पीपल के पेड़ के नीचे दिया जलाने से क्या होता है - peepal ke ped ke neeche diya jalaane se kya hota hai

पद्मपुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु का रुप है. इसलिए इसे धार्मिक क्षेत्र में श्रेष्ठ देव वृक्ष की पदवी मिली और इसका विधि विधान से पूजन आरंभ हुआ. हिन्दू धर्म में अनेक अवसरों पर पीपल की पूजा करने का विधान है. मान्यता है कि सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में साक्षात भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का वास होता है. पुराणों में पीपल का बहुत महत्व बताया गया है-स्कंदपुराण

मूल विष्णु: स्थितो नित्यं स्कन्धे केशव एव च.

नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान हरि:..

फलेSच्युतो न सन्देह: सर्वदेवै: समन्वित:..

स एव विष्णुर्द्रुम एव मूर्तो महात्मभि: सेवतिपुण्यमूल:.

यस्याश्रय: पापसहस्त्रहन्ता भवेन्नृणां कामदुधो गुणाढ्य:..

इसका अर्थ है कि ‘पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फलों में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं. यह वृक्ष मूर्तिमान श्रीविष्णु स्वरूप है. महात्मा पुरुष इस वृक्ष के पुण्यमय मूल की सेवा करते हैं. इसका गुणों से युक्त और कामनादायक आश्रय मनुष्यों के हजारों पापों का नाश करने वाला है. पद्मपुराण के अनुसार पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयु लंबी होती है. जो व्यक्ति इस वृक्ष को पानी देता है, वह सभी पापों से छुटकारा पाकर स्वर्ग को जाता है.

पीपल में पितरों का वास माना गया है. इसमें सब तीर्थों का निवास भी होता है इसीलिए मुंडन आदि संस्कार पीपल के पेड़ के नीचे करवाने का प्रचलन है.

शनि की साढ़ेसाती

शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या के कुप्रभाव से बचने के लिए हर शनिवार पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए. शाम के समय पेड़ के नीचे दीपक जलाना भी लाभकारी सिद्ध होता है. आधुनिक वैज्ञानिकों ने इसे एक अनूठा वृक्ष भी कहा है जो दिन रात यानि 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है, जो मनुष्य जीवन के लिए बहुत जरूरी है. शायद इसलिए इस वृक्ष को देव वृक्ष का दर्जा दिया जाता है. यह विश्वास है कि पीपल की निरंतर पूजा अर्चना और परिक्रमा कर के जल चढ़ाते रहने से संतान की प्राप्ति होती है. पुत्र उत्पन्न होता है, पुण्य मिलता है, अदृश्य आत्माएँ तृप्त होकर सहायक बन जाती है. यदि किसी की कोई कामना है तो उसकी पूर्ति के लिए पीपल के तने के चारों ओर कच्चा सूत लपेटने की भी परंपरा है. पीपल की जड़ में शनिवार को जल चढ़ाने व दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है. जब किसी की शनि की साढ़ेसाती चलती है तो पीपल के वृक्ष का पूजन तथा परिक्रमा की जाती है क्योंकि भगवान कृष्ण के अनुसार शनि की छाया इस पर रहती है. इसकी छाया यज्ञ, हवन, पूजा-पाठ, पुरान कथा आदि के लिए श्रेष्ठ मानी गई है.

1. प्रत्येक शनिवार को पीपल के वृक्ष पर जल, कच्चा दूध थोड़ा चढ़ाकर, सात परिक्रमा करके सूर्य, शंकर, पीपल- इन तीनों की सविधि पूजा करें तथा चढ़े जल को नेत्रों में लगाएं और पितृ देवाय नम: भी 4 बार बोलें तो राहु+केतु, शनि+पितृ दोष का निवारण होता है.

पीपल के पत्तों से शुभ काम में वंदनवार भी बनाए जाते हैं. धार्मिक श्रद्धालु लोग इसे मंदिर परिसर में अवश्य लगाते हैं. सूर्योदय होने से पहले पीपल पर दरिद्रता का अधिकार होता है और सूर्योदय के बाद लक्ष्मी जी का अधिकार होता है. इसलिए सूर्योदय से पहले पीपल की पूजा करना निषेध माना गया है. पीपल के पेड़ को काटना अथवा नष्ट करना ब्रह्महत्या के समान पाप माना गया है. रात्रि में इस वृक्ष के नीचे सोना अशुभ माना जाता है. इसके निकट रहने से प्राणशक्ति बढ़ती है. इसकी छाया गर्मियों में ठंडी तो सर्दियों में गर्म रहती है. इस वृक्ष के पत्ते, फल आदि सभी में औषधीय गुण रहने से यह रोगनाशक भी होता है. उपरोक्त सभी कारणों से पीपल के वृक्ष का पूजन किया जाता है.

प्रसन्न होते हैं बृहस्पति

पीपल के वृक्ष के कई ज्योतिषीय गुण बोध माने गए हैं. पीपल को बृहस्पति ग्रह से जोड़ा जाता है. माना जाता है कि पीपल का बृहस्पति से सीधा संबंध होता है. बृहस्पति को सभी ग्रहों में सबसे अधिक लाभ देने वाला ग्रह माना जाता है. बृहस्पति धन का कारक ग्रह है. बृहस्पति जब भी किसी की कुंडली में प्रवेश करते हैं, उस व्यक्ति को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने को कहा जाता है. माना जाता है कि पीपल में जल चढ़ाने से कुंडली में मौजूद कमजोर बृहस्पति मजबूत होता है और मजबूत बृहस्पति समृद्ध.

ज्योतिष शास्त्र ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पीपल का पेड़ यथासंभव इसके स्थान से हटाया या काटा नहीं जाना चाहिए. पीपल की पूजा से कार्यों और विचारों में स्थिरता आती है, मन का भटका रूकता है. पीपल की पूजा से व्यक्ति की तार्किक क्षमता में वृद्धि होती है. पीपल की पूजा से विवाह में आ रही बाधाओं का निवारण होता है और विवाह शीघ्र संपन्न होता है. पीपल का आशीर्वाद संतान जन्म को सरल, संभव बनाकर वंश वृद्धि में सहायता होता है. पीपल की पूजा से व्यक्ति में दान- धर्म की प्रवृत्ति बढ़ती है. पीपल की पूजा से आय का प्रवाह आसान बनता है और धनप्रवृति की कई राहें खुलती हैं. पीपल की पूजा व्यक्ति की बुद्धिमतता बढ़ाती है और उसे दीर्घायु बनाती है.

शनिवार के दिन लोग पीपल के पेड़ की पूजा करते हैं, उसके समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाते हैं. मान्यता है कि इससे शनि की साढ़ेसाती, ढैया, महादशा व अन्य तमाम प्रभावों से मुक्ति मिलती है.

पीपल के पेड़ को हिंदू शास्त्रों में काफी पूज्यनीय माना जाता है. मान्यता है कि इस पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने इसे खुद का स्वरूप बताया है. हिंदू शास्त्रों के अनुसार शनिवार के दिन पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने से शनि की महादशा, साढ़े साती, ढैया व अन्य प्रभावों से मुक्ति मिलती है. इसलिए लोग शनि के कष्टों से बचने के लिए शनिवार के दिन पीपल की पूजा करते हैं. यहां जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा.

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय स्वर्ग पर असुरों का शासन हो गया. कैटभ नाम का राक्षस पीपल वृक्ष का रूप धारण करके यज्ञ को नष्ट करने लगा. जब भी कोई ब्राह्मण समिधा के लिए पीपल के पेड़ की टहनियां तोड़ने के लिए पेड़ के पास जाता तो राक्षस उसे खा जाता. ऋषिगण समझ ही नहीं पा रहे थे कि ब्राह्मण कुमार कैसे गायब होते चले जा रहे हैं.

तब ऋषिगण सूर्यपुत्र शनि देव के पास सहायता मांगने गए. शनिदेव ब्राह्मण बनकर पीपल के पेड़ के पास गए और कैटभ ने शनि महाराज को पकड़ लिया. इसके बाद शनि और कैटभ में युद्ध हुआ. शनि महाराज ने कैटभ का वध कर दिया. इसके बाद ऋषियों ने शनि की पूजा व अर्चना की. इसके बाद शनि ने ऋषियों को कहा कि अब से जो भी शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करेगा. उसके समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएगा,उसे शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी.

ये है दूसरी कथा

इसके अलावा एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले ऋषि पिप्लाद के माता-पिता की उनके बचपन में ही मृत्यु हो गई थी. बड़े होने पर जब पिप्लाद को पता चला कि माता-पिता की मृत्यु शनि की दशा की वजह से हुई थी तो उन्होंने शनिदेव को सबक सिखाने के लिए घोर तपस्या की. तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे ब्रह्मदंड मांगा और शनि देव की खोज में निकल पड़े. इस दौरान उन्होंने शनि देव को पीपल के वृक्ष पर बैठा देखा तो उनके ऊपर ब्रह्मदंड से प्रहार किया.

इससे शनि के दोनों पैर टूट गए. दुखी होकर शनिदेव ने भगवान शिव को पुकारा, तो भगवान शिव ने प्रकट होकर पिप्लाद का क्रोध शांत किया और शनिदेव के प्राणों की रक्षा की. तब से शनिदेव पिप्लाद से डरने लगे. माना जाता है कि पिप्लाद का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ था और पीपल के पत्तों को खाकर ही उन्होंने तप किया था. इसलिए शनिवार के दिन जो पीपल के पेड़ की पूजा करता है, उस पर ऋषि पिप्लाद की कृपा रहती है और शनिदेव उसे प्रताड़ित नहीं करते.

पीपल के पेड़ के नीचे कब दिया जलाना चाहिए?

पीपल के नीचे दीपक रखने का ऐसा न‍ियम मान्‍यता है क‍ि प्रत्येक अमावस्या को रात्रि में पीपल के नीचे शुद्ध घी का दीपक जलाने से पितर प्रसन्न होते हैं। वहीं अगर न‍ियम‍ित रूप से 41 द‍िनों तक पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाया जाए तो सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

पीपल में दीपक सुबह कितने बजे जलाना चाहिए?

सुबह-सुबह मतलब ब्रह्ममुहुर्त में मंदिर जाना शुभ होता है किन्तु इस समय पीपल को जल ना चढ़ाएं क्योंकि ब्रह्म मुहुर्त में पीपल के वृक्ष में दरिद्रा का वास होता है। पीपल के वृक्ष पर जल सूर्योदय के बाद ही चढ़ाना चाहीए। जिससे आपके ऊपर माता लक्ष्मी की कृपा द्रष्टि सदा बनी रहे।

शनिवार के दिन पीपल में दीपक जलाने से क्या होता है?

शनिवार को पीपल के वृक्ष नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने से शनि ग्रह से संबंधित सभी समस्याएं दूर होती हैं और भगवान शनिदेव उनकी सभी समस्याएं दूर करते हैं।

शनिवार को पीपल में दिया कब जलाना चाहिए?

हर शनिवार को शाम के वक्‍त स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें और फिर दिन छिपने के बाद पीपल के वृक्ष की जड़ के पास जल अर्पित करें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं। ऐसा करने से आपके ऊपर से शन‍ि की दशा का प्रभाव कम होता है और अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है।