गजल के पहले शेर को क्या कहते हैं? - gajal ke pahale sher ko kya kahate hain?

यह अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है जो बाद में फ़ारसी, उर्दू, नेपाली और हिंदी साहित्य में भी बेहद लोकप्रिय हुइ। संगीत के क्षेत्र में इस विधा को गाने के लिए इरानी और भारतीय संगीत के मिश्रण से अलग शैली निर्मित हुई।

शब्दार्थ

अरबी भाषा के इस शब्द का अर्थ है औरतों से या औरतों के बारे में बातें करना।

स्वरूप

ग़ज़ल एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले शेर को मतला कहते हैं। ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः शायर अपना नाम रखता है। आम तौर पर ग़ज़लों में शेरों की विषम संख्या होती है (जैसे तीन, पाँच, सात..)।[1] एक ग़ज़ल में 5 से लेकर 25 तक शेर हो सकते हैं। ये शेर एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं। कभी-कभी एक से अधिक शेर मिलकर अर्थ देते हैं। ऐसे शेर कता बंद कहलाते हैं।

ग़ज़ल के शेर में तुकांत शब्दों को क़ाफ़िया कहा जाता है और शेरों में दोहराए जाने वाले शब्दों को रदीफ़ कहा जाता है। शेर की पंक्ति को मिस्रा कहा जाता है। मतले के दोनों मिस्रों में काफ़िया आता है और बाद के शेरों की दूसरी पंक्ति में काफ़िया आता है। रदीफ़ हमेशा काफ़िये के बाद आता है। रदीफ़ और काफ़िया एक ही शब्द के भाग भी हो सकते हैं और बिना रदीफ़ का शेर भी हो सकता है जो काफ़िये पर समाप्त होता हो।[1]

ग़ज़ल के सबसे अच्छे शेर को शाहे बैत कहा जाता है। ग़ज़लों के ऐसे संग्रह को दीवान कहते हैं जिसमें हर हर्फ से कम से कम एक ग़ज़ल अवश्य हो। उर्दू का पहला दीवान शायर कुली कुतुबशाह है।

ग़ज़ल के प्रकार

तुकांतता के आधार पर ग़ज़लें दो प्रकार की होती हैं-

  • मुअद्दस ग़जलें- जिन ग़ज़ल के अश'आरों में रदीफ़ और काफ़िया दोनों का ध्यान रखा जाता है।
  • मुकफ़्फ़ा ग़ज़लें- जिन ग़ज़ल के अश'आरों में केवल काफ़िया का ध्यान रखा जाता है।

भाव के आधार पर भी गज़लें दो प्रकार की होती हैं-

  • मुसल्सल गज़लें- जिनमें शेर का भावार्थ एक दूसरे से आद्यंत जुड़ा रहता है।
  • ग़ैर मुसल्सल गज़लें- जिनमें हरेक शेर का भाव स्वतंत्र होता है।

इतिहास

अरबी में

ग़ज़लों का आरंभ अरबी साहित्य की काव्य विधा के रूप में हुआ। अरबी भाषा में कही गयी ग़ज़लें वास्तव में नाम के ही अनुरूप थी अर्थात उसमें औरतों से बातें या उसके बारे में बातें होती थी।

फ़ारसी में

अरबी से फारसी साहित्य में आकर यह विधा शिल्प के स्तर पर तो अपरिवर्तित रही किंतु कथ्य की दृष्टि से वे उनसे आगे निकल गई। उनमें बात तो दैहिक या भौतिक प्रेम की ही की गई किंतु उसके अर्थ विस्तार द्वारा दैहिक प्रेम को आध्यात्मिक प्रेम में बदल दिया गया। अरबी का इश्के मजाज़ी फारसी में इश्के हक़ीक़ी हो गया। फारसी ग़ज़ल में प्रेमी को सादिक (साधक) और प्रेमिका को माबूद (ब्रह्म) का दर्जा मिल गया। ग़ज़ल को यह रूप देने में सूफ़ी साधकों की निर्णायक भूमिका रही। सूफी साधना विरह प्रधान साधना है। इसलिए फ़ारसी ग़ज़लों में भी संयोग के बजाय वियोग पक्ष को ही प्रधानता मिली।

उर्दू में

फ़ारसी से उर्दू में आने पर भी ग़ज़ल का शिल्पगत रूप ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया गया लेकिन कथ्य भारतीय हो गया। लेकिन उत्तर भारत की आम अवधारणा के विपरीत हिन्दोस्तानी ग़ज़लों का जन्म बहमनी सल्तनत के समय दक्कन में हुआ जहाँ गीतों से प्रभावित ग़ज़लें लिखी गयीं। भाषा का नाम रेख़्ता (गिरा-पड़ा) पड़ा। वली दकनी, सिराज दाउद आदि इसी प्रथा के शायर थे जिन्होंने एक तरह से अमीर ख़ुसरो (१३१० इस्वी) की परंपरा को आगे बढ़ाया। दक्किनी उर्दू के ग़ज़लकारों ने अरबी फारसी के बदले भारतीय प्रतीकों, काव्य रूढ़ियों, एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को लेकर रचना की।

उस समय उत्तर भारत में राजकाज की भाषा फारसी थी इसलिए ग़ज़ल जब उत्तर भारत में आयी तो पुनः उसपर फारसी का प्रभाव बढ़ने लगा। ग़ालिब जैसे उर्दू के श्रेष्ठ ग़ज़लकार भी फारसी ग़ज़लों को ही महत्वपूर्ण मानते रहे और उर्दू ग़जल को फारसी के अनुरूप बनाने की कोशिश करते रहे। बाद में दाउद के दौर में फारसी का प्रभाव कुछ कम हुआ। इकबाल की आरंभिक ग़ज़लें इसी प्रकार की है। बाद में राजनीतिक स्थितियों के कारण उर्दू ग़ज़लों पर फारसी का प्रभाव पुनः बढ़ने लगा। 1947 के बाद इसमें पुनः कमि आने लगी।

हिंदी में

हिंदी के अनेक रचनाकारों ने इस विधा को अपनाया। जिनमें निराला, शमशेर, बलबीर सिंह रंग, भवानी शंकर, जानकी वल्लभ शास्त्री, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, त्रिलोचन आदि प्रमुख हैं। इस क्षेत्र में सर्वाधिक प्रसिद्धि दुष्यंत कुमार को मिली।

प्रमुख ग़ज़लकार

  • मिर्जा असदुल्ला खाँ 'ग़ालिब'
  • मीर तक़ी 'मीर'
  • फ़िराक़ गोरखपुरी
  • फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • दुष्यंत कुमार
  • राहत इन्दौरी
  • निदा फ़ाज़ली
  • वसीम बरेलवी
  • राजेंद्र नाथ रहबर
  • कुंवर बेचैन
  • रतन पंडोरवी
  • जोश मलसियानी

कुछ ग़ज़ल गायक

  • जगजीत सिंह
  • ग़ुलाम अली
  • बेग़म अख़्तर
  • मेहदी हसन
  • चंदन दास
  • हरिहरन
  • मुन्नी बेगम
  • भूपेंद्र सिंह
  • पीनाज़ मसानी
  • पंकज उधास

सन्दर्भ

  1. ↑ अ आ आर॰पी॰सिंह 'महर्षि'. यश खन्ना 'नीर' (संपा॰). ग़ज़ल निर्देशिका. अम्बाला छावनी: तारिका प्रकाशन. पपृ॰ 13–15.

बाहरी कड़ियाँ

गजल के पहले शेर को क्या कहते?

स्वरूप ग़ज़ल एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले शेर को मतला कहते हैं। ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं।

गजल के अंतिम शेर में क्या कहा जाता है?

ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं। ... ग़ज़ल के शेर में तुकांत शब्दों को क़ाफ़िया कहा जाता है और शेरों में दोहराए जाने वाले शब्दों को रदीफ़ कहा जाता है।

शेर और गजल में क्या अंतर है?

ग़ज़ल एक लम्बी कविता होती है जिसमे पांच से लेकर 25 शेर हो सकते हैं जबकि शेर दो पंक्तियों की एक कविता होती है।

शेर की हर पंक्ति को क्या कहते हैं?

ग़ज़ल के पहले शेर को “मतला” कहते हैं. 'मतला' शब्द का अर्थ होता है 'उदय'. इसकी दोनों लाइनें तुकांत होती हैं.