प्राचीन शिक्षण विधियों में क्या दोष है? - praacheen shikshan vidhiyon mein kya dosh hai?

उदाहरण के लिए; वैदिककाल में वेद मन्त्रों की शिक्षा को पर्याप्त कहा जाता था, किन्तु वर्तमान काल में मनुष्य के विकास के लिए व्यावसायिक शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए। यद्यपि आधुनिक शिक्षा प्रणाली में देश में व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति देखने को मिली है, किन्तु यह अभी पर्याप्त नहीं है। हालाँकि आज शिक्षा के क्षेत्र में नित नवीन प्रयोग किए जा रहे हैं, जिसमें छात्रों के नैतिक विकास, स्वावलम्बन की भावना आदि में विकास का प्रयास किया जा रहा है।

आधुनिक शिक्षा प्रणाली के गुण :- आधुनिक युग में शिक्षा प्रणाली छात्रों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए प्रचलित की जा रही है। आज इण्टरनेट के माध्यम से शैक्षणिक पाठ्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है। छात्रों को विश्व के एक छोर से दूसरे छोर पर स्थित पुस्तकालय से जोड़कर किसी भी विषय का ज्ञान प्रदान करवाया जाता है।

आधुनिक शिक्षा प्रणाली में परीक्षा प्रणाली के क्षेत्र में भी आमूल-चूल परिवर्तन एवं संशोधन किए गए हैं, जिसके द्वारा आज शिक्षा के स्तर में सुधार हुआ है। परीक्षा प्रणाली को वार्षिक के स्थान पर सेमेस्टर प्रणाली में बदला गया है, इसके अतिरिक्त आज छात्रों की योग्यता का मूल्यांकन उसकी स्मरण शक्ति की अपेक्षा पूरे वर्ष उनके द्वारा किए जा रहे क्रिया-कलापों से आँका जाता है। साथ ही आधुनिक समय में अंक प्रणाली के स्थान पर ग्रेड प्रणाली को अपनाया जा रहा है।

सरकार ने शिक्षा प्रणाली में सुधार हेतु 6-14 वर्ष की आयु के सभी छात्रों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रावधान करके शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय प्रयास किया है। आधुनिक शिक्षा की व्यवस्था के कारण ही ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता हेतु विद्यालय खोले गए हैं। शिक्षा की इस प्रकार सभी छात्रों तक पहुँच हेतु ज्ञान का विस्तार पूरी दुनिया में बहुत तेजी से हो रहा है। 

आज की परिस्थिति में शिक्षा स्वयं एक उत्पाद बन गई है, जोकि मानव संसाधन विकास के लिए अनिवार्य है। तकनीकी क्रान्ति के फलस्वरूप आधुनिक शिक्षा प्रणाली, शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभा रही है। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में छात्रों के शारीरिक व मानसिक विकास का ध्यान रखा जाता है। आधुनिक शिक्षा के द्वारा नवयुवक आज विशेष उपलब्धियों को प्राप्त करने में सफल हो पाए हैं।

आधुनिक शिक्षा प्रणाली के दोष :- स्वतन्त्रता के पश्चात् शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक विस्तार होने के बावजूद भी आधुनिक शिक्षा प्रणाली में अनेक त्रुटियाँ हैं। आधुनिक शिक्षा में सन्तुलन, विवेकशीलता, नैतिकता का स्थान समाप्त होता जा रहा है। आधुनिक शिक्षा के कारण शिक्षा के स्तर में गिरावट आई है, जिससे बेरोज़गारी आदि समस्याओं में वृद्धि हुई है। आधुनिक शिक्षा में डिग्री की प्रधानता, अनुशासनहीनता, दिशाहीन परीक्षा प्रणाली, नैतिक शिक्षा का अभाव आदि होने के कारण इसमें ज्ञान और बुद्धि का अभाव पाया जाता है। यद्यपि आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में नवीन प्रयोग किए जा रहे हैं, किन्तु यह शिक्षा व्यवस्था उच्च वर्ग तक सीमित होती जा रही है। 

शिक्षा व्यवस्था ने आज नवयुवकों को इस स्तर पर ला खड़ा कर दिया है जहाँ उनके पास पुस्तकीय ज्ञान के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था ने छात्रों को भारतीय सभ्यता, संस्कृति, जीवन मूल्यो, नैतिकता, परम्पराओं से दूर कर दिया है, जिसके फलस्वरूप छात्रों में असन्तोष, प्रतिस्पर्द्धा, द्वेष भावना आदि में वृद्धि हो रही है। आधुनिक शिक्षा के फलस्वरूप छात्र अपनी राष्ट्रभाषा को भूलते जा रहे हैं। शिक्षा का स्तर निम्न से निम्नतर होता जा रहा है।

नमस्कार दोस्तों आज मैं आपलोगो के साथ प्राचीन Shiksha Pranali के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी शेयर करने वाला हूँ यह भारत की प्राचीन Shiksha Pranali कम्पटीशन एग्जाम का तैयारी करने वाले छात्रों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैl प्राचीन शिक्षा पद्धति जानिए कीस तरह से प्राचीन काल में भारतीय शिक्षा व्यवस्था का हाल थाl …

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भारतीय शिक्षा अतीत और वर्तमान “घर बालक की प्रथम पाठशाला और माता-पिता उसके प्रथम शिक्षक होते हैं।” उक्त कथन पूर्ण सत्य है बालक अपना पहला ज्ञान अपने परिवार और परिजनों से ही लेता है और उसके बाद ही वह समाज में प्रवेश करता है। समाज में प्रवेश करके वह समाज के बारे में प्रयोगात्मक ज्ञान … Read more

वैदिककालीन शिक्षा गुण व दोष – धर्म और धार्मिक मान्यताएं भारतीय शिक्षा के पीछे हजारों वर्षों की शैक्षिक तथा सांस्कृतिक परंपरा का आधार हैं। प्राचीन काल में शिक्षा का आधार क्रियाएं थी। वैदिक क्रिया ही शिक्षा का प्रमुख आधार थी।समस्त जीवन धर्म से चलायमान था। भारतीय शिक्षा का प्रमुख ऐतिहासिक साक्ष्य वेद है। वैदिक युग में शिक्षा व्यक्ति के चहुंमुखी विकास के लिए थी।

वैदिककालीन शिक्षा गुण व दोष

प्रत्येक शिक्षा प्रणाली स्वयं में अपना विशेष स्थान रखती है। ठीक उसी प्रकार वैदिक शिक्षा प्रणाली भी अपने में एक विशेष स्थान रखती है। वैदिक काल में शिक्षा को महत्व तो दिया ही जाता था। साथ में शिक्षा गुणवत्ता पर भी ध्यान दिया जाता था। वैदिक कालीन शिक्षा व्यवस्था में विद्यार्थियों के लिए अनेक प्रकार की विशेष सुविधाएं होती थी। तथा कई ऐसे दोष भी थे जिनकी चर्चा नीचे की गई है।

प्राचीन शिक्षण विधियों में क्या दोष है? - praacheen shikshan vidhiyon mein kya dosh hai?
प्राचीन शिक्षण विधियों में क्या दोष है? - praacheen shikshan vidhiyon mein kya dosh hai?
प्राचीन शिक्षण विधियों में क्या दोष है? - praacheen shikshan vidhiyon mein kya dosh hai?
प्राचीन शिक्षण विधियों में क्या दोष है? - praacheen shikshan vidhiyon mein kya dosh hai?
वैदिककालीन शिक्षा गुण व दोष

वैदिककालीन शिक्षा गुण

वैदिक शिक्षा प्रणाली के प्रमुख गुण निम्नलिखित थे।

  1. वैदिककालीन शिक्षा निशुल्क थी, गुरुकुल में शिष्यों से किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता था। उनके आवास, वस्त्र तथा भोजन की व्यवस्था भी निशुल्क होती थी। वैदिक काल की शिक्षा पर होने वाले व्यय की पूर्ति राज, धनाढ्य लोगों तथा भिक्षाटन एवं गुरु दक्षिणा से की जाती थी।
  2. वैदिककालीन शिक्षा द्वारा मनुष्यों का शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक, सांस्कृतिक, व्यवसायिक तथा आध्यात्मिक विकास किया जाता था।
  3. वैदिककालीन शिक्षा की पाठ्यचर्या व्यापक थी। वैदिक काल में मनुष्य के प्राकृतिक सामाजिक और आध्यात्मिक तीनों पक्ष के विकास पर बल दिया जाता था। और इसके लिए शिक्षा की पाठ्यचर्या में भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों प्रकार के विषयों को सम्मिलित किया जाता था।
  4. वैदिककालीन शिक्षा में उत्तम शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता था। अनुकरण, व्याख्यान, वाद-विवाद, प्रश्नोत्तर, तर्क, विचार-विमर्श, चिंतन, मनन, सिद्धिध्यासन, प्रयोग एवं अभ्यास, नाटक एवं कहानी इत्यादि वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक विधियों का विकास किया जा चुका था।
  5. वैदिक काल में गुरु तथा शिष्यों का जीवन अत्यंत संयमित और अनुशासित होता था। उनकी जीवनशैली सादा जीवन उच्च विचार पर आधारित थी।
  6. वैदिककालीन शिक्षा में गुरु तथा शिष्यों के मध्य मधुर संबंध थे। दोनों के मध्य स्नेह तथा श्रद्धा का संबंध था। दोनों एक दूसरे के प्रति त्याग की भावना रखते थे तथा शिक्षकों के बीच मानस पिता पुत्र के संबंध थे। (वैदिककालीन शिक्षा गुण व दोष)
  7. वैदिककालीन शिक्षा में गुरुकुलों का पर्यावरण अति उत्तम था। गुरुकुल प्रकृति की स्वच्छ वातावरण से युक्त स्थलों में होते थे जहां जन कोलाहल नहीं था तथा जल तथा वायु शुद्ध प्राप्त होती थी। आप वैदिककालीन शिक्षा गुण व दोष Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
  8. वैदिक कालीन जीवन पद्धति संस्कार प्रधान थी वैदिक कालीन शिक्षा उपनयन संस्कार से प्रारंभ होती थी तथा समावर्तन संस्कार से पूरी होती थी।
प्राचीन शिक्षण विधियों में क्या दोष है? - praacheen shikshan vidhiyon mein kya dosh hai?
प्राचीन शिक्षण विधियों में क्या दोष है? - praacheen shikshan vidhiyon mein kya dosh hai?
वैदिककालीन शिक्षा गुण व दोष

वैदिककालीन शिक्षा दोष

वैदिककालीन शिक्षा में अनेक गुण विद्यमान थे, इसके बावजूद इस शिक्षा प्रणाली में निम्नलिखित दोष भी पाए गए। जो कि निम्न प्रकार हैं

भारतीय शिक्षा की प्राचीन प्रणाली के विभिन्न दोष क्या थे उनकी विस्तार से चर्चा करें?

आश्रमों में उन्हें कठिन अनुशासनपूर्ण जीवन बिताना पड़ता था । सभी विद्यार्थियों के साथ एक समान व्यवहार किया जाता था । राजा के पुत्रों तथा सामान्य निर्धन बालकों के बीच गुरु किसी प्रकार का भेदभाव नहीं बरतते थे । विद्यार्थियों को हर प्रकार के ऐशो-आराम से दूर रहकर संयमपूर्ण जीवन बिताना पड़ता था ।

प्राचीन शिक्षा और आधुनिक शिक्षा में क्या अंतर है?

प्राचीन शिक्षा बालक के मानसिक विकास पर बल देती थी जिसके अनुसार केवल ज्ञानार्जन को ही शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य माना जाता था। शिक्षा की आधुनिक धारणा के अनुसार शिक्षा शास्त्री व्यक्ति की प्रकृति का अध्ययन करते हुए मानसिक विकास के साथ-साथ उसके शारीरिक सामाजिक तथा आध्यात्मिक विकास पर भी बल देते हैं।

प्राचीन काल में शिक्षा का क्या महत्व था?

भारत की शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परम्परा विश्व इतिहास में प्राचीनतम है। डॉ॰ अल्टेकर के अनुसार, वैदिक युग से लेकर अब तक भारतवासियों के लिये शिक्षा का अभिप्राय यह रहा है कि शिक्षा प्रकाश का स्रोत है तथा जीवन के विभिन्न कार्यों में यह हमारा मार्ग आलोकित करती है। प्राचीन काल में शिक्षा को अत्यधिक महत्व दिया गया था

प्राचीन भारत में शिक्षा की क्या स्थिति थी अब उसके स्वरूप में क्या अंतर आ गया है?

प्राचीन भारत में शिक्षा का उद्देश्य आध्यात्मिक एवं मानवीय गुणों के मध्य संतुलन बनाये रखना था। शिक्षा अनिवार्य नहीं थी। शिष्य गुरू के समीप रहकर उनके दैनिक जीवन तथा उनके कर्मों मे जो सहायता करता था, उन्हीं के द्वारा वह ज्ञान प्राप्त कर लेता था। सामूहिक शिक्षा की अपेक्षा व्यक्तिगत शिक्षा पर जोर दिया जाता था।