लक्ष्मण पिछले जन्म में क्या थे? - lakshman pichhale janm mein kya the?

- पं. सुरेशचन्द्र ठाकुर दंडकारण्य की स्वामिनी शूर्पणखा ने भगवान श्रीराम के महत्वपूर्ण कार्य 'निशिचर हीन करहुं महि भुज उठाय प्रण कीन्ह, विनाशाय च दुष्कृतं' आदि में बहुत सहायता की है। 

जनमानस में शूर्पणखा की छवि राक्षसी होने, कामी होने, निर्ममता से नरसंहार करने की होने से वह घृणा की दृष्टि से देखी जाती है। करोड़ों जन्मों तक तपस्या करने के बाद भी ऋषि-मुनियों को भगवद् दर्शन लाभ नहीं हो पाते, परंतु इसने उनके दर्शन के साथ-साथ बातें भी कीं तथा श्रीराम ने उसकी लक्ष्मणजी से भी बात करवाकर भक्तिस्वरूपा आद्या शक्ति जगत जननी सीता माता के दर्शन भी करवा दिए। एक जिज्ञासा बनी रहती है कि आखिर शूर्पणखा ने ऐसा कौन सा पुण्य किया होगा जिससे उसे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। मनीषी व ज्ञानीजन हमेशा इसका चिंतन किया करते हैं।

आइए, शूर्पणखा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानें-

पूर्व जन्म में शूर्पणखा इन्द्रलोक की 'नयनतारा' नामक अप्सरा थी। उर्वशी, रम्भा, मेनका, पूंजिकस्थला आदि प्रमुख अप्सराओं में इसकी गिनती थी। एक बार इन्द्र के दरबार में अप्सराओं का नृत्य चल रहा था। उस समय यह नयनतारा नृत्य करते समय भ्रूसंचालन अर्थात आंखों से इशारा भी कर रही थी। इसे देख इन्द्र विचलित हो गए और उसके ऊपर प्रसन्न हो गए। 

तब से नयनतारा इन्द्र की प्रेयसी बन गई। तत्कालीन समय में पृथ्वी पर एक 'वज्रा' नामक एक ऋषि घोर तपस्या कर रहे थे, तब नयनतारा पर प्रसन्न होने के कारण ऋषि की तपस्या भंग करने हेतु इन्द्र ने इसे ही पृथ्वी पर भेजा, परंतु वज्रा ऋषि की तपस्या भंग होने पर उन्होंने इसे राक्षसी होने का श्राप दे दिया। ऋषि से क्षमा-याचना करने पर वज्रा ऋषि ने उससे कहा कि राक्षस जन्म में ही तुझे प्रभु के दर्शन होंगे। तब वही अप्सरा देह त्याग के बाद शूर्पणखा राक्षसी बनी। उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि प्रभु के दर्शन होने पर वह उन्हें प्राप्त कर लेगी।

वही नयनतारा वाला मोहक रूप बनाकर ही शूर्पणखा श्रीराम प्रभु के पास गई, परंतु एक गलती कर बैठी। वह यह कि परब्रह्म प्रभु परमात्मा परात्पर परब्रह्म को पति रूप में पाने की इच्छा प्रकट कर दी- 

'तुम सम पुरुष न मो सम नारी। यह संजोग विधि रचा विचारी।।' 

मम अनुरूप पुरुष जग माही। देखेऊं खोजि लोक तिहुं नाहीं।

ताते अब लगि रहिऊं कुंवारी। मनु माना कप्पु तुम्हहि निहारी।।

लक्ष्मण पिछले जन्म में क्या थे? - lakshman pichhale janm mein kya the?

परब्रह्म को प्राप्त करने की एक प्रक्रिया होती है। भक्ति या वैराग्य के सहारे ही परब्रह्म को प्राप्त किया जा सकता है। शूर्पणखा भक्तिरूपा सीता माता और वैराग्यरूपी श्री लक्ष्मणजी के पास न जाकर सीधे ब्रह्म के पास चली गई। यह उसकी सबसे बड़ी गलती है। वह तो डायरेक्ट श्रीराम की पत्नी बनकर भक्ति को ही अलग कर देना चाहती थी। इसके अलावा वैराग्य का आश्रय लेती तो भी प्रभु को प्राप्त कर सकती थी, परंतु वैराग्य को भी नकारकर अर्थात वैराग्यरूपी श्री लक्ष्मणजी के पास भी न जाकर एवं अहंकार में आकर सीधे प्रभु के पास चली गई। उसमें अहंकार आ गया। वह कहती है- 'संपूर्ण संसार में मेरे समान कोई नारी नहीं'। इसका अर्थ यह हुआ कि समस्त संसार में आपकी पत्नी बनने लायक मेरे समान कोई नारी नहीं है।

अहंकारी को प्रभु मिलन संभव ही नहीं हो सकता, फिर भी उचित प्रक्रिया का ज्ञान कराने के लिए उसे वैराग्यरूपी लक्ष्मण के पास भेजा गया ताकि उसे प्रभु मिलन की सही प्रक्रिया ज्ञात हो सके। शूर्पणखा जैसी गलतियां कई बार हम लोग भी करते हैं, जैसे प्रभु के मंदिर में जाने पर हम लोग जहां अगरबत्ती का खाली पैकेट, नारियल की पॉलिथीन, माचिस की तीली, दूध चढ़ाकर दूध का खाली पाउच मंदिर परिसर में डस्टबिन में न डालकर चाहे जहां फेंक देते हैं। चैनल गेट में ही अगरबत्ती लगा देते हैं, नियत स्थान को छोड़कर पेड़ी पर भी दीपक लगा देते हैं, या भगवान के पैर के पास या शिवजी की जलाधारी के ऊपर ही दीपक रख आते हैं, आदि-आदि...। इस प्रकार के 32 भागवतापराध होते हैं। मंदिरों में जाकर इन 32 अपराधों में से 1 भी अपराध यदि कोई करता है तो उस पर भगवान की कृपा तो नहीं होती है, अपितु वह ईश्वर का कोपभाजन अवश्य बन जाता है।

वैरागी लक्ष्मण ने सोचा कि राक्षसी को वैराग्य तो आ नहीं सकता, अत: उसे पुन: प्रभु के पास भेज दिया। तब प्रभु ने कहा कि मैं तो भक्ति के वश में हूं, तब शूर्पणखा भक्तिरूपा सीता माता के पास गई, परंतु वहां भी एक भागवतापराध कर बैठी। सोचा, प्रभु इस भक्ति के वश में हैं, अत: मैं इस भक्ति को ही खा जाऊं। भक्ति को ही नष्ट कर दूं, ज‍बकि नियम यह है कि- 'श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ संतन की सेवा।

अत: लक्ष्मणजी ने क्रोध में आकर उसके नाक-कान काटकर अंग भंग कर दिया। तब शूर्पणखा के ज्ञान-चक्षु खुल गए और प्रभु के कार्य को पूरा कराने 'विनाशाय च दुष्कृतम्' के लिए उनकी सहायिका बनकर प्रभु के हाथ से खर व दूषण, रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद आदि निशाचरों को मरवा दिया और प्रभु प्राप्ति की उचित प्रक्रिया अपनाने के लिए पुष्करजी में चली गई और जल में खड़ी होकर भगवान शिव का ध्यान करने लगी। आइए, हम भी भगवान रुद्रेश्वर को प्रणाम करें- 

'ज्योतिमत्रिस्वरूपाय निर्मल ज्ञान चक्षुसे। 

ॐ रुद्रेश्वराय शान्ताय ब्रह्मणे लिंग मूर्तये।।'

श्रीकृष्ण की पत्नीं : दस हजार वर्ष बाद भगवान शिव ने शूर्पणखा को दर्शन दिए और वर प्रदान किया कि 28वें द्वापर युग में जब श्रीराम कृष्णावतार लेंगे, तब कुब्जा के रूप में तुम्हें कृष्ण से पति सुख की प्राप्ति होगी। तब श्रीकृष्ण तुम्हारी कूबड़ ठीक करके वही नयनतारा अप्सरा का मनमोहक रूप प्रदान करेंगे।

इसे सुनेंरोकें1/5पूर्वजन्म में देवी सीता पुराणों के अनुसार, राजा कुशध्वज और मालावती की कन्या वेदवती देवी लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न हुई थीं। वह काफी ज्ञानी थीं और बाल्यकाल से ही सभी वेदमंत्र अर्थ सहित कंठस्थ थे इसलिए इनका नाम ‘वेदवती’ रखा गया।

भगवान राम लंका में कितने दिन रहे?

इसे सुनेंरोकेंलंका में राम 111 दिन रहने का अनुमान मानस में बताया गया है।

सीता जी ने तुलसी को श्राप क्यों दिया?

इसे सुनेंरोकेंसीता जी ने पंडित जी को भी कभी संतुष्ट ना रहने का भी श्राप दिया इस कारण पंडित दान दक्षिणा के बाद भी संतुष्ट नहीं होता. तुलसी जी को सीता ने श्राप दिया कि वह गया की मिट्टी में कभी नही उगेगी.

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सीता जी का जन्म कब और कहां हुआ?

इसे सुनेंरोकेंसीता मिथिला(सीतामढ़ी, बिहार) में जन्मी थी, यह स्थान आगे चलकर सीतामढ़ी से विख्यात हुआ। देवी सीता मिथिला के नरेश राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थीं । इनका विवाह अयोध्या के नरेश राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्री राम से स्वयंवर में शिवधनुष को भंग करने के उपरांत हुआ था।

क्या सीता लक्ष्मण की बहन थी?

इसे सुनेंरोकेंचूँकि देवी सीता भी धरती से उत्पन्न हुई हैं और शेषनाग को भी धरती को धारण करने वाला कहा गया है। सीता और लक्ष्मण दोनों के जन्म का सम्बंध धरती के गर्भ से ही है अतः उन्हें भाई बहन की संज्ञा दी गई है।

रावण ने सीता को क्यों नहीं छुआ?

इसे सुनेंरोकेंरावण ने सीता जी को उनकी आज्ञा से इसलिए स्पर्श नहीं किया कि रावण को नलकुबेर ने शाप दिया था। रावण जानता था। यदि वह सीता गलत नियत से स्पर्श करेगा तो उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे। त्रेतायुग में विश्वविजेता की उपाधि धारण करने वाला रावण किसी भी स्त्री को उसकी आज्ञा के बिना स्पर्श नहीं कर सकता था।

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पुष्पक विमान की गति क्या थी?

इसे सुनेंरोकेंपुष्पक विमान मन की गति से चलता था और मनचाहे आकार में बढ़ या घट जाता था। श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण के अनुसार जब हनुमानजी सीता की खोज करते हुए लंका पहुंचे तो उन्होंने देखा की रावण की लंका पूरी तरह सोने से बनी हुई है।

सीता लंका में कितने वर्ष रहीं?

इसे सुनेंरोकें6/8लंका में इ‍तने द‍िनों तक रहीं थीं देवी सीता जानकारी के अनुसार रावण जब सीता माता का हरण कर के उन्हें लंका ले गया। तो उसके बाद जानकी को कुल 435 दिन लंका में रहना पड़ा था।

सीता ने धनुष कैसे उठाया?

इसे सुनेंरोकेंमनीष शर्मा के अनुसार बचपन में खेलते समय माता सीता ने शिवजी का धनुष उठा लिया था। राजा जनक ने उस समय पहली बार समझा कि ये सामान्य बालिका नहीं है, क्योंकि शिव धनुष को रावण, बाणासुर आदि कई वीर हिला तक भी नही सके थे। इसलिए जानकीजी का विवाह उस धनुष को तोड़ने वाले वीर व्यक्ति के साथ करने का निश्चय किया था।

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सीता जी ने कौन सी नदी को श्राप दिया था?

इसे सुनेंरोकेंFalgu Nadi Story: बिहार की फल्गु नदी के लिए के लिए कहते हैं कि इसे सीता माता ने श्राप दिया था. ऐसा क्यों कहा जाता है और इसके पीछे कौन सी पौराणिक कथा है आइये जानते हैं. हिंदू संस्कृति में पिंडदान या श्राद्ध का विशेष महत्व है. इस पर भी गया में किए गए श्राद्ध को बहुत अहम कहा जाता है.

क्या मेघनाथ लक्ष्मण के दामाद थे?

परन्तु मेघनाद यह नहीं जानता था कि शेषनाग का अवतार लक्ष्मण थे। शेषनाग का अवतार लक्ष्मण जी होने के कारण इस तरह मेघनाद, लक्ष्मण का दामाद था। राम और रावण के बीच हुए युद्ध में लक्ष्मण ने मेघनाद का सिर काटकर मेघनाद का वध किया था।

लक्ष्मण के वंशज कौन है?

लक्ष्मण के वंशज परिहार कहलाते थे। वे सूर्यवंशी वंश के क्षत्रिय हैं। लक्ष्मण के पुत्र अंगद, जो करपथ (राजस्थान और पंजाब) के शासक थे, इस राजवंश की 126 वीं पीढ़ी में राजा हरिचंद्र प्रतिहार का उल्लेख है (590 AD).

लक्ष्मण की बहन का नाम क्या था?

जब राम सीता से विवाह करते हैं, तो लक्ष्मण सीता की छोटी बहन उर्मिला से विवाह करते हैं।

मेघनाथ अगले जन्म में कौन था?

मेघनाद' अथवा इन्द्रजीत रावण के पुत्र का नाम है। अपने पिता की तरह यह भी स्वर्ग विजयी था। इंद्र को परास्त करने के कारण ही ब्रह्मा जी ने इसका नाम इन्द्रजीत रखा था