केरल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति कौन करता है? - keral ke mukhy nirvaachan adhikaaree kee niyukti kaun karata hai?

जोलंदा निवासी केरल राज्य कैडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी टीकाराम मीना के केरल राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी बनने पर क्षेत्र के लोगों ने खुशी जाहिर कर मिठाई बांटकर जश्न मनाया।

गांवड़ी मीना ग्राम पंचायत सरपंच सतीशचंद्र मीना ने बताया कि मीना 1988 बैच के केरल कैडर के अधिकारी हैं तथा वह अतिरिक्त जिला कलेक्टर से लेकर मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पद तक पहुंचे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाने वाले मीना राष्ट्रीय सफाई आयोग के सचिव, केरल राज्य सरकार में मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव, तथा केरल कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे। मीना की नियुक्ति पर हरसाय पटेल, हरजीराम अध्यापक, विजयराम वैज्ञानिक, लेख राम झारेड़ा, तरुण सैनी, उदयराज मीना सहित मीना ने खुशी जाहिर कर मिठाइयां वितरित की।

चुनाव आयोग में नियुक्तियों को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट आमने-सामने दिख रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर सरकार अपनी हां में हां मिलाने वाले व्यक्ति को मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त नियुक्त करती है.

चुनाव आयोग के कामकाज में पारदर्शिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में साल 2018 में कई याचिकाएं दायर की गई थीं. इन याचिकाओं में माँग की गई थी कि चुनाव आयुक्त (ईसी) और मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली अपनाई जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इन सब याचिकाओं को क्लब करते हुए इसे पाँच जजों की संविधान पीठ को रेफ़र कर दिया था. इसी याचिका पर इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है.

मंगलवार और बुधवार दोनों दिन इस पर सुनवाई हुई. गुरुवार को भी इस पर सुनवाई जारी रहेगी.

इसी याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को लेकर सरकार के सामने कई गंभीर सवाल उठाए हैं.

सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार शामिल हैं, जबकि जस्टिस केएम जोसेफ़ इस बेंच की अध्यक्षता कर रहे हैं.

बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने नए चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार से उनकी नियुक्ति की फ़ाइल मांगी है.

अदालत ने कहा, "सुनवाई शुरू होने के तीन दिन के भीतर नियुक्ति हो गई. हम ये जानना चाहते हैं कि नियुक्ति के संदर्भ में क्या प्रक्रिया अपनाई गई है. अगर ये नियमानुसार किया गया है तो इसमें परेशान होने वाली कोई बात नहीं है."

अदालत ने कहा कि जब सुनवाई चल रही थी तब नियुक्ति न की जाती तो ज़्यादा बेहतर होता.

भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी अरुण गोयल ने सोमवार को चुनाव आयुक्त का पदभार संभाला है. इससे पहले उन्हें शनिवार को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था.

उन्होंने शुक्रवार को वीआरएस यानी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी. गोयल इसी साल 31 दिसंबर को 60 साल की आयु में रिटायर होने वाले थे.

मंगलवार को सुनवाई के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट का तेवर बहुत सख़्त था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देश को इस समय टीएन शेषन जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त की ज़रूरत है.

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "ज़मीनी स्थिति ख़तरनाक है. अब तक कई सीईसी रहे हैं, मगर टीएन शेषन जैसा कोई कभी-कभार ही होता है. हम नहीं चाहते कि कोई उन्हें ध्वस्त करे. तीन लोगों (सीईसी और दो चुनाव आयुक्तों) के नाज़ुक कंधों पर बड़ी शक्ति निहित है. हमें सीईसी के पद के लिए सबसे अच्छा व्यक्ति खोजना होगा."

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टीएन शेषन कैबिनेट सचिव रह चुके थे और उन्हें दिसंबर 1990 में मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया था.

उस समय वो योजना आयोग के सदस्य थे जो कि अब नीति आयोग कहा जाता है.

प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया था.

वो 1990 से 1996 तक पूरे छह साल के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त थे.

उन्हें चुनाव आयोग में कई ऐतिहासिक सुधारों के लिए जाना जाता है. दिसंबर 2019 में उनका निधन हो गया था.

उनकी आज़ाद प्रवृत्ति का सबसे पहला नमूना तब मिला जब उन्होंने राजीव गाँधी की हत्या के बाद तत्कालीन सरकार से बिना पूछे लोकसभा चुनाव स्थगित करा दिए.

एक बार उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, "मुझे याद है कि जब मैं कैबिनेट सचिव था तो प्रधानमंत्री ने मुझे बुला कर कहा कि मैं चुनाव आयोग को बता दूँ कि मैं फ़लाँ-फ़लाँ दिन चुनाव करवाना चाहता हूँ. मैंने उनसे कहा, हम ऐसा नहीं कर सकते. हम चुनाव आयोग को सिर्फ़ ये बता सकते हैं कि सरकार चुनाव के लिए तैयार है."

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भारतीय चुनाव व्यवस्ता में आमूल परिवर्तन करने का श्रेय अगर किसी एक शख़्स को दिया जा सकता है

इसी इंटरव्यू में शेषन ने कहा था, "मुझे याद है कि मुझसे पहले मुख्य चुनाव आयुक्त, क़ानून मंत्री के दफ़्तर के बाहर बैठ कर इंतज़ार किया करता था कि उसे कब अंदर बुलाया जाए.

मैंने तय किया कि मैं कभी ऐसा नहीं करूंगा. हमारे दफ़्तर में पहले सभी लिफ़ाफ़ों पर लिख कर आता था, चुनाव आयोग, भारत सरकार. मैंने उन्हें साफ़ कर दिया कि मैं भारत सरकार का हिस्सा नहीं हूँ."

साल 1992 के शुरू से ही शेषन ने सरकारी अफ़सरों को उनकी ग़लतियों के लिए लताड़ना शुरू कर दिया था. उसमें केंद्र के सचिव और राज्यों के मुख्य सचिव भी शामिल थे.

दो अगस्त, 1993 को रक्षाबंधन के दिन टीएन शेषन ने एक 17 पेज का आदेश जारी किया. इसमें कहा गया था कि जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, तब तक देश में कोई भी चुनाव नहीं कराया जाएगा.

शेषन ने अपने आदेश में लिखा था, "जब तक वर्तमान गतिरोध दूर नहीं होता, जो कि सिर्फ़ भारत सरकार द्वारा बनाया गया है, चुनाव आयोग अपने-आप को अपने संवैधानिक कर्तव्य निभा पाने में असमर्थ पाता है.

उसने तय किया है कि उसके नियंत्रण में होने वाले हर चुनाव, जिसमें हर दो साल पर होने वाले राज्यसभा के चुनाव और विधानसभा के उप चुनाव भी, जिनके कराने की घोषणा की जा चुकी है, आगामी आदेश तक स्थगित रहेंगे."

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शेषन ने पश्चिम बंगाल की राज्यसभा सीट पर चुनाव नहीं होने दिया था जिसकी वजह से उस समय केंद्रीय मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा.

पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु इतने नाराज़ हुए थे कि उन्होंने उन्हें 'पागल कुत्ता' कह डाला था.

पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उस समय कहा था, "हमने पहले कारख़ानों में 'लॉक-आउट' के बारे में सुना था, लेकिन शेषन ने तो प्रजातंत्र को ही 'लॉक-आउट' कर दिया है."

सरकार ने इसका तोड़ निकालने के लिए चुनाव आयोग में दो और चुनाव आयुक्तों जीवीजी कृष्मामूर्ति और एमएस गिल की नियुक्ति कर दी थी.

शेषन इनके साथ सहयोग नहीं करते थे और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा. सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया कि मुख्य चुनाव आयुक्त की अनुपस्थिति में दूसरे चुनाव आयुक्त को चार्ज दिया जाएगा.

शेषन ने अपने कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से लेकर हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल गुलशेर अहमद और बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव किसी को नहीं बख़्शा. उन्होंने बिहार में पहली बार चार चरणों में चुनाव करवाया और चारों बार चुनाव की तारीखें बदली गईं. ये बिहार के इतिहास का सबसे लंबा चुनाव था.

शेषन के समय में ही चुनाव आयोग में सदस्य रहे एमएस गिल ने कहा था, "शेषन का सबसे बड़ा योगदान था कि वो चुनाव आयोग को 'सेंटर- स्टेज' में लाए. इससे पहले तो मुख्य चुनाव आयुक्त का पद गुमनामी में खोया हुआ था और हर कोई उसे 'टेकेन फ़ॉर ग्रांटेड' मान कर चलता था."

बुधवार के दिन सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग पर सवाल उठाते हुए एक उदाहरण के साथ सरकार से पूछा कि कभी किसी पीएम पर आरोप लगे तो क्या आयोग ने उनके ख़िलाफ़ ऐक्शन लिया है?

जस्टिस केएम जोसेफ़ ने कहा, “हमें एक सीईसी की आवश्यकता है जो पीएम के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई कर सके. उदाहरण के लिए मान लीजिए कि प्रधान मंत्री के ख़िलाफ़ कुछ आरोप हैं और सीईसी को कार्रवाई करनी है. लेकिन सीईसी कमज़ोर घुटने वाला है. वह ऐक्शन नहीं लेता है. क्या यह सिस्टम का पूर्ण रूप से ब्रेकडाउन नहीं है?”

सीईसी को राजनीतिक प्रभाव से अछूता माना जाता है और स्वतंत्र होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “ये ऐसे पहलू हैं जिन पर आपको ( सरकार) ध्यान रखना चाहिए. हमें चयन के लिए एक स्वतंत्र निकाय की आवश्यकता है.” पीठ ने सरकार से कहा, “आप हमें निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया हमें समझाएं.’ हाल ही में आपने एक आयुक्त की नियुक्ति की है. किस प्रक्रिया के तहत आपने उनको नियुक्त किया है?”

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मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा मोदी सरकार और उससे पहले की कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार पर भी निशाना साधा.

अदालत से सरकार से पूछा कि आख़िर क्या कारण हैं कि 2007 के बाद से सभी मुख्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल छोटा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया, “1991 के अधिनियम के तहत पद धारण करने वाले मुख्य निर्वाचन अधिकारी का कार्यकाल छह साल का है. फिर उनका कार्यकाल कम क्यों रहता है?”

जस्टिस जोसेफ़ की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि उसका प्रयास एक प्रणाली बनाने का है, ताकि सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति मुख्य निर्वाचन आयुक्त बने.

पीठ ने कहा था, “हमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को चुनना होगा. सवाल है कि हम सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को कैसे चुनें और कैसे नियुक्त करें.”

अटॉर्नी जनरल वेंकटरमाणी ने अदालत में सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि सबकुछ 1991 के क़ानून के तहत किया जाता है और फ़िलहाल ऐसा कोई भी ट्रिगर प्वाइंट नहीं है जहां अदालत को हस्तक्षेप करने की ज़रूरत है.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट अटॉर्नी जनरल की बातों से ज़्यादा सहमत नहीं दिखी. अदालत ने कहा कि 1991 का क़ानून ईसी और सीईसी के सर्विस नियमों की बात करता है उनकी नियुक्ति का नहीं.

अदालत ने कहा कि नियुक्ति के मामले में संविधान की ख़ामोशी और क़ानून की कमी के कारण सरकारों का जो रवैया रहा है वो परंपरा परेशान करने वाली है.

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी ने सुप्रीम कोर्ट में जारी सुनवाई का स्वागत करते हुए कहा कि जिस मुद्दे को लेकर चुनाव आयोग को बहुत चिंता थी, उन्हें इस बात की ख़ुशी है कि सुप्रीम कोर्ट ने आख़िरकार सुनवाई शुरू कर दी है. बीबीसी हिंदी से बातचीत में क़ुरैशी ने कहा कि 1993 में बहुसदस्यीय चुनाव आयोग बन जाने के बाद से कई सीईसी ने इस बात को उठाया था कि आयुक्तों की नियुक्ति में नेता प्रतिपक्ष को भी शामिल किया जाना चाहिए.

क़ुरैशी के अनुसार लॉ कमीशन ने भी यह सिफ़ारिश की थी.

उन्होंने कहा कि मौजूदा प्रक्रिया के तहत सरकार जिसको चाहे चुनाव आयोग का सदस्य बना देती है, लेकिन नेता प्रतिपक्ष को शामिल करने के बाद सरकार की आज़ादी पर अंकुश लगेगा और कोई भी सरकार इसे नहीं छोड़ना चाहती है.

सुप्रीम कोर्ट के ‘यस मैन’ की टिप्पणी के बारे में पूर्व सीईसी ने कहा कि हर नया चुनाव आयुक्त सरकार को ख़ुश करने में लग जाता है क्योंकि उसे पता है कि वो सीईसी बनेगा या नहीं यह सरकार की मर्ज़ी पर ही निर्भर करता है.

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लेकिन हाल के कुछ वर्षों में चुनाव आयोग के कामकाज और ख़ासकर उसकी निष्पक्षता को लेकर जो सवाल उठे हैं, उस पर एस वाई क़ुरैशी का कहना है, “बदक़िस्मती से 2019 के चुनाव के दौरान 30-35 अख़बारों की सुर्ख़ी थी जिसमें चुनाव आयोग के काम पर बहुत टीका-टिप्पणी की गई थी.

अच्छा काम करें या बुरा, जनता को सब कुछ दिखाई देता है. पिछले कुछ दिनों में सवाल तो उठे हैं.” बीबीसी से बातचीत में उन्होंने आगे कहा, “एक चुनाव आयुक्त ने तो ख़ुद ही विरोध किया था और उसको इतना तंग किया गया. और उसे बाद में निकाल दिया गया. यह कोई मामूली बात तो नहीं है.”

लेकिन सुप्रीम कोर्ट से एसवाई क़ुरैशी को काफ़ी उम्मीदें हैं. उन्होंने कहा, “मुझे तो बड़ी उम्मीद है. कोर्ट ने पहले ही दिन जिस तरह सख़्त रवैया दिखाया उससे मुझे लगा कि कोर्ट बहुत गंभीर है और उसने नब्ज़ के ऊपर हाथ रख दिया है.” पूर्व सीईसी ने अपने सुझाव देते हुए कहा, “ऐसा कोई क़ानून नहीं है कि सबसे वरिष्ठ सदस्य को ही सीईसी बनाया जाए. यह सिर्फ़ एक कंवेन्शन है और सरकार अगर इसको तोड़ दे तो क्या होगा. इसलिए इसको सरकार की मनमर्ज़ी पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए. इस पर संस्थानिक गारंटी (इंस्टीट्यूशनल सेफ़गार्ड) होनी चाहिए.” अपनी सिफ़ारिशों को समझाते हुए क़ुरैशी ने कहा, “चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम से होनी चाहिए. सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त का सीआईसी बनना सुनिश्चित किया जाना चाहिए जैसे कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बनते हैं.”

उन्होंने कहा कि सीईसी को तो यह सुरक्षा है कि उसे बिना महाभियोग की प्रक्रिया के हटाया नहीं जा सकता है लेकिन चुनाव आयोग के दूसरे दो सदस्यों को हटाना बहुत आसान है.

उन्होंने अशोक लवासा का उदाहरण देते हुए कहा कि दोनों चुनाव आयुक्तों को सीईसी के रहमो करम पर छोड़ना ग़लत है, उन्हें भी यही सुरक्षा मिलनी चाहिए जो सीईसी को हासिल है. 2019 के आम चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उस समय बीजेपी अध्यक्ष रहे अमित शाह को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन मामले में चुनाव आयोग ने क्लीन चिट दिया था, लेकिन अशोक लवासा ने इसका विरोध किया था. उन्होंने माँग की थी कि उनके विरोध को चुनाव आयोग की आधिकारिक रिपोर्ट में दर्ज किया जाए, लेकिन उस समय सीईसी रहे सुनील अरोड़ा ने इसे आयोग का आंतरिक मामला क़रार देते हुए कहा था कि बिना कारण विवाद पैदा किया जा रहा है.

निर्वाचन की नियुक्ति कौन करता है?

उत्तर : राष्ट्रपति। भारत के संविधान के अनुच्छेयद 324(2) के अधीन, भारत के राष्ट्रपति को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तोंे को नियुक्त करने की शक्तियां दी गई है।

भारत के प्रथम मुख्य निर्वाचन अधिकारी कौन थे?

मुख्य चुनाव आयुक्त.

निर्वाचन आयोग में कुल कितने पदाधिकारी होते हैं?

संरचना आयोग में वर्तमान में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं।

भारत में निर्वाचन कराने वाली संस्था का क्या नाम है?

भारत निर्वाचन आयोग एक स्‍वायत्‍त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में निर्वाचन प्रक्रियाओं के संचालन के लिए उत्‍तरदायी है। यह निकाय भारत में लोक सभा, राज्‍य सभा, राज्‍य विधान सभाओं और देश में राष्‍ट्रपति एवं उप-राष्‍ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों का संचालन करता है।