गॉल्जीकाय की रचना एवं कार्य के विषय में लिखें - goljeekaay kee rachana evan kaary ke vishay mein likhen

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मानव ल्यूकोसाइट माइक्रोग्राफ में गॉल्जी उपकरण : चित्र के निचले हिस्से में अर्धवृत्ताकार छल्लों के ढेर (stack) जैसी संरचना ही गॉल्जी उपकरण है।

कोशिका के कोशिकाद्रव्य में केन्द्रक के समीप कुछ थैलीनुमा कोशिकांग (organelle) पाए जाते हैं, इन्हें गॉल्जी काय या गॉल्जी बॉडी (Golgi bodies) या गॉल्जी उपकरण (Golgi apparatus) कहते हैं। कामिल्लो गॉल्जी इटली के एक तंत्रिकावैज्ञानिक थे, जिसने श्वेत उल्लूओं (Barn Owl) के शरीरों में इसका पता लगाया, इसलिए इस कोशिकांग का नाम उनके नाम पर रखा गया।

इसकी आकृति चपटी होती है तथा ये एक के बाद एक समानान्तर रूप में स्थिर रहे हैं। गॉल्जीबाडी का निर्माण कुछ थैलीनुमा सिस्टर्नी, कुछ छोटे-छोटे वेसिकल एवं कुछ बड़े-बड़े वैकुओल से मिलकर होता है। यह कोशिका के अन्दर स्रावित पदार्थ के संग्रह एवं परिवहन में सहायता करता है।[1]

परिचय[संपादित करें]

अंडों में माइटोकॉण्ड्रिया और गॉल्जी काय अंडपीतनिर्माण में योग देते हैं। स्परमाटिड के स्परमाटोज़ोऑन में परिणत होते समय गॉल्जी काय ऐक्रोसोम बनाता है, जिसके द्वारा संसेचन में वह अंडे से जुट जाता है। माइटोकॉण्ड्रिया से स्परमाटिड का नेबेनकेर्न (Nebenkern) बनता है और जिन जंतुओं में मध्यखंड होता है उनमें मध्यखंड का एक बड़ा भाग। ग्रंथि की कोशिकाओं में स्रावी पदार्थ को उत्पन्न और परिपक्व करने में माइटोकॉण्ड्रिया और गॉल्जी काय सम्मिलित हैं।

इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी से फोटो लेने पर पता चलता है कि प्रत्येक माइटोकॉण्ड्रिया बाहर से एक दोहरी झिल्ली से घिरा होता है और उसके भीतर कई झिल्लियाँ होती हैं जो एक ओर से दूसरी ओर तक पहुँचती हैं या अधूरी ही रह जाती हैं। गॉल्जी काय में कुछ धानियाँ (Vacuoles) होती हैं, जो झिल्लीमय लैमेला (membranous lamellae) से कुछ कुछ घिरी होती हैं। इनसे संबंधित कुछ कणिकाएँ भी होती हैं जो लगभग 400 आं0 के माप की होती हैं। ये सब झिल्लियाँ इलेक्ट्रान सघन होती हैं। कोशिकाद्रव्य स्वयं ही झिल्लियों के तंत्र का बना होता है, परंतु इसमें संदेह नहीं कि इन झिल्लियों के माइटोकॉण्ड्रीय झिल्लियों और गॉल्जी झिल्लियों में कोई विशेष संबंध नहीं होता। ऐसी कोशिकाद्रव्यीय झिल्लियाँ ग्रंथि की कोशिकाओं में अधिक ध्यानाकर्षी अवस्था में पाई जाती हैं। ये अरगैस्टोप्लाज्म कही जाती हैं। ये झिल्लियाँ दोहरी होती हैं और इनपर जगह जगह छोटी छोटी कणिकाएँ सटी होती हैं।

कुछ विद्वानों की यह भी धारणा है कि गॉल्जी काय कोई विशेष कोशिकांग (Organelle) नहीं है। यह माइटोकॉण्ड्रिया का ही एक विशेष रूप है अथवा केवल धानी के रूपपरिवर्तन से बनता है अथवा केवल एक कृत्रिम द्रव्य है, इस संबंध में विद्वानों में अब भी मतभेद है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. त्रिपाठी, नरेन्द्र नाथ (मार्च २००४). सरल जीवन विज्ञान, भाग-२. कोलकाता: शेखर प्रकाशन. पृ॰ ४-५.

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गॉल्जी काय की संरचना तथा कार्य

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गॉल्जी काय (Golgi body)

इसको पहली बार तंत्रिका कोशिका में केन्द्रक के पास कैमिलो गॉल्जी (Camillo Golgi) ने देखा। उनके नाम पर इस संरचना को गॉल्जी काय का नाम दिया गया।

गॉल्जी काय के अन्य नाम गॉल्जी सम्मिश्र (Golgi complex), गॉल्जीओसोम (Golgiosome), गॉल्जी बॉडीज (Golgi bodies), गॉल्जी उपकरण (Golgi apparatus), डाल्टन सम्मिश्र (Dalton complex), लिपोकोन्ड्रिया (Lipochondria), डिक्टायोसोम (Dictyosome), ट्रोफोस्पोन्जियम (Trophospongium), बेकर की बॉडी (baker’s body), इडियोसोम (Idiosome) है।

गॉल्जीकाय बहुरूपिय होती है, अर्थात भिन्न-भिन्न प्रकार की कोशिकाओं में इसकी संरचना भिन्न-भिन्न होती है। केवल इसी कोशिकांग में निश्चित ध्रुवीयता पायी जाती है।

बेकर ने इसे “सूडान ब्लैक अभिरंजक” से अभिरंजित किया और इसे विभिन्न स्राव से संबंधित होना बताया। इसलिए इसको बेकर की बॉडी (baker’s body) भी कहते है।

गॉल्जी काय की संरचना (Structure of Golgi body)

इसकी संरचना में निम्न घटक दिखाई देते हैं-

  1. सिस्टर्नी (Cisternae)
  2. नलिकाएं
  3. पुतिकाएँ
  1. सिस्टर्नी (Cisternae)

ये झिल्लीनुमा घुमावदार चपटी संरचना  होते है ये एक-दूसरे के समानांतर व्यवस्थित होती है। सामान्यतया इनकी संख्या 6-8 होती है। लेकिन गोल्जी काय में इनकी संख्याँ में विभिन्नता पायी जाती है। (कीट में सिस्टर्नी की संख्याँ 30 तक)।

गॉल्जी काय की सिस्टर्नी में चार संरचनात्मक घटक होते हैं-

  • सीस गॉल्जी (Cis Golgi)
  • अन्तः गॉल्जी (Endo Golgi)
  • मध्य गॉल्जी (Medial Golgi)
  • ट्रांस गॉल्जी (Trans Golgi)
  1. नलिकाएँ (Tubules)

ये छोटी, शाखित, नलिकाकार संरचना होती है। ये शाखाओं के द्वारा आपस में जुड़ी होती है। ये सिस्टर्न के किनारों पर बनती है।

  1. पुटीकाएँ (Vesicles)

ये छोटी तथा थैलीजैसी संरचना है इनका निर्माण नलिकाओं से होता हैं। पुटीकाएँ निम्न प्रकार की होती है:

संक्रमण पुटीकाएँ (Transitional vesicles)

गॉल्जी काय अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) के साथ मिलकर काम करता है। जब अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) में कोई प्रोटीन बनाया जाता है, तो एक संक्रमण पुटिकाओं का निर्माण होता है। जिसमें प्रोटीन भरा रहता है। यह पुटिका या थैली कोशिका द्रव्य के माध्यम से गॉल्जी तंत्र में प्रवेश करती है, और अवशोषित हो जाती है।

स्रावी पुटीकाएँ (Secretory vesicles)

गॉल्जी उपकरण  में संक्रमण पुटीकाओं के अवशोषित होने के बाद, स्रावी पुटिकाएँ बनाई जाती है जिनको कोशिका द्रव्य में छोड़ दिया जाता है। जहाँ से ये पुटिकाएँ कोशिका झिल्ली तक जाती है, और पुटिका या थैली में उपस्थित अणुओं को कोशिका से बाहर निकाल दिए जाते है।

क्लैथ्रिन-लेपित पुटीकाएँ (Clathrin-coated vesicles)

ये पुटीकाएँ कोशिका के अन्दर ही विभिन्न प्रकार के उत्पादों के यातायात में सहायता करता हैं।

गॉल्जीकाय का सिस और ट्रांस भाग (Cis and Trans face of Golgi)

गॉल्जी काय केन्द्रक की ओर का भाग सिस भाग या निर्माण भाग (cis or forming face) कहलाता है कोशिका झिल्ली को ओर का भाग ट्रांस भाग या परिपक्व भाग (trans or maturing face) कहलाता है।

ER से बनने वाले प्रोटीन सिस भाग से गॉल्जी काय में प्रवेश करते है जिनकी पैकेजिंग करके ट्रांस भाग से पुटीकाओं को रूप में निकाला जाता है तथा इस प्रोटीन को आवश्यक भाग में भेजा जाता है।

गॉल्जी काय का कार्य (Functions of Golgi Body)

1. स्राव करना (Secretion)

गॉल्जी तंत्र अपने सिस  भाग के माध्यम से एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम से विभिन्न पदार्थ प्राप्त करता है।

इन पदार्थों को रासायनिक रूप से एंजाइम ग्लाइकोसल ट्रांसफ़ेज़ (Glycosyl transferease) द्वारा संशोधित किया जाता है। जिसे प्रोटीन और लिपिड का ग्लाइकोसिलेशन (Glycosylation) कहते है।

2. लाइसोसोम का निर्माण करना

लाइसोसोम गॉल्जी काय के परिपक्व भाग (maturing face) द्वारा निर्मित होते हैं, जो एसिड फॉस्फेट से भरपूर होता है।

3. प्रोटीन की छँटाई करना (Protein sorting)

सभी स्रावी प्रोटीन को सबसे पहले गॉल्जीकाय में ले जाया जाता है।  फिर गॉल्जीकाय इनको अपने गंतव्य स्थानों जैसे लाइसोसोम, प्लाज्मा झिल्ली तक भेजता है।

4. जटिल पॉलीसेकेराइड का संश्लेषण (Synthesis of complex polysaccharide)

पौधों में गॉल्जी काय पौधों की कोशिका भित्ति में काम आने वाले के जटिल पॉलीसेकेराइड को संश्लेषित करता हैं।

5. O-लिंक्ड ग्लाइकोसिलेशन (O-linked glycosylation)

गॉल्जी कॉम्प्लेक्स प्रोटीन का में ओ-लिंक्ड ग्लाइकोसिलेशन (O-linked glycosylation) होता है। जिसमें आमतौर पर प्रोटीन के थ्रेओनीन और सेरीन एमिनो अम्ल के साथ ग्लूकोज को जोड़ा जाता है।

6. एक्रॉसोम का निर्माण (Formation of acrosome)

गॉल्जी काय में रूपांतरण से शुक्राणु का एक्रॉसोम बनता है।

7. फ्रेग्मोप्लास्ट का निर्माण (Phragmoplast Formations)

पादप कोशिका विभाजन के दौरान फ्रेग्मोप्लास्ट का गठन गॉल्जी काय की पुटिकाओं के संलयन से होता है।

8. कोर्टिकल कणिकाओं का निर्माण (Formation of cortical granules)

गॉल्जी काय अंडे के कोर्टिकल कणिकाओं के निर्माण में मदद करता है।

9. प्रोटीन यातायात (Protein Trafficing)

गॉल्जी काय  विभिन्न प्रकार के प्रोटीन या अन्य अणुओं को पुटीकाओं के माध्यम से आवश्यक स्थानों तक पहुँचाता है इसलिए इसको कोशिका के अणुओं के यातायात का निर्देशक (director of macromolecular traffic in cell), कोशिका का मध्यवर्ती (middle man of cell) या कोशिका का ट्रैफिक पुलिस  (traffic police of cell) कहा जाता है।

गॉल्जी काय के चारों ओर कोशिका द्रव्य के विभिन्न कोशिकांग जैसे राइबोसोम, माइटोकॉन्ड्रिया, क्लोरोप्लास्ट आदि दुर्लभ या अनुपस्थित होते हैं। इसे बहिष्करण का क्षेत्र (Zone of exclusion) कहा जाता है।


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गॉल्जीकाय का क्या कार्य है?

गॉल्जी तंत्र कोशिका स्राव के लिए इन स्थूल अणुओं को संशोधित करने, छांटने और संवेष्‍टन का कार्य करता है । गॉल्जी काय, थैलीनुमा कोशिकांग होते हैं जो अधिकतर सुकेंद्रिक कोशिकाओं में पाए जाते हैं । ये कार्बोहाइड्रेट संश्लेषण भी करती हैं।

गॉल्जीकाय की रचना कैसे होती है?

इसकी आकृति चपटी होती है तथा ये एक के बाद एक समानान्तर रूप में स्थिर रहे हैं। गॉल्जीबाडी का निर्माण कुछ थैलीनुमा सिस्टर्नी, कुछ छोटे-छोटे वेसिकल एवं कुछ बड़े-बड़े वैकुओल से मिलकर होता है। यह कोशिका के अन्दर स्रावित पदार्थ के संग्रह एवं परिवहन में सहायता करता है

गॉल्जीकाय का दूसरा नाम क्या है?

इनके अन्दर स्रावित पदार्थ भरा होता है इसलिये इन्हें स्रावण वेसीकल्स (Secretory vesicles) भी कहते हैं।

गॉल्जीकाय की खोज कब की?

इसकी खोज कैमिलो गॉल्जी (Camillo 1898 ई. में की थी।