गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग इसलिए कहा जाता है क्योंकि गुप्त काल में भारत का चहुंमुखी विकास हुआ। गुप्त शासकों ने एक विस्तृत संगठित और शक्तिशाली साम्राज्य की नींव रखी इसके साथ ही उन्होंने एक उत्तम प्रणाली की स्थापना भी की तथा साम्राज्य में शांति व्यवस्था को कायम रखा कृषि व्यापार उद्योग की उन्नत दशा के कारण जो उनकी इकोनामिक व्यवस्था कि वह भी बहुत अच्छी थी और लोगों का जीवन जो वह सुखी और समृद्धि शाली था। इस युग में विद्या साहित्य विज्ञान और कला के क्षेत्र में अद्भुत उन्नति हुई राजनीतिक आर्थिक सामाजिक और धार्मिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में भी इस समय बहुत अधिक उन्नति हुई। इस काल में संस्कृत भाषा को भी एक महत्वपूर्ण स्थान मिला वह इसके साथ-साथ हिंदू में हिंदू धर्म में भी बहुत ज्यादा सुधार हुए और हिंदू धर्म भी एक उच्चे पायदान पर पहुंचा। इस प्रकार बहुत सारे कारण थे कि इतिहासकारों ने गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा है। Show इस संबंध में डॉ स्वीट ने कहा है कि भारत के प्राचीन काल अपेक्षा गुप्त काल का युग अधिक सुंदर और संतोषजनक चित्र प्रस्तुत करता है अर्थात जो प्राचीन काल का जितना भी समय है उस प्राचीन काल में जो गुप्त काल था। वह एक स्वर्ण युग था। भारतीय इतिहास का क्योंकि इसमें चहुंमुखी विकास हुआ है। आर्थिक क्षेत्र, राजनीति क्षेत्र से लेकर किसान से लेकर व्यापारी तक सारे लोग लगभग उन्नत था।और जो साम्राज्य था वह काफी तरीके से चल रहा था जो मुद्राएं थी उच्च कोटि के सोने के सिक्के चलाए गए थे। ये सभी कारण थे कि इस काल को इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा है। इसे सुनेंरोकेंगुप्तकाल ‘स्वर्ण युग’ क्यों कहलाया? क्योंकि इस काल में अधिक-से-अधिक शासकों ने शासन किया। क्योंकि इस काल में देश की सीमा बढ़ गई। क्योंकि इस काल में भारत का चहुँमुखी विकास हुआ। भारत में गुप्त काल को स्वर्ण युग के रूप में वर्णित करना कहाँ तक सही है? इसे सुनेंरोकेंगुप्तकाल में विज्ञान प्रौद्योगिकी से लेकर साहित्य, स्थापत्य तथा मूर्तिकला के क्षेत्र में नये प्रतिमानों की स्थापना की गई जिससे यह काल भारतीय इतिहास में ‘स्वर्ण युग’ के रूप में जाना गया। गुप्त काल में स्वर्ण मुद्राओं को क्या कहा जाता था? पढ़ना: खट्टे अंगूर कौन खाए? इसे सुनेंरोकेंगुप्त वंश में स्वर्ण मुद्रा का प्रचलन अधिक था। इसके अतिरिक्त इस मुद्रा में कलात्मकता का भी आधिक्य था। उस समय जारी की गई स्वर्ण मुद्रा को ‘दिनार’ कहा जाता था। भारत में गुप्त काल को स्वर्ण युग के रूप में वर्णित करना कहाँ तक सही है इतिहास?भारतीय इतिहास में कला और संस्कृति की प्रगति के आलोक में गुप्त काल को स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है? इसे सुनेंरोकेंगुप्त सम्राटों के उदार दृष्टिकोण, कला प्रेम और संस्कृति के संरक्षण ने इसमें बहुमुखी प्रतिभा का उदय किया था। इन्हीं कारणों से गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग माना जाता है। गुप्त साम्राज्य के पतन के क्या कारण हुआ? इसे सुनेंरोकेंगुप्त साम्राज्य के पतन का तात्कालिक कारण यह था कि स्कन्दगुप्त के बाद शासन करने वाले राजाओं में योग्यता एवं कुशलता का अभाव था । गुप्त वंश के प्रारम्भिक नरेश अत्यन्त योग्य एवं शक्तिशाली थे । समुद्रगुप्त एवं उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतने की आकांक्षा रखते थे । पढ़ना: कैबिनेट मिशन का आगमन कब हुआ? गुप्त काल में सोने के सिक्कों को क्या कहते थे?इसे सुनेंरोकेंगुप्त सोने के सिक्कों को दीनार के नाम से जाना जाता है। गुप्त राजाओं ने कौन से सिक्के चलाए? इसे सुनेंरोकेंदीनार:- जो कि रोमन साम्राज्य की नकल से चलवाया। सुवर्ण:- ये सोने और चांदी का बना शुद्ध भारतीय सिक्का था। गुप्त काल को स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है विकिपीडिया? इसे सुनेंरोकेंविद्वानों को इसमें संदेह है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय तथा विक्रमादित्य एक ही व्यक्ति थे। उसके शासनकाल में चीनी बौद्ध यात्री फाहियान ने 399 ईस्वी से 414 ईस्वी तक भारत की यात्रा की। उसने भारत का वर्णन एक सुखी और समृद्ध देश के रूप में किया। चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल को स्वर्ण युग भी कहा गया है। गुप्त काल की उपलब्धियों का मूल्यांकन इतिहास लेखन को एक प्रमुख समस्या रही है। कुछ इतिहासकारों ने गुप्त काल की चातुर्दिक उपलब्धियों की ओर संकेत कहते हुए इसे स्वर्ण युग की संज्ञा दी है, जबकि कुछ अन्य इतिहासकारों ने स्वर्ण युग जैसी अवधारणा को ही नकारा दिया है।स्वर्ण युग की अवधारणा का समर्थन करने वाले इतिहासकार अपने मत के समर्थन में गुप्त काल की अनेक उपलब्धियों का उल्लेख करते हैं। • राजनीतिक क्षेत्र मौर्योत्तर काल के पश्चात गुप्त काल में ही आकर राजनीतिक एकता के दर्शन होते हैं। समुद्रगुप्त एवं चंद्रगुप्त विक्रमादित्य जैसे शासकों ने एक अखिल भारतीय गुप्त साम्राज्य की स्थापना कर केंद्रीकरण को बढ़ावा दिया। इसी काल में सर्वप्रथम न्यायिक विधाना को स्पष्ट एवं वर्गीकृत किया गया। साथ ही गुप्त शासकों ने साम्राज्य की सुरक्षा एवं विस्तार हेतु एक वृहद सेना का भी निर्माण किया, जिसमें पैदल एवं गज सेना के साथ-साथ अश्वारोही सेना को भी महत्व दिया गया। कुछ इतिहासकारों ने गुप्त शासकों की साम्राज्यवादी नीति राष्ट्रवाद जैसे अवधारणा के साथ जोड़ कर देखा है तथा यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि गुप्त शासकों ने संपूर्ण राष्ट्रीय को एकता के सूत्र में पिरोना के लिए ही साम्राज्यवादी नीति को अपनाया था। साथ ही कुछ इतिहासकारों ने इस काल को हिंदू पुनर्जागरण का योग भी माना है तथा यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि गुप्त शासकों ने शक, कुषाण आदि विदेशी शक्तियों को पराजित कर पुनः हिंदू राज्य की स्थापना करने में सफलता प्राप्त की। • आर्थिक क्षेत्र गुप्त काल को आर्थिक प्रगति का काल भी माना जाता है। इस काल में भूमि अनुदान के माध्यम से कृषि भूमि का विस्तार हुआ। साथ ही शिल्प उद्योग एवं वाणिज्य – व्यापार को भी प्रोत्साहन मिला। गुप्त शासकों के अंतर्गत भारत के व्यापारिक संबंध पश्चिम में ईरान, रोम, एवं इथोपिया जबकि पूर्व में चीन एवं दक्षिणी – पूर्वी एशिया के देशों के साथ मजबूत हुए। समुद्रगुप्त द्वारा बंगाल विजय एवं चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा गुजरात विजय के उपरांत क्रमशः ताम्रलिप्ति एवं भडोच के बंदरगाह पर गुप्तों का अधिकार हो गया इससे इन बंदरगाहों के माध्यम से होने वाले विदेशी व्यापार में गुप्त शासकों को अत्यधिक लाभ प्राप्त हुआ। why gupta period is called golden age of india gupt kaal ko svarna yug kyun kaha jaata hai गुप्त काल में ही सबसे अधिक संख्या में स्वर्ण मुद्राएं जारी की गई। यह तथ्य भी इस काल की विकसित अर्थव्यवस्था को प्रमाणित करता है। साथ ही इस काल में कई प्राचीन नगरों, जैसे – पाटलिपुत्र, वैशाली, उज्जैन, सारनाथ आदि का भी उन्नयन हुआ। • सामाजिक क्षेत्र गुप्त काल में सामाजिक क्षेत्र में भी कुछ सकारात्मक परिवर्तन हुए। इस काल में शूद्रों एवं दासों की स्थिति में तुलनात्मक रूप से सुधार हुआ। याज्ञवल्क्य स्मृति में कहा गया है कि शूद्र ओंकार के बदले नमः शब्द का प्रयोग कर पंचमहायज्ञ कर सकते थे। उसी प्रकार इस काल में सामंतवाद के कारण कृषि क्षेत्रों में विखंडीकरन हुआ। इससे छोटे कृषि क्षेत्रों में अधिक दास रखने की आवश्यकता नहीं रह गई थी। परिणाम स्वरूप भूमि स्वामियों द्वारा बड़ी संख्या में कृषि दासों को दासता से मुक्त कर दिया गया। • धार्मिक क्षेत्र गुप्त शासक यद्यपि वैष्णव धर्म के अनुयायी थे, किंतु उन्होंने अन्य धर्मों को भी संरक्षण प्रदान किया। इस काल में वैष्णव, शैव, जैन एवं बौद्ध धर्म का निरंतर विकास होता रहा। धर्म के क्षेत्र में चिंतन एवं दार्शनिक पद्धति को भी प्रोत्साहन मिला, यही कारण है कि गुप्त काल में ही षड्दर्शन का पूर्णतः विकास संभव हो सका। • सांस्कृतिक क्षेत्र गुप्त काल में सांस्कृतिक जीवन से जुड़े प्रत्येक पक्ष में अभूतपूर्व प्रगति हुई। गुप्त शासकों द्वारा अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया गया, जैसे – देवगढ़ का दशावतार मंदिर, भीतरगांव की शिव व विष्णु मंदिर आदि। इस काल में सारनाथ शैली के अंतर्गत कई देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियां बनाई गई। साथ ही चित्रकला के क्षेत्र में और जनता एवं बाग की गुफाओं के सुंदर एवं मनोरम चित्र गुप्त काल की सांस्कृतिक उपलब्धियों का बखान करते हैं। गुप्त काल संस्कृत भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में भी प्रगति का युग था। इसी काम में अंतिम रूप से पुराणों, स्मृतियों, रामायण व महाभारत की रचना की गई। कालिदास, बाणभट्ट, शुद्रक, वत्सायन, विष्णु शर्मा आदि लेखकों की रचनाएं प्राचीन भारतीय इतिहास की सर्वश्रेष्ठ साहित्यक धरोहर मानी जाती है। why gupta period is called golden age of india gupt kaal ko svarna yug kyun kaha jaata hai • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी गुप्त काल में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का भी अभूतपूर्व विकास हुआ। आर्यभट्ट, भास्कर, ब्रह्मगुप्त एवं वाराहमिहिर जैसे महान गणितज्ञ एवं ज्योतिषाचार्य, धनवंतरी जैसे चिकित्सक, नागार्जुन जैसे रसायनशास्त्री गुप्त काल में ही हुए। इस प्रकार उपयोग के उपलब्धियां गुप्त काल को स्वर्ण युग प्रमाणित करती है। किंतु इतिहासकारों का दूसरा वर्ग स्वर्ण युग संबंधी अवधारणा के विपक्ष में भी महत्वपूर्ण तर्क प्रस्तुत करते हैं। राजनीतिक क्षेत्र में सामंतवाद की उपस्थिति एवं यातायात व संचार साधनों का अभाव जैसे तथ्य केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था के समक्ष गंभीर प्रश्न – चिन्ह उपस्थित करते हैं। इस काल में न्यायिक विधान भी परंपरागत मान्यता एवं वर्ण व्यवस्था पर आधारित होते थे। समकालीन स्रोतों में उल्लेखित है कि ब्राह्मण की परीक्षा तुला से, क्षत्रिय की परीक्षा अग्नि से, वैश्य की परीक्षा जल से एवं शूद्र की परीक्षा विष से ली जाती थी। गुप्त शासकों द्वारा नियमित एवं प्रशिक्षित सेना का संगठन नहीं किया जा सका। यद्यपि गुप्त शासकों के पास एक विशाल सेना थी, किंतु ज्यादातर सैनिक सामंतों के द्वारा ही उपलब्ध करवाए जाते थे। जहां तक राष्ट्रीयता की बात है, तो गुप्त काल को पूर्णतः विदेशी प्रभाव से मुक्त भी नहीं माना जा सकता। विराहमिहिर के सिद्धांतों पर यूनानी प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। हिंदू पुनर्जागरण जैसे शब्द भी तार्किक प्रतीत नहीं होते हैं, क्योंकि भारत के लोगों के संदर्भ में हिंदू शब्द का प्रयोग गुप्त काल के पश्चात अरबों के द्वारा किया गया था। आर्थिक क्षेत्र में यद्यपि भूमि अनुदान पद्धति के कारण दूरस्थ क्षेत्र में कृषि योग्य भूमि का विस्तार हुआ था, किंतु इस काल में भूमि के विखंडन के फलस्वरूप कृषि उत्पादन में निश्चित ही कमी आई होगी। परिवर्ती गुप्त काल में हमें शिल्प उद्योग, वाणिज्य – व्यापार, मुद्रा एवं नगरीकरण के पदों के साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं। उसी प्रकार सामाजिक क्षेत्र में यद्यपि शूद्रों की स्थिति में सुधार हुआ, किंतु वर्णाश्रम व्यवस्था में उनका स्थान सबसे निम्न था। इस काल में अस्पृश्यता में भी विस्तार हुआ। यहां तक कि प्राचीन भारतीय इतिहास में महिलाओं की सामाजिक स्थिति सबसे निम्न गुप्त काल में ही मानी जाती है। इसी काल में सर्वप्रथम बाल विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा, के अस्पष्टतः साक्ष्य प्राप्त होते हैं। जहां तक धार्मिक क्षेत्र में गुप्त शासकों ने गई धार्मिक सहनशीलता की नीति का सवाल है, तो किसी भी अर्थ में गुप्त शासक अपने पूर्ववर्ती शासक अशोक के मुकाबले धार्मिक रुप से सही से नहीं माने जा सकते। स्थापत्य कला, मूर्ति कला, साहित्य, विज्ञान व प्रौद्योगिकी में हमें जो विकास दिखाई देता है, उसे हड़प्पा सभ्यता से प्रारंभ हुए विकास की निरंतर प्रक्रिया के रूप में ही देखा जाना चाहिए। यद्यपि सांस्कृतिक स्तर पर गुप्त काल में अभूतपूर्व प्रगति हुई, किंतु राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक स्तर पर कुछ प्रगतिशील बातों के बावजूद यह योग्य सामंतवादी दोषों, आर्थिक अवनति तथा उच्च वर्ग द्वारा निम्न वर्ण के शोषण का काल नजर आता है। सड़क पर लाट्ठी ठोकते हुए व गले में ढोल डालकर चलते हुए लोग तथा सती होने वाली महिला के स्मरण मात्र से स्वर्ण युग की संकल्पना मिथ्या प्रतीत होती है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि स्वर्ण युग जैसे शब्दों का प्रयोग एथेंस पेराक्लीज एवं ब्रिटेन के एलिजाबेथ प्रथम के शासनकाल के संदर्भ में किया जाता था, किंतु आधुनिक शोधों से इन कालों को भी स्वर्ण युग कहने पर प्रश्न – चिन्ह उपस्थित हो गया है। अतः गुप्त काल के संदर्भ में स्वर्ण युग जैसे शब्दों का प्रयोग सावधानी पूर्वक किए जाने की आवश्यकता है। गुप्त काल का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है?गुप्तकाल में विज्ञान प्रौद्योगिकी से लेकर साहित्य, स्थापत्य तथा मूर्तिकला के क्षेत्र में नये प्रतिमानों की स्थापना की गई जिससे यह काल भारतीय इतिहास में 'स्वर्ण युग' के रूप में जाना गया।
स्वर्ण युग का क्या मतलब होता है?स्वर्णयुग संज्ञा पुं० [सं०] सुख समृद्धि एवं शांति का काल ।
गुप्त काल का समय क्या है?इसका शासन काल (320 ई. से 335 ई. तक) था। चंद्रगुप्त ने गुप्त संवत् की स्थापना 319–320 ई.
भक्ति काल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है?भक्तिकाल का परिचय :
भक्तिकाल हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता है। इसका समय वि. सं 1375 से 1700 तक का है।
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