हल्दीघाटी को थर्मोपोली क्यों कहा जाता है? - haldeeghaatee ko tharmopolee kyon kaha jaata hai?

उदयपुर. हल्दीघाटी केयुद्ध को महासंग्राम कहा गया। वजह ये कि 5 घंटे की लड़ाई में जो घटनाएं हुईं, अद्भुत थीं। अबुल फजल ने कहा कि यहां जान सस्ती और इज्जत महंगी थी। इसी लड़ाई से मुगलों का अजेय होने का भ्रम टूटा था। मेवाड़ सेना में 3000 और मुगल सेना में 5000 सैनिक थे। फौजों से मरे 490 सैनिक। परिणाम भी ऐसा कि कोई हारा, जीता। इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने इसे थर्मोपॉली (यूनान में हुआ युद्ध) कहा है।

18 जून का दिन। मुगल सेना मेवाड़ की राजधानी गोगुंदा पर कब्जा करने निकली। मानसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना ने माेलेला में पड़ाव डाला था। इसे रोकने के मकसद से निकले प्रताप ने लोसिंग में पड़ाव डाला। मोलेला से गोगुंदा जाने को निकली मुगल सेना तीन हिस्सों में बंट गई। एक हिस्सा सीधे गोगुंदा की ओर मुड़ा, दूसरा हल्दीघाटी होकर और तीसरा उनवास की ओर। हल्दीघाटी में दोनों सेनाएं सामने हो गईं। घबराए मुगल सैनिक भागने लगे। मेवाड़ी सेना ने पीछा किया। खमनोर में दोनों फौजों की सभी टुकड़ियां आमने-सामने हो गईं। इतना खून बहा कि जंग के मैदान को रक्त तलाई कहा गया।

बदायूनी लिखते हैं कि देह जला देने वाली धूप और लू सैनिकों के मगज पिघला देने वाली थी। चारण रामा सांदू ने आंखों देखा हाल लिखा है कि प्रताप ने मानसिंह पर वार किया। वह झुककर बच गया, महावत मारा गया। बेकाबू हाथी को मानसिंह ने संभाल लिया। सबको भ्रम हुआ कि मानसिंह मर गया। दूसरे ही पल बहलोल खां पर प्रताप ने ऐसा वार किया कि सिर से घोड़े तक के दो टुकड़े कर दिए। युद्ध में प्रताप को बंदूक की गोली सहित आठ बड़े घाव लगे थे। तीर-तलवार की अनगिनत खरोंचें थीं। चेतक के घायल होने के बाद निकले प्रताप के घावों को कालोड़ा में मरहम मिला। ग्वालियर के राजा राम सिंह तंवर प्रताप की बहन के ससुर थे। उन्होंने तीन बेटों और एक पोते सहित बलिदान दिया। इस पर बदायूनी लिखते हैं कि ऐसे वीर की ख्याति लिखते मेरी कलम भी रुक जाती है।

हल्दीघाटी का दर्रा इतिहास में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हुए युद्ध के लिए प्रसिद्ध है। यह राजस्थान में एकलिंगजी से 18 किलोमीटर की दूरी पर है। यह अरावली पर्वत शृंखला में खमनोर एवं बलीचा गांव के मध्य एक दर्रा (pass) है। यह राजसमन्द और पाली जिलों को जोड़ता है। यह उदयपुर से ४० किमी की दूरी पर है। इसका नाम 'हल्दीघाटी' इसलिये पड़ा क्योंकि यहाँ की मिट्टी हल्दी जैसी पीली है।[1] इसे राती घाटी भी कहते हैं।

हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 ई. को खमनोर एवं बलीचा गांव के मध्य तंग पहाड़ी दर्रे से आरम्भ होकर खमनोर गांव के किनारे बनास नदी के सहारे मोलेला तक कुछ घंटों तक चला था। युद्ध में निर्णायक विजय किसी को भी हासिल नहीं हो सकी थी। इस युद्ध मे महाराणा प्रताप के सहयोगी राणा पूंजा का सहयोग रहा ।इसी युद्ध में महाराणा प्रताप के सहयोगी झाला मान, हाकिम खान,ग्वालियर नरेश राम शाह तंवर सहित देश भक्त कई सैनिक देशहित बलिदान हुए। उनका प्रसिद्ध घोड़ा चेतक भी मारा गया था। अब यहां मुख्य रूप से देखने योग्य युद्ध स्थल रक्त तलाई,शाहीबाग,हल्दीघाटी दर्रा,प्रताप गुफा,चेतक समाधी एवं महाराणा प्रताप स्मारक देखने योग्य है। युद्धभूमि रक्त तलाई में शहीदों की स्मृति में बनी हुई है। भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित सभी स्थल निःशुल्क दर्शनीय है। सरकारी संग्रहालय नहीं होने से यहाँ निजी प्रतिष्ठान द्वारा हल्दीघाटी से 3 किलोमीटर दूर बलीचा गांव में संग्रहालय के नाम पर 100 रुपया प्रवेश शुल्क लेकर व्यापारिक मॉडल बना रखा है। पर्यटकों को मूल स्थलों से भ्रमित किया जाना सोचनीय है।

भारतीय इतिहास में लड़ाई का समग्र स्थान और महत्व[संपादित करें]

ऐसा कहा जाता है कि हल्दीघाट की लड़ाई के बाद, राणा प्रताप मुगलों पर हमला करते रहे, जिसे गुरिल्ला युद्ध की तकनीक कहा जाता है। वह पहाड़ियों में रहे और वहाँ से बड़े मुगल सेनाओं को अपने शिविरों में परेशान किया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मेवाड़ में मुगल सैनिक कभी भी शांति से नहीं रहेंगे। प्रताप को पहाड़ों में उनके ठिकानों से बाहर निकालने के लिए अकबर की सेना द्वारा तीन और अभियान चलाए गए, लेकिन वे सभी विफल रहे। उसी दौरान, राणा प्रताप को भामाशाह नामक एक शुभचिंतक से वित्तीय सहायता मिली। भील आदिवासियों ने जंगलों में रहने के लिए अपनी विशेषज्ञता के साथ प्रताप को सहायता प्रदान की। झुलसी हुई धरती का उपयोग करते हुए युद्ध के लिए उनकी अभिनव रणनीति, दुश्मन के क्षेत्रों में लोगों की निकासी, कुओं का ज़हर, अरावली में पहाड़ी किलों और गुफाओं का उपयोग, लगातार लूटपाट, लूटपाट और दुश्मन के कैंपों को ध्वस्त करने में मदद मिली, जिससे उन्हें बहुत राहत मिली। मेवाड़ के प्रदेशों को खो दिया। उन्होंने राजस्थान के कई क्षेत्रों को मुग़ल शासन से मुक्त कर दिया। साल बीतते गए और 1597 में प्रताप की शिकार की दुर्घटना में मृत्यु हो गई। उन्होंने अपने बेटे अमर सिंह को अपना उत्तराधिकारी बनाया।

(A) अजमेर
(B) हल्दीघाटी
(C) चित्तौड़गढ़
(D) भरतपुर

Explanation : राजस्थान की थर्मोपोली हल्दीघाटी को कहते है। यह राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है। जो राजस्थान में एकलिंगजी से 18 किलोमीटर की दूरी पर है। इसका नाम 'हल्दीघाटी' इसलिये पड़ा क्योंकि यहाँ की मिट्टी हल्दी जैसी पीली है। इसे राती घाटी भी कहते हैं। हल्दीघाटी का दर्रा इतिहास में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हुए युद्ध के लिए प्रसिद्ध है। इस युद्ध में प्रताप के साथ कई राजपूत योद्धाओं सहित हकीम ख़ाँ सूर भी उपस्थित था। इस युद्ध में राणा प्रताप का साथ स्थानीय भीलों ने दिया, जो इस युद्ध की मुख्य बात थी। मुग़लों की ओर से राजा मानसिंह सेना का नेतृत्व कर रहे थे।

राजस्थान के अन्य प्रमुख नगरों व क्षेत्रों के उपनाम इस प्रकार है–
कोटा → राजस्थान की औद्योगिक नगरी राजस्थान का कानपुर, वर्तमान नांलदा, राज्य की शैक्षिक नगरी
बांसवाड़ा → सो दीपों का शहर
अजमेर → राजस्थान का हृदय
माउंट आबू → राजस्थान का शिमला
झालावाड़ → राजस्थान का नागपुर
झालरापाटन → सिटी ऑफ बेल्स {घाटियों का शहर}
चित्तौड़गढ़→ राजस्थान का गौरव
जयपुर → पूर्व का पेरिस, गुलाबी शहर, रत्न नगरी
अलवर → राज्य का सिंहद्वार, पूर्वी राज. का कश्मीर, राजस्थान का स्कॉटलैंड
विजयस्तंभ → भारतीय मूर्ति कलाकार विश्वकोश
भीलवाड़ा → वस्त्र नगरी, राजस्थान का मैनचेस्टर
गंगानगर → राजस्थान का अन्नागार
पाली → खम्भों का नगर
किराडू → राजस्थान का खजुराहो
भिंडदेवरा → राजस्थान का मिनी खजुराहो
सांचौर → राजस्थान का पंजाब
पुष्कर → तीर्थराज पंचम तीर्थ तीर्थो का मामा
नागौर → राजस्थान की धातु नगरी
जोधपुर → सूर्यनगरी, थार मरुस्थल का प्रवेश द्वार मरुप्रदेश, मारवाड़
भरतपुर → जल महलों की नगरी
उदयपुर → झीलों की नगरी, राजस्थान का कश्मीर
डूंगरपुर → पहाड़ों की नगरी
जैसलमेर → स्वर्ण नगरी, म्यूजियम सिटी, हवेलियों और पीले पत्थरों का शहर
बूंदी→ बावड़ियों का शहर
रावतभाटा → राजस्थान की अणु नगरी
तनोट माता {जैसलमेर} → थार की वैष्णो देवी
टॉक → नवाबों का शहर
बेणेश्वर → आदिवासियों का कुंभ....अगला सवाल पढ़े

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Web Title : Rajasthan Ki Tharmopoli Kise Kehte Hain

थर्मोपोली का अर्थ क्या होता है?

थर्मोपाइले ग्रीस में एक स्थान है जहां प्राचीन काल में एक संकीर्ण तटीय मार्ग मौजूद था। इसका नाम अपने गर्म सल्फर स्प्रिंग्स से निकला है।

हल्दीघाटी का दूसरा नाम क्या है?

इसका नाम 'हल्दीघाटी' इसलिये पड़ा क्योंकि यहाँ की मिट्टी हल्दी जैसी पीली है। इसे राती घाटी भी कहते हैं।

हल्दीघाटी युद्ध में किसकी हार हुई थी?

राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित हल्दीघाटी युद्ध मुगल सम्राट अकबर ने नहीं बल्कि महाराणा प्रताप ने जीता था. साल 1576 में हुए इस भीषण युद्ध में अकबर को नाको चने चबाने पड़े और आखिर जीत महाराणा प्रताप की हुई.

हल्दीघाटी के युद्ध को कर्नल जेम्स टॉड ने क्या कहा है?

इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने इसे थर्मोपॉली (यूनान में हुआ युद्ध) कहा है।