निम्न में से कौन द्वितीयक साधन है? - nimn mein se kaun dviteeyak saadhan hai?

हेलो अभिमानी अबे मैं कुछ दिया गया है साथ में तथा द्वितीयक वाहित मल उपचार के बीच पाए जाने वाले मुख्य अंतर कौन से हैं तो जो प्राथमिक तथा द्वितीयक वालों के बीच में मुख्य अंतर पाए जाते हैं वहां पर बताने तो यहां पर हम बात करें अगर पहले प्राथमिक कि इसकी बात करें रात में की तो प्राथमिक उपचार में वॉइस मेल से बड़े छोटे कणों का निशान बन के आ जाता है क्या किया जाता है जो बड़े छोटे कण होते हैं उन बड़े छोटे कणों का निबंधन किया जाता है तथा अब शासन द्वारा भौतिक रूप से अलग कर दिए जाते हैं तथा क्या किया जाता है और साधन की क्रिया की जाती है और अब शासन के द्वारा क्या किया जाता है भौतिक रूप से अलग कर दिए जाते हैं तो यह जो छोटे बड़े कान होते हैं यह कौन क्या होते हैं अलग कर दिए जाते हैं पहले तो नहीं चंदन के द्वारा फिटर किए जाते हैं तथा सावधानियां सेडिमेंट द्वारा क्या किए जाते हैं

भौतिक रूप से अलग कर दिया जाता है जबकि आओ तो दूसरे को है तुम लोग चार में सोच में हूं द्वारा जैविक पदार्थों का जैविक पालन किया जाता है क्या किया जाता है दुतीयक वाहित मल उपचार में सूखे जीवो के द्वारा जैविक पदार्थों का जैविक वाचन किया जाता है तो जो उसमें क्या होता है जैविक पदार्थ होता है क्या होते जैविक पदार्थों अजैविक पदार्थों का क्या किया जाता है जैविक वाचन किया जाता है अभी बात आती है जो प्राथमिक वाहित मल उपचार होता है वह कम खर्चीला होता है तथा अपेक्षाकृत कम जटिल होता है क्या होता है प्राथमिक वाहित मल उपचार होता है वह क्या होता है कम खर्चीला होता है तथा अपेक्षाकृत क्या होता है कम जटिल होता है मिलता हो तो क्या होती कम होती है जबकि तो दूसरे कुमार होता है यह क्या होता है अधिक खर्चीला तथा जटिल प्रक्रिया होती है क्या होती है

प्रक्रिया होती है जिसमें क्या होता है खर्चा आधी खाता है तो यह क्या होता है द्वितीय को वाहित मल उपचार खर्चीला तथा जटिल होता है

हेलो एवरीवन यहां पर कुशल प्राथमिक तथा द्वितीयक वाहित मल उपचार के बीच पाए जाने वाले मुख्य अंतर कौन से हैं तो यहां पर हमें हेडिंग डालते हैं प्राथमिक प्राथमिक वाहित मल उपचार वाहित मल वाहित मल उपचार भौतिक भौतिक विधि है इसके बारे में समझाइए वीडियो द्वारा किया जाता है

अब यहां पर हम दूसरा आंसर देते हैं तो इसमें कौन-कौन सी विधियां हैं और साधन साधन निस्पंदन निस्पंदन निस्पंदन और जब कि यहां पर द्वितीय वाइट मल उपचार में हम देखते हैं कौन से विदेश में किसका उपयोग किया जाता है इनमें सूक्ष्म जीवों का उपयोग किया जाता है तो उसका उपयोग सही हो का उपयोग किया जाता है यहां पर देखते हैं जो प्राथमिक उपचार है इसमें बड़े होते हैं यानी कि वाहित मल होते हैं उन्हें बड़े बड़ों का क्या किया था उपचार किया जाता है

मैनु प्यार से बात करें तो छोटे करो का क्या किया जाता है उपचार किया जाता है छोटे बालों का उपचार किया जाता है और यहां पर हम दूसरा ने प्राथमिक उपचार होता है वह एक सरल प्रक्रिया होती है सरल प्रक्रिया प्रक्रिया होती है लेकिन यदि प्रक्रिया कम वक्त में क्या जाता है उपचार हो जाता है वाइट मन का वही जो क्या होते हैं जिनके वाइट वाइट में उपचार होता है उसमें

ललित से अधिक समय समय मैं क्या होता है उपचार वाहित मल उपचार अधिक समय किस में समय अधिक लगता है और हम यार देखते हैं जो यह क्या यह जैविक प्रक्रिया होती है और जहां पर हमने इस बारे में देखने से कौन-कौन सी डी आ रही थी आसमान आसमान आ रही थी चरण स्पंदन आसन स्पंदन ऑफ फ्लावर उदाहरण सातवें वेतन उपचार की और वित्तीय वर्ष में उपचार की सोदाहरण वर्णन

बाय बाय बाय बाय बाय बाय बाय बाय बाय बाय क्या होती है वायवीय एरिया होती हैं मोदी क्या-क्या अंतर की प्राथमिक तथा द्वितीयक वाहित मल उपचार धन्यवाद

निम्न में से कौन द्वितीयक साधन है? - nimn mein se kaun dviteeyak saadhan hai?


​Textbook Questions and Answers

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प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के लिए कम से कम चार उपयुक्त बहु विकल्पी वाक्यों की रचना करें 
(क) जब आप एक नई पोशाक खरीदें तो इनमें से किसे सबसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं? 
(ख) आप कम्प्यूटर का इस्तेमाल कितनी बार करते हैं? 
(ग) निम्नलिखित में से आप किस समाचार पत्र को नियमित रूप से पढ़ते हैं? 
(घ) पैट्रोल की कीमत में वृद्धि न्यायोचित है? 
(ङ) आपके परिवार की मासिक आमदनी कितनी है? 
उत्तर:
(क)जब आप कई पोशाक खरीदें तो इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं

  1. पोशाक की कीमत 
  2. पोशाक का रंग 
  3. पोशाक की कम्पनी अथवा ब्रांड 
  4. उपर्युक्त सभी

(ख) आप कम्प्यूटर का इस्तेमाल कितनी बार करते हैं?

  1. दिन में एक बार 
  2. सप्ताह में एक बार 
  3. महीने में एक बार 
  4. हमेशा।

(ग) निम्नलिखित में से आप किस समाचारपत्र को नियमित रूप से पढ़ते हैं?

  1. राजस्थान पत्रिका 
  2. दैनिक भास्कर 
  3. पंजाब केसरी 
  4. दैनिक नवज्योति। 

(घ) पैट्रोल की कीमत में वृद्धि न्यायोचित है? 

  1. कीमत वृद्धि न्यायोचित है 
  2. कीमत वृद्धि न्यायोचित नहीं है 
  3. कीमत वृद्धि कम न्यायोचित है 
  4. कोई उत्तर नहीं। 

(ङ) आपके परिवार की मासिक आय कितनी .

  1. 10,000 रुपये से कम 
  2. 10,001 से 20,000 रुपये तक 
  3. 20,001 से 30,000 रुपये तक 
  4. 30,000 रुपये से अधिक।

प्रश्न 2. पाँच द्विमार्गी प्रश्नों की रचना करें (हाँ / नहीं के साथ)।
उत्तर
(1) विगत तीन दशकों से भारत की जनसंख्या में वृद्धि हो रही है।
(कृपया सही का निशान लगाएँ।) हाँ / नहीं

(2) सर्वेक्षक द्वारा जांच-पड़ताल या पूछताछ कर एकत्र किए आँकड़े प्राथमिक आँकड़े कहलाते हैं।
(कृपया सही का निशान लगाएँ।) हाँ / नहीं

(3) आँकड़े, प्राथमिक तथा द्वितीयक दो प्रकार के होते हैं।
(कृपया सही का निशान लगाएँ?) हाँ / नहीं
(4) सर्वेक्षणों में उपयोग किया जाने वाला सर्वाधिक प्रचलित साधन प्रश्नावली या साक्षात्कार अनुसूची है।
(कृपया सही का निशान लगाएँ।) हाँ / नहीं

(5) आँकड़ा संग्रह करने की केवल एक ही विधि होती है।
(कृपया सही का निशान लगाएँ।) हाँ / नहीं

प्रश्न 3. सही विकल्प को चिन्हित करें: 
(क) आँकड़ों के अनेक स्रोत होते हैं। (सही / गलत) 
(ख) आँकड़ा संग्रह के लिए टेलीफोन सर्वेक्षण सर्वाधिक उपयुक्त विधि है, विशेष रूप से जहाँ पर जनता निरक्षर हो और दूरदराज के काफी बड़े क्षेत्रों में फैली हो। (सही / गलत) 
(ग) सर्वेक्षक/शोधकर्ता द्वारा संग्रह किए गए आँकड़े द्वितीयक आँकड़े कहलाते हैं। (सही / गलत)
(घ) प्रतिदर्श के अयादृच्छिक चयन में पूर्वाग्रह (अभिनति) की संभावना रहती है। (सही / गलत)
(ङ) अप्रतिचयन त्रुटियों को बड़ा प्रतिदर्श अपनाकर कम किया जा सकता है। (सही / गलत)
उत्तर:
(क) सही 
(ख) सही 
(ग) गलत 
(घ) सही 
(ङ) गलत

प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या आपको इन प्रश्नों में कोई समस्या दिख रही है? यदि हाँ, तो कैसे?
(क) आप अपने सबसे नजदीक के बाजार से कितनी दूर रहते हैं?
(ख) यदि हमारे कूड़े में प्लास्टिक थैलियों की मात्रा 5 प्रतिशत है तो क्या इन्हें निषेधित किया जाना चाहिए।
(ग) क्या आप पैट्रोल की कीमत में वृद्धि का विरोध नहीं करेंगे?
(घ) क्या आप रासायनिक उर्वरक के उपयोग के पक्ष में हैं?
(ङ) क्या आप अपने खेतों में उर्वरक इस्तेमाल करते हैं?
(च) आपके खेत में प्रति हेक्टेयर कितनी उपज होती है?
उत्तर:
(क) यह प्रश्न जटिल भाषा में दिया गया है इसे समझने की दृष्टि से और अधिक सरल बनाया जा सकता है। इसे निम्न प्रकार पूछा जा सकता आपके निवास से निकटतम बाजार कितनी दूरी पर

(ख) यह प्रश्न संकेतक प्रश्न है जिसमें कूड़े में प्लास्टिक थैलियों की मात्रा बताई गई है, जबकि उसकी आवश्यकता नहीं है। इस प्रश्न को विविध रूप में निम्न प्रकार पूछा जा सकता है क्या प्लास्टिक थैलियों के प्रयोग को निषेधित किया जाना चाहिए? हाँ / नहीं

(ग) यह प्रश्न दोहरी नकारात्मकता वाला है। इस प्रश्न को निम्न प्रकार द्विविध रूप में पूछा जा सकता है क्या आप पैट्रोल की कीमत वृद्धि को उचित मानते हाँ / नहीं

(घ) यह प्रश्न सही नहीं है। इस प्रश्न को द्विविध रूप में पूछा जाना चाहिए। यह प्रश्न निम्न प्रकार पूछा जा सकता है क्या रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जाना चाहिए? हाँ / नहीं

(ङ) यह प्रश्न सही है किन्तु इसे यदि द्विविध रूप में पूछा जाए तो अधिक उचित होगा। इसे निम्न रूप में पूछा जा सकता हैक्या आप अपने खेतों में उर्वरक इस्तेमाल करते हाँ / नहीं

(च) यह प्रश्न सही है तथा इसे निम्न प्रकार भी पूछा जा सकता है आपके खेत की प्रति हेक्टेयर उपज कितनी है?

प्रश्न 5. आप बच्चों के बीच शाहकारी आटा नूडल की लोकप्रियता का अनुसंधान करना चाहते हैं। इस उद्देश्य से सूचना संग्रह करने के लिए एक उपयुक्त प्रश्नावली बनाएँ
उत्तर:
प्रश्नावली

  1. आपका नाम ......................
  2. आपकी आयु  .....................
  3. निवास स्थान ग्रामीण / शहरी (कृपया उपयुक्त पर V का निशान लगाएँ) 
  4. क्या आप शाहकारी आटा नूडल का प्रयोग .................. करते हैं? हाँ / नहीं 
  5. क्या आपको इसका स्वाद अच्छा लगता है? हाँ / नहीं 
  6. आप शाहकारी आटा नूडल का प्रयोग एक सप्ताह में कितनी बार करते हैं? 
  7. क्या आपको शाहकारी आटा नूडल अन्य। प्रकार की नूडल से अच्छी लगती है? हाँ / नहीं 
  8. क्या आप शाहकारी आटा नूडल के स्थान पर अन्य किसी प्रकार की नूडल का उपयोग करना चाहेंगे? हाँ / नहीं 
  9. क्या आपको शाहकारी आटा नूडल की ................... कीमत उचित लगती है? हाँ / नहीं 
  10. आप शाहकारी आटा नूडल को क्यों पसन्द करते हैं?

प्रश्न 6. 200 फार्म वाले एक गांव में फसल उत्पादन के स्वरूप पर एक अध्ययन आयोजित किया गया। इनमें से 50 फार्मों का सर्वेक्षण किया गया, जिनमें से 50 प्रतिशत पर केवल गेहूँ उगाए जाते हैं। यहाँ पर समष्टि एवं प्रतिदर्श को पहचान कर बताएँ।
उत्तर:
समष्टि- इस अध्ययन में समष्टि के अन्तर्गत गाँव के समस्त 200 फार्मों को शामिल किया जाएगा।
प्रतिदर्श-इस अध्ययन में प्रतिदर्श में उन 50 फार्मों को शामिल किया जाएगा जिनका सर्वेक्षण किया गया है।
प्रश्न 7. प्रतिदर्श, समष्टि तथा चर के दो-दो उदाहरण दें।
उत्तर-प्रतिदर्श-प्रतिदर्श का तात्पर्य उन कुछ
इकाइयों से है जिन्हें सर्वेक्षण हेतु समष्टि में से चुना जाता है; क्योंकि समष्टि का सर्वेक्षण करना अत्यन्त कठिन होता है। 
उदाहरण हेतु:

  1. राज्य में कक्षा XI के सभी विद्यार्थियों में से 50 विद्यार्थियों का चुनाव कर नई पाठ्यपुस्तक के बारे में राय जानना।
  2. किसी गांव में 1000 कृषिहीन श्रमिकों में से 50 का चुनाव कर उनके जीवन स्तर का अध्ययन करना।

समष्टि - समष्टि का तात्पर्य अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली सभी मदों अथवा इकाइयों से होता है, अतः समष्टि एक ऐसा समूह है जिस पर किसी अध्ययन के परिणाम लागू हो सके। उदाहरण हेतु

  1. भारत की जनगणना का अध्ययन करना।
  2. पूरे भारत में बाघों की जनसंख्या का अध्ययन करना। चर - चर वे मूल्य होते हैं जिनका मान बदलता रहता है तथा जिन्हें संख्यात्मक रूप में मापा जा सकता।

उदाहरण हेतु:

  1. किसी कक्षा में छात्रों की लम्बाई का अध्ययन।
  2. देश में प्रतिवर्ष गेहूँ के उत्पादन का अध्ययन।

प्रश्न 8. इसमें से कौनसी विधि द्वारा बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं, और क्यों?
(क) गणना (जनगणना)
(ख) प्रतिदर्श
उत्तर:
गणना तथा प्रतिदर्श में से प्रतिदर्श विधि कई दृष्टियों से बेहतर है; क्योंकि प्रतिदर्श विधि में कम समय लगता है तथा इसमें खर्च भी कम होता है; क्योंकि इसमें समष्टि में से कुछ इकाइयों का ही चुनाव किया जाता है। प्रतिदर्श के समष्टि से छोटे होने के कारण सघन पूछताछ द्वारा अधिक विस्तृत सूचनाएँ संगृहीत की जा सकती हैं।

प्रतिदर्श में सूचनाएँ एकत्रित करने हेतु कम परिगणकों की आवश्यकता पड़ती है जिन्हें आसानी से प्रशिक्षित किया जा सकता है। अतः प्रतिदर्श विधि, गणना विधि की तुलना में अधिक श्रेष्ठ है किन्तु बेहतर परिणाम की दृष्टि से गणना विधि को अधिक श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि इस विधि में सर्वेक्षण के दौरान प्रत्येक इकाई का चुनाव किया जाता है, अतः इसमें त्रुटि होने की संभावना काफी कम रहती है।

प्रश्न 9. इनमें कौनसी त्रुटि अधिक गंभीर है और क्यों?
(क) प्रतिचयन त्रुटि 
(ख) अप्रतिचयन त्रुटि। 
उत्तर:
अप्रतिचयन त्रुटियाँ, प्रतिचयन त्रुटियों की अपेक्षा अधिक गंभीर होती हैं। क्योंकि प्रतिचयन त्रुटियों को बड़े आकार के प्रतिदर्श लेकर कम किया जा सकता है; किन्तु अप्रतिचयन त्रुटियों को कम करना असंभव है, चाहे प्रतिदर्श का आकार बड़ा ही क्यों न रखा जाए। यहाँ तक कि जनगणना में भी अप्रतिचयन त्रुटियों की संभावना रहती है।

प्रश्न 10. मान लीजिए आपकी कक्षा में 10 छात्र हैं। इनमें से आपको तीन को चुनना है, तो इसमें कितने प्रतिदर्श संभव हैं?
उत्तर:
यदि हमें अपनी कक्षा में 10 छात्रों में से किन्हीं तीन को चुनना हो तो प्रतिदर्श की संख्या निम्न प्रकार ज्ञात की जाएगी 30 अर्थात् हम 30 प्रकार के प्रतिदर्श लेकर कक्षा में से 3 छात्रों का चुनाव कर सकते हैं।

प्रश्न 11. अपनी कक्षा के 10 छात्रों में से 3 के लिए आप लाटरी विधि का उपयोग कैसे करेंगे? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
लाटरी विधि से प्रतिदर्श का चुनाव करना अत्यन्त आसान है। इस विधि द्वारा कक्षा के 10 छात्रों में से 3 का चुनाव करने हेतु सर्वप्रथम हम समान आकार के कागज के टुकड़े लेंगे तथा उन कागज के टुकड़ों पर 10 छात्रों के नाम लिखेंगे तथा इन सभी टुकड़ों को एक थैले या डिब्बे में डालकर मिला देंगे तथा उसके पश्चात् उनमें से कोई भी तीन पर्चियों को निकालेंगे तथा उन पर लिखे तीन छात्रों के नामों के आधार पर छात्रों का चुनाव करेंगे।
प्रश्न 12. क्या लाटरी विधि सदैव एक यादृच्छिक प्रतिदर्श देती है? बताइए।
उत्तर:
लाटरी विधि में सभी इकाइयों को शामिल किया जाता है तथा उनमें से कुछ इकाइयों को लाटरी द्वारा चुना जाता है। अत: यह सत्य है कि लाटरी विधि सदैव एक यादृच्छिक प्रतिदर्श देती है क्योंकि इसमें प्रत्येक प्रतिदर्श को चुने जाने की समान संभावना होती है तथा चुना गया प्रत्येक प्रतिपर्श ठीक वैसा ही होता है जैसा कि नहीं चुना जाने वाला प्रतिदर्श होता है। अत: लाटरी विधि सदैव एक यादृच्छिक प्रतिदर्श देती है।
प्रश्न 13. यादृच्छिक संख्या सारणी का उपयोग करते हुए, अपनी कक्षा के 10 छात्रों में से 3 छात्रों के चयन के लिए यादृच्छिक प्रतिदर्श की चयन प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यादृच्छिक संख्या सारणी का उपयोग करके प्रतिदर्श का चुनाव करने हेतु सर्वप्रथम 10 छात्रों को 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 अंक प्रदान करते हुए यादृच्छिक संख्या सारणी का निर्माण करेंगे। इन संख्याओं में से किसी एक संख्या को दैव आधार पर चुन लिया जाता है। अगली दो क्रमागत संख्याओं का और चुनाव करके 3 छात्रों का चयन कर लिया जाता है। मान लीजिए दैव आधार पर चुनी गई संख्या 5 है तो यादृच्छिक प्रतिदर्श की चयन प्रक्रिया द्वारा छात्रों के चयन की संख्याएँ 5, 6 व 7 होंगी।
प्रश्न 14. क्या सर्वेक्षणों की अपेक्षा प्रतिदर्श बेहतर परिणाम देते हैं? अपने उत्तर की कारण सहित व्याख्या करें।
उत्तर:
यह सत्य है कि समष्टि सर्वेक्षणों की अपेक्षा प्रतिदर्श बेहतर परिणाम देते हैं। क्योंकि समस्त समष्टि का अध्ययन करना कठिन है। प्रतिदर्श अपनी उस समष्टि सर्वेक्षण के एक खण्ड या एक समूह का प्रतिनिधित्व करता है जिससे सूचना प्राप्त की जाती है। एक आदर्श प्रत्तिदर्श सामान्यतः समष्टि से छोटा होता है तथा अपेक्षाकृत कम लागत एवं कम समय में समष्टि के बारे में पर्याप्त सही जानकारी प्रदान करने में सक्षम हाता है। सर्वेक्षणों की अपेक्षा प्रतिदर्श में त्रुटियों की संभावना घट जाती है अत: वे सर्वेक्षणों की अपेक्षा बेहतर परिणाम देते हैं।

​NOTES - अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न 

प्रश्न 1 हम आंकड़ों का संकलन क्यों करते हैं?
किसी सामाजिक-आर्थिक समस्या को समझने, विश्लेषण करने और व्याख्या करने के लिए आंकड़ों का संकलन आवश्यक होता है। जब हम आंकड़ों का संकलन करके समस्या का विश्लेषण करते हैं तो हम उन समस्याओं के कारणों को समझने के साथ-साथ उनके संभव समाधान को भी खोजते हैं।

प्रश्न 2 आंकड़ों के कौन से स्रोत है ?
A) प्राथमिक स्रोत
Primary Sources of Dataआंकड़ों के प्राथमिक स्रोत अभिप्राय उद्गम के स्रोत से आंकड़ों का संकलन है। अर्थात जब अनुसंधानकर्ता अपने अनुसंधान के लिए स्वयं आंकड़े एकत्रित करता है तो उसे जो आंकड़े प्राप्त होते हैं, वह प्राथमिक स्रोत से प्राप्त आंकड़े कहलाते हैं। उदाहरण के लिए किसी अनुसंधानकर्ता को एक गांव में साक्षरता की दर ज्ञात करनी है और वह स्वयं सूचना एकत्रित करता है तो यह आंकड़ों का प्राथमिक स्रोत कहलाता है। प्राथमिक स्रोत सांख्यिकी अध्ययन से संबंधित सीधी या प्रत्यक्ष मात्रात्मक सूचना प्रदान करते हैं।
B) द्वितीयक स्रोत
Secondary Sources of Dataआंकड़ों के संकलन के द्वितीयक स्रोत से अभिप्राय एक एजेंसी या संस्था से उपयुक्त सांख्यिकीय सूचना प्राप्त करने से है जिसके पास वह सूचना पहले से ही उपलब्ध है। उदाहरण के लिए अनुसंधानकर्ता एक गांव में साक्षरता की दर ज्ञात करने के लिए ग्राम पंचायत या सरपंच से सूचना एकत्रित करें तो यह आंकड़ों का द्वितीयक स्रोत स्त्रोत कहलाता है। द्वितीयक स्रोत सांख्यिकीय अध्ययन से संबंधित सीधी व प्रत्यक्ष मात्रात्मक सूचना नहीं प्रदान करते हैं। अनुसंधानकर्ता को उस सूचना पर ही निर्भर रहना पड़ता है जो पहले से ही उपलब्ध है या एकत्रित की जा चुकी है।

प्रश्न 3 

प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में क्या अन्तर है ? Difference between Primary and Secondary Data
प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं-
1-मौलिकता में अंतर- 
प्राथमिक आंकड़े मौलिक होते हैं क्योंकि अनुसंधानकर्ता ने इन्हें स्वयं एकत्रित किया है। परंतु द्वितीयक आंकड़े किसी अन्य व्यक्ति या संस्था द्वारा एकत्रित किए जाते हैं। प्राथमिक आंकड़ों का प्रयोग कच्चे माल की तरह किया जाता है। जबकि द्वितीयक आंकड़े पहले से ही तैयार होते हैं इसलिए यह एक प्रकार की तैयार सामग्री होते हैं।
2-उद्देश्य की उपयुक्तता में अंतर- 
प्राथमिक आंकड़े एक निश्चित उद्देश्य के अनुकूल होते हैं। उनमें संशोधन की आवश्यकता नहीं होती इसके विपरीत द्वितीयक आंकड़े पहले ही किसी और उद्देश्य के लिए एकत्रित किए जाते हैं। उनका प्रयोग द्वितीयक रूप में किसी दूसरे उद्देश्य की पूर्ति के लिए सावधानीपूर्वक प्रयोग किया जाना चाहिए।
3-संकलन लागत में अंतर- 
प्राथमिक आंकड़ों के संकलन में अपेक्षाकृत अधिक धन समय और परिश्रम की आवश्यकता होती है। इनकी संकलन लागत अधिक होती है। इसके विपरीत द्वितीयक आंकड़ों को केवल प्रकाशित और अप्रकाशित साधनों से संकलित करना पड़ता है। इसलिए इनकी संकलन लागत बहुत कम होती है।
संक्षेप में, प्राथमिक और द्वितीयक आंकड़ों में कोई मूलभूत अंतर नहीं है। एक अनुसंधानकर्ता किसी विशेष उद्देश्य के लिए जो आंकड़े मौलिक रूप से स्वयं एकत्रित करता है उसके लिए हुए प्राथमिक आंकड़े हैं। परंतु यदि उन्हीं आंकड़ों का को कोई दूसरा व्यक्ति अपने विशेष उद्देश्य के लिए प्रयोग करता है तो उसके लिए वे द्वितीयक आंकड़े बन जाएंगे।

प्रश्न 4 

प्राथमिक/आधारभूत आंकड़ों का संकलन कैसे होता है ? अथवा आंकड़ों के संकलन की विधियां ?

Modes of Data Collection
प्राथमिक आंकड़ों को इकट्ठा करने की मुख्य विधियां निम्नलिखित है-

  • A-प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान
  • B-अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान
  • C-स्थानीय स्रोतों या संवाददाताओं से सूचना प्राप्ति
  • D-प्रश्नावली के माध्यम से सूचना संग्रह
    • a)  डाक प्रश्नावली विधि
    • b)  गणकों को द्वारा अनुसूचियां भरना

A-प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान
Direct Personal Investigationप्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान वह विधि है जिसमें अनुसंधानकर्ता स्वयं क्षेत्र में जाकर सूचना देने वालों से प्रत्यक्ष तथा सीधा संपर्क स्थापित करता है और आंकड़े एकत्रित करता है। इस विधि की सफलता के लिए आवश्यक है कि अनुसंधानकर्ता को मेहनती, व्यवहार-कुशल, निष्पक्ष और धैर्यवान होना चाहिए। उसे सूचना देने वाले की भाषा रहन-सहन, रीति-रिवाज, संस्कृति आदि का भी ज्ञान होना चाहिए। उदाहरण के लिए गांव की साक्षरता की दर ज्ञात करने के लिए यदि अनुसंधानकर्ता गांव के प्रत्येक परिवार से मिलकर सूचना एकत्रित करता है तो यह प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान कहलाता है।
उपयुक्तता (Suitability)
यह विधि ऐसे अनुसंधानों के लिए उपयुक्त है-

  • 1-जिनका क्षेत्र सीमित है।
  • 2-आंकड़ों की मौलिकता अधिक जरूरी है।
  • 3-जहां आंकड़ों को गुप्त रखना हो।
  • 4-जहां आंकड़ों की शुद्धता अधिक महत्वपूर्ण है।
  • 5-सूचना देने वालों से सीधा संपर्क करना आवश्यक हो।

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान विधि के गुण

  • 1-इस विधि द्वारा संकलित आंकड़े मौलिक होते हैं।
  • 2-इस विधि से प्राप्त आंकड़ों में शुद्धता होती है क्योंकि अनुसंधानकर्ता स्वयं आंकड़ों को एकत्रित करता है।
  • 3-इस विधि द्वारा प्राप्त जानकारी पर पूर्ण रुप से विश्वास किया जा सकता है।
  • 4-इस विधि द्वारा मुख्य सूचना के अतिरिक्त और भी कई उपयोगी सूचनाएं प्राप्त हो जाती हैं।
  • 5-इस विधि द्वारा आंकड़ों में एकरूपता पर्याप्त मात्रा में पाई जाती है क्योंकि आंकड़े एक ही व्यक्ति द्वारा संकलित किए जाते हैं।
  • 6- यह विधि लोचशील होती हैं। क्योंकि अनुसंधानकर्ता आवश्यकतानुसार प्रश्नों को कम या ज्यादा कर सकता है।

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान विधि के दोष

  • 1-यह विधि अनुसंधान के बड़े क्षेत्र के लिए अनुपयुक्त है।
  • 2-इस विधि में अनुसंधानकर्ता के व्यक्तिगत पक्षपात के कारण परिणामों के दोषपूर्ण होने का डर बना रहता है।
  • 3-इस विधि में धन अधिक खर्च होता है तथा श्रम भी अधिक करना पड़ता है।
  • 4-इस विधि में अनुसंधान सीमित क्षेत्र में ही किया जाता किया जाना संभव होता है। इसलिए प्राप्त परिणाम क्षेत्र की सारी विशेषताओं को प्रकट करने में असमर्थ होता है। इस कारण गलत निष्कर्ष निकल सकते हैं।

B-अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान
Indirect Oral Methodअप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान वह विधि है जिसमें किसी समस्या से अप्रत्यक्ष रूप से संबंध रखने वाले व्यक्तियों से मौखिक पूछताछ द्वारा आंकड़े प्राप्त किए जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को साक्षी (Witness) कहा जाता है। उदाहरण के लिए मजदूरों की आर्थिक स्थिति के बारे में सूचना, मजदूरों से एकत्रित ने करके मिल-मालिकों या श्रम-संघों से मौखिक पूछताछ द्वारा प्राप्त की जाए।
उपयुक्तता
यह विधि ऐसे अनुसंधान के लिए उपयुक्त है जिसमें-

  • 1-अनुसंधान क्षेत्र अधिक व्यापक हो।
  • 2-प्रत्यक्ष सूचना देने वालों से संपर्क संभव न हो।
  • 3-प्रत्येक सूचना देने वाले अज्ञानता के कारण सूचना देने में असमर्थ हूं।
  • 4-आंकड़े जटिल किस्म के हो एवं उनके लिए विशेषज्ञ की राय की जरूरत हो।
  • 5-इस विधि का प्रयोग अधिकतर सरकारी या गैर सरकारी समितियों या आयोगों द्वारा किया जाता है।

गुण

  • 1-यह प्रणाली विस्तृत क्षेत्र में लागू की जा सकती है।
  • 2-इस विधि में धन, समय और श्रम कम लगते हैं।
  • 3-इस विधि में विशेषज्ञों की राय तथा सुझाव प्राप्त हो सकते हैं।
  • 4-इस विधि में अनुसंधानकर्ता के व्यक्तिगत पक्षपात का प्रभाव नहीं पड़ता।
  • 5-यह विधि सरल होती है तथा आंकड़ों को संकलित करने में अधिक परेशानी नहीं उठानी पड़ती।

अवगुण

  • 1-इस विधि द्वारा एकत्रित आंकड़ों में उच्च-स्तर की शुद्धता नहीं होती क्योंकि सूचना देने वाले प्राय लापरवाही बरतते हैं।
  • 2-इस विधि में सूचना देने वाले के व्यवहार के पक्षपात में संभावना होती है।
  • 3-इस विधि में साक्ष्य देने वाले की लापरवाही, पक्षपात तथा अज्ञानता के कारण गलत सूचना देने के फलस्वरूप गलत परिणाम निकलने की संभावना होती है।

C-स्थानीय स्रोतों में संवाददाताओं से सूचना प्राप्ति
Information from Local Sources or Correspondentsइस विधि के अंतर्गत अनुसंधानकर्ता विभिन्न स्थानों पर स्थानीय व्यक्ति या विशेष संवाददाता नियुक्त कर देता है| वे अपने-अपने तरीकों से सूचना एकत्रित करते हैं और अनुसंधानकर्ता को भेज देते हैं। उदाहरण के लिए समाचार पत्र इसी विधि द्वारा खबरें एकत्रित करते हैं।
उपयुक्तता
यह विधि ऐसे अनुसंधान के लिए उपयुक्त है जिसमें-

  • 1-आंकड़ों के निरंतर संकलन की आवश्यकता हो।
  • 2-आंकड़े एकत्रित करने का क्षेत्र व्यापक हो।
  • 3-आंकड़ों का प्रयोग पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन आदि द्वारा किया जाना हो।
  • 4-सूचनाओं की अत्यधिक शुद्धता की आवश्यकता ना हो।

गुण

  • 1-इस विधि में समय, धन तथा परिश्रम की बचत होती है यह कम खर्चीली प्रणाली है।
  • 2-इस विधि का क्षेत्र विस्तृत होता है क्योंकि दूर-दूर के स्थानों से लगातार सूचनाएं प्राप्त की जा सकती है।
  • 3-इस विधि द्वारा सूचना ही निरंतर प्राप्त होती रहती है।
  • 4-यह विधि विशेष परिस्थितियों में उपयोगी है। इसके द्वारा कृषि उत्पादकता, कीमत के सूचकांक आदि का अनुमान अधिक उचित ढंग से लगाया जा सकता है।

अवगुण

  • 1-इस विधि द्वारा संकलित आंकड़ों में मौलिकता नहीं रहती क्योंकि सूचना देने वाले के साथ व्यक्तिगत संपर्क नहीं होता।
  • 2-इस विधि द्वारा संकलित आंकड़ों में एकरूपता का अभाव पाया जाता है। क्योंकि आंकड़े विभिन्न संवाददाताओं द्वारा इकट्ठे किए जाते हैं और हर एक संवाददाता की कार्यप्रणाली भिन्न होती है।
  • 3-इस विधि में आंकड़ों के संकलन पर व्यक्तिगत पक्षपात का प्रभाव पड़ता है।
  • 4-इस विधि द्वारा प्राप्त सूचनाओं में शुद्धता की कमी होती है।5-इस विधि द्वारा सूचनाओं के प्राप्ति में देरी होने की संभावना रहती है।

D-प्रश्नावली एवं अनुसूचियों के माध्यम से सूचना संग्रह
Information through Questionnaires and Schedulesइस विधि में अनुसंधानकर्ता सबसे पहले अनुसंधान के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए प्रश्नों का समूह तैयार करता है अर्थात प्रश्नावली तैयार करता है। इस प्रश्नावली के आधार पर दो प्रकार से सूचनाएं एकत्रित की जा सकती है-

  • i) डाक प्रश्नावली विधि
  • ii) गणक विधि या अनुसूची विधि

i) डाक विधि (Mailing Method)डाक विधि में प्रश्नावली सूचना देने वाले व्यक्तियों के पास डाक द्वारा भेजी जाती है। प्रश्नावली के साथ एक पत्र भी भेजा जाता है जिसमें अनुसंधान के उद्देश्य स्पष्ट किए जाते हैं तथा सूचना देने वाले को यह विश्वास दिला जाता है कि उसके द्वारा भेजी गई सूचना गुप्त रखी जाएंगी। प्रश्नावली प्राप्त करने वाले व्यक्ति प्रश्नावली में प्रश्नों का उत्तर लिखकर उसे वापस अनुसंधानकर्ता के पास भेज देता है।
उपयुक्तता
इस विधि का प्रयोग सब उपयुक्त होता है-

  • 1-  जब अनुसंधान क्षेत्र काफी विस्तृत हो।
  • 2-  सूचना देने वाले व्यक्ति शिक्षित हो।

गुण

  • 1-इस विधि में धन कम खर्च होता है। समय और परिश्रम की भी बचत होती है।
  • 2-इस विधि द्वारा संकलित आंकड़ें मौलिक होते हैं क्योंकि सूचना स्वयं सूचकों द्वारा दी जाती है।
  • 3-इस विधि द्वारा विस्तृत क्षेत्र में भी आंकड़े सरलता से एकत्रित किए जा सकते हैं।

अवगुण

  • 1-इस विधि का एक प्रमुख अवगुण यह है कि सूचना देने वाले अधिकतर व्यक्ति उदासीनता के कारण प्रश्नावली को वापिस ही नहीं भेजते और जो भर कर भेजते हैं उनमें से अनेक अपूर्ण होती है।
  • 2-इस विधि में लोचशीलता नहीं पाई जाती क्योंकि अपूर्ण सूचना प्राप्त होने पर अतिरिक्त प्रश्न पूछ पर सूचना एकत्रित नहीं की जा सकती।
  • 3-इस विधि का उपयोग सीमित है क्योंकि इसके अंतर्गत केवल शिक्षित व्यक्तियों से आंकड़े एकत्रित किए जा सकते है।
  • 4-यदि सूचकों में पक्षपात की भावना होगी तो अशुद्ध सूचनाएं उपलब्ध होने की संभावना रहती है।
  • 5-इस विधि द्वारा प्राप्त आंकड़ों में शुद्धता की मात्रा कम होती है। क्योंकि कई बार प्रश्नावली सावधानी से तैयार न होने या प्रश्नों की जटिलता के कारण उनके उत्तर गलत दे दिए जाते हैं।

ii) गणक विधि (Enumerator’s Method)इस विधि में अनुसंधान के उद्देश्य को ध्यान में रखकर एक प्रश्नावली तैयार की जाती है। इन प्रश्नावलियों को लेकर सूचना देने वाले व्यक्तियों के पास गणक स्वयं जाते हैं। इस प्रकार के प्रश्नावली को जो गणक स्वयं सूचकों से प्रश्न पूछकर भरते हैं, उन्हें अनुसूचियां (Schedules) कहा जाता है |गणक (Enumerators) उन व्यक्तियों को कहा जाता है जो आंकड़े संकलन में अनुसंधानकर्ता की मदद करते हैं। इन गणकों को अनुसूचियां भरवाने के संबंध में प्रशिक्षण दिया जाता है। जिससे वे सही प्रश्न पूछें तथा अनुसूचियों को शुद्धतापूर्वक भर सकें।
उदाहरण-भारत में प्रति 10 वर्ष के बाद होने वाली जनगणना में इसी विधि का प्रयोग किया जाता है।
उपयुक्तता
यह विधि ऐसे अनुसंधानों के लिए उपयुक्त है-

  • 1-जिनका क्षेत्र विस्तृत है।
  • 2-जिनसे संबंधित गणक निपुण और निष्पक्ष व अनुभवी और व्यवहार कुशल हैं।
  • 3-गणकों को अपने क्षेत्र के सूचकों की भाषा, रीति-रिवाज और स्वभाव का भली-भांति परिचय है।

गुण

  • 1-इस विधि द्वारा काफी विस्तृत क्षेत्र से भी सूचनाएं प्राप्त की जा सकती हैं। उन व्यक्तियों से भी सूचना प्राप्त हो सकती है जो निरक्षर हैं।
  • 2-इस विधि में शुद्धता पाई जाती है क्योंकि योग्य प्रशिक्षित तथा अनुभवी गणकों द्वारा प्रश्न पूछे जाते हैं और अनुसूचियां भरी जाती है।
  • 3-इस विधि में गणकों का सूचकों से व्यक्तिगत संपर्क रहने के कारण जटिल प्रश्नों के भी शुद्ध और विश्वसनीय उत्तर प्राप्त हो सकते हैं।
  • 4-इस विधि में व्यक्तिगत पक्षपात का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। क्योंकि कुछ गणक पक्ष में तो कुछ विपक्ष में होते हैं।
  • 5-इस विधि में पूर्णता पाई जाती है क्योंकि गणक द्वारा सभी प्रश्नों के उत्तर स्वयं ही प्राप्त किए जाते हैं।

अवगुण

  • 1-यह विधि अनुसंधान की सबसे अधिक खर्चीली विधि है क्योंकि इसमें प्रशिक्षित गणकों का प्रयोग किया जाता है।
  • 2-इस विधि का एक मुख्य अवगुण यह है कि योग्य गणकों की कमी होती है। इसलिए सही आंकड़े एकत्रित करना कठिन हो जाता है।
  • 3-इस विधि में गणकों की नियुक्ति तथा प्रशिक्षण में अधिक समय लगता है। इसलिए आंकड़ों के संकलन में देरी हो जाती है।
  • 4-इस विधि द्वारा आंकड़े संकलित करने पर खर्च बहुत होता है| इसलिए यह विधि निजी अनुसंधानकर्ताओं के लिए अनुपयुक्त है| यह विधि सरकार के लिए अधिक उपयुक्त है।
  • 5-यदि गणक पक्षपातपूर्ण होते हैं तो आंकड़ों में शुद्धता नहीं रहेगी।प्रश्नावली तथा अनुसूचियां का निर्माण तथा उनके गुण
    प्रश्नावली तथा अनुसूचियां के निर्माण का प्राथमिक आंकड़ों के संकलन में एक विशेष महत्व है। प्रश्नावली तथा अनुसूचियों में बिल्कुल एक जैसे प्रश्न होते हैं| इन दोनों में केवल अंतर यह है कि प्रश्नावली में सभी सूचनायें सूचकों द्वारा लिखी जाती है। इसके विपरीत अनुसूचियां को गणकों द्वारा सूचकों से पूछताछ करके भरा जाता है।
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प्रश्न 5 एक अच्छी प्रश्नावली के गुण
Qualities of a good Questionnaire
1-प्रश्नों की कम संख्या- प्रश्नावली में प्रश्नों की संख्या अनुसंधान के क्षेत्र के अनुसार होनी चाहिए| परंतु जहां तक संभव हो, इनकी संख्या कम से कम होनी चाहिए और प्रश्न अनुसंधान से संबंधित होने चाहिए।
2-सरलता- प्रश्नों की भाषा सरल तथा स्पष्ट होनी चाहिए। प्रश्न छोटे होने चाहिए। प्रश्न लंबे तथा जटिल नहीं होने चाहिए। गणना करने संबंधी प्रश्न भी नहीं पूछे जाने चाहिए।
3-प्रश्नों का उचित क्रम- प्रश्नों का एक उचित तथा तर्कपूर्ण क्रम होना चाहिए।
4-अनुचित प्रश्न नहीं होने चाहिए- प्रश्नावली में ऐसे प्रश्न नहीं पूछे जाने चाहिए जो सूचना देने वाले के मान-सम्मान को ठेस पहुंचाए।
5-मतभेद रहित- प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनका उत्तर बिना किसी पक्षपात के दिया जा सके| इस प्रकार के प्रश्न भी नहीं पूछे जाने चाहिए जिनमें किसी प्रकार के मतभेद की संभावना हो।
6-गणना- इस प्रकार के प्रश्न नहीं पूछे जाने चाहिए जिनमें उत्तर देने वाले को किसी प्रकार की गणना करने पड़े| गणना का कार्य अनुसंधानकर्ता को स्वयं करना चाहिए।
7-पूर्व परीक्षण- प्रश्नावली को अंतिम रूप देने से पहले उसका एक परीक्षण कर लेना चाहिए| इसके लिए कुछ सूचकों से प्रयोग के रूप में प्रश्न पूछे जाने चाहिए। यदि उनके उत्तर में कोई कठिनाई महसूस की जाती है तो उसमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर दिया जाना चाहिए। इस परीक्षण को मार्गदर्शी सर्वेक्षण (Pilot Survey) कहते हैं।
8-निर्देश- प्रश्नावली को भरने के लिए उसमें स्पष्ट तथा निश्चित निर्देश देने चाहिए।
9-सत्यता की जांच- प्रश्नावली में ऐसे भी प्रश्न पूछे जाने चाहिए जिनसे उत्तरों की सत्यता की परस्पर जांच की जा सके।
10-प्रश्नावली लौटाने की प्रार्थना- प्रश्नावली को भरकर वापिस लौटाने की प्रार्थना की जाने चाहिए तथा यह भी यकीन दिलाया जाना चाहिए कि सूचना गुप्त रखी जाएगी।
प्रश्नों की प्रकृति के उदाहरण
एक प्रश्नावली में निम्न प्रकार के प्रश्न हो सकते हैं-
1-सामान्य विकल्प वाले प्रश्न-
इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर हां या नहीं सही अथवा गलत में दिया जा सकता है।
उदाहरण के लिए : क्या आपके पास कार है?             हाँ/नहीं
2-बहुविकल्पीय प्रश्न-
किसी विषय के संबंध में कई प्रकार के विकल्प होते हैं तो बहुविकल्पीय प्रश्न पूछने उचित होते हैं। इन प्रश्नों के कई संभवत प्रश्नावली में छपे होते हैं सूचना देने वाला उनमें से किसी एक पर निशान लगा देता है।
उदाहरण-आप घर से विद्यालय किस साधन में आते हैं?
a)पैदल                   2)बस द्वारा c)साइकिल द्वारा           4)मोटरसाइकिल द्वारा
3-विशिष्ट जानकारी देने वाले प्रश्न
इन प्रश्नों द्वारा केवल विशिष्ट जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
उदाहरण के लिए-आप कौन सी कक्षा में पढ़ते हैं? आपका मासिक जेब खर्च कितना है?
4-खुले प्रश्न
इन प्रश्नों के उत्तर देने में सूचक को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर प्राप्त होता है।
उदाहरण-भारत में शिक्षा का स्तर कैसे बढ़ाया जा सकता है? भारत में जनसंख्या नियंत्रण कैसे किया जा सकता है?

प्रश्न 6 

द्वितीयक आंकड़ों का संकलन किया जाता है ?
Collection of Secondary Data
द्वितीयक आंकड़ों को एकत्रित करने के दो मुख्य स्रोत हैं- प्रकाशित स्रोत तथा अप्रकाशित स्रोत।
i) प्रकाशित स्रोत
Published Sources of Secondary Dataप्रकाशित स्रोतों से अभिप्राय उन सरकारी विभागों, संस्थाओं या एजेंसियों से हैं जो निरंतर आंकड़े एकत्रित करते रहते हैं और एक निश्चित समय अंतराल जैसे दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक आधार पर आंकड़ों का प्रकाशित प्रकाशन करते रहते हैं।द्वितीयक आंकड़ों के मुख्य प्रकाशित स्रोत निम्नलिखित हैं-
1-सरकारी प्रकाशन-भारत की केंद्रीय तथा राज्य सरकारों के मंत्रालय तथा विभाग, विभिन्न विषयों से संबंधित आंकड़े प्रकाशित करते रहते हैं। यह आंकड़े काफी उपयोगी तथा विश्वसनीय होते हैं। प्रमुख सरकारी प्रकाशन निम्नलिखित हैं।
2-अर्ध-सरकारी प्रकाशन-सरकारी संस्था जैसे नगर पालिका, नगर निगम, जिला परिषद आदि भी कई मदों से संबंधित आंकड़े जैसे जन्म-मरण, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि प्रकाशित करती रहती हैं। यह आंकड़े भी विश्वसनीय तथा अनुसंधान के लिए उपयोगी होते हैं।
3-समितियों और आयोगों की रिपोर्ट-सरकार द्वारा नियुक्त विभिन्न समितियों तथा आयोगों की रिपोर्टों में महत्वपूर्ण आंकड़े संकलित होते हैं। उदाहरण के लिए वित्त आयोग, योजना आयोग आदि द्वारा प्रकाशित रिपोर्टों से उपयोगी आंकड़े प्राप्त होते हैं।
4-व्यापारिक संघों के प्रकाशन-बड़े-बड़े व्यापारी संघ भी अपने अनुसंधान तथा संख्यिकी विभाग द्वारा एकत्रित आंकड़े प्रकाशित करते रहते हैं। उदाहरण के लिए चीनी मिल संघ, चीनी के कारखानों से संबंधित आंकड़े प्रकाशित करता है।
5-अनुसंधान संस्थाओं के प्रकाशन-विभिन्न विश्वविद्यालय तथा अनुसंधान संस्थान अपने शोध कार्यों के परिणाम प्रकाशित करते रहते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय सांख्यिकीय संस्थान, व्यापक व्यवहारिक आर्थिक शोध की राष्ट्रीय परिषद आदि संस्थाएं कई प्रकार के उपयोगी आंकड़े प्रकाशित करते हैं।
6-पत्र पत्रिकाएं-कई समाचार पत्र जैसे इकोनामिक टाइम्स और पत्रिकाएं जैसे योजना, Facts for You आदि भी उपयोगी आंकड़े प्रकाशित करती हैं।
7-व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ताओं के प्रकाशन-व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ता भी अपने अनुसंधान संबंधी आंकड़ों को एकत्रित करके उनका प्रकाशन करवाते हैं।
8-अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन-अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक आदि तथा विदेशी सरकारें भी महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आंकड़े प्रकाशित करती हैं। इन्हें भी द्वितीयक आंकड़ों के रूप में प्रयोग किया जाता है।
ii) अप्रकाशित स्रोत
द्वितीयक आंकड़ों का अप्रकाशित स्रोत भी होता है। सरकार, विश्वविद्यालय, निजी संस्थाएं तथा व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ता विभिन्न उद्देश्यों के लिए ऐसे आंकड़ों का संकलन करते रहते हैं। जिन्हें प्रकाशित नहीं कराया जाता है। इन अप्रकाशित संख्यात्मक सूचनाओं का प्रयोग द्वितीयक आंकड़ों के रूप में किया जा सकता है।
द्वितीयक आंकड़ों के प्रयोग के संबंध में सावधानियां
द्वितीयक आंकड़ों का संकलन दूसरे व्यक्तियों द्वारा विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है। इसलिए इनका प्रयोग करते समय काफी सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि इनमें काफी कमियां हो सकती हैं।
कौनोर के अनुसार, “आंकड़े विशेष रूप से अन्य व्यक्तियों द्वारा एकत्रित आंकड़े प्रयोग करता के लिए अनेक त्रुटियों से पूर्ण होते हैं।”
अतः द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करने से पहले निम्नलिखित तीन बातों का निश्चय कर लेना चाहिए-

i) क्या आंकड़े विश्वसनीय है?
ii) क्या आंकड़े वर्तमान उद्देश्य के लिए उपयोगी हैं?
iii) क्या आंकड़े पर्याप्त हैं?
उपलब्ध आंकड़ों का द्वितीयक आंकड़ों के रूप में प्रयोग करने से पहले उनकी शुद्धता के स्तर की भी जांच कर लेनी चाहिए। यदि वर्तमान अनुसंधान के लिए शुद्धता का उच्च स्तर आवश्यक हो और उपलब्ध आंकड़ों के संकलन में केवल सामान्य शुद्धता का ध्यान रखा गया है तो ऐसे आंकड़े उपयुक्त नहीं होंगे।
संक्षेप में डॉ. बाउले ने ठीक ही कहा है कि, “प्रकाशित आंकड़ों को बिना उनके अर्थ व सीमाएँ जाने, जैसे का तैसा ग्रहण कर लेना कभी सुरक्षित नहीं है।”अतः द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करते समय उपरोक्त सावधानियां बरतनी आवश्यक है।
द्वितीयक आंकड़ों की विश्वसनीयता, उपयुक्तता तथा पर्याप्तता की जांच करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:-
1-संकलन संगठन की योग्यताएं
किसी भी व्यक्ति को द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करने से पहले कुछ संगठन की योग्यता के बारे में जान लेना चाहिए जो प्रारंभिक रूप से आंकड़ों का संकलन करता है। आंकड़ों का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिए। यदि आंकड़े योग्य, अनुभवी तथा पक्षपातहीन अन्वेषकों द्वारा एकत्रित किए गए हो।
2-उद्देश्य तथा क्षेत्र
यह भी सावधानी रखनी चाहिए कि द्वितीयक आंकड़े जब प्राथमिक रूप से एकत्रित किए गए थे तो उनका उद्देश्य तथा क्षेत्र क्या था? यदि उनका उद्देश्य तथा क्षेत्र वही है जिसके लिए अब द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग किया जाएगा तो ही यह आंकड़े उपयोगी सिद्ध होंगे और इन से निकाले गए निष्कर्ष सही होंगे।
3-संकलन विधि
द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करने से पहले यह भी ज्ञात कर लेना चाहिए कि द्वितीयक आंकड़ों को प्राथमिक रूप से संकलित करते समय जो विधि अपनाई गई थी, वह उपयुक्त तथा विश्वसनीय थी या नहीं| यदि यह विधि उपयुक्त थी तो इन आंकड़ों का द्वितीय रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
4-संकलन का समय तथा परिस्थितियां
अनुसंधानकर्ताओं को यह भी निश्चित कर लेना चाहिए कि उपलब्ध आंकड़े किस समय से संबंधित है तथा उन्हें किन परिस्थितियों में एकत्रित किया गया है। उदाहरण के लिए युद्ध के दौरान एकत्रित किए गए आंकड़े, शांति के दिनों में भी उपयुक्त हो यह आवश्यक नहीं है।
5-इकाई की परिभाषा
संकलित आंकड़ों को प्रयोग करने से पहले यह भी देख लेना चाहिए कि पूर्व अनुसंधान में आंकड़ों की इकाइयों का जिन अर्थों में प्रयोग किया गया है। यदि वे वर्तमान अनुसंधान में प्रयोग की जाने वाली इकाइयों के अर्थ में समान है तो ही उनका प्रयोग किया जाना उपयुक्त होगा।
6-शुद्धता

उपलब्ध आंकड़ों का द्वितीयक आंकड़ों के रूप में प्रयोग करने से पहले उनकी शुद्धता के स्तर की भी जांच कर लेनी चाहिए। यदि वर्तमान अनुसंधान के लिए शुद्धता का उच्च स्तर आवश्यक हो और उपलब्ध आंकड़ों के संकलन में केवल सामान्य शुद्धता का ध्यान रखा गया है तो ऐसे आंकड़े उपयुक्त नहीं होंगे।

प्रश्न 6 

भारत में द्वितीयक आंकड़ों के प्रमुख स्रोत कौन से है ? 
भारत की जनगणना
भारत की जनगणना भारत सरकार का 10 वर्षीय प्रकाशन है| 
यह भारत के Registrar General and Census Commissioner द्वारा प्रकाशित किया जाता है। द्वितीयक आंकड़ों का यह एक व्यापक स्रोत है। इसका संबंध भारत में जनसंख्या के आकार तथा जनांकिकीय परिवर्तन के विभिन्न पक्षों से हैं। इसमें निम्नलिखित सूचनाएं शामिल होती हैं।

भारत में संख्या का आकार वृद्धि दर तथा वितरण
जनसंख्या प्रक्षेपण
जनसंख्या घनत्व
जनसंख्या की लिंग सरंचना
साक्षरता की अवस्था
National Sample Survey Organisation-NSSO
भारत में द्वितीयक आंकड़ों का एक महत्वपूर्ण स्रोत NSSO की रिपोर्ट तथा प्रकाशन है। 
Misnistry of Statistics and Programme Implementation के अंतर्गत NSSO सरकारी संगठन है देश के ग्रामीण तथा शहरी भागों में होने वाली विभिन्न आर्थिक क्रियाओं से संबंधित संख्यिकी के सूचना यह संगठन नियमित रूप से सैंपल सर्वे करके एकत्रित करता है।NSSO के प्रकाशन एवं रिपोर्ट आर्थिक परिवर्तन के निम्नलिखित पैरामीटरों/तथ्यों की सांख्यिकीय सूचनाएं उपलब्ध कराता है-

·  भूमि तथा पशु जोत
·  भवन दशाएं तथा प्रवास झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों पर विशेष बल देते हुए
·  भारत में रोजगार तथा बेरोजगारी की स्थिति
·  भारत में उपभोक्ता व्यय।
निम्न संस्थाएं भारत में राष्ट्रीय स्तर पर सांख्यिकीय आंकड़े संगृहीत, संसाधित तथा सारणीबद्ध करते हैं।
·   राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन-NSSO
·   भारत का महापंजीयक-Registrar General of India
·   वाणिज्य सतर्कता एवं संख्यिकी महानिदेशालय (DGCIS)
·   श्रम ब्यूरो (Labour Bureau)

छात्र अपना स्वंय का मूल्यांकन दिये हुये लिंक में जा कर कर सकते है।

TAKE TEST (OPEN)

द्वितीयक समूह कौन कौन से हैं?

द्वितीयक समूहों के उदाहरण में अधिकारीतंत्र, स्वयं सेवी संस्थाएँ, व्प्यावसायिक संगठन आदि सम्मिलित है। अवैयक्तिक सम्बन्ध : द्वितीयक समूह के सदस्य एक दूसरे को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते।

द्वितीयक संबंध क्या है?

द्वितीयक समूह की परिभाषाएँ कोल के विचार से स्पष्ट है कि द्वितीयक समूह के सदस्यों के बीच संबंधों में आत्मीयता की कमी होती है। प्राथमिक समूह की तुलना में इसके सदस्यों के बीच अन्तःक्रियाएं भी काफी कम मात्रा में पायी जाती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आकार में बड़ा होने के कारण इसके सदस्यों में दूरी बहुत होती है।

द्वितीयक समूह में वृद्धि का मुख्य कारण कौन सा है?

द्वितीय समूह का आकार बड़ा होने के कारण इसमे विभिन्न रूचि, वर्ग एवं जाति के लोग रहते है तथा स्वर्थों की अधिकतम पूर्ति हेतु एक-दूसरे के साथ प्रतियोगिता करते है। प्राथमिक समूहों का नियंत्रण अपने सदस्यों पर कम हुआ है परन्तु उनके कार्यों एवं व्यवहारों पर द्वितीयक समूहों का अत्यधिक नियंत्रण बढ़ता जा रहा हैं।

प्राथमिक समूह का क्या अर्थ है?

प्राथमिक समूह का अर्थ एवं परिभाषा (prathmik samuh kya hai) कूले के अनुसार प्रथामिक समूह से तात्पर्य ऐसे समूह से हैं जिसकी विशेषता घनिष्ठ आमने-सामने समाने के संबंध और सहयोग हैं। कूले द्वारा वर्णित इन मौलिक विशेषताओं से ही प्राथमिक समूह की प्रकृति बहुत कुछ स्पष्ट हो जाती हैं।