अब अधिक आय वाले रोजगार बन गए हैं। बागवानी को बढ़ावा देने के लिए बिजली,शीतगृह व्यवस्था,विपणन माध्यमों के विकास,लघु स्तरीय प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना और प्रौद्योगिकी के उन्नयन और प्रसार के लिए आधारिक संरचनाओं में निवेश की आवश्यकता है । अन्य रोजगार आजीविका विकास में सूचनाओं और उपयुक्त सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सरकार ही खाद्य असुरक्षा की आशंका वाले क्षेत्रों का समय रहते पूर्वानुमान लगा सकती हैं।इसके द्वारा इसके द्वारा बढ़ते तकनीकों,कीमतों, मौसम तथा विभिन्न फसलों के लिए मृदा की दशाओं की उपयोगिता की जानकारी का प्रसारण हो सकता है।इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े स्तर पर रोजगार के अवसरों को बंद करने की क्षमता भी है। धारणीयविकास और जैविक कृषि[सम्पादन]विकास की धारणीयता के लिए पर्यावरण मित्र औद्योगिक विकास के प्रयास अनिवार्य हो गए हैं ऐसी ही एक प्रौद्योगिकी को जैविक कृषि कहा जाता है अर्थात जैविक कृषि खेती करने की पद्धति है जो पर्यावरणीय असंतुलन को पुनः स्थापित करके उसका संरक्षण और संवर्धन करती है रासायनिक खादों से उत्पादित खाद्य की तुलना में जैविक विधि से उत्पादित भोज्य पदार्थों में पोषक तत्व अधिक होते हैं इसी में अधिकतम लाभों के प्रयोग होने के कारण भारत जैसे देशों के लिए अधिक आकर्षक उत्पादों के रासायनिक उत्पादों की अपेक्षा शीघ्र खराब होने की संभावना रहती है मौसमी फलों का जैविक कृषि उत्पादन बहुत सीमित होता है। संदर्भ[सम्पादन]
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