समतल दर्पण से बनने वाला प्रतिबिम्ब कैसे बनता है? - samatal darpan se banane vaala pratibimb kaise banata hai?

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दर्पण के पीछे के प्रतिबिम्ब को आभासी प्रतिबिम्ब कहा जाता है क्योंकि इसे एक स्क्रीन पर प्रक्षेपित नहीं किया जा सकता। किरणें केवल दर्पण के पीछे एक बिंदु से आती प्रतीत होती हैं। यदि आप दर्पण के पीछे जाते हैं, तो आप प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते, क्योंकि किरणें वहां नहीं होती हैं। हालाँकि, दर्पण के सामने, किरणें ठीक वैसे ही व्यवहार करती हैं जैसे कि वे दर्पण के पीछे से आ रही हों, इसलिए दर्पण के सामने आभासी प्रतिबिम्ब बनता है।

Solution : यदि आप एक P की आकृति को कागज़ के गत्ते से काट कर बनाएँ एवं उसे अपने हाथ में रखते हुए दर्पण के सामने खड़े हों, तो आप पाएँगे कि आपने व प्रतिबिम्ब ने P आकृति को पकड़ रखा है जबकि आपका बायाँ भाग दर्पण में दायाँ प्रतीत होता है | अब आप समझ सकते है कि जब आप कागज़ पर लिखकर उसे, दर्पण की ओर मुड़कर दर्पण में देखते हैं आप तो दर्पण को ही दिखा रहे है | आपने पहले ही कागज़ को `180^(@)` से घुमा दिया है जबकि गत्ते की आकृति को आप प्रतिबिम्ब में P ही देख रहे हैं | यदि इस गत्ते के P के एक ओर लाल रंग व दूसरी ओर नीला रंग कर दें तो आप पाएँगे कि यदि आप लाल रंग देख रहे तो दर्पण से प्रतिबिम्ब में P नीले रंग का दिखाई देगा |
इस प्रयोग से निष्कर्ष निकलता है कि समतल दर्पण द्वारा बनाने वाला प्रतिबिम्ब बिम्ब के बराबर, आभासी एवं उल्टा बनता है | समतल दर्पण से बने प्रतिबिम्ब में पार्श्व विचलन पाया जाता है |

दर्पण (Mirrors) ऐसे प्रकाशीय तल (optical surfaces) हैं जो प्रकाश की किरणों के परावर्त क (reflection) के द्वारा या तो प्रकाशपुंज को प्रत्यावर्तित कर देते हैं अथवा उसे एक बिंदु पर अभिसृत (converge) करके बिंब (image) का निर्माण करते हैं। प्रकाशीय यंत्रों के, विशेष कर ज्योतिष से संबधित यंत्रों के, निर्माण में दर्पणों ने अत्यंत महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की है।

दर्पण के तल से परावर्तित होते समय प्रकाश की किरणें दो विशेष नियमों का पालन करती हैं। इन नियमों को परावर्तन के नियम (Laws of Reflection) कहते हैं। ये निम्नलिखित हैं:

  • 1. आपाती किरण, आपतन बिंदु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण एक ही समतल में स्थित होते हैं।
  • 2. अभिलंब के साथ आपाती किरण तथा परावर्तित किरण द्वारा बननेवाले कोण परस्पर बनाबर होते हैं। पहले कोण अ (i) को आपतन कोण तथा दूसरे कोण प (r) को परावर्तन कोण कहते हैं।

यदि कोई तल प्रकाश की किरणों का परावर्तन किसी ऐसे प्रकार से करता है जिसमें किरणें उपर्युक्त नियमों का पालन नहीं करतीं तो ऐसा तल दर्पण का तल न होकर विसारी परावर्तक तल (diffusive reflecting surface) कहा जाएगा।

प्राय: सभी दर्पणों की रचना समुचित आकृति के काचतल पर किसी अत्यधिक परावर्तनशील पदार्थ की पतली परत चढ़ाकर की जाती है। यह प्रक्रिया प्राय: निर्वात आलेपन द्वारा संपन्न की जाती है और पदार्थ का चयन उस वर्णक्रम प्रदेश के अनुसार किया जाता है जिसके लिय दर्पण का प्रयोग अभीष्ट है।

दृश्य प्रखंड (visible region) के लिए चाँदी सर्वाधिक परावर्तनीयता (reflectivity) प्रदान करती है, किंतु साधारणतया ऐल्यूमिनियम का ही उपयोग किया जाता है। इसका कारण यह है कि एल्यूमिनियम चाँदी की अपेक्षा अधिक टिकाऊ होता है। इसका कारण ऐल्यूमिनियम ऑक्साइड है, जो ऐल्यूमिनियम के वायुमंडल के संपर्क में आने पर बन जाता you iyughu है।

निकटस्थ तथा दूरस्थ अवरक्त प्रखंड (Near and far infra-red region)[संपादित करें]

लगभग २ माइक्रॉन तरंगदैर्घ्य तक के प्रकाश के लिए ऐल्यूमिनियम के स्थान पर सोने का उपयोग दर्पण की कलई करने के लिए किया जाता है। ०.३५ म्यू (m) के नीचे वर्णक्रम प्रखंड के लिए पुन: ऐल्यूमिनियम ही उपयुक्त सिद्ध होता है, क्योंकि ०.३१ म्यू (m) के समीप की किरणों के लिए ऐल्यूमिनियम पारदर्शी होता है। ०.१० म्यू (m) के नीचे प्लैटिनम का उपयोग किया जाता है, क्योंकि इन किरणों के लिए ऐल्यूमिनियम पारदर्शी होता है।

एक ओर पाॅलिश की गई काँच की समतल प्लेट समतल दर्पण कहलाती है।

समतल दर्पण द्वारा किसी वस्तु का बिंब बनने की प्रक्रिया में निम्नलिखित तीन बातें मुख्य होती हैं :

  • 1. वस्तु का बिंब ऐसी स्थिति में तथा ऐसे आकार का बनता है कि दर्पण का तल वस्तु और बिंब के संगत बिंदुओं को मिलानेवालत रेखाओं के लंबवत्‌ पड़ता है और उन्हें समद्विभाजित करता है।
  • 2. वस्तु का कोई भाग दर्पण से जितनी दूर आगे स्थित होता है, उसका बिंब दर्पण में उतनी ही दूर पीछे बनता है। इसके साथ वस्तु का आगे का भाग बिम्ब में पीछे हो जाता है तथा वस्तु का पीछे का भाग बिम्ब में आगे आ जाता है। इस क्रिया को (pervrsion) कहते हैं।
  • 3. बिंब की स्थिति केवल वस्तु और दर्पण की स्थिति पर निर्भर करती हे, देखनेवाले की स्थिति पर नहीं।

समतल दर्पण से बननेवाले बिंब आभासी (virtual) होते हैं, क्योंकि परावर्तित किरणें किसी एक बिंदु पर मिलती नहीं, वरन्‌ बिंब से अपसृत (diverge) होती हुई प्रतीत होती हैं। इसलिए ये किरणें किसी पर्दे पर वस्तु के वास्तविक (real) बिंब का निर्माण नहीं कर सकतीं।

परस्पर झुके हुए दर्पणों से बिंबों का निर्माण[संपादित करें]

जब दो समतल दर्पण एक दूसरे पर झुके हुए होते हैं तब उनके बीच स्थित किसी वस्तु का बिंब दोनों दर्पणों द्वारा बनता है। इन बिंबों से और भी अनेक बिंब पुनरावृत परावर्तनों (repeated reflections) द्वारा बन सकते हैं,

समतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब कैसे बनता है?

समतल दर्पण के द्वारा बना प्रतिबिम्ब होता है – काल्पनिक. समतल दर्पण से बननेवाले बिंब आभासी (virtual) होते हैं, क्योंकि परावर्तित किरणें किसी एक बिंदु पर मिलती नहीं, वरन्‌ बिंब से अपसृत (diverge) होती हुई प्रतीत होती हैं। इसलिए ये किरणें किसी पर्दे पर वस्तु के वास्तविक (real) बिंब का निर्माण नहीं कर सकतीं।

समतल दर्पण द्वारा बनने वाले प्रतिबिम्ब के लक्षण क्या होते हैं?

समतल दर्पण में बनने वाले प्रतिबिम्ब के लक्षण​:.
समतल दर्पण से बनने वाला प्रतिबिम्ब आभासी और सीधा होता है अर्थात् प्रतिबिम्ब को परदे पर प्रक्षेपित या केन्द्रित नहीं किया जा सकता है।.
दर्पण के 'पीछे' प्रतिबिम्ब की दूरी दर्पण के सामने वस्तु की दूरी के समान होती है।.
बने प्रतिबिम्ब का आकार वस्तु के आकार के समान होता है।.

समतल दर्पण द्वारा बनने वाले प्रतिबिंब के गुण क्या होते हैं?

समतल दर्पण द्वारा बनने वाला प्रतिबिंब आभासी,सीधा, दर्पण के पीछे होता है।.
वस्तु और प्रतिबिंब की दूरी दर्पण से हमेशा बराबर रहेगी।.
प्रतिविम्ब सीधा और आभासी होगा।.
इसको पर्दे पर नही लाया जा सकता है।.
आकार में पतिविम्ब वास्तु के समान आकर का ही होगा।.

समतल दर्पण में प्रतिबिंब की प्रकृति क्या होती है?

Solution : समतल दर्पण से बना प्रतिबिम्ब हमेशा सीधा व आभासी होता है।