अंतिम समय कौन सा अध्याय सुनना चाहिए? - antim samay kaun sa adhyaay sunana chaahie?

नई दिल्ली। धरती पर जन्म लिए हुए हर एक जीव को एक न एक दिन यहां से जाना ही होगा। इस दुनिया में कोई अमर नहीं है। जन्म और मरण का यह चक्र चलता ही रहता है। जीव अपने कर्म के आधार पर जन्म लेता है। जन्म लेने के बाद वह अपने खाते में लिखे हुए सुख-दुख का भुगतान करता है।

मृत्‍यु व्‍यक्ति के जीवन का अंतिम सत्‍य है, जिसे आज तक कोई नहीं टाल सका। आज नहीं तो कल मौत से सामना सबका होना है और फिर शरीर जिन पांच तत्‍वों से मिलकर बना है उसी में मिल जाएगा। मृत्‍यु के बाद का सफर अच्‍छा होगा या बुरा इसका निर्धारण काफी हद तक व्‍यक्ति के जीवनकाल में ही हो जाता है। रामचरितमानस और गीता जैसे धार्मिक ग्रंथों में मृत्‍यु से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताई गई हैं जिनका अनुसरण यदि मनुष्‍य अपने आखिरी वक्‍त में करे तो उसके लिए शरीर का त्‍याग करना अधिक कष्‍टदायी नहीं रहता और मृत्‍यु के बाद का सफर भी आसान हो जाता है...

जहां गीता पढ़ाई जाती है, वहां भी अंतकाल आदि विषयों का गहराई से चिंतन नहीं होता। देखा जाए तो गीता में अंतकाल का अर्थ केवल मृत्यु नहीं है, यदि मृत्यु का काल ही अंतकाल होता तो वहां मृत्यु ही लिखा होता, अंतकाल क्यों लिखा है। वैसे अंतकाल का संधि विच्छेद से अर्थ होता है काल का अंत। हर क्षण बीतते हुए काल का जो अंत हो रहा है वही अंतकाल है। जैसे जब दिन के अंतकाल में निद्रा को प्राप्त होते हैं तो वह आज के दिन का अंतकाल है, ऐसे ही महीने का अंतकाल, वर्ष का अंतकाल और फिर जीवन का अंतकाल। जैसे छोटा बच्चा अभी एक खेल, खेल रहा था, अब वह उससे मुंह मोड़कर दूसरा खेल खेलने लगता है, तो वह उस समय, उस खेल का, उसके लिए, अंतकाल हो गया है। अतः अंतकाल का केवल अर्थ मृत्यु नहीं। लेकिन गीता के अंतकाल का अर्थ मृत्यु ही मानकर उन श्लोकों की व्याख्या की गई।

एक नहीं, अनेकों गीता के अनुवादों में एक-सा अर्थ दे दिया गया, उससे ये शास्त्र मृत्यु के समय के शास्त्र से प्रचलित हो गया और हमारी पीढ़ियों में भी इसकी छाप आने लगी। मैं आज युवाओं से कहता हूं, आओ गीता पढ़ें। तो वे कहते हैं- हम अभी बुड्ढे थोड़ी हो गए हैं, यह तो परलोक सुधारने का शास्त्र है, मरने के समय पढ़ने का शास्त्र है। यदि पहले ही गीता में अंतकाल का अर्थ वर्तमान में बीतते हुए काल से दिया होता, तो यह शास्त्र वर्तमान में रहने का शास्त्र कहलाता। जबकि गीता वास्तविकता में, अभी में रहने का ही शास्त्र है।

जैसे गीता के आठवें अध्याय के छठे श्लोक का अर्थ किया जाता है कि ‘यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव का स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, वह उस उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित है।’ लेकिन इस श्लोक को ऐसे समझें कि जैसे दिन के अंत में निद्रा को प्राप्त होते समय व्यक्ति के मन में जो ख्याल प्रबल होता है, सुबह उठने पर वही ख्याल मन में चलना शुरू हो जाता है। अतः दिनभर यदि प्रभु भाव में रहेंगे और रात को भी उसी भाव में सोयेंगे, तो सुबह भी उसी के ध्यान में उठेंगे।

गीता में कहीं प्रयाणकाल, कहीं देह त्याग, कहीं कलेवर का त्याग, कहीं मृत्यु, कहीं अंतकाल और कहीं निधन लिखा है। इनका अर्थ यदि केवल मृत्यु होता तो एक ही बात को बदल-बदलकर न लिखते। अलग-अलग शब्दों का प्रयोग, एक ही बात को लिखने के लिए नहीं होता। भले वे उसी शब्द के पर्यायवाची भी क्यों ना हो, फिर उनके अर्थ व भाव बदलते रहते हैं। जैसे गीता में प्रयाणकाल का अर्थ, मृत्यु के काल से ही दिया गया है लेकिन प्रयाणकाल का शाब्दिक अर्थ होता है प्रस्थान करना, आगे बढ़ना, यात्रा करना आदि । ऐसे ही देह त्याग या कलेवर त्याग का अर्थ भी मृत्यु से दिया गया है, जबकि यदि इन अर्थों को अध्यात्म के दृष्टिकोण से देखा जाए तो पाएंगे कि जब पुरुष देहाध्यास या देह के भान का त्याग सुजाग-पूर्वक करके आत्म भाव में आता है, वही काल देहाध्यास का अंतकाल या देहाध्यास से प्रयाण का काल या देहाध्यास के त्याग का काल कहा जाता है। यही काल अपने शुद्ध स्वरूप से एक हो जाने का काल है या आत्मभाव में आने का काल है। योगी जब प्रभु में लीन होता है तो वही काल उसका संसार के प्रति आसक्ति का अंतकाल हो जाता है ।

अध्यात्म मरने के समय की नहीं बल्कि जीवित रहते हुए करने वाली साधना है। इसको सिर्फ मृत्यु से जोड़ना उचित नहीं। गीता तो जीवन मुक्ति सिखाती है। यदि अभी मुक्त नहीं हैं तो कभी भी मुक्त नहीं हो सकते। हर पल, अभी में रहकर, अंत होते हुए काल में भी, आत्मभाव में रहना ही मुक्ति है, ना कि ऐसा सोचना कि मृत्यु रूपी अंतकाल आएगा तब प्रभु का नाम लेकर मुक्त हो जाएंगे।

इसे सुनेंरोकेंश्रीमद्भागवत गीता का अंतिम श्लोक किसने कहा है? श्रीमद भगवद्गीता में कूल श्लोक 700 है, कूल अध्याय 18 है.

गीताजी का पाठ कब करना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंजैसे पूजा-पाठ और जाप के लिए सुबह का समय सर्वोत्तम रहता है उसी प्रकार से गीता को भी सुबह के समय पढ़ना चाहिए। गीता बहुत ही पवित्र ग्रंथ है। इसे कभी भी गंदे हाथों से न छुएं। सुबह उठकर स्नानदि करने के पश्चात गीता का पाठ करें।

गीता का कौन सा अध्याय रोज पढ़ना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंशनि संबंधी पीड़ा होने पर प्रथम अध्याय का पठन करना चाहिए। भगवद् गीता को हिंदू धर्म ग्रंथों में पवित्र माना गया है। गीता पाठ के लाभ व नियम भी हैं। गीता पाठ करने से ज्ञान की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही अशांत मन को शांति मिलती है। लेकिन भगवत गीता का पाठ करने का तरीका कुछ अलग होता है।

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गीता पढ़ने से पहले क्या करना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंअध्याय शुरू करने से पहले भगवान गणेश और श्रीकृष्ण के किसी भी मंत्र को पढ़ना चाहिए। इसके लिए मंत्र को अर्थ सहित याद कर लेना चाहिए। गीता में संस्कृत में अर्थ सहित श्लोक लिखें हैं। पहले प्रत्येक संस्कृत श्लोक को स्पष्ट उच्चारण के साथ पढ़ें और उसके बाद अनुवाद को भी समझते हुए पढ़ें।

जीवन के अंतिम समय में गीता का कौनसा श्लोक जीवन मरण के चक्र से मुक्ति दिला सकता है?

इसे सुनेंरोकेंये भारतीय ज्ञान पद्धति को समझने हेतु शीर्षस्थ ग्रंथ है। जीवन के अंतिम समय में गीता का कौनसा श्लोक जीवन मरण के चक्र से मुक्ति दिला सकता है? तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृत निश्चय.

गीता पाठ करने से क्या फायदा?

इसे सुनेंरोकें1 – गीता के नियमित पाठ से हमारा मन शान्त रहता है। 2 – हमारे अंदर के सारे नकारात्मक प्रभाव नष्ट होने लगते हैं। 4 – सभी प्रकार की बुराइयों से दूरी खुद-ब-खुद बनने लगती है। 5 – हमारे अंदर का सारा भय दूर हो जाता है और हम निर्भय बन जाते हैं।

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गीता का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय कौन सा है?

इसे सुनेंरोकें१८वें अध्याय इसमें गीता के समस्त उपदेशों का सार एवं उपसंहार है। यहाँ पुन: बलपूर्वक मानव जीवन के लिए तीन गुणों का महत्व कहा गया है। पृथ्वी के मानवों में और स्वर्ग के देवताओं में कोई भी ऐसा नहीं जो प्रकृति के चलाए हुए इन तीन गुणों से बचा हो।

श्राद्ध पक्ष में गीता के कौन से अध्याय का पाठ करना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंश्राद्ध पक्ष में गीता के सातवें अध्याय का पाठ किया जाता है।

गीता का पाठ करने से क्या होता है?

गीता के अनुसार सन्यास योग क्या है?

इसे सुनेंरोकेंइसके लिए सीख दी गई है कि मन को ऐसे प्रशिक्षित करना है कि अपने वश से परे परिस्थितियों से उत्पन्न में असफलता में भी वह समभाव रख सके। यह ‘कर्म-संन्यास’ की भाव धारा है। भाव यह हो कि हमने अपनी ओर से प्रयत्न या चेष्टा में कोई कसर नहीं छोड़ी। परिणाम जो भी हुआ, हमें स्वीकार है।

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भागवत कैसे पढ़ी जाती है?

  1. गीता पढ़ते समय पूर्ण ध्यान लगाएं।
  2. गीता का पाठ करने के लिए एक ऊनी आसन लें।
  3. यदि आप गीता का पाठ करते हैं तो स्वयं ही उसके रख-रखाव और साफ-सफाई का ध्यान रखें।
  4. प्रतिदिन एक निश्चित समय और निश्चित स्थान पर ही गीता का पाठ करें।
  5. गीता के प्रत्येक श्लोक को पढ़ने के पश्चात सही प्रकार से उसके सार को भी समझें।

गीता का कौनसा अध्याय पढ़ना चाहिए?

मनुस्मृति में दलितों के बारे में क्या लिखा?

इसे सुनेंरोकेंमनुस्मृति एक ग्रंथ के रूप में दलितों और महिलाओं के लिए एक अमानवीय दर्शन का वाहक है. मनुस्मृति में शूद्रों को ऐसा प्राणी माना गया है जिन्हें किसी भी प्रकार के मानव अधिकारों की ज़रूरत नहीं है. हिन्दूवादी संगठन मनुस्मृति को भारतीय संविधान के स्थान पर लागू करना चाहते हैं.

मरते समय गीता का कौनसा अध्याय सुनाया जाता है?

जैसे गीता के आठवें अध्याय के छठे श्लोक का अर्थ किया जाता है कि 'यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव का स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, वह उस उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित है।

बीमार व्यक्ति को गीता का कौन सा अध्याय सुनना चाहिए?

अगर रोगी सुनने में सक्षम हो तो उसे श्रीमद्भागवत गीता का 8वां और 15वां अध्‍याय और रामचरितमानस में जटायु का मरण प्रसंग सुनाना चाहिए। या फिर धीमे स्‍वर में भगवान की ध्‍वनि सुननी चाहिए। ऐसा करने से रोगी को मौत का सामना करने का साहस मिलता है और मृत्‍यु के प्रति भय समाप्‍त हो जाता है।

गीता का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय कौन सा है?

१८वें अध्याय इसमें गीता के समस्त उपदेशों का सार एवं उपसंहार है। यहाँ पुन: बलपूर्वक मानव जीवन के लिए तीन गुणों का महत्व कहा गया है। पृथ्वी के मानवों में और स्वर्ग के देवताओं में कोई भी ऐसा नहीं जो प्रकृति के चलाए हुए इन तीन गुणों से बचा हो।

गीता के अनुसार मृत्यु के बाद क्या होता है?

गीता 8/16।। अर्थ : हे अर्जुन! ब्रह्म लोक सहित सभी लोक पुनरावृति हैं, परंतु हे कौन्तेय, मुझे प्राप्त होने वाले का पुनर्जन्म नहीं होता। व्याख्या : मृत्यु के बाद जीवात्मा कुछ काल के लिए अपने शुभ-अशुभ कर्मों के आधार पर किसी न किसी लोक में वास करती है, यदि पाप ज्यादा हैं तो नरक लोक और यदि पुण्य ज्यादा हैं तो स्वर्ग लोक।