मानव भूगोल की कौन सी संकल्पना? - maanav bhoogol kee kaun see sankalpana?

मानव भूगोल की कौन सी संकल्पना? - maanav bhoogol kee kaun see sankalpana?

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इकाई-1

अध्याय-1

मानव भूगोल

प्रकृति एव विषय क्षेत्र 

मानव भूगोल की कौन सी संकल्पना? - maanav bhoogol kee kaun see sankalpana?

आप ‘भूगोल एक विषय के रूप में’ ‘भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत’ (रा.शै.अ.प्र.प. 2006) के अध्याय 1 में पहले ही पढ़ चुके हैं। क्या आप इसकी अंतर्वस्तु को याद कर सकते हैं? इस अध्याय ने बृहद रूप से आपका परिचय भूगोल की प्रकृति से कराया था। आप भूगोल की महत्त्वपूर्ण शाखाओं से भी परिचित हैं। यदि आप अध्याय को पुनः पढें़ तो आपको मानव भूगोल का मुख्य विषय ‘भूगोल’ से संबंध भी ज्ञात हो जाएगा। जैसा कि आप जानते हैं कि एक अध्ययन क्षेत्र के रूप में भूगोल समाकलनात्मक, आनुभविक एवं व्यावहारिक है। अतः भूगोल की पहुँच विस्तृत है और किसी भी घटना अथवा परिघटना का, जो दिक् एवं काल के संदर्भ में परिवर्तित होता है, उसका भौगोलिक ढंग से अध्ययन किया जा सकता है। आप धरातल को किस प्रकार देखते हैं? क्या आप को लगता है कि पृथ्वी के दो प्रमुख घटक हैंः प्रकृति (भौतिक पर्यावरण) और जीवन के रूप जिसमें मनुष्य भी सम्मिलित हैं। अपने परिवेश के भौतिक और मानवीय घटकों की सूची बनाइए। भौतिक भूगोल भौतिक पर्यावरण का अध्ययन करता है और मानव भूगोल ‘भौतिक/प्राकृतिक एवं मानवीय जगत के बीच संबंध, मानवीय परिघटनाओं का स्थानिक वितरण तथा उनके घटित होने के कारण एवं विश्व के विभिन्न भागों में सामाजिक और आर्थिक विभिन्नताओं का अध्ययन करता है’।1

आपको इस तथ्य का पहले से ही बोध होगा कि एक विषय के रूप में भूगोल का मुख्य सरोकार पृथ्वी को मानव के घर के रूप में समझना और उन सभी तत्वों का अध्ययन करना है, जिन्हाेंने मानव को पोषित किया है। अतः प्रकृति और मानव के अध्ययन पर बल दिया गया है। आप अनुभव करेंगे कि भूगोल में द्वैतवाद आया और इस आशय के व्यापक तर्क-वितर्क आरंभ हो गए कि क्या एक विषय के रूप में भूगोल को नियम बनाने/सिद्धांतीकर (नोमोथेटिक) अथवा विवरणात्मक (भावचित्रात्मक/इडियोग्राफिक) होना चाहिए। क्या इसके विषय-वस्तु को व्यवस्थित किया जाना चाहिए और इसके अध्ययन का उपागम प्रादेशिक अथवा क्रमबद्ध होना चाहिए? क्या भौगोलिक परिघटनाओं की व्याख्या सैद्धांतिक आधार पर होनी चाहिए अथवा एेतिहासिक-संस्थागत उपागम के आधार पर? ये बौद्धिक अभ्यास के मुद्दे रहे हैं और अंततः आप मूल्यांकन करेंगे कि प्रकृति और मानव के बीच वैध द्वैधता नहीं है, क्योंकि प्रकृति और मानव अविभाज्य तत्त्व हैं और इन्हें समग्रता में देखा जाना चाहिए। यह जानना रुचिकर है कि भौतिक और मानवीय दोनों परिघटनाओं का वर्णन मानव शरीर रचना विज्ञान से प्रतीकों का प्रयोग करते हुए रूपकों के रूप में किया जाता है।

हम सामान्यतः पृथ्वी के ‘रूप’, तूप.ηान की ‘आँख’, नदी के ‘मुख’, हिमनदी के ‘प्रोथ’ (नासिका), जलडमरूमध्य की ‘ग्रीवा’ और मृदा की ‘परिच्छेदिका’ का वर्णन करते हैं। इसी प्रकार प्रदेशों, गाँवों, नगरों का वर्णन ‘जीवों’ के रूप में किया गया है। जर्मन भूगोलवेत्ता राज्य/देश का वर्णन ‘जीवित जीव’ के रूप में करते हैं। सड़कों, रेलमार्गों और जलमार्गों के जाल को प्रायः ‘परिसंचरण की धमनियों’ के रूप में वर्णन किया जाता है। क्या आप अपनी भाषा से एेसे शब्दों और अभिव्यक्तियों को एकत्रित कर सकते हैं? अब मूल प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या हम प्रकृति और मनुष्य को पृथक् कर सकते हैं जबकि वे इतनी जटिलता से आपस में जुड़े हुए हैं?

मानव भूगोल की परिभाषाएँ

• "मानव भूगोल मानव समाजों और धरातल के बीच संबंधों का संश्लेषित अध्ययन है।"

रैटज़ेल

ऊपर दी गई परिभाषा में संश्लेषण पर जोर दिया गया है।

• "मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील संबधों का अध्ययन है।"

एलन सी. सेंपल

सेंपल की परिभाषा में संबंधों की गत्यात्मकता मुख्य शब्द है।

• "हमारी पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा इस पर रहने वाले जीवों के मध्य संबंधों के अधिक संश्लेषित ज्ञान से उत्पन्न संकल्पना।"

पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश

मानव भूगोल पृथ्वी और मनुष्य के अंतर्संबंधों की एक नयी संकल्पना प्रस्तुत करता है।

मानव भूगोल की परकृति

मानव भूगोल भौतिक पर्यावरण तथा मानव-जनित सामाजिक सांस्कृतिक पर्यावरण के अंतर्संबंधों का अध्ययन उनकी परस्पर अन्योन्यक्रिया के द्वारा करता है। आप अपनी कक्षा XI वीं की पुस्तक ‘भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत’(रा.शै.अ.प्र.प.-2006) में भौतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अध्ययन कर चुके हैं। आप जानते हैं कि ये तत्त्व भू-आकृति, मृदाएँ, जलवायु, जल, प्राकृतिक वनस्पति और विविध प्राणिजात तथा वनस्पति-जात हैं। क्या आप उन तत्त्वों की सूची बना सकते हैं, जिनकी रचना मानव ने भौतिक पर्यावरण द्वारा प्रदत्त मंच पर अपने कार्य-कलापों के द्वारा की है? गृह, गाँव, नगर, सड़कों व रेलों का जाल, उद्योग, खेत, पत्तन, दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएँ तथा भौतिक संस्कृति के अन्य सभी तत्त्व भौतिक पर्यावरण द्वारा प्रदत् संसाधनों का उपयोग करते हुए मानव द्वारा निर्मित किए गए हैं, जबकि भौतिक पर्यावरण मानव द्वारा वृहत् स्तर पर परिवर्तित किया गया है, साथ ही मानव जीवन को भी इसने प्रभावित किया है।

मानव का प राकृतीकरण और परकृति का मानवीकरण

मनुष्य अपने प्रौद्योगिकी की सहायता से अपने भौतिक पर्यावरण से अन्योन्यक्रिया करता है। यह महत्त्वपूर्ण नहीं है, कि मानव क्या उत्पन्न और निर्माण करता है बल्कि यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि वह ‘किन उपकरणों और तकनीकों की सहायता से उत्पादन और निर्माण करता है’?

प्रौद्योगिकी किसी समाज के सांस्कृतिक विकास के स्तर की सूचक होती है। मानव प्रकृति के नियमों को बेहतर ढंग से समझने के बाद ही प्रौद्योगिकी का विकास कर पाया। उदाहरणार्थ, घर्षण और ऊष्मा की संकल्पनाओं ने अग्नि की खोज में हमारी सहायता की। इसी प्रकार डी.एन.ए. और आनुवांशिकी के रहस्यों की समझ ने हमें अनेक बीमारियों पर विजय पाने के योग्य बनाया। अधिक तीव्र गति से चलने वाले यान विकसित करने के लिए हम वायु गति के नियमों का प्रयोग करते हैं। आप देख सकते हैं कि प्रकृति का ज्ञान प्रौद्योगिकी को विकसित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है और प्रौद्योगिकी मनुष्य पर पर्यावरण की बंदिशों को कम करती है। प्राकृतिक पर्यावरण से अन्योन्यक्रिया की आरंभिक अवस्थाओं में मानव इससे अत्यधिक प्रभावित हुआ था। उन्होंने प्रकृति के आदेशों के अनुसार अपने आप को ढाल लिया। इसका कारण यह है कि प्रौद्योगिकी का स्तर अत्यंत निम्न था और मानव के सामाजिक विकास की अवस्था भी आदिम थी। आदिम मानव समाज और प्रकृति की प्रबल शक्तियों के बीच इस प्रकार की अन्योन्यक्रिया कोपर्यावरणीय निश्चयवाद कहा गया। प्रौद्योगिक विकास की उस अवस्था में हम प्राकृतिक मानव की कल्पना कर सकते हैं जो प्रकृति को सुनता था, उसकी प्रचंडता से भयभीत होता था और उसकी पूजा करता था।


मानव का प्राकृतीकरण

बेंदा मध्य भारत के अबूझमाड़ क्षेत्र के जंगलों में रहता है। उसके गाँव में तीन झोपड़ियाँ हैं जो जंगल के बीच हैं। यहाँ तक कि पक्षी और आवारा कुत्ते जिनकी भीड़ प्रायः गाँवों में मिलती है, भी यहाँ दिखाई नहीं देते। छोटी लंगोटी पहने और हाथ में कुल्हाड़ी लिए वह पेंडा (वन) का सर्वेक्षण करता है, जहाँ उसका कबीला कृषि का आदिम रूप-स्थानांतरी कृषि करता है। बेंदा और उसके मित्र वन के छोटे टुकड़ों को जुताई के लिए जलाकर साफ़ करते हैं। राख का उपयोग मृदा को उर्वर बनाने के लिए किया जाता है। अपने चारों ओर खिले हुए महुआ वृक्षों को देखकर बेंदा प्रसन्न है। जैसे ही वह महुआ, पलाश और साल के वृक्षों को देखता है, जिन्हाेंने बचपन से ही उसे आश्रय दिया है, वह सोचता है कि इस सुंदर ब्रह्मांड का अंग बनकर वह कितना सौभाग्यशाली है। विसर्पी गति से पेंडा को पार करके बेंदा नदी तक पहुँचता है। जैसे ही वह चुल्लू भर जल लेने के लिए झुकता है, उसे वन की आत्मा लोई-लुगी की प्यास बुझाने की स्वीकृति देने के लिए धन्यवाद करना याद आता है। अपने मित्रों के साथ आगे बढ़ते हुए बेंदा गूदेदार पत्तों और कंदमूल को चबाता है। लड़के वन से गज्ज्हरा और कुचला का संग्रहण करने का प्रयास कर रहे हैं। ये विशिष्ट पादप हैं जिनका प्रयोग बेंदा और उसके लोग करते हैं। वह आशा करता है कि वन की आत्माएँ दया करेंगी और उसे उन जड़ी बूटियों तक ले जाएँगी। ये आगामी पूर्णिमा को मधाई अथवा जनजातीय मेले में वस्तु विनिमय के लिए आवश्यक है। वह अपने नेत्र बंद करके स्मरण करने का कठिन प्रयत्न करता है, जो उसके बुजुर्गों ने उन जड़ी बूटियों और उनके पाए जाने वाले स्थानों के बारे में समझाया था। वह चाहता है कि काश उसने अधिक ध्यानपूर्वक सुना होता। अचानक पत्तों में खड़खड़ाहट होती है। बेंदा और उसके मित्र जानते हैं कि ये बाहरी लोग हैं जो इन जंगलों में उन्हें ढूँढ़ते हुए आए हैं। एक ही प्रवाही गति से बेंदा और उसके मित्र सघन वृक्षों के वितान के पीछे अदृश्य हो जाते हैं और वन की आत्मा के साथ एकाकार हो जाते हैं।

बॉक्स की कथा (मानव का प्राकृतीकरण) आर्थिक दृष्टि से आदिम समाज से संबंधित एक घर के प्रत्यक्ष संबंधों का प्रतिनिधित्व करती है। एेसे अन्य आदिम समाजों के संबंध में पढ़े जो प्राकृतिक पर्यावरण के साथ पूर्णतः सामंजस्य बनाए हुए हैं। आप अनुभव करेंगे कि एेसे सभी प्रकरणों में प्रकृति एक शक्तिशाली बल, पूज्य, सत्कार योग्य तथा संरक्षित है। सतत पोषण हेतु मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर है। एेसे समाजों के लिए भौतिक पर्यावरण ‘माता-प्रकृति’ का रूप धारण करता है।

समय के साथ लोग अपने पर्यावरण और प्राकृतिक बलों को समझने लगते हैं। अपने सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के साथ मानव बेहतर और अधिक सक्षम प्रौद्योगिकी का विकास करते हैं। वे अभाव की अवस्था से स्वतंत्रता की अवस्था की ओर अग्रसर होते हैं। पर्यावरण से प्राप्त संसाधनों के द्वारा वे संभावनाओं को जन्म देते हैं। मानवीय क्रियाएँ सांस्कृतिक भू-दृश्य की रचना करती हैं। मानवीय क्रियाओं की छाप सर्वत्र है; उच्च भूमियों पर स्वास्थ्य विश्रामस्थल, विशाल नगरीय प्रसार, खेत, फलोद्यान मैदानों व तरंगित पहाड़ियों में चरागाहें, तटों पर पत्तन और महासागरीय तल पर समुद्री मार्ग तथा अंतरिक्ष में उपग्रह इत्यादि। पहले के विद्वानों ने इसे संभववाद का नाम दिया। प्रकृति अवसर प्रदान करती है और मानव उनका उपयोग करता है तथा धीरे-धीरे प्रकृति का मानवीकरण हो जाता है तथा प्रकृति पर मानव प्रयासों की छाप पड़ने लगती है।

प्रकृति का मानवीकरण

ट्रॉन्डहाईम के शहर में सर्दियों का अर्थ है- प्रचंड पवनें और भारी हिम। महीनों तक आकाश अदीप्त रहता है। कैरी प्रातः 8 बजे अँधेरे में कार से काम पर जाती है। सर्दियों के लिए उसके पास विशेष टायर हैं और वह अपनी शक्तिशाली कार की लाइटें जलाए रखती है। उसका कार्यालय सुखदायक 23 डिग्री सेल्सियस पर कृत्रिम ढंग से गर्म रहता है। विश्वविद्यालय का परिसर जिसमें वह काम करती है, काँच के एक विशाल गुंबद के नीचे बना हुआ है। यह गुंबद सर्दियों में हिम को बाहर रखता है और गर्मियों में धूप को अंदर आने देता है। तापमान को सावधानीपूर्वक नियंत्रित किया जाता है और वहाँ पर्याप्त प्रकाश होता है। यद्यपि एेसे रूक्ष मौसम में नयी सब्जियाँ और पौधे नहीं उगते। कैरी अपने डेस्क पर आर्किड रखती है और उष्णकटिबंधीय फलों जैसे-केला व किवी का आनन्द लेती है। ये नियमित रूप से वायुयान द्वारा उष्ण क्षेत्रों से मँगाए जाते हैं। माउस की एक क्लिक के साथ कैरी नयी दिल्ली में अपने सहकर्मियों से कंप्यूटर नेटवर्क से जुड़ जाती है। वह प्रायः लंदन के लिए सुबह की उड़ान लेती है और शाम को अपना मनपसंद टेलिविजन सीरियल देखने के लिए सही समय पर वापस पहुँच जाती है। यद्यपि कैरी 58 वर्षीय है फिर भी वह विश्व के अन्य भागों के अनेक 30 वर्षीय लोगों से अधिक स्वस्थ और युवा दिखती है।

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एेसी जीवनशैली कैसे संभव हुई है? यह प्रौद्योगिकी है जिसके कारण ट्रॉन्डहाईम के लोग व उन जैसे अन्य लोग प्रकृति द्वारा आरोपित अवरोधों पर विजय पाने के लिए सक्षम हुए हैं। क्या आप एेसे अन्य कुछ दृष्टांतों को जानते हैं? एेसे उदाहरणों को ढूँढ़ना कठिन नहीं है।

भूगोलवेता ग्रिफ़िथ टेलर ने एक नयी संकल्पना प्रस्तुुत की है जो दो विचारों पर्यावरणीय निश्चयवाद और संभववाद के बीच मध्य मार्ग को परिलक्षित करता है। उन्हाेंने इसे नवनिश्यचवाद अथवा रुको और जाओ निश्चयवाद का नाम दिया। आप में से जो नगरों में रहते हैं और जो नगर देख चुके हैं, जरूर जानते हाेंगे कि चौराहों पर यातायात का नियंत्रण बत्तियों द्वारा होता है। लाल बत्ती का अर्थ है ‘रुको’, एेंबर (पीली) बत्ती लाल और हरी बत्तियों के बीच रूककर तैयार रहने का अंतराल प्रदान करती है और हरी बत्ती का अर्थ है ‘जाओ’। संकल्पना दर्शाती है कि न तो यहाँ नितांत आवश्यकता की स्थिति (पर्यावरणीय निश्चयवाद) है और न ही नितांत स्वतंत्रता (संभववाद) की दशा है। इसका अर्थ है कि प्राकृतिक नियमों का अनुपालन करके हम प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। उन्हें लाल संकेतों पर प्रत्युत्तर देना होगा और जब प्रकृति रूपांतरण की स्वीकृति दे तो वे अपने विकास के प्रयत्नों में आगे बढ़ सकते हैं। इसका तात्पर्य है कि उन सीमाओं में, जो पर्यावरण की हानि न करती हों, संभावनाओं को उत्पन्न किया जा सकता है। तथा अंधाधुंध रफ़्तार दुर्घटनाओं से मुक्त नहीं होती है। विकसित अर्थव्यवस्थाआ के द्वारा चली गई मुक्त चाल के परिणामस्वरूप हरित-गृह प्रभाव, ओज़ोन परत अवक्षय, भूमंडलीय तापन, पीछे हटती हिमनदियाँ, निम्नीकृत भूमियाँ हैं। नवनिश्चयवाद संकल्पनात्मक ढंग से एक संतुलन बनाने का प्रयास करता है जो संभावनाओं के बीच अपरिहार्य चयन द्वैतवाद को निष्फल करता है।

समय के गलियारों से मानव भूगोल

पर्यावरण से अनुकूलन व समायोजन की प्रक्रिया तथा इसका रूपांतरण पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न पारिस्थितिकीय रूप से पारिस्थितिकीय निकेत में मानव के उदय के साथ आरंभ हुआ है। इस प्रकार यदि हम पर्यावरण और मानव की अन्योन्यक्रिया से मानव भूगोल के प्रारंभ की कल्पना करें तो इसकी जड़ें इतिहास में अत्यंत गहरी हैं। अतः मानव भूगोल के विषयों में एक दीर्घकालिक सांतत्य पाया जाता है, यद्यपि समय के साथ इसे सुस्पष्ट करने वाले उपागमों में परिवर्तन आया है। उपागमों में यह गत्यात्मकता विषय की परिवर्तनशील प्रकृति को दर्शाती है। पहले विभिन्न समाजों के बीच अन्योन्यक्रिया नगण्य थी और एक-दूसरे के बारे में ज्ञान सीमित था। यात्री और अन्वेषक अपने यात्रा क्षेत्रों के बारे में सूचनाओं का प्रसार किया करते थे। नौचालन संबंधी कुशलताएँ विकसित नहीं हुई थीं और समुद्री यात्राएँ खतरों से खाली न थी। 15वीं शताब्दी के अंत में यूरोप में अन्वेषणों के प्रयास हुए और धीरे-धीरे देशों और लोगों के विषय में, मिथक और रहस्य खुलने शुरू हो गए। उपनिवेश युग ने अन्वेषणों को आगे बढ़ाने के लिए गति प्रदान की ताकि प्रदेशों के संसाधनों तक पहुँच हो सके और तालिकायुक्त सूचनाएँ प्राप्त हो सकें। यहाँ आशय गहन एेतिहासिक विवरण प्रस्तुत करने का नहीं है, केवल आपको मानव भूगोल के क्रमिक विकास की प्रक्रियाओं से अवगत कराने का है। संक्षिप्त तालिका 1.1 आपको भूगोल के उप-क्षेत्र के रूप में मानव भूगोल की विस्तृत अवस्थाओं से परिचय कराएगी।

• मानव भूगोल की कल्याणपरक अथवा मानवतावादी विचारधाारा का संबंध मुख्यतः लोगों के सामाजिक कल्याण के विभिन्न पक्षों से था। इनमें आवासन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे पक्ष सम्मिलित थे। भूगोलवेताओं ने पहले ही स्नातकोत्तर पाठ्यचर्या में ‘सामाजिक कल्याण के रूप में भूगोल’ का एक कोर्स आरंभ कर दिया है।

• आमूलवादी (रेडिकल) विचारधारा ने निर्धनता के कारण, बंधन और सामाजिक असमानता की व्याख्या के लिए मार्क्स के सिद्धांत का उपयोग किया। समकालीन सामाजिक समस्याओं का संबंध पूँजीवाद के विकास से था।

• व्यवहारवादी विचारधारा ने प्रत्यक्ष अनुभव के साथ-साथ मानव जातीयता, प्रजाति, धर्म इत्यादि पर आधारित सामाजिक संवर्गों के दिक्काल बोध पर ज्यादा ज़ोर दिया।

मानव भूगोल के क्षेत्र और उप-क्षेत्र

मानव भूगोल, जैसा कि आपने देखा, मानव जीवन के सभी तत्त्वों तथा अंतराल, जिसके अंतर्गत वे घटित होते हैं के मध्य संबंध की व्याख्या करने का प्रत्यत्न करती है। इस प्रकार मानव भूगोल की प्रकृति अत्यधिक अंतर-विषयक है। पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले मानवीय तत्त्वों को समझने व उनकी व्याख्या करने के लिए मानव भूगोल सामाजिक विज्ञानों के सहयोगी विषयों के साथ घनिष्ठ अंतरापृष्ठ विकसित करती है। ज्ञान के विस्तार के साथ नए उपक्षेत्रों का विकास होता है और मानव भूगोल के साथ भी एेसा ही हुआ। आइए, मानव भूगोल के क्षेत्रों और उप-क्षेत्रों का परीक्षण करें (तालिका 1.2)।


आपने अनुभव किया होगा कि यह सूची विशाल और विस्तृत है। यह मानव भूगोल के विस्तृत होते परिमंडल को परिलक्षित करती है। उप-क्षेत्रों के मध्य सीमाएँ प्रायः अतिव्यापी होती हैं। इस पुस्तक में अध्यायों के रूप में जो सामग्री दी गई है, वह आपको मानव भूगोल के विभिन्न पक्षों का पर्याप्त एवं विस्तृत ज्ञान प्रदान करेगी। अभ्यास, क्रियाएँ और प्रकरण अध्ययन इसकी विषय-वस्तु को और अधिक समझने के लिए आपको कुछ अनुभवाश्रित दृष्टांत प्रदान करेंगे।

मानव भूगोल की संकल्पना क्या है?

मानव भूगोल, भूगोल की प्रमुख शाखा हैं जिसके अन्तर्गत मानव की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक उसके पर्यावरण के साथ सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता हैं। मानव भूगोल की एक अत्यन्त लोकप्रिय और बहु अनुमोदित परिभाषा है, मानव एवं उसका प्राकृतिक पर्यावरण के साथ समायोजन का अध्ययन।

मानव भूगोल की कौन सी संकल्पना प्रकृति की सर्वोच्चता में विश्वास करती है?

उत्तर: मानव का प्राकृतीकरण-मानव ने जब से पृथ्वी पर जन्म लिया है, तब से वह निरन्तर भौतिक पर्यावरण से अन्योन्यक्रिया करता आया है। मानव प्रौद्योगिकी का विकास करता है और उसकी सहायता से भौतिक पर्यावरण के साथ अन्तक्रिया करता है।

मानव भूगोल के उद्देश्य क्या हैं?

मानव भूगोल का उद्देश्य विश्व के विभिन्न प्रदेशों में रहने वाले मानव समूह एवं वहाँ के वातावरण से सम्बन्धित संसाधनों के प्रयोग से उस प्रदेशों के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य का अध्ययन करना है

मानव भूगोल का जनक कौन है?

Detailed Solution. सही उत्तर विडाल डी लॉ ब्लाच है।