कोयले के बाद पेट्रोलियम भारत का मुख्य ऊर्ज संसाधन है । ऊर्जा के स्रोत के अलावा पेट्रोलियम उत्पादों का इस्तेमाल कच्चे माल के रूप में कई उद्योगों में होता है। उदाहरण: प्लास्टिक, टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स, आदि। Show
भारत में पाया जाने वाला पेट्रोलियम टरशियरी चट्टानों की अपनति और भ्रंश ट्रैप में पाया जाता है। चूना पत्थर या बलुआ पत्थर की सरंध्र परतों में तेल पाया जाता है जो बाहर भी बह सकता है। लेकिन बीच बीच में स्थित असरंध्र परतों के कारण इस तेल के रिसाव की रोकथाम होती है। इसके अलावा सरंध्र और असरंध्र परतों के बीच बने फॉल्ट में भी पेट्रोलियम पाया जाता है। गैस हल्की होती है इसलिए सामान्यतया तेल के ऊपर पाई जाती है। मुम्बई हाई से भारत का 63% पेट्रोलियम निकलता है। 18% पेट्रोलियम गुजरात से और 13% असम से आता है। अंकलेश्वर में गुजरात का सबसे महत्वपूर्ण तेल का क्षेत्र है। असम भारत का सबसे पुराना पेट्रोलियम उत्पादक है। दिगबोई, नहरकटिया और मोरन-हुगरीजन में असम के मुख्य तेल के कुँए हैं। प्राकृतिक गैसप्राकृतिक गैस या तो पेट्रोलियम के साथ पाई जाती है या अकेले भी। प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल ईंधन और कच्चे माल के तौर पर होता है। कृष्णा गोदावरी बेसिन में प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार की खोज हुई है। इसके अलावा खंभात की खाड़ी, मुम्बई हाई और अंदमान निकोबार में भी प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार हैं। मुम्बई हाई और कृष्णा गोदावरी बेसिन को पश्चिमी और उत्तरी भारत के खाद, उर्वरक और औद्योगिक क्षेत्रों को एक 1700 किमी लम्बी हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर पाइपलाइन से जोड़ा गया है। प्राकृतिक गैस को मुख्य रूप से उर्वरक और बिजली उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है। आजकल, गाड़ियों के ईंधन के रूप में सीएनजी (कॉम्प्रेस्ड नैचुरल गैस) का इस्तेमाल भी होने लगा है। बिजलीविद्युत का उत्पादन मुख्य रूप से दो तरीकों से होता है: पनबिजली और थर्मल पावर। एक तरीके में बहते पानी से टरबाइन चलाया जाता है। दूसरे तरीके में कोयला, पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करके भाप बनाई जाती है और फिर उस भाप से टरबाइन चलाया जाता है। देश के मुख्य पनबिजली उत्पादक हैं भाखड़ा नांगल, दामोदर वैली कॉरपोरेशन, कोपिली हाइडेल प्रोजेक्ट, आदि। वर्तमान में भारत में 300 से अधिक थर्मल पावर स्टेशन हैं। यहाँ तक की किसी देश के आर्थिक विकास को भी उसकी ऊर्जा की खपत द्वारा ही नापा जाता है। जितना अधिक प्रति व्यक्ति ऊर्जा का सेवन, उतना ही विकसित वह देश। वर्तमान में, भारत की ऊर्जा का सेवन अन्य देशों से बहुत कम है। ऊर्जा के स्रोत दो प्रकार के हो सकते हैं- इस लेख में हम केवल पारंपरिक ऊर्जा पर ही चर्चा करेंगे। पारंपरिक ऊर्जा स्रोत की विशेषता (qualities of Conventional sources of energy in hindi)पारंपरिक ऊर्जा स्रोत वे हैं, जो लंबे समय से प्रयोग में हैं। ये प्रकृति में तय तथा सीमित मात्रा में उपलब्ध होते हैं-
पारंपरिक ऊर्जा के स्त्रोत (Conventional sources of energy in hindi)
गैर नवीकरणीय होने का कारण (Reason for being Non renewable)कोयला पेड़ पौधों से तथा पेट्रोल समुद्री जीवों से बनता है। लाखों वर्ष पूर्व जब पेड़ पौधे और समुद्री जीव मर गए तथा धरती और सागर के नीचे दब गए, तो समय के साथ उन पर दबाव तथा उनका तापमान बढ़ता गया। वे जिन पत्थरों के नीचे थे, उन पर उनकी छाप आ गई। धीरे धीरे ये जीव जीवाश्म (फॉसिल्स) बन गए। इन्ही जीवाश्मों से हम ईंधन बनाते हैं। इसी कारण कोयले तथा पेट्रोल को जीवाश्म ईंधन (fossil fuels) भी कहते हैं। जीवाश्मों की रचना होने में कई वर्ष (लाखों-करोड़ों) लग जाते हैं। एवं ये धरती में सीमित मात्रा में ही उपलब्ध हैं। इसलिए यदि एक बार ये समाप्त हो जाएँ, तो इन्हें पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता। इनका प्रयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए, जिससे कि आने वाली पीढ़ियाँ भी इनका लाभ ले सकें। ग्लोबल वार्मिंग (Global warming)जब इन पारंपरिक ईंधनों को जलाया जाता है तब इनमे से कई तरह की गैस निकलती है। उनमें से एक है कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide-CO2)। CO2 ग्रीन हाउस गैस हैं। ग्रीन हाउस गैस वो होती हैं, जो सूर्य से आने वाली ऊष्मा को सोख लेती है, जिससे पृथ्वी के वायुमंडल में उचित तापमान बना रहता है। परंतु जब प्रदूषण के कारण ग्रीन हाउस गैसें बढ़ जाती हैं, तब ये आवश्यकता से अधिक गर्मी सोखने लगती हैं। इस कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। गर्मी आम सीमा से ज़्यादा हो रही है। सारी ऋतुएँ चरम होती जा रही हैं। इसी को ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। प्रदूषण (Pollution)पेट्रोल तथा डीजल वाहनों में प्रयोग किया जाता है। कोयला का थर्मल पावर प्लांट्स में उपयोग होता है, जहाँ उसे जलाकर बिजली का उत्पादन किया जाता है। इन सभी ऊर्जा स्रोतों के जलने से हानिकारक गैस बनती है, जो हमारे वायुमंडल को दूषित करती हैं। वे दूषित वायु हमारे, तथा अन्य जीवों के लिए अनुपयुक्त है और बीमारियों का कारण बनती हैं। ये गैस से अणु जब वर्षा की बूंदों में घुल जाते हैं, तब अपने अम्लीय (एसिडिक) व्यवहार की वजह से पानी को भी अम्लीय बना देते हैं। ऐसी अम्लीय वर्षा से पेड़ पौधों, फसलों, जानवरों तथा स्मारकों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसी वर्षा से मनुष्यों को भी रोग हो सकते हैं। पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का विकल्प (alternative of conventional sources of energy in hindi)पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के इतने दुष्प्रभावों के कारण अब हम दूसरे प्रकार के स्रोत, गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों ( Non conventional sources of energy) की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। ये स्रोत प्रदूषण में भागीदार नहीं हैं (बहुत कम प्रदूषण)। तथा तुलना में सस्ते भी हैं। गैर पारंपरिक स्रोत ही भविष्य के ऊर्जा स्रोत है, क्योंकि पारंपरिक स्रोत घटते जा रहे हैं और आने वाले समय मे विलुप्त हो जाएँगे। ऊर्जा का के परंपरागत स्रोत क्या है?परंपरागत ऊर्जा के स्रोत: जलावन, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और बिजली। गैर परंपरागत ऊर्जा के स्रोत: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, बायोगैस और परमाणु ऊर्जा।
ऊर्जा का गैर पारंपरिक स्रोत क्या है?गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोत क्या हैं? (Non conventional sources of energy in hindi) गैर पारंपरिक स्रोत वे हैं, जो हाल ही में प्रयोग में आए हैं। इन स्रोतों को प्रयोग करने का उपाय तथा तकनीक, पहले दोनों ही नहीं थे। ये पृथ्वी पर असीमित मात्रा में हैं।
परंपरागत स्रोत क्या है परिभाषा?Solution : ऊर्जा के परंपरागत स्रोत- <br> (i) ऊर्जा के वे स्रोत जिन्हें प्रयोग करने हेतु हमने दक्ष तकनीकों को विकसित कर लिया है, ऊर्जा के परंपरागत स्रोत कहलाते हैं।
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