व्याख्या- कोयल! तुम क्या गा रही थी, क्या संदेश लाई हो, यह किसका संदेश है मुझे इसके विषय में बताओ। जेल की इन ऊँची, काली दीवारों के घर अर्थात् जेल की कोठरी में जिसमें चोर डाकू जेबकतरे सभी बंद हैं| यहाँ आदमी न तो जी सकता है और न हि मर सकता है| इस प्रकार तड़प-तड़प कर रहना पड़ता है। जीवन पर कड़ा पहरा लग गया है। वह शासन की आलोचना करते हुए कहता है कि यह शासन है या अंधेरे का घना प्रभाव। इस काली अंधेरी रात में जबकि दुख ही दुख है तू भी काली ही हैं, क्यों इस प्रकार जग रही है। तथा इस समय क्यों आ गई। तुम्हारी बोली सुनकर क्यों हृदय की पीड़ा फिर से उभर गई है यह पीड़ा बहुत बोझ वाली है अर्थात् गंभीर हैं किसने यहाँ क्या लूट लिया कि वैभव (संपत्ति) की रक्षा करने वाली के समान तूँ बोल पड़ी। अरे ओ बावली कोयल तू आधी रात को क्यों चीखने लगी, कुछ इस बोलने का कारण बता। किस भयंकर आग की लपटें देखकर तू बोलने लगी है। Show
👉 कक्षा 9 हिंदी के सभी पाठों की विस्तृत व्याख्या, प्रश्नोत्त(click here) 👉 कक्षा 9 क्षितिज, कृतिका क्विज / एम सी क्यू(click here) 👉 कक्षा 9 हिंदी व्याकरण क्विज / एम सी क्यू(click here) क्या?-देख न सकती जंजीरों का गहना? हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश राज का गहना, कोल्हू का चर्रक चूँ?-जीवन की तान, गिट्टी पर उँगलियों ने लिखे गान! हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ, खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ। दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली, इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली? इस शांत समय में, अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो? कोकिल बोलो तो! चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज इस भाँति बो रही क्यों हो? कोकिल बोलो तो! व्याख्या-कोयल! क्या तुम्हें शरीर पर पडे जंजीरों के गहने नहीं दिखाई देते। ये हथकड़ियाँ नहीं हैं, अरे ये ही तो अंग्रेजी शासन के आभूषण (गहने) हैं। कोल्हू चलाने से निकली वाली आवाज है| यह आवाज ही अब हमारे जीवन की तान बन गई है , गिट्टी तोड़ते-तोड़ते उंगलियों ने उन पर अपने गीत लिख दिए हैं। जेल के कुओं में पानी खींचने वाले मोट भी पेट पर जुआ बाँधकर हमीं चलाते हैं। और अंग्रेजों के शासन की अकड़ से भरे जलकूपों को खाली करते हैं; अर्थात् उनकी सत्ता को कमजोर बनाते हैं, तू भी हमारे ऊपर हो रहे इस अत्याचार को देखकर दिन में इसलिए नहीं बोलती कि शायद हमारे भीतर कष्टों को झेलने के विषय में सोचने पर करुणा जग जाए। इसलिए तुम रात में ही मुझे सुना रही हो यह अजब अमानवीय संदेश और व्यथा। काली तू. रजनी भी काली, शासन की करनी भी काली, काली लहर कल्पना काली, मेरी काल कोठरी काली,टोपी काली, कमली काली, मेरी लौह-श्रृंखला काली. पहरे की हुंकृति की ब्याली, तिस पर है गाली, ऐ आली! इस काले संकट-सागर पर मरने की, मदमाती! कोकिल बोलो तो! अपने चमकीले गीतों को क्योंकर हो तैराती! कोकिल बोलो तो! व्याख्या- कवि कोयल को संबोधित करता हुआ कहता है कि आधी रात में जबकि चारों ओर शांति हीशान्ति छाई हुई है तू बोलती है तो लगता है जैसे शांत अंधकार को भेदती हुई रुलाई हो। हे कोयल! बताओ कि तुम अपने गान के माध्यम से इतनी मधुरता से शासन के प्रति विद्रोह के बीज क्यों बो रही हो; अर्थात् शासन के खिलाफ लोगों में विद्रोह की भावना जगाने के भाव की सूचना दे रही हो। रात काली है, तू भी काली है, इस शासन की करतूते भी काली हैं लहरें भी काली, कल्पना का रंग भी काला, सिपाहियों की टोपियाँ, कैदियों के कंबल सभी काले हैं, मेरी लोहे की जंजीरें भी काली हैं अर्थात् पूरा परिवेश अमानवीय है, जुल्म और जलालत से भरा हुआ है। प्राणों पर भी संकट है, ऐसे में जबकि शासन इतना क्रूर और निर्दयी है, पराधीनता के इस संकट रुपी सागर में मुक्ति की आकांक्षा रुपी इन चमकीले गीतों को क्यों तैरा रही हो। तुझे मिली हरियाली डाली, मुझे नसीब कोठरी काली! तेरा नभ-भर में संचार मेरा दस फुट का संसार! तेरे गीत कहावें वाह, रोना भी है मुझे गुनाह! देख विषमता तेरी-मेरी, बजा रही तिस पर रणभेरी! इस हुंकृति पर, अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ? कोकिल बोलो तो! मोहन के व्रत पर, प्राणों का आसव किसमें भर दूँ! कोकिल बोलो तो! व्याख्या- कवि कहता है कि हे कोयल। तुम्हें तो हरियाली युक्त डाल अर्थात् सुख-सुविधाएँ मिली हुई हैं जबकि मेरे भाग्य में जेल की काली कोठरी है। तुम आकाश में विचरण करती हो, पूरा आकाश ही तुम्हारे संचरण के लिए है। जबकि मेरा संसार तो इस दस फुट की जेल-कोठरी में ही सिमट कर रह गया है। तुम्हारे गीत से तुम वाह-वाही की पात्र बनती हो जबकि मैं तो रो भी नहीं सकता। कवि अप्रत्यक्ष रुप से पराधीनता के काल में अंग्रेजो द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की ओर संकेत कर रहा है| किन्तु यदि मेरी विवशता जानते हुए भी तुम मुझे अपनी स्वर रुपी रण भेरी सुना-सुनाकर मुक्ति के संग्राम के लिए प्रेरित कर रही हो तो तुम्हारी इस हुंकार के बदले तुम्हीं बताओ मैं और कृति (रचना) के माध्यम से और क्या कर दूं। हे कोयल! तुम्ही बताओ कि गाँधी के देश की स्वतंत्रता के व्रत की रक्षा के लिए अपने प्राणों के रस का आसव बनाकर किसके प्राणों में भर दूँ। प्रश्न-अभ्यास1-कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी?उत्तर- कोयल की कूक सुनकर कवि को लगा कि जैसे वह किसी का संदेश लाई है, इसलिए कवि उससे कहता है कि तुम चुप क्यों हो जाती हो। कोयल! स्पष्ट बोलो। बताओ क्या कहना चाह रही हो |2. कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की संभावना बताई?उत्तर- कवि ने संभावना जताई है कि कोयल शायद कोई संदेश लाई हो, अथवा किसी दावानल की ज्वाला उसने देखी है या मधुर विद्रोह-बीज बोने के लिए वह बोल उठी है। या तो फिर बोल-बोलकर अंग्रेजी शासन से मुक्ति की रणभेरी बजा रही हो।3. किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई और क्यों?उत्तर- अंग्रेजी शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है। क्योंकि अंधेरा काला होता है; और उसके प्रभाव के कारण कुछ नहीं सूझता। अंग्रेजों की गुलामी के शासन से मुक्ति का कोई मार्ग नहीं सूझ रहा था। इसी कारण कवि ने अंग्रेजों के शासन की तुलना तम के प्रभाव से की है।4-कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन कीजिए।उत्तर- पराधीन भारत की जेलों में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को अनेकों दारुण कष्ट दिए जाते थे। उन्हें सामान्य रुप से अवांछनीय तत्वों के साथ रखा जाता था, पेट भर खाना न देना, कठिन श्रम से मोट खिंचवाना, कोल्हू चलवाना, श्रमिक की भांति दिन-भर कार्य कराना और किसी से मिलने-जुलने की इजाजत न देना आदि अनेक अवर्णनीय कष्ट दिये जाते थे।5. भाव स्पष्ट कीजिए(क) दिन के दुख का रोना है निश्वासों का ..।उत्तर |