इल्तुतमिश युग के दौरान प्रारंभिक जीवन, समस्याओं और उपलब्धियों से आप क्या समझते हैं? - iltutamish yug ke dauraan praarambhik jeevan, samasyaon aur upalabdhiyon se aap kya samajhate hain?

उत्तर : – इल्तुतमिश इलबर जाति का तुर्क था । उसका पिता इलक खाँ एक कबायली सरदार था । उसका राजनीतिक जीवन ऐबक के दास के रूप में आरम्भ हुआ लेकिन मुहम्मद गौरी की अनुशंसा पर ऐबक ने उसे दासता से मुक्त कर दिया था । आगे चलकर ऐबक ने अपनी एक बेटी का विवाह इल्तुतमिश के साथ कर दिया । दिल्ली का शासक बनने पर ऐबक ने इल्तुतमिश को बदायूँ का प्रशासक नियुक्त किया जो कि उस समय में एक महत्वपूर्ण पद था । बदायूँ में ही इल्तुतमिश को आरामशाह के विरोधियों के द्वारा गद्दी पर अधिकार करने का निमंत्रण प्राप्त हुआ । दिल्ली के सल्तनत के आरम्भिक तुर्क सुल्तानो में इल्तुतमिश का व्यक्तित्व अत्यन्त महत्वपूर्ण और प्रभावशाली है । अनिश्चित राजनीतिक परिस्थितियों में और अत्यन्त गम्भीर संकट काल में इल्तुतमिश दिल्ली का शासक बना था । अपनी योग्यता और प्रतिभा के बल पर उसने दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ एवं शक्तिशाली रूप प्रदान किया । इल्तुतमिश की उपलब्धियों को समझने के लिए अथवा दिल्ली सल्तनत के प्रति उसके योगदान का मूल्यांकन करने के लिए यह आवश्यक है कि उन समस्याओं की ओर ध्यान दिया जाए तो इल्तुतमिश के राज्यारोहन के समय प्रस्तुत थी ।

इल्तुतमिश युग के दौरान प्रारंभिक जीवन, समस्याओं और उपलब्धियों से आप क्या समझते हैं? - iltutamish yug ke dauraan praarambhik jeevan, samasyaon aur upalabdhiyon se aap kya samajhate hain?
इल्तुतमिश के समक्ष निम्नलिखित मुख्य समस्याएँ थीं ।
  • 1 विरोधी सामन्तो , विशेषकर कुत्बी और मुइज्जी सामन्तों का दमन ।
  • 2. अपने प्रतिद्वन्द्वियों यलदोज और कुबाचा का दमन ।
  • 3. राजपूताना और बंगाल के उपद्रवों और विद्रोहों का दमन ।
  • 4. मंगोल आक्रमण से सल्तनत की रक्षा और.
  • 5. सल्तनत के लिए प्रशासनिक व्यवस्था का निर्माण

उसके 25 वर्षीय शासन काल में इन सभी समस्याओं का समाधान हुआ । इस काल को तीन चरणों में विभक्त किया जा सकता है । प्रथम चरण 1210 से 1220 तक रहा जबकि उसने अपने विरोधियों एवं प्रतिद्वन्द्रियों का दमन किया । सर्वप्रथम उसने उन सामन्तों को शक्ति को कुचला जो गद्दी पर उसके अधिकार का विरोध कर रहे थे । इनमें अधिकतर कुत्बी और मुइज्जी सामन्त थे जो इस आधार पर इल्तुतमिश के विरूद्ध हो रहे थे कि वह एक दास का भी दास है । अतः राजगद्दी पर उसका अधिकार अनुचित है । इल्तुतमिश ने सर्वप्रथम इन सामन्तों को युद्ध में पराजित किया । इसके बाद उसने क्रमिक रूप से भी महत्वपूर्ण पदों से इन सामन्तो को वंचित किया । उसने अपने विश्वसनीय 40 दासों का एक नया दल संगठित किया जो ‘ चालीसा ‘ दल कहा जाता है । इस दल के सदस्यों को सभी बड़े पदों पर नियुक्त करके इल्तुतमिश ने अपनी स्थिति सुदृढ कर ली ।

इल्तुतमिश के प्रतिद्वन्द्वियों में सर्वप्रथम यल्दोज़ के साथ उसका संघर्ष हुआ । यल्दोज गजनी का शासक था और दिल्ली पर अपनी संप्रभुता का दावा करता था । यद्यपि उसे ऐबक ने पराजित किया था , परन्तु इल्तुतमिश की आरम्भिक कठिनाइयों को देखते हुए यल्दोज ने पुन : अपना दावा दोहराया था । 1215-16 .. के बीच इल्तुतमिश ने यल्दोज को पुनः पराजित किया और इस समस्या का समाधान किया । यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उपलब्धि थी क्योंकि इसके साथ ही दिल्ली सल्तनत और गजनी के साथ सम्पर्क सदा के लिए टुट गया और सल्तनत का विकास एक स्वतंत्र उत्तर भारतीय राज्य के रूप में हुआ जिसका मध्य एशियाइ राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं था । इसी समय उसने अपने दूसरे विरोधी कुबाचा के विरूद्ध भी कारवाई की किन्तु उसे पूर्ण सफलता नहीं मिली ।

दूसरा चरण 1221 से 28 के बीच है । इस काल का आरम्भ एक अत्यन्त गम्भीर संकट के साथ हुआ जब महान मंगोल विजेता चंगेज खाँ अपनी सेना के साथ दिल्ली सल्तनत की सीमा आ पहुँचा । चंगेज खाँ इस ओर ख्वारिज्म के राजकुमार मंगबरनी का पीछा करता हुआ आया था जो कि इल्तुतमिश से मंगालों के विरूद्ध सहायता का आकांक्षी था । इल्तुतमिश ने कूटनीति से काम लेते हुए मंगबरनी को कोई सहायता नहीं दी । उसके आचरण से चंगेज खाँ संतुष्ट रहा और उसने भी दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण नहीं किया , इस प्रकार यह भंयकर संकट आसानी से टल गया । इसका एक अन्य लाभ इल्तुतमिश को हुआ । मंगबरनी ने सिंध नदी के किनारे के क्षेत्र में कुबाचा की शक्ति को बहुत कमज़ोर कर दिया था । अत : इसका लाभ उठाकर कुबाचा पर इल्तुतमिश ने चढ़ाई कर दी और 1224 में कुबाचा को पराजित करके उसने सिंध और मुल्तान को भी दिल्ली सल्तनत में मिला लिया । इस प्रकार दिल्ली सल्तनत में क्षेत्रों में पहली बार उल्लेखनीय विस्तार हुआ ।

इल्तुतमिश का चरित्र, उपलब्धियां और मूल्यांकन

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vidyadoot

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February 25, 2022

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इल्तुतमिश युग के दौरान प्रारंभिक जीवन, समस्याओं और उपलब्धियों से आप क्या समझते हैं? - iltutamish yug ke dauraan praarambhik jeevan, samasyaon aur upalabdhiyon se aap kya samajhate hain?

इल्तुतमिश का चरित्र, उपलब्धियां और मूल्यांकन (Iltutamish ka charitr, upalabdhiyaan aur moolyaankan) Character achievements and evaluation of Iltutmish in hindi : दिल्ली को भारत में तुर्क शासन का राजनीतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाने का श्रेय सुल्तान इल्तुतमिश को दिया जाता | उसकी मुख्य सफलता भारत में नव-स्थापित तुर्की राज्य को सुरक्षा दिलाने और इसे वैधानिक स्थिति प्रदान कराने में है | इल्तुतमिश ने ही दिल्ली में प्रथम बार वंशानुगत राजसत्ता स्थापित करने का कार्य किया था |

इल्तुतमिश में  एक योग्य शासक के सभी गुण विद्यमान थे | भारत में एक साधारण से गुलाम के रूप में अपना जीवन आरंभ करने वाला इल्तुतमिश अपनी असाधारण योग्यता के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर जा बैठा |

विद्यादूत में मध्यकालीन भारत के अंतर्गत दिल्ली सल्तनत में तथाकथित गुलाम वंश के सुल्तान इल्तुतमिश से सम्बन्धित निम्न अन्य लेख भी जरुर देखें –

  1. इल्तुतमिश का आरम्भिक इतिहास
  2. सुल्तान के रूप में इल्तुतमिश की कठिनाइयाँ
  3. इल्तुतमिश की सफलताएँ
  4. इल्तुतमिश के कार्य एवं शासन व्यवस्था

इल्तुतमिश जितना देखने में सुंदर और आकर्षण था, उतना ही हृदय का उधार था | वह एक न्यायप्रिय शासक था | दीनदुखियों के प्रति उसकी सहानुभूति व दया पर समकालीन इतिहासकारों के अनेक वृत्तान्त मिलते हैं | वे उसकी खुलेदिल से प्रशंसा करते हैं |

इब्नबतूता के अनुसार वह न्यायशील, धार्मिक और गुणवान शासक था तथा उसमें सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह सताए हुए लोगों के साथ न्याय करता था और उनका दुख-दर्द दूर करता था |

मिनहाज लिखता है “आदिकाल से ही सर्वोच्च और परम ईश्वर की इच्छा थी कि भारत देश पर सुल्तान अबुल मुजफ्फर अल्तमश (इल्तुतमिश) का संरक्षण हो | यह महान सुल्तान था और धर्म तथा संसार का प्रकाश था | …….. ऐसा विश्वास किया जाता है कि इतना परोपकारी, सहानुभूति करने वाला विद्वानो का और बड़ों का आदर करने वाला कोई दूसरा सुल्तान नहीं हुआ | वह अपनी शक्ति से राजसिंहासन पर पहुंचा था |”

इल्तुतमिश एक साहसिक वीर योद्धा था | उसके अद्भुत साहस से प्रभावित होकर ही मुहम्मद गोरी ने उसकी दास्यमुक्ति हेतु ऐबक को आदेश दिया था | अपनी स्वामिभक्ति के बल पर वह ऐबक का दामाद बन गया |

उसके सिंहासनारोहण के समय नवस्थापित तुर्की साम्राज्य का अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका था, लेकिन अपनी काबिलियत के बल पर उसने दिल्ली सल्तनत को न केवल एक शक्तिशाली साम्राज्य बनाया बल्कि गजनी से अलग एक स्वतंत्र राज्य का दर्जा भी दिलाया |

सुल्तान इल्तुतमिश के द्वारा बगदाद के खलीफा से मानाभिषेक प्राप्त करने के साथ ही वैधानिक स्वतंत्र दिल्ली सल्तनत का युग आरंभ हुआ |

इल्तुतमिश धार्मिक प्रवृत्ति वाला व्यक्ति था | उसके अनेक सूफी संतों से घनिष्ठ सम्बन्ध थें | शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, शेख बहाउद्दीन जकारिया, शेख जलालुद्दीन तबरेजी का वह सम्मान करता था |

यद्यपि हिन्दुओं और शिया मुसलमानों के प्रति उसका व्यवहार असहिष्णुतापूर्ण था | लेकिन कट्टर सुन्नी और अपने धर्म के प्रति समर्पित होने के बावजूद उसे एक धर्मार्थ शासक का दर्जा नहीं दिया जा सकता है |

इल्तुतमिश एक सुसभ्य शासक था | इसने ईरानी रीति-रिवाजों को अपने राज-दरबार में अपनाया | वह विद्वानों और योग्य व्यक्तियों को उचित सम्मान देता था | मध्य एशिया में क्रूर मंगोलों के आतंक से पीड़ित अनेक विद्वानों, राजपुरुषों, कलाकारों को उसने दिल्ली में शरण दी, जिससे भारत में मध्य-एशियाई संस्कृति का प्रसार हुआ |

उसके दरबार को मिनहाज-उस-सिराज, मलिक कुतुबुद्दीन हसन गौरी, फखरुलमुल्क इसामी जैसे विद्वान सुशोभित करते थे | निजामुल-मुल्क मुहम्मद जुनैदी जैसा योग्य व्यक्ति इल्तुतमिश का वजीर था |

इल्तुतमिश कला-प्रेमी भी था | उसने कई महत्वपूर्ण निर्माण कार्य करवायें | उसने प्रसिद्ध कुतुबमीनार, जो ऐबक की मृत्यु के कारण अपूर्ण रह गया था, को पूर्ण करवाया |

उसने बदायूं में जामा-मस्जिद, होज-ए-शम्सी तथा शम्सी ईदगाह का निर्माण करवाया | उसने नागौर (जोधपुर) में एक विशाल दरवाजे का निर्माण करवाया, जो ‘अतारिकिन का दरवाजा’ के नाम से प्रसिद्ध है |

उसने दिल्ली में अपने मकबरे का निर्माण करवाया | उसने अपने प्रिय पुत्र नासिरुद्दीन महमूद का मकबरा दिल्ली के निकट सुल्तानगढ़ी में बनवाया | उसने ‘अढाई दिन का झोपड़ा’ को भी विस्तारित किया |

कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा छोड़े गए अस्त-व्यस्त प्रदेशो को एक शक्तिशाली और सुदृढ़ राज्य के रूप में संगठित करने का श्रेय इल्तुतमिश को ही प्राप्त होता है |

हबीबउल्ला के अनुसार “इल्तुतमिश को महान कहना निसंदेह अतिशयोक्ति होगा, किंतु वह असाधारण रूप से योग्य शासक था जिसने सल्तनत की क्रिया के प्रत्येक पहलू पर अपनी छाप डाली थी | उसके देहावसान और उसके वंश की राज्यच्युति के बहुत समय के बाद भी लोग उसके समृद्धशाली और वैभवपूर्व शासनकाल कोई स्मरण करते थे | ऐबक ने दिल्ली सल्तनत और उसके प्रभुसत्तापूर्ण पद की रूपरेखा प्रस्तुत की थी और इल्तुतमिश उसका निर्विवाद प्रथम सुल्तान था |”

आर.पी. त्रिपाठी के अनुसार भारत में मुस्लिम संप्रभुता का इतिहास इल्तुतमिश से ही आरंभ होता है |

के.ए. निजामी लिखते हैं “ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की रूपरेखा के बारे में सिर्फ दिमागी आकृति बनाई थी, पर इल्तुतमिश ने उसे एक व्यक्तित्व, एक पद, एक प्रेरणा-शक्ति, एक दिशा, एक शासन व्यवस्था और एक शासक-वर्ग प्रदान किया |”

इल्तुतमिश एक कुशल कूटनीतिज्ञ और योग्य राजनीतिज्ञ था | उसने बड़ी सूझबूझ और कुशलता से दिल्ली को क्रूर मंगोलों के कहर से बचाया |

यदि इल्तुतमिश ने मंगबर्नी को शरण दे दी होती तो स्वाभाविक था कि चंगेज खां दिल्ली पर आक्रमण करता और जिन शक्तिशाली मंगोलो ने मध्य-एशिया के महान राज्यों को मिट्टी में मिला दिया उनके लिए नवस्थापित दिल्ली सल्तनत को नष्ट करना कठिन कार्य न होता |

उपर्युक्त उपलब्धियों की वजह से तथाकथित दास वंश में सुल्तान इल्तुतमिश का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण था | निसंदेह इल्तुतमिश आरंभिक तुर्क शासकों में सर्वाधिक योग्य सुल्तान था |

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विद्यादूत एक एजुकेशनल वेबसाइट (ब्लॉग) है, जो कई विषय-विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा संचालित होती है | विद्यादूत वेबसाइट में समय-समय पर विभिन्न विषयों पर विशेषज्ञों द्वारा अतिमहत्वपूर्ण पाठ्य-सामग्री प्रस्तुत की जाती है |

इल्तुतमिश युग के दौरान प्रारंभिक जीवन समस्याओं और उपलब्धियों से आप क्या समझते?

आर. त्रिपाठी लिखते हैं, "भारत में मुस्लिम प्रभुसत्ता का प्रारम्भ वास्तविक रूप में इल्तुतमिश के राज्य से ही होता है।" अत: इल्तुतमिश को ही यह काम सँभालना पड़ा। वह एक वीर तथा कुशल सैनिक और महान् विजेता था। उसने दास के रूप में अपना जीवन प्रारम्भ किया और अपनी योग्यता की बदौलत ही दिल्ली का सुल्तान बन गया।

इल्तुतमिश की प्रमुख समस्याएं क्या थी?

मंगोल आक्रमण का भय इल्तुतमिश के सामने पश्चिमोत्तर सीमा की सुरक्षा की भी समस्या थी। मंगोलों ने मध्य एशिया में अपनी शक्ति बढ़ा ली थी। जब ख्वारिज्म का शासक जलालुद्दीन मांगबर्नी मंगोलों से पराजित होकर भारत आया और उसका पीछा करते हुए मंगोल भी भारतीय सीमा तक पहुंच गए तो इल्तुतमिश के लिए एक गंभीर संकट उत्पन्न हो गया।

इल्तुतमिश की उपलब्धियां क्या थी?

इल्तुतमिश के कार्य एंव उपलब्धियां (iltutmish ke karya) इल्तुतमिश की पहली सफलता उसके राज्यारोहण का विरोध करने वाले तुर्की अमीरों को दिल्ली निकट युमना नदी के मैदान मे पराजित करना था। अधिकांश विरोधी अमीरों का वध कर दिया गया। गजनी के यल्दूज को दमन में इल्तुतमिश एक सफल सैनिक तथा कुलनीतिज्ञ के रूप के सामने आता हैं।

इल्तुतमिश युग के दौरन प्राथमिक जीवन समय और उत्थान से आप क्या समझते हैं?

उसने 1211 इस्वी से 1236 इस्वी तक शासन किया। राज्याभिषेक समय से ही अनेक तुर्क अमीर उसका विरोध कर रहे थे। खोखरों के विरुद्ध इल्तुतमिश की कार्य कुशलता से प्रभावित होकर मुहम्मद ग़ोरी ने उसे “अमीरूल उमरा” नामक महत्त्वपूर्ण पद दिया था। अकस्मात् मुत्यु के कारण कुतुबद्दीन ऐबक अपने किसी उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं कर सका था।