सूर्य नमस्कार करते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए? - soory namaskaar karate samay kaun sa mantr bolana chaahie?

हमारे ऋषियों ने मंत्र और व्यायाम सहित एक ऐसी प्रणाली विकसित की है जिसमें सूर्योपासना का समन्वय हो जाता है । इसे ‘सूर्यनमस्कार’ कहते हैं । इसमें कुल 12 आसनों का समावेश है । हमारी शारीरिक शक्ति की उत्पत्ति, स्थिति एवं वृद्धि सूर्य पर आधारित है ।

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जो लोग सूर्यस्नान करते हैं, सूर्योपासना करते हैं वे सदैव स्वस्थ रहते हैं । सूर्यनमस्कार से शरीर की रक्तसंचरण प्रणाली, श्वास-प्रश्वास की कार्यप्रणाली और पाचन-प्रणाली आदि पर असरकारक प्रभाव पड़ता है । यह अनेक प्रकार के रोगों के कारणों को दूर करने में मदद करता है । सूर्यनमस्कार के नियमित अभ्यास से शारीरिक एवं मानसिक स्फूर्ति के साथ विचारशक्ति और स्मरणशक्ति तीव्र होती है ।

पश्चिमी वैज्ञानिक गार्डनर रॉनी ने कहा : सूर्य श्रेष्ठ औषध है । उससे सर्दी, खांसी, न्यूमोनिया और कोढ़ जैसे रोग भी दूर हो जाते हैं ।

डॉक्टर सोले ने कहा : सूर्य में जितनी रोगनाशक शक्ति है, उतनी संसार की अन्य किसी चीज़ में नहीं । प्रातःकाल शौच स्नानादि से निवृत होकर कंबल या टाट (कंतान) का आसन बिछाकर पूर्वाभिमुख खड़े हो जायें । सिद्ध स्थिति (इसके लिए नीचे दी गयी Step 1 [ पहली स्थिति ] देख सकते हैं ।) में हाथ जोड़ कर, आंखें बंद करके, हृदय में भक्तिभाव भरकर भगवान आदिनारायण का ध्यान करें :-

ध्येयः सदा सवितृमण्डलमध्यवर्ती नारायणः सरसिजासनसन्निविष्टः ।
केयूरवान् मकरकुण्डलवान् किरीटी हारी हिरण्मयवपर्धृतशंखचक्रः ।।

सवितृमण्डल के भीतर रहने वाले, पद्मासन में बैठे हुए, केयूर, मकर कुण्डल किरीटधारी तथा हार पहने हुए, शंख-चक्रधारी, स्वर्ण के सदृश देदीप्यमान शरीर वाले भगवान नारायण का सदा ध्यान करना चाहिए । (आदित्यहृदयः 938)

रविवार के दिन सूर्य उपासना के लिए सबसे उत्तम माना गया है। इस दिन सूर्य को जल चढ़ाने, मंत्र का जाप करने और सूर्य नमस्कार करने से बल, बुद्धि, विद्या, वैभव, तेज, ओज, पराक्रम व दिव्यता आती है। इनके कई मंत्रों में से एक है 'राष्ट्रवर्द्धन' सूक्त से लिया गया सूर्य का दुर्लभ मंत्र-

'उदसौ सूर्यो अगादुदिदं मामकं वच:। यथाहं शत्रुहोऽसान्यसपत्न: सपत्नहा।।

सपत्नक्षयणो वृषाभिराष्ट्रो विष सहि:। यथाहभेषां वीराणां विराजानि जनस्य च।।'

इसका अर्थ है, यह सूर्य ऊपर चला गया है, मेरा यह मंत्र भी ऊपर गया है, ताकि मैं शत्रु को मारने वाला बन जाऊं। प्रतिद्वन्द्वी को नष्ट करने वाला, प्रजाओं की इच्छा को पूरा करने वाला, राष्ट्र को सामर्थ्य से प्राप्त करने वाला तथा जीतने वाला बन जाऊं, ताकि मैं शत्रु पक्ष के वीरों का तथा अपने एवं पराए लोगों का शासक बन सकूं।

रविवार को सूर्य की पूजा में रक्त पुष्प डाल कर अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य द्वारा विसर्जित जल को दक्षिण नासिका, नेत्र, कान व भुजा को स्पर्शित करें। इसके साथ निम्नलिखित मंत्र बोलें-

ॐ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।। ॐ सूर्याय नम:, ॐ आदित्याय नम:, ॐ नमो भास्कराय नम:। अर्घ्य समर्पयामि।।

ये है सूर्य का ध्यान मंत्र-

ध्येय सदा सविष्तृ मंडल मध्यवर्ती। नारायण: सर सिंजासन सन्नि: विष्ठ:।। केयूरवान्मकर कुण्डलवान किरीटी। हारी हिरण्यमय वपुधृत शंख चक्र।। जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाधुतिम। तमोहरि सर्वपापध्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम।। सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं योन तन्द्रयते। चरश्चरैवेति चरेवेति…!

तेरह बार नमस्कार

सूर्य नमस्कार तेरह बार करना चाहिये और प्रत्येक बार सूर्य मंत्रो के उच्चारण से विशेष लाभ होता है, ये सूर्य मंत्र निम्न है-

1. ॐ मित्राय नमः, 2. ॐ रवये नमः, 3. ॐ सूर्याय नमः, 4.ॐ भानवे नमः, 5.ॐ खगाय नमः, 6. ॐ पूष्णे नमः,7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः, 8. ॐ मरीचये नमः, 9. ॐ आदित्याय नमः, 10.ॐ सवित्रे नमः, 11. ॐ अर्काय नमः, 12. ॐ भास्कराय नमः, 13. ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः। 

सूर्य नमस्कार एक व्यायाम है, एक योगासन है, और यह हिंदू धर्म में भगवान सूर्य की पूजा करने का एक तरीका भी है। इसे बच्चे, जवान और बूढ़े, पुरुष और महिलाएं कोई भी कर सकता है।

‘ऋग्वेद’ कहता है कि, “सूर्य पूरे विश्व की आत्मा है, सूर्य ही एकमात्र ईश्वर है, जो अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करता है। इसलिए, हमें स्वास्थ्य और लंबे जीवन के लिए सूर्य की पूजा करनी चाहिए।”

सूर्य नमस्कार ( Surya Namaskar ) के विषय में शास्त्रों में एक श्लोक लिखा गया है : –

आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने।
आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते ॥

जो मनुष्य सूर्य नमस्कार प्रतिदिन करते है उनकी आयु , प्रज्ञा, बल, वीर्य और तेज बढ़ता है | इसके साथ ही सूर्य नमस्कार प्रतिदिन करने से त्वचा से जुड़े हुए रोग दूर होते है |

कब्ज और उदर रोगों में भी सूर्य नमस्कार करने से चमत्कारिक रूप से लाभ मिलता है | पाचन तंत्र के सभी विकार दूर होने लगते है और पाचन तंत्र मजबूत होता है |

सूर्य समस्त ब्रह्माण्ड का मित्र है, क्योंकि इससे पृथ्वी समत सभी ग्रहों के अस्तित्त्व के लिए आवश्यक असीम प्रकाश, ताप तथा ऊर्जा प्राप्त होती है। नमस्कारासन ( प्रणामासन) स्थिति में समस्त जीवन के स्त्रोत को नमन किया जाता है।

पौराणिक ग्रन्थों में मित्र कर्मों के प्रेरक, धरा-आकाश के पोषक तथा निष्पक्ष व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है।

प्रातःकालीन सूर्य भी दिवस के कार्यकलापों को प्रारम्भ करने का आह्वान करता है तथा सभी जीव-जन्तुओं को अपना प्रकाश प्रदान करता है

सूर्य के बारह मंत्र हैं। सूर्य नमस्कार के प्रत्येक सेट को शुरू करने से पहले आपको प्रत्येक मंत्र को दोहराना होगा। सूर्य नमस्कार के एक सेट में 12 चरण होते हैं।

आसन के प्रत्येक आसन में 5 सेकंड का समय लगेगा। जब तक आप एक चक्र पूरा करते हैं तब तक इसमें एक मिनट का समय लग जाएगा। इस सेट को सभी बारह मंत्रों के लिए दोहराया जाना है।

जब तक आप एक चक्र पूरा करते हैं तब तक यह लगभग 12 से 15 मिनट का होगा। समय इस बात पर निर्भर करता है कि आप प्रत्येक आसन पर कितना समय व्यतीत करते हैं। बारह मंत्र नीचे सूचीबद्ध हैं। प्रत्येक मंत्र की शुरुआत ओम् से होनी चाहिए।

सूर्य नमस्कार की प्रत्येक मुद्रा में मंत्र दोहराए जा सकते हैं। यदि इन मंत्रों को दोहराते हुए सूर्य नमस्कार किया जाता है तो व्यक्ति बहुत लाभ प्राप्त कर सकता है :-


ॐ मित्राय नमः ( मित्र को प्रणाम ) Om Maitreya namaha (The friend of all)

ॐ मित्राय नमः मित्राय का मतलब मित्रता। सूर्य देव हम सब के सच्चे मित्र है और सहायक है। सच्चे मित्र का सम्बोधन मित्र कहके किया गया है | उनसे इस मंत्र का प्रयोग हम सूर्य देव से मित्रता का भाव प्रकट कर रहे हैं।

उसी तरह हम इस बात का विश्वाश भी जगता है हमें सबके साथ मित्रता की भावना रखनी चाहिए।


ॐ रवये नमः ( प्रकाशवान को प्रणाम ) Om Ravaye namaha (The Shining One, Praised by all)

“रवये“ का तात्पर्य है जो स्वयं प्रकाशवान है तथा सम्पूर्ण जीवधारियों को दिव्य आशीष प्रदान करता है।

तृतीय स्थिति हस्तउत्तानासन में इन्हीें दिव्य आशीषों को ग्रहण करने के उद्देश्य से शरीर को प्रकाश के स्त्रोत की ओर ताना जाता है


ॐ सूर्याय नमः ( क्रियाओं के प्रेरक को प्रणाम ) Om Suryaya namaha (The eternal guide of all)

यहाँ सूर्य को ईश्वर के रूप में अत्यन्त सक्रिय माना गया है। प्राचीन वैदिक ग्रंथों में सात घोड़ों के जुते रथ पर सवार होकर सूर्य के आकाश गमन की कल्पना की गई है। ये सात घोड़े परम चेतना से निकलने वाल सप्त किरणों के प्रतीक है।

जिनका प्रकटीकरण चेतना के सात स्तरों में होता है – भू (भौतिक), – भुवः (मध्यवर्ती, सूक्ष्म ( नक्षत्रीय), स्वः ( सूक्ष्म, आकाशीय), मः ( देव आवास), जनः (उन दिव्य आत्माओं का आवास जो अहं से मुक्त है), तपः (आत्मज्ञान, प्राप्त सिद्धों का आवास) और सप्तम् (परम सत्य)।

सूर्य स्वयं सर्वोच्च चेतना का प्रतीक है तथा चेतना के सभी सात स्वरों को नियंत्रित करता है। देवताओं में सूर्य का स्थान महत्वपूर्ण है।

वेदों में वर्णित सूर्य देवता का आवास आकाश में है उसका प्रतिनिधित्त्व करने वाली अग्नि का आवास भूमि पर है।


ॐ भानवे नमः ( प्रदीप्त होने वाले को प्रणाम ) Om Bhanave namaha (The bestower of brightness and beauty)


सूर्य भौतिक स्तर पर गुरू का प्रतीक है। इसका सूक्ष्म तात्पर्य है कि गुरू हमारी भ्रांतियों के अंधकार को दूर करता है – उसी प्रकार जैसे प्रातः वेला में रात्रि का अंधकार दूर हो जाता है।

अश्व संचालनासन की स्थिति में हम उस प्रकाश की ओर मुँह करके अपने अज्ञान रूपी अंधकार की समाप्ति हेतु प्रार्थना करते हैं।


ॐ खगाय नमः ( आकाशगामी को प्रणाम ) Om Khagaya namaha (Who moves through the Sky, Stimulator of the senses)


समय का ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्राचीन काल से सूर्य यंत्रों (डायलों ) के प्रयोग से लेकर वर्तमान कालीन जटिल यंत्रों के प्रयोग तक के लंबे काल में समय का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आकाश में सूर्य की गति को ही आधार माना गया है।

हम इस शक्ति के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं जो समय का ज्ञान प्रदान करती है तथा उससे जीवन को उन्नत बनाने की प्रार्थना करते हैं।


ॐ पूष्णे नमः ( पोषक को प्रणाम ) Om Pushne namaha (One who nourishes and fulfills)


सूर्य सभी शक्तियों का स्त्रोत है। एक पिता की भाँति वह हमें शक्ति, प्रकाश तथा जीवन देकर हमारा पोषण करता है।

साष्टांग नमस्कार की स्थिति में हमे शरीर के सभी आठ केन्द्रों को भूमि से स्पर्श करते हुए उस पालनहार को अष्टांग प्रणाम करते हैं।

तत्त्वतः हम उसे अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को समर्पित करते है तथा आशा करते हैं कि वह हमें शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करें।


ॐ हिरण्यगर्भाय नमः ( स्वर्णिम् विश्वात्मा को प्रणाम ) Om Hiranyagarbhaya namaha (The creator)


हिरण्यगर्भ, स्वर्ण के अण्डे के समान सूर्य की तरह देदीप्यमान, ऐसी संरचना है जिससे सृष्टिकर्ता ब्रह्म की उत्पत्ति हुई है।

हिरण्यगर्भ प्रत्येक कार्य का परम कारण है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, प्रकटीकरण के पूर्व अन्तर्निहित अवस्था में हिरण्यगर्भ के अन्दर निहित रहता है। इसी प्रकार समस्त जीवन सूर्य (जो महत् विश्व सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करता है ) में अन्तर्निहित है।

भुजंगासन में हम सूर्य के प्रति सम्मान प्रकट करते है तथा यह प्रार्थना करते है कि हममें रचनात्मकता का उदय हो।


ॐ मरीचये नमः ( सूर्य रश्मियों को प्रणाम ) Om Marichaye namaha (Light Giver and Destroyer of disease)


मरीच ब्रह्मपुत्रों में से एक है। परन्तु इसका अर्थ मृग मरीचिका भी होता है। हम जीवन भर सत्य की खोज में उसी प्रकार भटकते रहते हैं |

जिस प्रकार एक प्यासा व्यक्ति मरूस्थल में ( सूर्य रश्मियों से निर्मित ) मरीचिकाओं के जाल में फँसकर जल के लिए मूर्ख की भाँति इधर-उधर दौड़ता रहता है।

पर्वतासन की स्थिति में हम सच्चे ज्ञान तथा विवके को प्राप्त करने के लिए नतमस्तक होकर प्रार्थना करते हैं जिससे हम सत् अथवा असत् के अन्तर को समझ सकें।


ॐ आदित्याय नमः ( अदिति-सुत को प्रणाम) Om Adityaya namaha (Son of Divine Mother-Aditi, The inspirer)

विश्व जननी ( महाशक्ति ) के अनन्त नामों में एक नाम अदिति भी है। वहीं समस्त देवों की जननी, अनन्त तथा सीमारहित है।

वह आदि रचनात्मक शक्ति है जिससे सभी शक्तियाँ निःसृत हुई हैं। अश्व संचलानासन में हम उस अनन्त विश्व-जननी को प्रणाम करते हैं।


ॐ सवित्रे नमः ( सूर्य की उद्दीपन शक्ति को प्रणाम ) Om Savitre namaha (One who gives life, The purifier)


सवित्र उद्दीपक अथवा जागृत करने वाला देव है। इसका संबंध सूर्य देव से स्थापित किया जाता है। सवित्री उगते सूर्य का प्रतिनिधि है जो मनुष्य को जागृत करता है और क्रियाशील बनाता है।

“सूर्य“ पूर्ण रूप से उदित सूरज का प्रतिनिधित्त्व करता है। जिसके प्रकाश में सारे कार्यकलाप होते है। सूर्य नमस्कार की हस्तपादासन स्थिति में सूर्य की जीवनदायनी शक्ति की प्राप्ति हेतु सवित्र को प्रणाम किया जाता है।


ॐ अर्काय नमः ( प्रशंसनीय को प्रणाम ) Om Arkaya namaha (The radiant one)


अर्क का तात्पर्य है – उर्जा । सूर्य विश्व की शक्तियों का प्रमुख स्त्रोत है। हस्तउत्तानासन में हम जीवन तथा उर्जा के इस स्त्रोत के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते है।


ॐ भास्कराय नमः ( आत्मज्ञान-प्रेरक को प्रणाम ) Om Bhaskaraya namaha (One who gives wisdom, The illuminator)

सूर्य नमस्कार की अंतिम स्थिति प्रणामासन (नमस्कारासन) में अनुभवातीत तथा आघ्यात्मिक सत्यों के महान प्रकाशक के रूप में सूर्य को अपनी श्रद्वा समर्पित की जाती है।

सूर्य हमारे चरम लक्ष्य-जीवनमुक्ति के मार्ग को प्रकाशित करता है। प्रणामासन में हम यह प्रार्थना करते हैं कि वह हमें यह मार्ग दिखायें। इस प्रकार सूर्य नमस्कार पद्धति में बारह मंत्रों का अर्थ सहित भावों का समावेश किया जा रहा है।


सूर्य नमस्कार करने का तरीका Surya namaskar procedure

सूर्य नमस्कार निम्नलिखित बारह आसनों को करने के बाद पूरा होता है:

  1. दोनों हाथ और दोनों पैरों को मिलाकर खड़े हो जाएं। एड़ी अलग होनी चाहिए जबकि पैर की उंगलियां अलग होनी चाहिए। सिर, गर्दन और शरीर एक सीध में होना चाहिए। सामान्य रूप से सांस लें।
  2. सांस भरते हुए हाथों को ऊपर उठाएं और पीछे की ओर मोड़ें। कुछ देर सांस रोककर रखें।
  3. सांस छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें, घुटनों को सीधा रखते हुए हाथों को पैरों के दोनों ओर जमीन पर टिकाएं। माथे को घुटनों के संपर्क में लाने की कोशिश करें। कुछ देर सांस रोककर रखें।
  4. हथेलियों को जमीन पर टिका दें। सांस लेते हुए बाएं पैर को पीछे ले जाएं, लेकिन ऐसा करते समय हाथ कोहनियों पर नहीं झुकना चाहिए। कमर सीधी होनी चाहिए। सिर उठाकर आकाश को देखने का प्रयास करें। कुछ देर सांस रोककर रखें।
  5. सांस छोड़ते हुए दूसरे पैर को पीछे ले जाएं। दोनों पैरों को टखनों और पंजों पर जोड़ लें। ठुड्डी को गले पर ले आएं। नितम्ब, कमर और सिर को एक पंक्ति में लेकर आएं और सांस को बाहर छोड़ते हुए श्वास को रोकने वाला कुम्भक करें।
  6. सांस भरते हुए पैरों, घुटनों, छाती, ठुड्डी, नाक और माथे से जमीन को स्पर्श करें। फिर सांस छोड़ते हुए पेट को जमीन से ऊपर उठाएं।
  7. बाजुओं को सीधा करते हुए सांस लेते हुए सिर को ऊपर उठाकर सर्प आसन की मुद्रा में आ जाएं।
  8. अब पांचवें चरण में दी गई मुद्रा को मान लें।
  9. सांस भरते हुए और दोनों घुटनों को बाजुओं के बीच में लाते हुए वापस चार की स्थिति में आ जाएं।
  10. सांस छोड़ते हुए तीन की स्थिति में आ जाएं।
  11. सांस भरते हुए दूसरी स्थिति में जाएं।
  12. सांस छोड़ते हुए पहले की स्थिति में आ जाएं।

यह सूर्य नमस्कार का एक दौर है।


सूर्य नमस्कार का महत्व Importance of surya namaskar

जब सही तरीके से और सही समय पर किया जाता है, तो सूर्य नमस्कार आपके जीवन को पूरी तरह से बदल सकता है।

सूर्य नमस्कार तेरह बार करना चाहिये और प्रत्येक बार सूर्य मंत्रो के उच्चारण से विशेष लाभ होता है, ये सूर्य मंत्र ऊपर लिखे हुए है

सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ प्रक्रिया है। यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है।

सूरज का हमारे मानव अस्तित्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसके बिना, संभवतः पृथ्वी पर कोई जीवन नहीं होता। सूर्य नमस्कार या सूरज नमस्कार, सूर्य के प्रति कृतज्ञता का भाव है, जो हमारे ग्रह पर मौजूद सभी जीवन शक्तियों का कारण है। सूर्य नमस्कार, 12 निश्चित चक्रीय क्रियायों शामिल है, जो मन, सांस और शरीर को एक साथ लाने में मदद करता है। यह सिर्फ एक कदम है जो आपको ध्यान में गहराई तक जाने में मदद कर सकता है।

सूर्य नमस्कार आसन, वार्म-अप और आसन के बीच एक अच्छी कड़ी के रूप में कार्य करते हैं। इन्हें कभी भी किया जा सकता है, खासकर खाली पेट। इस प्रकार के योग का अभ्यास करने का सबसे अच्छा समय सुबह का समय है। इस समय, सूर्य नमस्कार आपके शरीर की प्रणाली को पुनर्जीवित करने में मदद करेगा और आपके दिमाग को भी ताज़ा करेगा, जिससे आप दिन के सभी कार्यों को करने के लिए तैयार होंगे।

यदि इसे दोपहर में किया जाता है, तो यह शरीर को तुरंत सक्रिय करने में मदद करेगा। इसके अलावा, अगर शाम को किया जाता है, तो यह आपको आराम करने में मदद कर सकता है। सूर्य नमस्कार एक बहुत ही लाभकारी योग मुद्रा है। जब इसे तेज गति से किया जाता है, तो यह वजन कम करने का एक अच्छा तरीका है और एक बेहतरीन कार्डियोवस्कुलर कसरत भी है।

नियमित रूप से सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने से आपके सौर चक्र का आकार बढ़ता है, जिससे आपकी रचनात्मकता, सहज क्षमता, निर्णय लेने की क्षमता, नेतृत्व कौशल और आत्मविश्वास बढ़ता है।

सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से जातक का शरीर निरोग और स्वस्थ बंनने के साथ-साथ तेजस्वी भी बनता है | अन्य योगासन की भांति सूर्य नमस्कार भी सूर्योदय या सूर्योदय से पहले करना लाभप्रद माना गया है |

सूर्य नमस्कार योग आसन, स्फूर्तिदायक, आराम देने वाले और ध्यानपूर्ण भी हैं। सूर्य नमस्कार करने से बेहतर रक्त परिसंचरण के साथ शरीर को अधिक लचीला बनाने में भी मदद करते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं बेहतर रक्त संचार हमारे बालों को सफेद होने से रोकने में मदद करता है। यह बालों के झड़ने, रूसी को भी रोकता है और बालों के समग्र विकास में भी सुधार करता है। यह हमारे महत्वपूर्ण आंतरिक अंगों को बेहतर रक्त परिसंचरण के साथ अधिक कार्यात्मक बनाकर इसके लाभों का विस्तार करता है। सूर्य नमस्कार, हमारे मस्तिष्क और पाचन तंत्र को भी बहुत लाभ प्रदान करता है।

सूर्य नमस्कार बच्चों के लिए एकदम सही है, क्योंकि यह मन को शांत करने में मदद करता है और किसी की मनुष्य की एकाग्रता में सुधार करने में भी मदद करता है। आज दुनिया में बच्चों का सामना बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा से होता है। यही कारण है कि उन्हें अपनी दिनचर्या में सूर्य नमस्कार को अपनाने की जरूरत है। सूर्य नमस्कार योग मुद्रा, धीरज शक्ति को बढ़ाने में भी मदद करती है और चिंता और बेचैनी की भावना को भी कम करती है, खासकर बच्चों की परीक्षाओं की अवधि के दौरान यह योग करना जरुरी हो जाता है। सूर्य नमस्कार जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे अपने जीवन की संगति बना लीजिये।

इस विशेष प्रकार के योग का नियमित अभ्यास हमारे शरीर प्रणाली को शक्ति और जीवन शक्ति प्रदान करता है। संभावित एथलीटों के लिए, इसे सबसे अच्छा कसरत भी माना जाता है, जो हमारी मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करता है, हमारी रीढ़ और अंगों में लचीलेपन में सुधार करता है। इस आसन का अभ्यास कोई भी कर सकता है। यह बच्चों और महिलाओं दोनों के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। महिलाओं के लिए, यह उन्हें कुछ अतिरिक्त कैलोरी कम करने में मदद करता है और उन्हें उचित शरीर का आकार भी देता है।

सूर्य नमस्कार का पहला मंत्र क्या होता है?

हे तेजोमय देव ! आपको मेरा नमस्कार है । यह प्रार्थना करने के बाद सूर्य के तेरह मंत्रों में से प्रथम मंत्र 'ॐ मित्राय नमः । ' के स्पष्ट उच्चारण के साथ हाथ जोड़ कर, सिर झुका कर सूर्य को नमस्कार करें ।

सूर्य नमस्कार का मंत्र कौन सा है?

ॐ सूर्याय नम:, ॐ आदित्याय नम:, ॐ नमो भास्कराय नम:।

सूर्यनमस्कार के कितने मंत्र होते है?

सूर्य-नमस्कार: इन 13 सूर्य मंत्रों से होते है विशेष लाभ

सूर्य नमस्कार का 13 मंत्र क्या है?

ॐ सवित्रे नमः। ॐ अर्काय नमः। ॐ भास्कराय नमः। ॐ श्री सवितृसूर्यनारायणाय नमः।